Sandhi Kise Kahate Hain: हिंदी भाषा भले ही बोलने में आसान लगे परंतु इसका व्याकरण बहुत ही विस्तृत है। हिंदी सही से बोलने पढ़ने और लिखने के लिए हिंदी ग्रामर को अच्छे से समझ ना बहुत ही जरूरी है। हिंदी ग्रामर में अनेकों विषय शामिल है और आज हिंदी ग्रामर के एक महत्वपूर्ण विषय संधि के बारे में आज के इस लेख में विस्तार पूर्वक जानेंगे।
आगे इस लेख में हम आपको संधि किसे कहते हैं, संधि की परिभाषा (sandhi ki paribhasha), संधि कितने प्रकार के होती हैं (sandhi ke bhed) एवं संधि के उदाहरण बताने वाले हैं। यदि आप आगे चलकर हिंदी भाषा में साहित्यकार बनना चाहते हैं या हिंदी भाषा में माहिर होना चाहते हैं तो यह लेख आपके लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है। इसीलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
Sandhi Kise Kahate Hain
संधि का अर्थ मेल होता है। जब दो वर्ण या दो अक्षर एक दूसरे से मिलते हैं तो उनके रूप एवं उच्चारण में होने वाले परिवर्तन को ही संधि कहा जाता है। जब दो वर्ण एक दूसरे से मिलते हैं तो होने वाले विकार ही संधि कहलाती हैं और इससे बनने वाले शब्द का उच्चारण भी बदल जाता है। इस तरह एक ही वाग्धारा में उच्चारित दो समीपस्थ ध्वनियों के परस्पर सन्धि कहलाता है।
संधि के उदाहरण
- चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय
- कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी
- सूर्य + उदय = सूर्योदय
- लोक + कल्याण = लोकल्याण
- देव + ऋषि = देवर्षि
- वधू + आगमन = वध्वागमन
- महा + देव = महादेव
- मान + चित्र = मानचित्र
- सौभाग्य + आकांक्षिणी = सौभाग्याकांक्षिणी
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय
- आत्मा + आनंद = आत्मानंद
- छाया + चित्र = छायाचित्र
- स + अवधान = सावधान
उपरोक्त उदाहरण में आप देख सकते हैं कि प्रत्येक उदाहरण में प्रथम शब्द का अंतिम उच्चारण एवं दूसरे शब्द का प्रथम उच्चारण जब एक दूसरे से मिलते हैं तो बनने वाले संपूर्ण शब्द के उच्चारण में थोड़ा सा परिवर्तन आ जाता है।
जैसे चिकित्सा का अर्थ होता है इलाज करना और आलय का अर्थ होता है घर या जगह। लेकिन जब यह दो शब्द मिल जाते हैं तो बन जाता है चिकित्सालय यानी कि जहां पर इलाज होता है वह स्थान।
इसी तरह महा का अर्थ होता है बड़ा या महान एवं देव का अर्थ होता है भगवान लेकिन जब यह दोनों शब्द मिलते हैं तो बन जाता है महादेव, जो भगवान शिव हैं। इस तरह बहुत बार दो शब्द मिलने से इनके ध्वनियों में बदलाव तो आता ही है लेकिन इनके शाब्दिक अर्थ भी बदल जाते हैं।
इसी तरह एक और उदाहरण देखते हैं कि वाचनालय = वाचन + आलय। वाचनालय में प्रथम शब्द वाचन का अंतिम ध्वनी ध्वनि अ है और दूसरा शब्द आलय का प्रथम ध्वनि आ है। जब एक ही स्वर में उच्चारित किया जाता है तो दोनों ध्वनि प्रबाहवित होकर मात्र आ का उच्चारण करती है, इसे ही संधि कहा जाता है।
इसी तरह गणेश में भी गण + ईश से मिलकर बना गया। इस शब्द में प्रथम शब्द का अंतिम उच्चारण ‘अ’ है, वहीँ दूसरे शब्द ‘ईश’ का प्रथम स्वर ‘ई’ है। लेकिन जब दोनों ही स्वर मिलते हैं तो ‘ए’ स्वर की उत्पत्ति हो जाती है, जिससे यहां पर इन दो अलग-अलग शब्दों का मेल गणेश उच्चारित होता है।
संधि विच्छेद किसे कहते हैं?
संधि विच्छेद संधि का विपरीत होता है। संधि का अर्थ जोड़ना या मेल होता है, वहीँ संधि विच्छेद का अर्थ विभाजन करना होता है। संधि में हम दो अलग-अलग वर्णो को मिलाते हैं, जिससे एक नए शब्द का निर्माण होता है।
लेकिन संधि विच्छेद में एक शब्द का दो विभाजन करके अलग-अलग वर्ण बनाया जाता है। यानी कि संधि विच्छेद में शब्द फिर से संधि होने से पहले के स्वरूप में ही आ जाता है।
जैसे
- विद्यालय = विद्या + आलय
उपरोक्त उदाहरण में विद्यालय एक पूर्ण शब्द है लेकिन इनका संधि विच्छेद कर देने से दो अलग-अलग शब्द बन गए और इन दोनों अलग-अलग शब्दों का अर्थ अलग अलग हो जाता है।
ऐसे ही अन्य उदाहरण
- संधि = संधि-विच्छेद
- दिगम्बर = दिक् + अम्बर
- पराधीन = पर + आधीन
- गणेश = गण + ईश
- पितांबर = पिता + अम्बर
संधि के भेद
संधि के मूल तहत तीन प्रकार होते हैं।
स्वर संधि की परिभाषा
जब दो स्वर वर्णों का मेल किया जाता है तब जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहा जाता है। इस प्रकार किसी भी वर्ण में स्वर के बाद स्वर आने से उन दो स्वरों के मेल में जो परिवर्तन होता है, वही स्वर संधि कहलाता है। या हम इस तरह भी कह सकते हैं जब संधि के पहले शब्द का अंतिम वर्ण स्वर हो तो वह स्वर संधि होता है।
स्वर संधि के उदाहरण
- कवि + ईश्वर = कवीश्वर
- रजनी + ईश = रजनीश
- देव + आगमन = देवआगमन
- अति + अधिक = अत्यधिक
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
उपरोक्त उदाहरण में आप देख सकते हैं प्रत्येक उदाहरण में प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण एवं द्वितीय शब्द का प्रथम वर्ण दोनों ही स्वर है।
स्वर संधि के भेद
स्वर संधि के पांच भेद होते हैं।
दीर्घ संधि की परिभाषा
दिर्घ संधि ऐसे दो शब्दों का मिलन होता है, जिसमें दो स्वर के मिलने से दिर्घ स्वर का उच्चारण होता है। ऐसे शब्दों में प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण या फिर द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण में अ, इ, उ स्वर आता है। जब यह दोनों मिलते हैं तब बनने वाले शब्द का उच्चारण दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाता है। उदाहरण के द्वारा हम इसे स्पष्ट तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
- स + अवधान = सावधान
- अन्ध + अनुगामी = अन्धानुगामी
- अति + इन्द्रिय = अतीन्द्रिय
- गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
- हरि + ईश = हरीश
- वधू + उत्सव = वधूत्सव
- भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
उपरोक्त सभी शब्दों में प्रथम शब्द का अंतिम स्वर एवं द्वितीय शब्द का प्रथम स्वर के मिलने से दीर्घ उच्चारण करने वाले स्वर “आ, ई, ऊ” की उत्पत्ति होती है। जैसे हरी + ईश संधि में हरी जो प्रथम शब्द है, उसका अंतिम स्वर इ हैं लेकिन द्वितीय शब्द का प्रथम शब्द ई है। लेकिन यहां जब इन दोनों शब्दों का मेल होता है तब इ + ई मिलकर दिर्घ ई का उच्चारण करते हैं।
दीर्घ संधि के उदाहरण
(अ + अ = आ)
- मुर + अरि = मुरारि
- तिल + अंजलि = तिलांजलि
- अधिक + अंश = अधिकांश
- रोम + अवलि = रोमावली
- पूर्व + अह्न = पूर्वाह्न
- रत्न + अवलि = रत्नावली
- नील + अंचल = नीलांचल
- ऊह + अपोह = ऊहापोह
- शश + अंक = शशांक
- स्व + अनुभूत = स्वानुभूत
- न्यून + अधिक = न्यूनाधिक
- पद + अर्थ = पदार्थ
- परम + अर्थ = परमार्थ
- दाव + अनल = दावानल
- काम + अयनी = कामायनी
- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
(अ+आ = आ)
- प्राण + आयाम = प्राणायाम
- दीप + आधार = दीपाधार
- देव + आलय = देवालय
- छात्र + आवास = छात्रावास
- विजय + आंकाक्षी = विजयाकांक्षी
- कुश + आसन = कुशासन
- विवाद + आस्पद = विवादास्पद
- सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
- शिव + आलय = शिवालय
- शाक + आहारी = शाकाहारी
- फल + आहार = फलाहार
- रत्न + आकर = रत्नाकर
- सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
- भ्रष्ट + आचार = भ्रष्टाचार
- मरण + आसन्न = मरणासन्न
- धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
- स्नेह + आकांक्षी = स्नेहाकांक्षी
- सौभाग्य + आकांक्षिणी = सौभाग्याकांक्षिणी
- परम + आत्मा = परमात्मा
- विशाल + आकाय = विशालाकाय
- हिम + आलय = हिमालय
- अन + आक्रान्त = अनाक्रान्त
- रस + आभास = रसाभास
(आ + आ = आ)
- चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय
- आत्मा + आनंद = आत्मानंद
- कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी
- गदा + आघात = गदाघात
(आ + आ = आ)
- भाषा + आबद्ध = भाषाबद्ध
- महा + आनंद = महानंद
- महा + आशय = महाशय
- वार्ता + आलाप = वार्तालाप
- दया + आनंद = दयानंद
(आ + अ = आ)
- महा + आनंद = महानंद
- महा + आत्मा = महात्मा
- तथा + अपि = तथापि
- युवा + अवस्था = युवावस्था
- द्वारिका + अधीश = द्वारिकाधीश
- दीक्षा + अन्त = दीक्षान्त
- विद्या + आलय = विद्यालय
(इ + इ = ई)
- अति + इन्द्रिय = अतीन्द्रिय
- गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
- अभि + इष्ट = अभीष्ट
- अति + इव = अतीव
- कवि + इंद्र = कवींद्र
- रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
- मुनि + इंद्र = मुनींद्र
(इ + ई = ई)
- अभि + ईप्सा = अभीप्सा
- परि + ईक्षा = परीक्षा
- क्षिति + ईश = क्षितिश
- गिरी + ईश = गिरीश
- हरि + ईश = हरीश
- प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा
- गिरि + ईश = गिरीश
- कपि + ईश = कपीश
(ई + इ = ई)
- नारी + इंदु = नारींदु
- लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा
- मही + इंद्र = महिंद्र
- शची + इंद्र = शचींद्र
(ई + ई = ई)
- नारी + ईश्वर = नारीश्वर
- मही + ईश = महीश
- नदी + ईश = नदीश
- रजनी + ईश = रजनीश
- योगी + ईश्वर = योगीश्वर
(उ + उ = ऊ)
- लघु + उत्तर = लघूत्तर
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- भानु + उदय = भानूदय
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- लघु + उत्तर = लघूत्तर
- भानु + उदय = भानूदय
- सु + उक्ति = सूक्ति
(उ + ऊ = ऊ)
- लघु + उर्मि = लघूर्मि
- साधु + ऊर्जा = साधूर्जा
- मधु + ऊष्मा = मधूष्मा
- सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
(ऊ + उ = ऊ)
- भू + उद्धार = भूद्धार
- वधू + उल्लास = वधूल्लास
- वधू + उत्सव = वधूत्सव
- भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
(ऊ + ऊ = ऊ)
- भू + ऊर्जा = भूर्जा
- भू + ऊष्मा = भूष्मा
- वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
- भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व
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वृद्धि संधि की परिभाषा
वृद्धि संधि ऐसे दो शब्दों के मेल को कहते हैं, जिसमें प्रथम पद का अंतिम वर्ण ‘अ’ या ‘आ’ हो तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण ‘ए’ या ‘ऐ’ हो तो संधि के फलस्वरूप निर्माण होने वाले शब्द में इस वर्ण का उच्चारण बड़ा ‘ऐ’ हो जाता है। वहीँ जब प्रथम पद का अंतिम वर्ण अ या आ हो और द्वितीय पद का प्रथम वर्ण ओ या औ हो तो संधि के फलस्वरूप इनका उच्चारण औ होता है।
वृद्धि संधि के उदाहरण
- एक + एक = एकैक
- लोक + एष्णा = लोकैषणा
- वन + औषधि = वनौषधि
- परम + औदार्य = परमौदार्य
- महा + औषध = महौषध
- सदा + एव = सदैव
- तथा + एव = तथैव
- महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
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गुण संधि की परिभाषा
गुण संधि में ऐसे दो शब्दों का उच्चारण होता है, जिसमें प्रथम शब्द का अंतिम स्वर एवं प्रथम शब्द का प्रथम स्वर जब एक दूसरे से मिलते हैं तो उनका उच्चारण किसी तीसरे स्वर में होता है। जैसे गुण संधि के नियम के अनुसार जब किसी शब्द का अंतिम स्वर अ या आ हो और उसका मिलन दूसरे ऐसे शब्द से हो, जिसका प्रथम स्वर इ, ई हो तो उसका उच्चारण ए स्वर में होता है।
गुण संधि के उदाहरण
- नर + इंद्र = नरेंद्र
- सूर + इंद्र = सुरेंद्र
- उमा + इंद्र = उमेंद्र
- रमा + इंद्र = रमेंद्र
- महा + ईश = महेश
- राका + ईश = राकेश
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- निक + ईश = निकलेश
- महा + इंद्र = महेंद्र
- पुष्प + इंद्र = पुष्पेंद्र
- नर + ईस = नरेश
गुण संधि के दूसरे नियम के अनुसार जब प्रथम पद का अंतिम वर्ण अ या आ हो तथा इनका मिलन ऐसे दूसरे पद से होता हो, जिसका प्रथम वर्ण उ या ऊ हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण का उच्चारण ओ स्वर होता है।
जैसे
- मानव + उचित = मानवोचित
- दया + उर्मि = दयोर्मि
- महा + ऊष्मा = महोष्मा
- महा + उदय = महोदय
- महा + उत्सव = महोत्सव
- सूर्य + ऊर्जा = सूर्योर्जा
- नव + ऊढा = नवोढ़
- पर + उपकार = परोपकार
इसी तरह गुण संधि के तीसरे नियम के अनुसार जब प्रथम पद का अंतिम वर्ण अ या आ हो तथा इसका मिलन दूसरे जिस पद से होता है, उसका प्रथम वर्ण ऋ हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाले वर्ण का उच्चारण अर् होता है।
जैसे
- राज + ऋषि = राजर्षि
- देव + ऋषि = देवर्षि
- महा + ऋषि = महर्षि
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यण संधि की परिभाषा
यम संधि ऐसे शब्दों के मिलन को कहते हैं जब इ, ई या उ, ऊ या ऋ भिन्न-भिन्न वर्ण वाले अंतिम एवं प्रथम वर्ण वाले शब्दों का मिलन होने से क्रमशः य, व्, र् बनता है। यण संधि के 3 नियम होते हैं।
यण संधि के प्रथम नियम के अनुसार जब किसी प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण इ या ई हो और जब वे अपने सजा के स्वरों को छोड़कर किसी दूसरे स्वर के साथ जुड़ते हैं तो संधि के फलस्वरूप बनने वाले वर्ण का उच्चारण य होता है एवं इस प्रक्रिया में यदि असमान स्वर पर कोई भी मात्रा होता है तो वह संधि के पश्चात के साथ जुड़ जाता है।
जैसे
- इति + आदि = इत्यादि
- अति + आचार = अत्याचार
- यदि + अपि = यद्यपि
- अति + अधिक = अत्यधिक
- नि + ऊन = न्यून
वही इसके दूसरे नियम के अनुसार जब प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण उ या ऊ हो और ऐसे शब्द जब अपने सजातीय स्वरों को छोड़कर किसी अन्य स्वर वाले शब्द के साथ जुड़ते हैं तो संधि के फलस्वरूप उत्पन्न वर्ण का उच्चारण व् होता है और दूसरे शब्द वर्ण के ऊपर कोई मात्रा लगी हो तो वह संधि के पश्चात व् के साथ जुड़ जाती है।
जैसे
- वधू + आगमन = वध्वागमन
- अनु + अय = अन्वय
- सु + आगत = स्वागत
- अनु + एषण = अन्वेषण
- अनु + इति = अन्विति
इसी तरह यह संधि के तीसरे नियम के अनुसार जब ऋ अंतिम वर्ण वाले शब्द किसी अन्य सामान स्वर वाले शब्दों के साथ जुड़ते हैं तब संधि के फलस्वरूप वर्ण र् का निर्माण होता है और संधि में असमान स्वर के ऊपर कोई भी मात्रा लगी होती है तो वह र् के साथ जुड़ जाता है।
जैसे
- पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
- पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
- पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
- मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
- मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
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अयादि संधि की परिभाषा
अयादि संधि उन्हें कहते हैं जब किसी ऐसे शब्दों का मिलन जिसके अंतिम वर्ण ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ स्वर हो और वे दूसरे स्वरों से मिलते हो तो संधि के फलस्वरूप ‘ए’ का ‘अय’ ‘ऐ’ का ‘आय’ और ‘ओ’ का ‘अव’, ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है।
जैसे
- ने + अन = नयन
- पौ + अन = पावन
- भौ + अन = भावना
- शे + अन = शयन
- गै + अक = गायक
- पो + अन = पवन
- भो + अन = भवन
- नै + अक = नायक
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व्यंजन संधि की परिभाषा
जब किसी ऐसे शब्द जिसके अंतिम वर्ण व्यंजन हो एवं इसके साथ जुड़ने वाला दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण स्वर या व्यंजन हो तो संधि के पश्चात जो परिवर्तन होता है, वही व्यंजन संधि कहलाता है।
व्यंजन संधि के उदाहरण
- सत् + वाणी = सदवाणी
- दिक् + भ्रम = दिगभ्रम
- वाक् + ईश = वागीश
- वाक् + मय = वाड्मय
- द्रष् + ता = द्रष्टा
- सत् + जन = सज्जन
- सत् + आचार = सदाचार
- अप् + ज = अब्ज
- अनु + छेद = अनुच्छेद
- सम् +गम = संगम
- उत् + लास = उल्लास
- सत् + नारी = सन्नारी
- अलम् + कार = अलंकार
- उत् + हार = उद्धार
- जगत् + ईश = जगदीश
- परि + छेद = परिच्छेद
व्यंजन संधि में स्वर्ण वर्ण का व्यंजन वर्ण से मेल करता है, वहीँ किसी शब्द में व्यंजन वर्ण का स्वर वर्ण से मेल होता है तो कभी किसी व्यंजन वर्ण का व्यंजन वर्ण से मेल होता है। व्यंजन संधि में शब्दों में परिवर्तन कुछ निम्नलिखित कारणों से होता है:
- आदेश – जब संधि के दौरान किसी वर्ण के स्थान पर किसी दूसरे वर्ग को लिख दिया जाता है तो उसे आदेश कहा जाता है।
- लोप – शांति के दौरान यदि दो वर्णों को हटा दिया जाए तो उसे लोप कहते हैं।
- आगम – संधि के दौरान यदि किसी अतिरिक्त वर्ण को लिखा जाता है तो उसे आगम कहा जाता है।
- प्रकृतिभाव – जब किसी शब्दों के संधि के दौरान आदेश, आगम या लोप में से कोई भी स्थिति ना हो तो उसे की प्रकृतिभाव कहते हैं।
व्यंजन संधि के कुछ नियम
व्यंजन संधि के कुछ नियम इस प्रकार है:
प्रथम नियम के अनुसार यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल अनुनासिक वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पांचवा वर्ण हो जाता है। जैसे
- उत् + मत्त = उन्मत्त
- चित् + मय = चिन्मय
- वाक् + मय = वाङ्मय
- षट् + मुख = षण्मुख
दूसरे नियम के अनुसार यदि ‘त्’ के बाद यदि ‘च’, ‘छ’ हो तो ‘त्’ का ‘च्’ हो जाता है और ‘त्’ के बाद यदि ‘ज’, ‘झ’ हो तो ‘त्’ ज में बदल जाता है। लेकिन यदि ‘त’ के बाद यदि ‘ल’ हो तो ‘त्’, ‘ल्’ में बदल जाता है। जैसे
- उत् + चारण = उच्चारण
- जगत् + छाया = जगच्छाया
- सत् + जन = सज्जन
- उत् + लास = उल्लास
- उत् + लेख = उल्लेख
- जगत् + जननी = जगज्जननी
- उत् + ज्वल = उज्जवल
तीसरे नियम के अनुसार यदि ‘ऋ’, ‘र’, ‘ष’ के बाद ‘न’ हो तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है। जैसे
- राम + अयन = रामायण
- परि + नाम = परिणाम
- प्र + नाम = प्रणाम
चौथे नियम के अनुसार यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के साथ ह वर्ण का मेल हो तो वर्ग का प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण में आदेश हो जाता है। उसके बाद हा के स्थान पर प्रथम वर्ण के वर्ग का ही चौथा वर्ण लिखा जाता है। जैसे
- पत् + हति = पद्धति
- अप् + हरण = अब्भरण
- सित् + हान्त = सिद्धान्त
- षट् + हार = षड्ढार
- वाक् + हरि = वाग्घरि
- अच् + हीन = अज्हीन
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विसर्ग संधि की परिभाषा
संधि उसे कहते हैं जब किसी प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण में विसरृग लगा हो और जब वह किसी दूसरे स्वर और व्यंजन के साथ मिलते हैं तब विसर्ग में जो परिवर्तन होता है।
विसर्ग संधि के उदाहरण
- मन: + योग = मनोयोग
- तप: + भूमि = तपोभूमि
- नि: + आहार = निराहार
विसर्ग संधि के नियम
प्रथम नियम के अनुसार यदि विसर्ग से पहले ‘अ’, ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’ हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है। जैसे
- पय: + द = पयोद
- मन: + योग = मनोयोग
- मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
- तप: + बल = तपोबल
- वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
द्वितीय नियम के अनुसार यदि विसर्ग के पहले को स्वर हो और बाद में ‘च’, ‘छ’, ‘श’ हो तो विसर्ग का ‘श’ हो जाता है। जैसे
- नि: + चिंत = निश्चित
तिसरे नियम के अनुसार यदि विसर्ग पहले ‘अ’, ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो और बाद में ‘आ’, ‘उ’, ‘ऊ’ या प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा पांचवा वर्ण हो तो विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है जैसे
- दु: + ऊह = दुरुह
- बहि: + मुख = वहिर्मुख
- नि: + आशा = निराशा
- नि: + धन = निर्धन
- दु: + उपयोग = दुरुपयोग
चौथे नियम के अनुसार यदि विसर्ग से पहले यदि ‘इ’, ‘उ’ के बाद ‘क’, ‘ख’, ‘ट’, ‘ठ’, ‘प’ में कोई वर्ण हो तो ‘विसर्ग’ का ‘ष’ हो जाता है। जैसे
- नि: + प्राण = निष्प्राण
- नि: + कपट = निष्कपट
- नि: + फल = निष्फल
विसर्ग संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
FAQ
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
गज + इन्द्र = गजेन्द्र
राका + ईश = राकेश
ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय
पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
परम + ईश्वर = परमेश्वर
रमा + ईश = रमेश
उपरोक्त उदाहरण वृद्धि संधि का उदाहरण है। क्योंकि महौषध में प्रथम शब्द महा का अंतिम वर्ण है एवं औषध पद का प्रथम वर्ण औ है और इन दोनों के संधि फलस्वरूप बनने वाले शब्द में वर्ण का उच्चारण औ हो जाता है। और यह नियम वृद्धि संधि का है।
यदि किसी शब्द के अंतिम वर्ण में ‘इ’,‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ऋ होता है और वे अपने सजाते स्वरों को छोड़कर किसी दिन में स्वर वाले शब्द के साथ जोड़ते हैं तो संधि के पश्चात क्रमशः ‘इ’ और ‘ई’ का ‘य’ हो जाता है। और ‘उ’ और ‘ऊ’ का ‘व’ हो जाता है। यण संधि की परिभाषा होती है।
जब किसी निसर्ग लगे हुए शब्दों का मिलन किसी दूसरे शब्द से होता है लेकिन प्रथम पद के अंतिम वर्ण में विसर्ग लगा है ओश्र उसके पहले यदि अ, य,र,ल या व हो तो संधि के पश्चात विसर्ग ओ हो जाता है।
जब कभी-कभी दो शब्दों में से किसी एक ध्वनि (स्वर या व्यंजन) का लोप हो जाता है तो उसे लोप का नियम कहते हैं जैसे कि
नाक + कटा = नकटा
वह + ही = वही
दूध + हाँडी = दुधौड़ी
यहाँ + ही = यहीं
किस + ही = किसी
निष्कर्ष
आज के इस लेख में आपने हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण भाग संधि की परिभाषा उदाहरण सहित (sandhi kise kahte hai) विस्तार पूर्वक जाना। आज के इस लेख में आपको संधि की परिभाषा, संधि के प्रकार एवं उसके उदाहरण जानने को मिले।
हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक के जरिए अन्य लोगों के साथ जरुर शेयर करें। इस लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न या सुझाव हो तो आप हमें कमेंट में लिख कर बता सकते हैं।
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