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श्री कृष्ण की सम्पूर्ण जीवन गाथा और बचपन की कहानी

Story of Lord Krishna in Hindi: भगवान श्री कृष्णा ने द्वापर युग में धरती पर जन्म लिया था। इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। धरती पर इनका अवतार लेने का मुख्य उद्देश्य धरती को राक्षसों के अत्याचार से मुक्त कराना था।

Story of Lord Krishna in Hindi
Image: Story of Lord Krishna in Hindi

भगवान श्री कृष्णा के जन्म से लेकर उनकी बचपन की संपूर्ण लीला, श्री कृष्ण की बचपन की कहानी के बारे में हम आज के इस लेख में बताने वाले हैं। यह लेख भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए बहुत ही खास है।

धरती पर भगवान श्री कृष्ण का अवतार

बहुत लंबे समय पहले की बात है जब धरती पर उग्रेशन का पुत्र दुष्ट कंस अन्य राक्षसों के साथ मिलकर लोगों पर अत्याचार कर रहा था।

उस समय धरती उसके दुष्कर्मों से परेशान होकर सहायता मांगने के लिए सुमेरु पर्वत पर भगवान ब्रह्मा के पास जाती है। भगवान ब्रह्मा पृथ्वी मां की प्रार्थना सुनते हैं और भगवान विष्णु से उनकी मदद करने के लिए फरियाद करते हैं।

भगवान विष्णु उनके सामने प्रकट होकर बोलते हैं कि हे पृथ्वी अब तुम्हें नहीं डरना है। क्योंकि धरती पर बहुत जल्दी केशवों की दो लटे कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम के रूप में जन्म लेने वाले हैं, जो इन दुष्ट राजाओं का नाश करके पृथ्वी को इन पापियों से मुक्त कराएगी।

राजा कंस

कंस मथुरा नगरी का एक दुष्ट राजा था। वह बहुत ही निर्दय था और वहां के लोगों पर बहुत ही ज्यादा अत्याचार करता था। लेकिन उसे अपनी बहन देवकी से बहुत ज्यादा स्नेहा था। इसलिए वह अपनी बहन की शादी बहुत ही धूमधाम से शूरसेन के पुत्र वासुदेव से कराता है।

यहां तक कि वह विदाई के दौरान वह अपनी बहन देवकी और वासुदेव के रथ को खुद ही हांकने लगता है। इसी बीच एक आकाशवाणी सुनाई देती है कि हे मूर्ख कंस तू जिसके रथ को हांक रहा है, इनका आठवां संतान ही तेरे वध्द का कारण होगा।

जिसे सुनने के बाद कंस गुस्से से भर जाता है और वह रथ रोक अपने म्यान से तलवार निकालता है और देवकी की हत्या करने के लिए उस पर उठाता है कि उसी समय वासुदेव उसके पैरों में झुक के गिरगिराने लगते हैं और कहते है कि हे कंस तुम मुझे और देवकी को छोड़ दो, इसके बदले में हमारी जितने भी संतान होगी, जन्म के तुरंत बाद हम उन्हें तुम्हें सौंप देंगे।

इसके बाद वह देवकी और वासुदेव की जान तो बक्श देता है लेकिन उन्हें अपने कारागार में डाल देता है। देवकी ने कारागार में एक-एक करके सात संतान को जन्म दिया लेकिन कंश ने उन सातों संतान की हत्या कर दी।

भगवान श्री कृष्ण का जन्म

देवकी आठवी संतान को जन्म देने वाली थी। आठवें संतान की रक्षा करने के लिए भगवान ने एक लीला रची। वृंदावन में वासुदेव के मित्र नंद जी रहा करते थे। उसी समय नंद जी की पत्नी यशोदा को भी संतान होने वाला था।

जिस रात देवकी आठवी संतान को जन्म देने वाली थी, उसी समय वासुदेव और देवकी के सपने में स्वयं भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और उन्हें कहते हैं कि वृंदावन में तुम्हारे मित्र नंद की पत्नी यशोदा के गर्भ से एक कन्या जन्म लेने वाली है, जो कि एक माया है।

तुम्हें अपने इस आठवे संतान की जान बचाने के लिए इसे उनके यहां सोंपना पड़ेगा और उस कन्या को यहां पर लाना होगा।

यहां का वातावरण अनुकूल नहीं है, फिर भी तुम्हें चिंता नहीं करना है। सभी पहरेदार सो जाएंगे तब कारागार के फाटक अपने आप खुल जाएगा, तुम्हें यमुना को पार करके वृंदावन जाना है।

भगवान श्री कृष्ण का वृंदावन आगमन

जब देर रात हो गई और सभी पहरेदार सो गए तब वासुदेव शिशु रूप श्री कृष्णा भगवान को एक टोकरी में रखकर कारागार से निकल पड़े।

वह दिन बहुत ही अलौकिक था क्योंकि उस दिन तूफान के साथ भयंकर वर्षा हो रही थी। सभी कारागार के फाटक अपने आप खुल गए। यमुना नदी में पहुंचते ही वासुदेव को नदी ने स्वयं रास्ता दे दिया। वासुदेव तूफान और बारिश के बीच नन्हे श्री कृष्ण को लेकर चल पड़े।

नवजात शिशु को बचाने के लिए यमुना से स्वयं शेषनाग प्रकट हो गए, जिन्होंने एक छाते की तरह भगवान श्री कृष्ण के शिशु रूप को वर्षा से भीगने से बचाया।

वासुदेव भगवान श्री कृष्ण को वृंदावन लेकर पहुंच गए और उन्होंने यशोदा के बगल में सोई उनकी कन्या को उठाकर वहां पर भगवान श्री कृष्ण को लेटा दिया और फिर उस कन्या को अपने साथ कंस के कारागाह में ले आए।

कंस को जब पता चला कि देवकी ने आठवीं संतान को जन्म दिया है, वह कारागार में जाता है और उनसे कन्या को छीन लेता है।

वह पृथ्वी पर कन्या को पटकना चाहता है कि इस समय वह कन्या आकाश में उड़ जाती हैं और दिव्य रूप में प्रकट होते हुए कंस को चेतावनी देते हुए कहती है कि हे मूर्ख तू मेरा क्या नाश करेगा, तेरा नाश करने वाला तो सुरक्षित जगह पर पहुंच चुका है। जल्दी तेरे पापों का दंड तुझे मिलेगा।

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भगवान श्री कृष्ण और राक्षसी पूतना

जब कंस को पता चला कि देवकी और वासुदेव का आठवां संतान वृंदावन में कहीं पर है तो उनकी हत्या करने के लिए वह पूतना नामक राक्षसी को वृंदावन भेजता है।

पूतना एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके वृंदावन पहुंचती है और यशोदा के घर पहुंच जाती है। वह यशोदा को अपने संतान को अपने गोद में लेकर खिलाने के लिए आग्रह करती हैं।

पूतना भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को अपने गोद में लेकर थोड़ी दूर निकल आती है और वह श्री कृष्ण को स्तनपान कराती है ताकि उसके जहर से नन्हे श्री कृष्णा की मृत्यु हो जाए।

लेकिन नन्हे श्री कृष्णा अपनी लीला दिखाते हैं, जिससे राक्षसी पूतना के स्तन में इतना दर्द होता है कि वह दर्द से बचाओ बचाओ चिखने लगती है।

तब सभी गांव वाले वहां पहुंचते हैं तो पता चलता है कि वह स्त्री एक राक्षस है। हालांकि नन्हे श्री कृष्ण के इस लीला को कोई समझ नहीं पाया।

नन्हे नटखट कान्हा

वृंदावन में नन्हे बालकृष्ण कन्हैया या कान्हा के नाम से प्यार से पुकारे जाते थे। वह बचपन से ही बहुत ही नटखट थे। उन्हें मक्खन बहुत ही पसंद था और सबके घरों से माखन चुरा कर खा जाते थे, इसलिए उन्हें माखन चोर भी कहा जाता था।

कृष्ण और उनके शाख के डर से वृंदावन की सभी औरतें मक्खन को छुपा के रखती थी। लेकिन वह कहीं भी मक्खन को छुपा के रख दे, भगवान श्री कृष्णा मक्खन के हांडी को ढूंढ ही लेते थे।

नटखट कान्हा की शिकायत लेकर हमेशा वृंदावन की गोपियों या अन्य औरतें मां यशोदा के पास आ जाती थी। एक दिन एक गोपी मां यशोदा के पास आकर नटखट कन्हैया का शिकायत लेकर आती है और कहती है कि आपका कान्हा बहुत ही नटखट है।

मां यशोदा पूछती हैं कि मेरे लला ने क्या किया? गोपी बोलती है कि मैं सुबह गाय का दूध निकालने गई थी तो मैंने देखा कि किसी ने बछड़े को खोल दिया और बछड़े ने गाय का सारा दूध पी लिया। तब मैंने देखा की कान्हा वहां पर खड़े मुस्कुरा रहा था। मैं समझ गई यह कान्हा की ही करतूत है।

इसी तरह एक बार वृंदावन की एक महिला मां यशोदा के पास भगवान श्री कृष्ण की माखन चुराने की शिकायत लेकर आती है। वह कहती हैं कि मैं आपके माखन चोर कान्हा से परेशान हो गई हूं। मैंने मटके को एक छींक पर लटका दिया था लेकिन तुम्हारा नटखट कान्हा अपने दोस्तों के साथ मेरे घर पर आया और मटकी को फोड़ सारा माखन चुरा लिया।

इस तरह नन्हे कृष्ण का जीवन वृंदावन में शरारत और नटखटपन के साथ बीत रहा था। वह गायों को चराते, अपने दोस्तों के साथ खेलते और इस बीच कई सारी लीलाएं भी करते थे।

श्री कृष्ण के द्वारा कालिया दमन लीला

श्री कृष्णा ने बचपन में कई लीलाएं दिखाई और उन्ही लीलाओं में से एक है कालिया नाग का दमन। भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को अपनी लीला से उसके घमंड को चूर-चूर कर दिया।

यह उस समय की बात है जब भगवान श्री कृष्णा अपने शखोओ के साथ गोकुल में खेल रहे थे और पास में ही यमुना नदी बहती थी।

उस समय यमुना नदी में कालिया नामक जहरीला नाग ने अपना घर बना लिया था, जिसने अपने विष के जहर से यमुना नदी के पूरे पानी को काला कर दिया था। उस पानी को पीकर गांव के कई पशु पंछी मरने लगे थे।

एक बार बाल कृष्णा अपने दोस्तों के साथ वहीं खेल रहे थे कि खेलने के दौरान अचानक से उनकी गेंद यमुना नदी में गिर गई। गेंद को वापस लाने के लिए भगवान श्री कृष्ण यमुना नदी में कूद पड़े।

हालांकि उनके शखोओ ने उन्हें बहुत रोका। भगवान श्री कृष्णा ने किसी की बात नहीं मानी और नदी में चलांग लगा दिए। सभी शखा डर के मारे मां यशोदा के पास पहुंचे और इस घटना की सूचना दी।

गांव के सभी लोग और मां यशोदा दौड़ते हुए यमुना नदी के पास आते हैं और वहां पर फूट-फूट कर रोने लगती हैं। भगवान श्री कृष्ण जब यमुना नदी के अंदर आए तो उस समय कालिया नाग सो रहा था।

श्री कृष्ण को देखकर उसकी पत्नी ने उन्हें जाने की चेतावनी दी लेकिन भगवान श्री कृष्ण नहीं गए। तब इस बीच कालिया नाग जाग उठा। भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को यमुना नदी से प्रस्थान करके इसे विष मुक्त करने के लिए कहा।

लेकिन कालिया नाग नहीं माना और वह अपने विशाल फन के साथ भगवान श्री कृष्ण पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा। भगवान श्री कृष्ण उसके घमंड को तोड़ने के लिए उसके फन पर खड़े होकर पृथ्वी जितना भार ला देते हैं, जिससे कालिया नाग को सहन नहीं हो पता है।

उसी समय उसकी पत्नी आती है और भगवान श्री कृष्ण से उन्हें छोड़ देने की विनती करती है। इधर कालिया नाग भी डर के मारे भगवान श्री कृष्ण से माफी मांगने लगता है। उसके बाद वह यमुना नदी से सदा के लिए चला जाता है और इस तरह यमुना नदी विष मुक्त हो जाती हैं।

श्री कृष्ण की गोवर्धन पर्वत लीला

गोकुल के लोग हमेशा अच्छी वर्षा के लिए भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के उद्देश्य से इंद्राओज यज्ञ किया करते थे।

एक बार भगवान श्री कृष्ण गोप ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो वहां पर उन्होंने गोपियों को 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच गान करते हुए देखा।

उन्होंने पूछा कि यह क्या हो रहा है? गोपियों ने कहा कि इंद्र की पूजा की तैयारी हो रही है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि इंद्र में क्या शक्ति है?

गोपियों ने कहा कि उन्ही के कारण तो वर्षा होती है और अच्छी फसल होती है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि उनसे ज्यादा शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है, जहां पर गाए चरती हैं, जिसके कारण वर्षा होती है।

भगवान श्री कृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत की अनेक विशेषता बताए जाने के बाद सभी बृजवासी इंद्र के स्थान पर गोवर्धन की पूजा करने के लिए तैयार हो जाते हैं।

जब यह बात भगवान इंद्र को पता चलती है तो वह बहुत क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध में आकर ब्रजभूमि पर मूसलाधार वर्षा शुरू कर देते हैं। इस भयंकर वर्षा से सभी बृजवासी भयभीत हो जाते हैं और श्री कृष्ण की शरण में जाते हैं।

तब पूरे ब्रजभूमि को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्णा अपने कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लेते हैं और फिर सभी लोग पर्वत के नीचे शरण लेते हैं जब तक की तूफान शांत ना हो जाए।

यह देख भगवान इंद्र को अपनी गलती का एहसास होता है और वे भगवान श्री कृष्णा से क्षमा याचना मांगने लगते हैं। इस तरीके से ब्रजभूमि पर श्री कृष्णा की यह लीला देख सभी बृजवासियों को भगवान श्री कृष्ण के दिव्य स्वरूप का ज्ञान हो जाता है।

FAQ

भगवान श्री कृष्ण कौन से जाती के थे?

भगवान श्री कृष्णा यादव वंश के क्षत्रिय जाति से ताल्लुक रखते थे।

भगवान श्री कृष्ण के माता-पिता का क्या नाम था?

भगवान श्री कृष्ण को जन्म देने वाले माता-पिता का नाम वासुदेव और देवकी था लेकिन इनका लालन-पालन करने वाली माता यशोदा और पिता नंद थे।

भगवान श्री कृष्ण के गुरु कौन थे?

भगवान श्री कृष्ण के गुरु का नाम महर्षि सांदीपनि था।

भगवान श्री कृष्ण द्वारिका में कब बसे?

भगवान श्री कृष्ण के द्वारा उनके मामा कंस का वध होने के बाद उसके ससुर जरासंध ने भगवान कृष्ण की खात्मा करने के लिए वह अक्सर मथुरा पर आक्रमण करता था। मथुरा के लोगों को सुरक्षित रखने के लिए भगवान श्री कृष्ण मथुरा को छोड़कर द्वारिका में बस गए थे।

निष्कर्ष

इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल्यावस्था में गोकुल में रहते हुए कई लीलाएं की। उनके सांवले रंग पर भी गोकुल की सभी गोपिया उन पर मोहित थी। भगवान श्री कृष्ण के मधुर बांसुरी की आवाज सुनकर पूरा ब्रज झूम उठा करता था।

चारों तरफ दिव्य वातावरण फैल जाता था। भगवान श्री कृष्णा जब 16 वर्ष के हुए उस समय में मथुरा आए और अपने मामा कंस की हत्या कर अपने असल माता-पिता वासुदेव और देवकी को मुक्त कराकर अपना कर्तव्य निभाया।

यहां पर कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा (Story of Lord Krishna in Hindi) और संपूर्ण कृष्ण लीला के बारे में विस्तार से बताया है।

हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख में भगवान श्री कृष्ण की संपूर्ण लीला आपको बहुत अच्छी लगी होगी। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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