Lipi Kise Kahate Hain: हिंदी साहित्य में भाषा एक विस्तृत अध्याय है। हर एक भाषा की अपनी लिपि होती है। लिपि के जरिए ही भाषा को स्थाई रूप दे सकते हैं।
लिपि मानव सभ्यता का एक अहम और अभिन्न हिस्सा है, जो हर व्यक्ति को अपनी भावनाओं और विचारों को अद्वितीय तरीके से सभी के सामने व्यक्त करने के लिए माध्यम है।
यदि भाषा नहीं होगी तो हम आपस में अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाएंगे और अपने विचारों को एक गति नहीं दे पाएंगे। लिपि से ही भाषा को लिखित रूप दिया जाता है।
आखिर लिपि किसे कहते हैं?, इसका क्या इतिहास है? इस लेख में हम लिपि की परिभाषा, लिपि के कितने भेद होते हैं, लिपि और भाषा में क्या अंतर है और अलग-अलग भाषा की क्या लिपि है उसके बारे में जानेंगे।
लिपि किसे कहते है?
लिपि का अर्थ लिखने का ढंग, किसी भाषा की लिखावट होती है। भाषा को स्थाई रूप देने के लिए, भाषा को लिखित रूप में दर्शाने के लिए जिन प्रतिको का उपयोग किया जाता है, उन्हें ही लिपि कहा जाता है।
हिंदी भाषा के वर्णमाला में हर एक वर्णों को किस ढंग से लिखना है यह लिपि के जरिए ही मालूम पड़ता है। ठीक उसी तरह हिंदी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के वर्णों को लिखने के लिए अलग-अलग प्रतिको का इस्तेमाल होता है, वही लिपि कहलाता है।
लिपि का महत्व
मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान वाणी से करता है। हमारे मुख से निकली ध्वनियां हमारे पास में मौजूद व्यक्ति ही सुन सकता है और वही हमारे विचारों को जान सकता है।
लेकिन हमसे कोसो दूर व्यक्ति को अगर कुछ बताना हो तो ऐसे में हमें ध्वनियों को लिखित स्वरूप देने की जरूरत पड़ती है।
ध्वनियों को लिखित स्वरूप देने के लिए ही लिपि का विकास हुआ, जिसमे ध्वनियों को लिखित स्वरूप देने के लिए विभिन्न तरह के प्रतीक और संकेतों का इस्तेमाल होता है।
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लिपि और भाषा में अंतर
- भाषा को सुन सकते हैं, समझ सकते हैं लेकिन लिपि को हम देख सकते हैं। इस तरह भाषा श्रव्य होता है जबकि लिपि दृश्य होता है।
- लिपि के लिए भाषा की आवश्यकता होती है लेकिन भाषा के लिए लिपि की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि प्राचीन समय में मौखिक रूप से ही हजारों वर्षों तक विचारों का आदान-प्रदान होता था।
- भाषा में ध्वनि संकेत के माध्यम से भावना व्यक्त होती है लेकिन लिपि में लिखित संकेतों के जरिए विचारों व भावनाएं व्यक्त होती है।
- भाषा तुरंत प्रभावकारी होती है जबकि लिपि विलंब से प्रभावकारी होता है क्योंकि उसे पहले लिखित रूप देना पड़ता है, उसके बाद समझा जाता है।
- भाषा की उत्पत्ति लिपि से पहले हुई जबकि लिपि आवश्यकता के अनुसार बाद में विकसित हुआ।
- भाषा में किसी भौतिक साधन की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन लिपि में भोजपत्र, शिलालेख, कागज, कलम ताम्रपत्र जैसे भौतिक साधनों की जरूरत पड़ती है।
- भाषा में सूर, लहर, बालाघात का महत्वपूर्ण स्थान होता है जबकि लिपि में ऐसा संभव नहीं है।
- भाषा समय और स्थान से बंधा हुआ है जबकि लिपि समय और स्थान से बाधित नहीं है।
- भाषा मुख से ध्वनि के रूप में निकलते ही गायब हो जाता है, इसीलिए भाषा अस्थाई होता है जबकि लिपि स्थाई होता है।
लिपि के प्रकार
लिपि मुख्यतः यह तीन प्रकार की होती हैं, जो निम्न है:
- चित्र लिपि
- ब्राह्मी लिपि
- फोनीशियन लिपि
चित्र लिपि
चित्र लिपि मिश्र की प्राचीन लिपि है। इसका चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों में भी उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की लिपि का प्रयोग मिश्रवासियों के द्वारा 4000 वर्षों तक किया जाता रहा।
लिपि के इस प्रकार में लिखित प्रतीक व संकेतों के स्थान पर विशेष प्रतिमा व छवि का इस्तेमाल होता है, जिसे ऑडियोग्राम कहते हैं। हर एक चित्र का अपना व्यक्तिगत अर्थ होता है। मिश्र लेखन में चित्र लिपि सबसे अलंकृत लिपि है।
यह अन्य लिपियो की तुलना में काफी कठिन है। क्योंकि अन्य लिपि में सीमित संख्या में प्रतीक का इस्तेमाल होता है जबकि चित्र लिपि में बहुत सारे चित्रों की जरूरत पड़ती है।
ब्राह्मी लिपि
ब्राह्मी लिपि को भारत की सबसे प्राचीनतम लिपि माना जाता है। कई सारी लिपियों का निर्माण ब्राह्मी लिपि से ही हुआ है। इस लिपि का इस्तेमाल दक्षिण एशिया व दक्षिण पूर्व एशिया में किया जाता है।
यह लिपि मात्रात्मक लिपि है, जिसमें लिखने के लिए मात्रा का प्रयोग होता है। इस लिपि की खास विशेषता यह है कि इसे दाएं से बाएं लिखा जाता है और फिर बाएं से दाएं।
सबसे पहले वैदिक आर्यों के द्वारा ब्राह्मी लिपि का प्रयोग शुरू हुआ था। ब्राह्मी लिपि का विकास काफी विवादस्पद रहा। कुछ लोगों का मानना था कि ब्राह्मी लिपि की शुरुआत पहली शताब्दी में हुई तो कुछ लोग का मानना था कि इसका विकास छठी शताब्दी में हुआ।
हालांकि प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को अक्षर अंक का ज्ञान दिया था और फिर उसने ही इस लिपि का निर्माण किया था। सम्राट अशोक के काल में कई शिलालेखों पे ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया गया था।
देवनागरी लिपि, गुजराती लिपि, तमिल लिपि, तेलुगू लिपि, मलयालम, गुरुमुखी, तिब्बती लिपि, बंगाली लिपि जैसे कई सारे लिपियों का उदय ब्राह्मी लिपि से हुआ है।
फोनीशियन लिपि
फानीशियन लिपि 1000 ईसा पूर्व भूमध्य सागरीय क्षेत्र में रहने वाले फोनीशियन सभ्यता के द्वारा विकसित हुई थी। भूमध्यसागरीय क्षेत्र में पाए गए कनानी और अरामी शिलालेखों से फोनिशियन लिपि का प्रमाण मिला है।
फोनीशियन सभ्यता के लोग समुद्री मार्ग के व्यापार से जुड़े होने के कारण इस लिपि का प्रचार दूर-दूर तक हुआ है। यही कारण है कि आधुनिक काल के लगभग सभी प्रमुख भाषाओं की लिपि किसी न किसी तरीके से फोनिशियन लिपि से संबंधित है।
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अन्य प्रमुख लिपि
खरोष्ठी लिपि
सम्राट अशोक के कुछ अभिलेखों से खरोष्ठी लिपि का प्रमाण मिलता है। यह लिपि पश्चिम भारत के क्षेत्र में प्रचलित थी, जिसे बाएं से दाएं लिखा जाता था। यह लिपि अरमाइक और सीरियाई लिपि से विकसित थी। 37 वर्णों के इस लिपि में स्वर और मात्राओं का भाव था।
देवनागरी लिपि
देवनागरी लिपि उत्तर भारत के विभिन्न भाषाओं की लिपि है। यह लिपि अत्यंत व्यवस्थित और वैज्ञानिक लिपि है। ब्राह्मी लिपि से ही देवनागरी लिपि उत्पन्न हुई है।
भारतीय संविधान में देवनागरी लिपि को मान्यता प्रदान है। हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, कोंकणी, भोजपुरी जैसी कई उत्तर पश्चिम भारतीय भाषाएं हैं, जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
गुरुमुखी लिपि
पंजाबी भाषा गुरुमुखी लिपि में लिखी जाती है। इस लिपि का विकास सिखों के दसवें गुरु अंगद के द्वारा किया गया था और इस लिपि से उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया था।
ग्रंथ लिपि
ग्रंथ लिपि सभी दक्षिण भारत के भाषा में प्रयोग होने वाली लिपि है। इसका विकास दक्षिण भारत के पल्लव, पांड्य और चोल शासकों के द्वारा किया गया था।
राज सिंह के द्वारा बनाए गए कैलाश मंदिर के शिलालेख पर ग्रंथ लिपि का प्रयोग हुआ है। महाबलीपुरम में धर्मराज रथ पर भी ग्रंथ लिपि में विवरण है।
भारत की 22 भाषाएं और उनकी लिपि
भाषा का नाम | लिपि का नाम |
---|---|
हिंदी | देवनागरी |
मराठी | |
संस्कृत | |
कोकड़ी | |
संथाली | |
वोंडो | |
नेपाली | |
डोंगरी | |
मैथिली | |
तेलुगू | ब्राह्मी |
तमिल | |
मलयालम | |
कन्नड़ | कन्नड़ और ब्राह्मी |
उर्दू | फारसी |
कश्मीरी | फारसी |
सिंधी | फारसी |
गुजराती | गुजराती |
पंजाबी | गुरुमुखी |
ओडिया | ओडिया |
बांग्ला | बांग्ला |
मणिपुरी | मणिपुरी |
असमिया | असमिया |
निष्कर्ष
उपरोक्त लेख में आपने लिपि के बारे में जाना। लिपि क्या होती है, लिपि की परिभाषा (lipi ki paribhasha), लिपि के प्रकार और लिपि और भाषा में अंतर के बारे में इस लेख में बताया।
हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए लिपि से जुड़ी सभी जानकारी आपको मिल गई होगी। जो बच्चे किसी खास भाषा विषय से पढ़ाई कर रहे हैं, उनके लिए यह लेख बहुत यह जानकारी पूर्ण है। इसलिए इस लेख को सोशल मीडिया के जरीए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।
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