Tan Singh Biography In Hindi: तन सिंह जी ने श्री क्षत्रिय युवक संघ नामक संस्था की स्थापना की थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने समाज को अर्पण कर दिया था। समाज से सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की थी। तन सिंह जी अपने जीवन की कठिनाइयों को अपना सौभाग्य मानते थे और अपने कर्तव्य को ही अपना कर्म समझते थे।

आज हम इस आर्टिकल में आपको तन सिंह जी कौन है?, उनका प्रारंभिक जीवन और समाज के लिए उनके द्वारा किये गए कार्य के बारे में हम आपको विस्तारपूवर्क बनाते जा रहे है।
पूज्य तनसिंह जी का जीवन परिचय | Tan Singh Biography In Hindi
तन सिंह जी के विषय में संक्षिप्त जानकारी
नाम | तन सिंह |
जन्म | 25 जनवरी 1924 |
जन्मस्थल | निहाल बैरसियाला (जैसलमेर) |
पिता | ठाकुर बलवंत सिंह महेचा |
माता | श्रीमती मोतीकंवर सोढ़ा |
शिक्षा | वकालत की उपाधि |
उपलब्धि | राजस्थान विधान सभा के दो बार सदस्य, सांसद के दो बार सदस्य |
कार्यक्षेत्र | भारतीय राजनेता और लेखक |
निधन | 7 दिसंबर 1979 |
तन सिंह जी कौन है?
तन सिंह एक भारतीय राजनेता और लेखक थे। वह राजस्थान राज्य की विधान सभा के दो बार सदस्य रह चुके हैं। इतना ही नहीं तन सिंह दो बार सांसद के सदस्य भी रहे है।
उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवा संघ की स्थापना की। इस संस्था के द्वारा राजपूत समाज के बालक-बालिकाओं में संस्कार निर्माण का कार्य होता है।
तन सिंह जी का जन्म
क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह जी का जन्म 25 जनवरी 1924 ईस्वी में हुआ था। तन सिंह जी का बचपन भले ही उनके गांव रामदेरिया में बिता हो परंतु इनका जन्म अपने ननिहाल जैसलमेर में हुआ था। तन सिंह के बचपन का नाम तने राज था और इनके जन्म के मात्र 4 वर्ष बाद इनके पिता बलवंत सिंह महेचा की मृत्यु हो गई और इसी कारण से ये तने राज से ठाकुर तनसिंह बन गए।
तन सिंह जी का परिवार
तन सिंह के पिता का नाम ठाकुर बलवंत सिंह महेचा था। वे बाड़मेर के रामदेरिया गांव के ठाकुर थे। उनकी माता का नाम श्रीमती मोतीकंवर सोढ़ा थीं। उनके जन्म के 4 वर्ष बाद ही आपके पिताजी का देहांत हो गया।
तन सिंह का प्रारंभिक जीवन
तन सिंह का प्रारंभिक जीवन बहुत ही कष्ट वैसे व्यतीत हुआ है। क्योंकि मात्र 4 वर्ष की उम्र में ही इनके पिताजी का देहांत हो गया था और आप सभी लोग समझ सकते हैं कि एक बेटा जिसका बाप ना हो, उसे कितनी कठिनाई उठानी पड़ती हैं। तन सिंह को इनकी माता ने इनकी शिक्षा के लिए अपने गांव से लगभग 80 किलोमीटर दूर अर्थात बाड़मेर में छोड़ दिया और खुद गांव में रहकर खेती किया करती थी और अपने बेटे को पढ़ाती थी।
तन सिंह की माता ने इनके व्यक्तित्व के निर्माण की नींव को मजबूत बनाने के लिए बहुत ही छोटी उम्र में उन्हें गांव से दूर शिक्षा प्राप्त करने के लिए छोड़ दिया था। इन्होंने अपने बेटे को इतनी दूर इसलिए छोड़ा था ताकि यह विकट से विकट परिस्थितियों में लड़ने का हौसला प्राप्त कर सके और गांव की जिम्मेदारियों को संभाल सके। तन सिंह के चाहने वालों का ऐसा भी कहना है कि इनके इस उपलब्धि के पीछे इनकी माता का विशेष योगदान रहा।
तन सिंह जी की पढ़ाई
तनसिंह ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई की शुरुआत बाड़मेर में की। छठी कक्षा तक बाड़मेर पढ़ने के बाद साल 1938 में मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने जोधपुर स्थित चौपासनी विद्यालय में प्रवेश लिया। मैट्रिक तक की पढाई चौपासनी में की।
साल 1942 में अपने घर से लगभग 600 किमी. दूर झुंझूनूं जिले के पिलानी कस्बे में स्थित बिरला काॅलेज से उन्होंने स्नात्तक की उपाधि हांसिल की। साल 1946 में नागपुर से उन्होंने वकालत की उपाधि हांसिल की।
तन सिंह जी का पोलिटिकल करियर
तन सिंह वकील बनने के बाद फिर से बाड़मेर आ गए और उन्होंने यहाँ पर वकालत शुरू कर दी। साल 1949 में बाड़मेर नगर पालिका के प्रथम अध्यक्ष के रुप में उनकी नियुक्ति हुई। साल 1952 के चुनावों में तन सिंह बाड़मेर से राजस्थान की प्रथम विधानसभा के लिए विधायक चुने गए। उस दरमियान उनकी आयु केवल 28 साल की थी।
साल 1957 में पुनः विधायक के रूप में चुने गए। 1962 में बाड़मेर जैसलमेर के सबसे बडे़ निर्वाचन क्षेत्र से मात्र 9000 रु. खर्च कर सांसद निर्वाचित हुए। साल 1967 का चुनाव हार गए तब स्वयं का व्यवसाय प्रारंभ किया एवं साथ ही अपने अनेक साथियों को रोजगार उपलब्ध करवाया। साल 1977 में पुनः सांसद चुने गए।
तन सिंह साल 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध के विरुद्व हुए आन्दोलन में भी शामिल हुए और स्वैच्छिक गिरफ्तारी भी करवाई।
तन सिंह जी के समाज कार्य
तन सिंह जी के मन में कॉलेज से ही लेकर अपने समाज के लिए कुछ कर दिखाने की इच्छाएं उत्पन्न होती रही और अपनी इच्छा को आगे सच होते हुए तन सिंह जी ने अपने कॉलेज के साथ-साथ क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना भी कर दी, जिसके बाद तन सिंह जी ने इस क्षत्रिय युवक संघ को काफी ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
तनसिंह जी समाज की दशा और दिशा को लेकर काफी संवेदनशील बने। समाज की बगड़ती दिशा को देखकर वो काफी चिंतित हुए और उन्होंने ऐसे लोगों को जमा किया, जो समाज के लिए कार्य करना चाहते है। साल 1944 की दीपावली की रात उन्होंने श्री क्षत्रिय युवक संघ नामक संगठन की नींव रखी, जो राजपूत समाज के लिए मिल का पत्थर बनी।
राजपूत समाज में इस संस्था द्वारा काफी सामाजिक दूषणों को दूर किया गया। उन्होंने अपने जीवनकाल के दरमियान संघ के 192 शिविर किये। 23 दिसम्बर 1978 से 1 जनवरी 1979 तक रतनगढ़ में सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर तनसिंह जी अंतिम शिविर था।
इतना सब करने के बाद भी क्षत्रिय युवक संघ संगठन को और भी बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए तन सिंह जी ने विशेष काम किए और नागपुर जाकर संगठन को संचालित करने के सभी तौर तरीके समझे और वापस आने के बाद अपने संगठन के कार्यकर्ताओं को बुलाकर उनके साथ बातें भी की और अपना विचार उन लोगों के सामने प्रस्तुत किया।
इसके बाद लोगों ने उनकी इस विचारधारा पर अमल किया और क्षत्रिय युवक संघ को विस्तृत करने की लिए जुट गए और आज के समय में तन सिंह जी का नाम क्षत्रिय युवक संघ के साथ बड़े ही आदर भाव से लिया जाता है।
तन सिंह जी का निधन
साल 1979 की 7 दिसंबर को उनका देहांत हो गया। उनके निधन के समय उनकी आयु केवल 55 साल थी।
तन सिंह जी की प्रमुख कृतियां
तन सिंह जी एक बेहतरीन लेखक थे। उन्होंने अपने जीवन काल दरमियान लगभग 14 पुस्तकें लिखी, जिनके नाम राजस्थान रा पिछोला, समाज चरित्र, बदलते दृश्य, होनहार के खेल, साधक की समस्याएं, शिक्षक की समस्याएं, जेल जीवन के संस्मरण, लापरवाह के संस्मरण, पंछी की राम कहानी, एक भिखारी की आत्मकथा, गीता और समाज सेवा, साधना पथ, डायरी, झनकार मुख्य है।
उन्होंने राजस्थानी भाषा में भी कई कृतियाँ लिखीं। जिन में धरती रा थाम्भा कद धसकै, ए जी थांरा टाबर झुर-झुर रोवै म्हारी माय, चालण रो वर दे माँ मार्ग कांटा सूं भरपूर, भूल्या बिसरया भाईडां ने और भायला मुख्य है।
उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें आज भी पथप्रेरक के रुप में हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सैकडों लेख लिखे। आज भी उनके द्वारा स्थापित पत्रिका ‘संघशक्ति‘ प्रकाशित हो रही है।
FAQ
तन सिंह जी श्री क्षत्रिय युवक संघ नामक संस्था के स्थापक, भारतीय राजनेता और लेखक थे। उसके साथ साथ विधान सभा और संसद के सदस्य भी थे।
तनसिंह का जन्म निहाल बैरसियाला (जैसलमेर) में 25 जनवरी 1924 के दिन हुआ था।
तन सिंह जी श्री क्षत्रिय युवक संघ नामक संस्था की स्थापना की थी, जो राजपूत समाज के बालक-बालिकाओं में संस्कार निर्माण का कार्य करती है।
तन सिंह के पिता का नाम ठाकुर बलवंत सिंह महेचा था और उनकी माता का नाम श्रीमती मोतीकंवर सोढ़ा थीं।
तन सिंह जी का निधन साल 1979 की 7 दिसंबर को हुआ था।
निष्कर्ष
यदि आपके मन में इस लेख तन सिंह जी का जीवन परिचय (Tan Singh Biography In Hindi) को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है तो कृपया कमेंट बॉक्स में हमें अवश्य बताएं।
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क्या तनसिंहजी जिंदा है
जी नहीं
7 दिसंबर 1979 को उनका निधन हो गया था।