Home > Festivals > जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है और कब मनाई जाती है?

जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है और कब मनाई जाती है?

इस लेख में जन्माष्टमी कब है?, जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है (janmashtami kyon manae jaati hai), जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है, जन्माष्टमी की कहानी और इतिहास, जन्‍माष्‍टमी का महत्‍व आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

श्री कृष्ण‌ भगवान को सृष्टि का रचयिता कहा गया है। सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण परमपिता परमेश्वर हैं, जिन्होंने त्रेता युग में भगवान श्री राम के रूप में जन्म लिया और राक्षसों का नरसंहार किया था।

krishan Janmashtami kyo manai jati hai
Krishna Janmashtami Kyu Manaya Jata Hai

श्री कृष्ण को सनातन धर्म में पूज्य देव माना गया है। भारत के कोने कोने में भगवान श्री कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं। श्री कृष्ण को विष्णु भगवान का अवतार माना गया है। श्री कृष्ण के जन्म के दिन ही जन्माष्टमी का उत्सव आयोजित करवाया जाता है।

श्री कृष्ण के जन्म के दिन को जन्माष्टमी के रूप में संपूर्ण भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी को भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के कई बड़े-बड़े देशों में भी इस उत्सव का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है।

जन्माष्टमी कब है?

भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी गुरुवार के दिन 6 सितंबर 2023 को है।

इस दिन लोग शाम के समय बड़े पैमाने पर दही हांडी कार्यक्रम का आयोजन करवाते हैं। कुछ समय नाच गाना चलता है, उसके बाद दही हांडी फोड़ कर श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण बचपन में मक्खन की हांडी को फोड़कर माखन खाया करते थे।

कृष्ण जन्माष्टमी का आरम्भ6 सितम्बर 2023, बुधवार
कृष्ण जन्माष्टमी का समापन7 सितम्बर 2023, गुरुवार

जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?

भगवान श्री कृष्ण ने भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मथुरा में मध्यरात्रि में अवतार लिया।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण विष्णु भगवान के आठवें अवतार है। भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के कहानी की शुरुआत मथुरा नगरी से होती है। मथुरा नगरी वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में स्थित है। एक समय मथुरा नगरी में कंस नाम का राजा राज करता था, जिससे संपूर्ण राज्य की प्रजा परेशान थी।

क्योंकि वह राजा राक्षस था, जो लोगों पर अत्याचार करता था, गरीब लोगों को मारता था, दिन प्रतिदिन लोगों पर अव्यवहार करता था। कंस हमेशा अपने शासन का विस्तार करना चाहता था।

इसीलिए उसने अपने शासन का विस्तार करने के लिए अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से करवा दिया ताकि उनके राज्य का विस्तार हो सके और वे बड़े पैमाने पर शासन कर सके।

कंस अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव के साथ संपन्न करने के बाद उन्हें अपने राज्य पहुंचाने के लिए जा रहा था तभी रास्ते में आकाश में आकाशवाणी हुई और आकाशवाणी के अंतर्गत कंस को कहा गया कि वह “जिस बहन का विवाह करके उसे पहुंचाने के लिए जा रहा है, उसी बहन का आठवां पुत्र उसका वध करेगा”। यह सुनकर कंस अपनी बहन देवकी को उसी समय मारना चाहा।

लेकिन वासुदेव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह अपनी सभी संतान को उनके सामने पेश कर देंगे, जिन्हें वह जन्म लेते ही मार सकते हैं। ऐसा कहने पर कंस ने वासुदेव की बात मान ली और अपने राज्य में कालकोठरी में अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को बंद करवा दिया।

कुछ समय बाद जब कंस की बहन देवकी और वसुदेव के पुत्र हुए तो कंस ने उसे लेकर मार दिया। ऐसा करते-करते कंस ने अपनी बहन देवकी और वसुदेव के होने वाले सभी सात पुत्रों को एक-एक करके मार दिया था।

कंस यह सोच रहा था कि जैसे-जैसे इसकी सब संतान होगी, वैसे वैसे यह सभी संतान को मार देगा। ऐसा करने से आकाशवाणी झूठी हो जाएगी और देवकी की संतानों से वह नहीं जायेगा, जिससे वह हमेशा के लिए अमर हो जाएगा।

लेकिन होनी को कौन रोक सकता है। आखिरकार भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने पिता वासुदेव और माता देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन सुबह जल्दी भगवान श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस की काल कोठरी में कैद माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया।

भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेते ही वहां पर उपस्थित सभी दरबारी निद्रा की मुद्रा में सो गए थे और उनकी जेल के ताले अपना आप ही खुल गए थे। यह नजारा देखकर वासुदेव को विश्वास हो गया कि यह भगवान का अवतार है और भगवान स्वयं इसे बचाना चाहते हैं।

ऐसा नजारा देखने के बाद वासुदेव ने बिना देर किए भगवान श्री कृष्ण को बांस से बनी छाबड़ी के अंदर रखकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए निकल गए।

भगवान विष्णु ने वासुदेव को कहा कि “श्री कृष्ण को गोकुल नगरी में निवास कर रहे यशोदा और नंद बाबा के पास पहुंचा दें। यहां पर श्रीकृष्ण सुरक्षित रहेगा। उसी दिन उनके गर्भ से एक लड़की का जन्म हुआ था, उसे भगवान विष्णु ने लाने के लिए कहा था।

जब वसुदेव श्री कृष्ण को अपने सर पर रख कर गोकुल नगरी पहुंचाने के लिए निकल पड़े। तब भयंकर आंधियां छूट गई और भयंकर बारिश हुई, जिससे बाढ़ आ गई और वासुदेव डूबने लग गए।

फिर भी वासुदेव ने स्वयं के डूबने पर भी हाथों को ऊपर कर दिया और श्रीकृष्ण को बचाने का प्रयास किया। पानी जब श्रीकृष्ण की छाबड़ी तक पहुंच गया तो श्रीकृष्ण ने छाबड़ी से एक पैर को बाहर निकाला और पानी को टच किया। पानी के स्पर्श होते ही पूरा पानी रास्ते से समाप्त हो गया। यह नजारा देख वासुदेव को विश्वास हो गया कि अवतार हैं।

पानी के समाप्त होते ही वासुदेव जल्दी से गोकुल नगरी पहुंचे और वहां पर नंद बाबा और उनकी पत्नी यशोदा को पूरे घटनाक्रम के बारे में पूरी जानकारी विस्तार से बताई। यह बात सुनकर यशोदा और उनके पति नंद बाबा अपनी पुत्री देने के लिए मान गए और श्री कृष्ण को अपने पास रख लिया।

वासुदेव नंद बाबा और यशोदा की पुत्री को लेकर वापस मथुरा नगरी पहुंच गए तथा कैद में जाकर फिर से बैठ गए तब तक सभी लोग सो रहे थे और किसी को कोई खबर नहीं हुई थी।

सूर्योदय होने के बाद उन के आठवें पुत्र होने की सूचना दी गई, तो कंस ने उनके आठवें पुत्र को मारने के लिए अपने पास मंगवाया।

कंस ने देखा कि यह लड़की है, जबकि आकाशवाणी ने कहा कि तुम्हारी बहन का आठवां पुत्र तुम्हें मारेगा। इस पर कंस ने शक किया और अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कोड़ों से मारा।

उन्हें कुछ भी जानकारी नहीं दी, जिससे कंस को यह विश्वास हो गया कि वह तो सब कैद में थे। आखिर ऐसा वे कुछ भी नहीं कर सकते। यही वह आठवी और आखिरी संतान है, जिससे उन्हें खतरा है।

ऐसा करते ही कंस ने उस लड़की को मारने के लिए उसे नीचे रखे पत्थर पर पटकना चाहा, तो वह लड़की कंस के हाथ से छूट कर ऊपर आकाश में चली गई और उसने भविष्यवाणी की तुम्हारा काल दूसरी जगह पर बड़ा हो रहा है, जिससे कंस को विश्वास हो गया कि अब वह सुरक्षित नहीं है। देवकी का आठवां पुत्र भगवान ने दूसरी जगह पर पहुंचा दिया है।

धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि कंस ने जिस लड़की को मारना चाहा था, वह लड़की आकाश में जाने के बाद बिजली बन गई। उस दिन से आकाश में बिजलियां कडड़ती है।

इस घटनाक्रम के बाद कंस ने देवकी के आठवें पुत्र को मारने के लिए तरह-तरह के राक्षस और तरह-तरह के योद्धाओं को बुलाया और उन्हें हर जगह उस बालक को ढूंढ कर मारने के आदेश दिया। लेकिन इस कार्य में कोई भी सफल नहीं हो सका।

आखिरकार कंस के राक्षसों ने गोकुलधाम में बड़े हो रहे श्री कृष्ण का पता लगा लिया, लेकिन वे उन्हें मारने में नाकामयाब रहे।

कई वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा और बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण ने अपने अत्याचारी मामा कंस का वध कर दिया था, जिसके बाद लोग उनके जन्मदिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाते हैं।

श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण लीला जन्म से मृत्यु तक विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास उनके मामा राक्षस के अंत से शुरू होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यावस्था में अपने मामा राक्षस कंस का वध किया था। तब लोगों को विश्वास हो गया कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि देव अवतार है, जिसे लोग भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने लगे और उन्हें देवता मांगने लगे।

भगवान श्री कृष्णा ने भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी को जन्म लिया था। इसीलिए उस समय से ही लोग उनके जन्मदिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में धूमधाम से मनाने लगे। इस दिन को लोग बुराई के ऊपर अच्छाई और अंधकार के ऊपर उजाड़ने के रूप में संसार में प्रेम तथा पुण्य की भावना से मनाते हैं।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने मामा रक्षस कंस का वध करके एक बार फिर धरती पर पून्य प्रेम और भक्ति का रास्ता संचार किया था।

इससे लोग अत्यंत खुश हुए। भगवान श्री कृष्ण बचपन से अत्यधिक माखन खाया करते थे। दूसरे आसपास के लोगों का मक्खन चोरी करके भी खाया करते थे।

यही वजह है कि आज के समय में संपूर्ण भारतवासी श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में दही हांडी फोड़ कर मनाते हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?

संपूर्ण भारत में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को धूमधाम से मनाया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लोग सुबह जल्दी उठते हैं और सूर्य उदय से पहले स्नान करके तैयार हो जाते हैं।

इस दिन लोग नए वस्त्र पहनते हैं। नए आभूषण पहनते हैं और सज धज कर तैयार हो जाते हैं। सुबह से ही लोग भगवान श्री कृष्ण के मंदिर जाते हैं। घर पर देवी देवता के स्थान पर साफ सफाई करते हैं।

गोमूत्र रहता गंगाजल का छिड़काव करते हैं और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति और उनकी तस्वीरों को साफ करते हैं। सुबह से ही लोग भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियों को दूध से नहलाने हैं, उन्हें मक्खन खिलाते हैं।‌ दही खिलाते हैं तथा दूध से बनी हुई मिठाइयां चढ़ाते हैं।

इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर मंदिर जाते हैं, भजन कीर्तन करते हैं। कृष्ण की कथा सुनाते हैंस भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेश सुनाते हैं। श्रीमदभगवत गीता का पाठ पढ़ाया जाता है।

श्री कृष्ण के जीवन की गाथाएं लोगों को सुनाई जाती हैं। इस अवसर पर उत्तर भारत के लोग फूल और रंग से होली खेलते हैं। लोग तरह तरह के कार्यक्रम का आयोजन करवाते हैं।

एक दूसरे के घर पर जाते हैं, घर में मिठाइयां बनाते हैं और हर्षोल्लास के साथ दिन भर श्री कृष्ण का गुणगान करते हैं। यह उत्सव संपूर्ण भारतीयों के लिए एक विशेष महत्व रखता है। भगवान श्री कृष्ण को सृष्टि के रचयिता के रूप में माना जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दोपहर के बाद समाज संस्था और गांव कस्बे के लोग मिलजुलकर दही हांडी उत्सव का आयोजन करते हैं।

इसके अंतर्गत भगवान श्री कृष्ण के मंदिर के आगे या किसी खाली साफ सुथरी जगह पर 25 से लेकर 50 फीट तक की ऊंचाई पर एक मिट्टी के बने हुए मटके में दही मक्खन पुष्प इत्यादि भरकर लटका दिया जाता है।

इस मटके को रस्सी से बांधा जाता है, जिसे 1 युवाओं की टोली एक के ऊपर एक चढ़कर फोड़ते हैं। यह नजारा काफी मनमोहक और रोमांचक लगता है क्योंकि इस दौरान कहीं बार युवा नीचे गिरते हैं और फिर से वे एक के ऊपर एक घेरा बनाकर चढ़ते हैं।

आखिरकार मटके के ऊपर रखे गए पत्थर से मटके को फोड देते हैं, जिससे उनके ऊपर दही पुष्प मक्खन इत्यादि गिर जाता है और इस तरह से दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सभी भारतवासी लोग जल्दी स्नान करके नए वस्त्र पहनकर भजन कीर्तन करते हैं। दिनभर भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं। भगवान श्री कृष्ण की कथा सुनाते हैं।

तरह-तरह के कलात्मक तरीके से बनाई गई भगवान श्री कृष्ण की झांकियां निकालते हैं और शाम के समय दही हांडी का उत्सव के जाता है। दही हांडी का उत्सव समाप्त होने के बाद रात भर श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन जागरण के जाता है।

महिलाएं और लड़कियां अपने घर पर भगवान श्री कृष्ण के गीत गाती है, जिसे स्थानीय भाषा में हरजस कहते हैं। लंबे समय से इस प्रकार से श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। रात के समय लोग जागरण करते हैं। भगवान श्री कृष्ण की कथाएं सुनाते हैं। भगवान श्री कृष्ण के भजन सुनाते हैं।

श्री कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का महत्‍व

सनातन धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का एक विशेष महत्व है। भगवान श्री कृष्ण को सनातन धर्म के अंतर्गत भारत के सभी राज्यों में विशेष रूप से महत्वता दी गई है।

लोग अपनी आस्था से और श्रद्धा से भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करते हैं। अब तक भारत में अनेक सारे श्री कृष्ण के बड़े बड़े भक्त रह चुके हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होने वाले लोगों को बड़े भक्तों का दर्जा दिया गया है। भगवान श्री कृष्ण को सृष्टि का रचयिता भगवान विष्णु का अवतार पूजनीय देव सरल स्वभाव के धनी तथा मार्गदर्शक तौर पर पूजा जाता है।

भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यावस्था में अपने मामा कंस राक्षस को मारकर पृथ्वी के लोगों का जीवन बचाया था, जिसके बाद लोगों ने उनके दिव्य रूप को समझा और उनके जन्म के दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाने लग गई।

भगवान श्री कृष्ण की महत्वता सनातन धर्म में विशिष्ट हैं। हमारे धर्म के लोग भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य और पूजनीय मानते हैं।

भारत में भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करवाए जाते हैं। देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में भगवान श्री कृष्ण के भक्त देखने को मिल जाते हैं।

भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश के आधार पर निर्मित श्रीमद्भगवद्गीता दुनियाभर में चर्चित है। भगवत गीता लोगों को जीवन जीने की राह सिखाता है।

निष्कर्ष

भगवान श्री कृष्णा के द्वारा दिए गए उपदेश लोगों को जीवन में नई दिशा प्रदान करता है। भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार के रूप में सृष्टि में अंधकार को दूर करके उजाला लाते हैं।

इसीलिए भगवान श्री कृष्ण को सनातन धर्म में विशेष महत्वता दी गई है। भगवान श्री कृष्ण का जीवन अत्यंत बड़ा और अनेक तरह के इतिहास से भरा हुआ है।

आज के इस आर्टिकल में पूरी जानकारी के साथ विस्तार से भगवान श्री कृष्ण के जन्म पर आधारित श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूरी जानकारी विस्तार से बताई है।

यह भी पढ़ें

गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? (महत्व, इतिहास और कहानी)

रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है? और इसका इतिहास

मासिक दुर्गा अष्टमी क्या है और क्यों मनाई जाती है?

गायत्री जयंती क्यों मनाई जाती है? (महत्व, पूजा विधि, इतिहास और कहानी)

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

Related Posts

Leave a Comment