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सम्राट अशोक का जीवन परिचय और इतिहास

चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य वंश के सबसे शक्तिशाली शासक थे। सम्राट अशोक को महान भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने देश तथा समाज के लिए अनेक सारे कार्य किए, जो उन्हें महान बनाते हैं। सम्राट अशोक ने भारत के विशाल साम्राज्य पर सफलतापूर्वक शासन किया था। इस दौरान उन्होंने अनेक सारी लड़ाइयां लड़ी तथा धर्म का प्रचार-प्रसार किया।

सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे, जिन्होंने भारत पर 269 से 232 ईसवी तक शासन किया था। सम्राट अशोक मौर्य वंश के एकमात्र ऐसे राजा आते हैं, जिन्होंने अखंड भारत पर शासन किया था। बता दें कि मौर्य वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी, आचार्य चाणक्य ने ही चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया था, जिसके पुत्र राजा बिंदुसार (जोकि सम्राट अशोक के पिता थे) उन्होंने मौर्य सम्राट के विस्तार हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

Samrat Ashok History in Hindi

सम्राट अशोक ने अपने अपने शासनकाल में अखंड भारत का निर्माण किया तथा पूरे भारत को एक सूत्र और एक शासन में बांध लिया। सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान एक छत्र संपूर्ण भारत पर राज किया था। इस दौरान उन्होंने अनेक सारी लड़ाइयां लड़ी तथा उनमें विजय प्राप्त की थी।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अनेक सारे शिलालेख बनवाएं, भारत भर में अनेक सारे शिक्षण संस्थान बनवाएं, बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया, लोगों के लिए जन कल्याणकारी नीतियां बनाई, कलिंग युद्ध में विजय प्राप्त की तथा अशोक स्तंभ का निर्माण करवाया।

आज के समय में हमारे भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ तथा भारत के तिरंगे यानी राष्ट्रीय ध्वज पर अंकित अशोक चक्र भी सम्राट अशोक की ही देन है। अशोक ने इन दोनों ही स्तंभों को एकता के प्रतीक के रूप में बनवाया था, जो आज भी भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में प्रचलित है।

सम्राट अशोक की जीवनी और इतिहास और उनके विषय में हर भारतीय को जानना चाहिए। इसीलिए आज हम आपको सम्राट अशोक के बारे में पूरी जानकारी विस्तार से बताने वाले हैं।

सम्राट अशोक का जीवन परिचय और इतिहास (जन्म, शिक्षा, राज्याभिषेक, कार्य, युद्ध, मृत्यु, फिल्म)

सम्राट अशोक की जीवनी एक नजर में

नामसम्राट अशोक
अन्य नामचंदशोक, अशोक दी ग्रेट, अशोक महान, अशोक मौर्य, मगध का राजा
जन्म और जन्मस्थान304 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र (वर्तमान में पटना)
पिता का नामबिंदुसार
माता का नामसुभद्रांगी (रानी धर्मा)
पत्नी का नामदेवी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता व कारुवाकी (4 पत्नियाँ)
संतानेंपुत्र (4) – महेंद्र, संघमित्रा, तीवल व कनाल
पुत्री (1) – चारुमति
शासनकाल269 ई.पू से 232 ई.पू
राज्याभिषेक272 ईसा पूर्व
उपाधिचक्रवर्ती सम्राट, देवनामप्रिय
प्रसिद्दिमहान राजा के रूप में
रचनाएँ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ और ‘अशोक चक्र’
राजवंशमौर्य राजवंश
मृत्यु232 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र
समाधिपाटलिपुत्र

सम्राट अशोक का जन्म और परिवार

सम्राट अशोक का वास्तविक नाम अशोका था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्म पाटलिपुत्र में 304 ईसवी में हुआ था। सम्राट अशोक के पिता का नाम बिंदुसार एवं माता का नाम धर्मा है। सम्राट अशोक की 4 पत्नियां थी, जिनका नाम देवी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता व कारुवाकी है।

सम्राट अशोक की पांच संताने थी, जिनमें 4 पुत्र तथा एक पुत्री थी। सम्राट अशोक के चार पुत्र जिनके नाम महेंद्र, संघमित्रा, तीवल व कनाल थे। उनकी एक पुत्री चारुमति थी।

सम्राट अशोक की शिक्षा

सम्राट अशोक बचपन से ही अत्यंत कुशल एवं ज्ञानी थें। सम्राट अशोक को गणित तथा अर्थशास्त्र का ज्ञान था। वे एक शक्तिशाली शासक थे, जिन्होंने देश के प्रत्येक कोने-कोने तक शिक्षा का प्रचार प्रसार किया था। सम्राट अशोक को अर्थशास्त्र एवं गणित का महान ज्ञाता कहा जाता।

सम्राट अशोक ने प्रारंभिक शिक्षा अपने घर से ही शुरू की थी। माता धर्मा ने ही सबसे पहले ज्ञान तथा शिक्षा दी थी। उसके बाद अशोक ने पाटलिपुत्र में ही अपनी शिक्षा ग्रहण की थी।‌ यहां पर उन्होंने अपने गुरु से गणित तथा अर्थशास्त्र का उचित ज्ञान प्राप्त किया, जिसके बाद वे एक महान ज्ञानी बन गए।

जब अशोका सम्राट बने तब उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी अनेक साले कार्य किए, जिससे लोग शिक्षा ग्रहण करके विकसित हो सके।

इतिहास के अनुसार अशोक ने अनेक सारे छोटे-बड़े शिक्षण संस्थानों की स्थापना की थी, जिससे लोगों को ज्ञान प्राप्त हो सके। सम्राट अशोक ने 284 ईसवी में बिहार में एक बहुत बड़े शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। शिक्षा तथा ज्ञान के क्षेत्र में किए गए उनके कार्यों से ही सम्राट अशोका को महान कहा जाता है।

सम्राट अशोक का प्रारंभिक जीवन

सम्राट अशोक का प्रारंभिक जीवन काफी कठिनाइयों और परेशानियों के साथ गुजरा था। सम्राट अशोक को प्रारंभिक जीवन में अपने ही राज परिवार से काफी ज्यादा दुख और परेशानियां उठानी पड़ी, क्योंकि सम्राट अशोक की मां धर्मा क्षत्रिय कुल से नहीं थी, इसीलिए उन्हें अछूत कहा जाता था।

कई प्रकार के ताने दिए जाते थे, उनकी मां का क्षत्रिय कुल नहीं होने पर परिवार द्वारा दिए गए ताने अशोक को हमेशा चुभा करते थे। सम्राट अशोक ने अपने प्रारंभिक जीवन में अनेक सारे युद्ध लड़े तथा आम जनता के बीच घुल मिल गए थे। आम जनता ने अशोक को खुब प्यार दिया।

सम्राट अशोक के पिता बिंदुसार शासन किया करते थे।‌ उस समय तक्षशिला एक अत्यंत ही समृद्ध और सुगम राज्य हुआ करता था। उस समय यहां पर भारतीय लोगों के बराबर यूनानी लोगों की संख्या थी। बता दें कि उस समय भी भारत में विदेशी आया करते थे, जिनका मुख्य कारण व्यापार करना था। लेकिन उनकी नजर भी सत्ता पर काबिज होने की रहती थी।

उस समय सुशील को तक्षशिला का पंतप्रधान बना दिया था, जो कि सम्राट अशोक का बड़ा भाई था। उस समय तक्षशिला में विभिन्न जाति व धर्म के लोग रहते थे तथा यहां विदेशी भी निवास करते थे। इसलिए सही तरह से प्रशासन का कार्य नहीं कर सकने के कारण यहा देखते ही देखते एक बहुत बड़ा विद्रोह खड़ा हो गया।

विद्रोह की जलती आग को रोकने के लिए राजा बिंदुसार में छोटे पुत्र चक्रवर्ती सम्राट अशोक को तक्षशिला भेजा था। जहां उन्होंने कुछ ही समय में विद्रोह को समाप्त कर लिया। इस दौरान सम्राट अशोक लोगों के बीच में चहेते बन गए और उन्होंने अब तक अपना नाम कमाना शुरू कर दिया था।

सम्राट अशोक ने बिना किसी युद्ध के तक्षशिला में विद्रोह को खत्म कर दिया तथा विद्रोहियों को मार दिया था। उनकी बढ़ती प्रसिद्धि को देखते हुए सम्राट अशोक के बड़े भाई सुशील घबरा गए। उन्हें अपनी सत्ता का डर सताने लगा। सुशील ने कुछ दिनों में पिता बिंदुसार से निवेदन करके सम्राट अशोक को कलिंग भेज दिया गया। जहां पर सम्राट अशोक को राजकुमारी कोरवकी से प्रेम हो गया।

सम्राट अशोक जब कलिंग में रह रहे थे, तभी उज्जैन में विद्रोह उठना शुरू हो गया। इस बात की जानकारी बिंदुसार को लगते ही उन्होंने अशोक को पुनः बुला लिया तथा उज्जैन भेज दिया। सम्राट अशोक ने अपनी सूझबूझ और ताकत से उज्जैन में भी विद्रोहियों को मार कर शांति स्थापित कर दी।

लोगों ने उसे अपना सम्राट मानना शुरू कर दिया। एक बार फिर सम्राट अशोक लोगों के दिलों में राज करने लगे। देखते ही देखते हर जगह सम्राट अशोक की चर्चा होने लगी।

सम्राट अशोक की बढ़ती प्रसिद्धि को देखते हुए उसके बड़े भाई सुशील ने उन्हें मारने की अनेक सारी योजना बनाई तथा कई बार उन्होंने कोशिश भी की। फिर भी सम्राट अशोक बच गये। जब यह बात सम्राट बिंदुसार को पता चली तो उन्होंने सम्राट अशोक तथा सुशील दोनों ही भाइयों को अलग-अलग कर दिया।

उसी समय संपूर्ण भारत में सम्राट अशोक की प्रसिद्ध इस तरह बढ़ने लगी कि वहां की प्रजा सम्राट अशोक को अपना राजा मानने लगी, सम्राट बनाने की बात करने लगी। जानकारों के अनुसार उस समय सम्राट अशोक को राजा बनाना एकदम उचित था, वे सम्राट बनने लायक थे।

परंतु उनके बड़े भाई सुशील उनकी राहों में कांटे लगा रहे थे, वे खुद सम्राट बनना चाहते थे। वहीं दूसरी तरफ उनके पिता व तत्कालीन सम्राट बिंदुसार अनेक बीमारियों तथा उम्र के साथ ढलान की तरफ बढ़ रहे थे। उनके स्वास्थ्य में दिन-प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा था।

सम्राट अशोक का राज्याभिषेक

सम्राट अशोक अपने भाइयों से छोटे थे, इसलिए उन्हें सिंहासन प्राप्ति हेतु अत्यंत संघर्ष करना पड़ा। हालांकि संपूर्ण जनता उनके पक्ष में ही थी। संपूर्ण जनता सम्राट अशोक को ही अपना राजा बनाना चाहती थी, परंतु उनके पिता सम्राट बिंदुसार ने इस बात की घोषणा नहीं की तथा उनके बड़े भाई भी इस बात में टांग अड़ा रहे थे।

सम्राट अशोक की बढ़ती प्रसिद्धि को देखते हुए, उनके भाइयों ने एक बार फिर अशोक को ऐसी जगह भिजवा दिया गया, जहां पर उन्हें मारने का पूरा खतरा था। फिर भी वे हमेशा की तरह बच निकले और अपनी मौत को चकमा देते रहे।

शिलालेखों के अनुसार मिली जानकारी के मुताबिक सम्राट अशोक अपने राज्याभिषेक से पहले अपने ही भाइयों और परिवार के लोगों की हत्या की थी, क्योंकि वह सम्राट अशोक के राजा बनने के बीच में आ रहे थे तथा उन्हें मारना भी चाहते थे।

इतिहास से जानकारी यह भी मिलती है कि उनके भाइयों ने उनकी पत्नी तथा उनकी माता को मार दिया था। इस बात से अत्यंत क्रोधित सम्राट अशोक ने अपने ही घर में नरसंहार करना शुरू किया। तब उनके आगे कोई भी नहीं टिक सका और किसी की भी उनको रोकने की हिम्मत नहीं हुई।

कहा जाता है कि तत्कालीन सम्राट बिंदुसार 273 ईस्वी में ज्यादा गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे तथा वे शासन करने के लायक नहीं थी। उसी समय सम्राट अशोक को सूचना मिली कि उनके सौतेले भाइयों ने उनके पत्नी को मार दिया है, जिसमें उसका बड़ा भाई सुशील भी शामिल था।

जिसके बाद सम्राट अशोक को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने नरसंहार करना शुरू कर दिया। उस समय सम्राट अशोक ने अनेक सारे अपने ही परिवार वालों को मौत के घाट उतारा था तथा स्वयं मौर्य साम्राज्य के सम्राट बन गया।

सम्राट बनने के बाद सम्राट अशोका ने अपने साम्राज्य का विस्तार बढ़ाना शुरू कर दिया‌‌। सम्राट अशोक अपने गुरु आचार्य चाणक्य अखंड भारत का सपना देख रहे थे और उनके इस सपने को साकार करने हेतु रात दिन एक कर रहे थे। इस दौरान सम्राट अशोक ने अनेक सारी लड़ाइयां लड़ी, जिसमें लाखों सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।

सम्राट अशोक के कार्य

सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान पूरे भारत में अनेक सारे कार्य किए हैं। सम्राट अशोक ने शासन के शुरुआती दिनों में शिक्षण संस्थानों का विस्तार किया, जिसमें छोटे-बड़े व हर प्रकार के शिक्षण संस्थान शामिल थे। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ज्ञान की प्राप्ति हो और वे शिक्षा ग्रहण कर सके।

सम्राट अशोक ने अनेक प्रकार की नई-नई युद्ध नीतियां अपनाई तथा युद्ध के क्षेत्र में अनेक सारे प्रयोग किये थे। सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान अनेक सारे महल, किले तथा इमारतों का निर्माण किया था।

सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हृदय परिवर्तित होने के बाद संपूर्ण भारत में अनेक जगहों पर धार्मिक भवन, मठ, स्तूप तथा स्तंभ का निर्माण करवाया था। सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए स्तुप में, सांची का प्रसिद्ध स्तूप तथा राजस्थान में स्थित स्तूप प्रसिद्ध है।

सम्राट अशोक का कलिंग युद्ध

सम्राट अशोक के सत्ता हाथ में आने के बाद में इतिहास का प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ, इसमें सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कर दिया था। बता दें कि सम्राट अशोक अखंड भारत का निर्माण करना चाहते थे, उनके इस निर्माण में जो भी राजा और राज्य सहमत नहीं थे, उन्हें सम्राट अशोक से युद्ध करना पड़ता था।

युद्ध के बल पर सम्राट अशोक ने लगभग सभी राजा और राज्यों को अपने अधीन कर लिया था। एक भारत का निर्माण कर रहे थे तभी कलिंग राज्य ने सम्राट ने अशोक की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया था।

बता दे कि उस समय सम्राट अशोक अत्यंत ताकतवर था तथा उन्होंने अपने राज्य की सीमा और सेना दोनों को काफी मजबूत बना दिया था। कलिंग के सम्राट अशोक की अधीनता स्वीकार नहीं करने पर सम्राट अशोक ने युद्ध छेड़ दिया, जिसमें लगभग 100000 लोगों की मौत होने की जानकारी मिलती है। इसमें सम्राट अशोक ने काफी ज्यादा रक्तपात किया था। लगभग 100000 लोगों के मरने से सम्राट अशोक को भी बहुत बड़ा आघात पहुंचा था।

बता दें कि लगभग आधे भारत पर “नंद वंश” का शासन था, जो समाप्त होते-होते एकमात्र कलिंग पर बचा था। इसीलिए कलिंग भी एक सशक्त राज्य था, जिससे युद्ध करने पर सम्राट अशोक को भी विचार विमर्श करना पड़ा। परंतु जब युद्ध हुआ तो इतना रक्तपात हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

सम्राट अशोक 13वें शिलालेख में ऐसे युद्ध के दौरान लगभग 100000 लोगों के मारे जाने तथा अपार नुकसान का वर्णन मिलता है। इस युद्ध में लाखों की संख्या में लोग घायल हुए थे। इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक द्वारा लगभग दो लाख सैनिकों को बंदी बना लिया गया था।

बता दें कि कलिंग तथा सम्राट अशोक के मध्य लड़ा गया यह युद्ध सम्राट अशोक के जीवन का सबसे बड़ा “पहला और आखिरी” युद्ध था, जिसमें लाखों सैनिकों ने भाग लिया था।

इतने सारे लोगों का रक्त बहता देखकर सम्राट अशोक ने जीवन में कभी भी युद्ध ना करने की घोषणा की थी। कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया था, जिसके बाद वे कभी ऊभर नहीं पाए थे। इसके बाद उन्होंने धर्म का प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया था।

कलिंग के युद्ध में हुए नरसंहार को देखने के बाद सम्राट अशोक काफी ज्यादा दुखी हो गए थे। उनका रहन-सहन, खान-पान, सोच विचार, व्यक्तित्व, रंगरूप इत्यादि सब कुछ परिवर्तन हो चुका था।

कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने शासन के दौरान दोषियों को दी जाने वाली सजा भी कम कर दी थी‌। सम्राट अशोक ने कहा था कि जितना हो सके, जहां तक हो सके, उतना लोगों को जीवनदान दिया जाए। इस तरह से अशोक के परिवर्तित होने की जानकारी सम्राट अशोक के शिलालेखों में मिलती है।

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सम्राट अशोक का धर्म परिवर्तन

कलिंग युद्ध में हुए अपार क्षति और लाखों सैनिकों के मौत के बाद सम्राट अशोक ने दया का भाव दिखाना शुरू कर दिया, वे मानव तथा जीवो के रक्षक बन गए। उन्होंने धर्म का प्रचार व प्रसार करना शुरू कर दिया था। इस दौरान उन्होंने अनेक सारे धार्मिक कार्य किए तथा जीवों की रक्षा हेतु हर संभव प्रयास किए थे।

कलिंग युद्ध का खौफनाक मंजर सम्राट अशोक की आंखों के सामने दिन और रात दिखाई देता था। उस खौफनाक मंजर ने सम्राट अशोक का ऐसा हदय परिवर्तन किया कि उन्होंने अपना धर्म छोड़ दिया तथा बौद्ध धर्म अपना लिया था। सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के अनुयाई बन गए तथा उन्होंने हर जगह बौद्ध धर्म का प्रचार व प्रसार किया। इस दौरान उन्होंने लोगों को मानव तथा जीवों के प्रति दया रखने का आग्रह किया।

सम्राट अशोक ने धर्म का प्रचार और प्रसार किस तरह किया है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सम्राट के शिलालेख भारत ही नहीं बल्कि भारत के आसपास के अनेक सारे देशों से मिले हैं।

सम्राट अशोक की मृत्यु

सम्राट अशोक अपने आखिरी समय पाटलिपुत्र में थे। पाटलिपुत्र को वर्तमान में पटना नाम से जानते हैं, जो बिहार में स्थित है। यहां पर सम्राट अशोक ने अपने 36 वर्षों के मौर्य साम्राज्य पर सफलतापूर्वक शासन करने के बाद अंतिम सांस ली थी।

सम्राट अशोक ने 232 ईसवी में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। सम्राट अशोक ने अपने जीवन में अनेक सारे महान कार्य किए हैं, जिनके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।

सम्राट अशोक के शिलालेख

भारत के महान सम्राट कहे जाने वाले चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य ने अपने शासनकाल के दौरान अनेक सारे शिलालेख खुदवाये थे, जिन्हें भारतीय इतिहास “अशोक के शिलालेखों” के नाम से जानता है। सम्राट अशोक ने शिलालेखों के जरिए मौर्य वंश की विस्तृत जानकारी बताई है।

बता दें कि सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में जितने भी शिलालेखों का निर्माण करवाया था, उनमें से 40 शिलालेख इतिहासकारों को भारत तथा आसपास के देश जैसे अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार इत्यादि जगहों से प्राप्त हुए हैं। इन सभी शिलालेख में अशोक के शासनकाल में किए गए निर्माण कार्य, ज्ञान का प्रचार-प्रसार तथा उनके मौर्य वंश की वंशावली का वर्णन मिलता है।

अशोक के शिलालेखों में इस बात का वर्णन मिलता है कि उन्होंने क्षत्रिय धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाने के बाद देश तथा विदेश में बौद्ध धर्म का प्रचार व प्रसार करने हेतु अत्यंत बल दिया था। उन्होंने अपने अनेक सारे मंत्री तथा विधान लोगों को भी देश के कोने-कोने में धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए भेजा था।

सम्राट अशोक हमेशा जीव दया तथा अहिंसा का पाठ पढ़ाने लगे, वे बौद्ध धर्म के बहुत बड़े अनुयाई बन गए, जो बाद में धार्मिक सहिष्णुता शासक कहलाए। सम्राट अशोक ने भारत के आस पास वाले देशों में भी अपने पुत्र और अपने पुत्री को धर्म का प्रचार-प्रसार करने हेतु भेज दिया था।

सम्राट अशोक ने भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका, ईरान, सीरिया इत्यादि देशों में अपने पुत्र और पुत्री को भेजा था, लेकिन उनमें से श्रीलंका गए अशोक के सबसे बड़े पुत्र महेंद्र ने सफलता हासिल की थी।

महेंद्र ने श्रीलंका के राजा को बौद्ध धर्म अपनाने को कहा, जिसमें उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद श्रीलंका के राजा ने बौद्ध धर्म को राजधर्म में परिवर्तित कर दिया और पूरे देश में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

आज के समय में भी श्रीलंका में अनेक सारे अत्यंत प्राचीन गुफाएं, टिले, स्तूप तथा बौद्ध धर्म से संबंध रखने वाली इमारतें बनी हुई है‌। श्रीलंका से भी अशोक के शिलालेख प्राप्त हुए हैं, जिसमें अशोक के द्वारा किए गए धर्म का प्रचार व प्रसार का वर्णन मिलता है। बौद्ध धर्म में भगवान बुध के बाद मुख्य रूप से सम्राट अशोक का नाम लिया जाता है।

सम्राट अशोक फिल्म एवं सीरियल

सम्राट अशोक के शिलालेख से उनके जीवन और शासन काल के बारे में जानकारी मिलती है। सम्राट अशोक के शिलालेख के अनुसार लिखित इतिहास से हमें उनके जीवन, युद्ध, शासन काल तथा इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है।

परंतु इस जानकारी को अच्छी तरह से समझने हेतु सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित फिल्म और टीवी सीरियल भी बनाए गए हैं, जिन्हें देखकर आप सम्राट अशोक के जीवन को समझ सकते हैं।

सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित फिल्म सन 1994 में रिलीज हुई थी, जिसमें सम्राट अशोक की जीवनी दर्शाई गई है। इसके अलावा सम्राट अशोक पर आधारित एक टीवी सीरियल भी बन चुका है।

इस धारावाहिक का नाम “सम्राट अशोका” है। इस सीरियल में आपको काफी विस्तार से सम्राट अशोक के जीवन के बारे में जानने और समझने को मिलेगा।

FAQ

सम्राट अशोक किस जाति से संबंध रखते थे?

सम्राट अशोक क्षत्रिय जाति से संबंध रखते थे।

सम्राट अशोक का जन्म कब हुआ था?

चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्म पाटलिपुत्र में 304 ईसवी में हुआ था।

सम्राट अशोक ने कौन-कौन से कार्य किए थे?

अशोक ने अखंड भारत की रचना की, जिसमें अशोक स्तंभ व अशोक चक्र का निर्माण करवाया, इसके अलावा सम्राट अशोक ने अनेक सारे शिक्षण संस्थान बनवाएं, धार्मिक स्थल बनवाए, मठ, टिले व भवन इत्यादि का निर्माण कराया था।

सम्राट अशोक को महान क्यों कहा जाता है?

सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान अनेक सारे ऐसे कार्य किए हैं, जिससे उन्हें महान कहते हैं। जैसे शिक्षा के क्षेत्र में लोगों को ज्ञान प्राप्ति हेतु, अनेक सारे शिक्षण संस्थान बनवाएं तथा कलिंग युद्ध में हुई अपार श्रुति के बाद देश तथा विदेश के कोने-कोने में धर्म का प्रचार व प्रसार किया। मानव तथा जन-कल्याण हेतु अन्य तरह की नीति व नियम बनाए इसीलिए उन्हें महान कहा जाता है।

सम्राट अशोक ने कितने वर्षों तक शासन किया था?

चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने 36 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया था। इस दौरान उन्होंने अनेक सारी लड़ाइयां लड़ी एवं अनेक सारे जन कल्याणकारी कार्य किए थे।

सम्राट अशोक का साम्राज्य कहां तक फैला हुआ था।

सम्राट अशोक का साम्राज्य ईरान से लेकर म्यांमार व चीन से लेकर श्रीलंका तक (एशिया के एक बहुत बड़े और विशाल भू भाग पर) फैला हुआ था।

सम्राट अशोक ने धर्म परिवर्तन क्यों किया?

सम्राट अशोक द्वारा किए गए कलिंग युद्ध में अपार क्षति हुई, जिसमें लगभग 100000 सैनिकों की मौत हुई, जिससे खून की नदियां बह गई तथा लाखों की संख्या में सैनिक घायल हुए। इस युद्ध में हुई अपार शक्ति और भयानक मंजर को देखकर सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया। इसके बाद सम्राट अशोक ने धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बन गए।

सम्राट अशोक ने आखिरी सांस कहां पर ली?

सम्राट अशोक ने अपनी आखिरी सांस पाटलिपुत्र में 232 ईसा पूर्व में ली थी।

सम्राट अशोक की जयंती कब मनाई जाती है?

संपूर्ण भारत वर्ष में सम्राट अशोक की जयंती हर वर्ष चैत्र मास के अष्टमी को धूमधाम से मनाई जाती है‌। इस दिन सम्राट अशोक का जन्म हुआ था।

निष्कर्ष

सम्राट अशोक को भारत के शक्तिशाली राजाओं की सूची में प्रमुख माना जाता है। सम्राट अशोक ने अपनी ताकत से अखंड भारत का निर्माण किया था। सम्राट अशोक का इतिहास इस आर्टिकल में हमने आपको विस्तार से बताया है।

उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल जरूर पसंद आया होगा। यदि इस आर्टिकल के संदर्भ में आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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