Rabindranath Tagore Biography in Hindi: हमारे देश में बहुत से ऐसे व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों ने जन्म लिया है, जिनके संपूर्ण जीवन से यदि कोई सीख ली जाए तो वह एक प्रेरणा का स्रोत बन सकती है। हमारे भारतीय इतिहास में आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्होंने अपने कार्यों के बल पर हमारे देश का प्रतिनिधित्व किया हुआ है। ऐसे ही व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे, रविंद्र नाथ टैगोर जी, जिनके बारे में यदि हम शब्दों में बयां करें, तो हमारे लिए शब्दों की कमी पड़ जाएगी।

यह एक ऐसे अद्भुत प्रतिभा के धनी वाले व्यक्तित्व के व्यक्ति के दिन के संपूर्ण जीवन से हमें एक प्रेरणा भी मिलती है। आज हम इस लेख के माध्यम से रविंद्र नाथ टैगोर जी के जीवन व्यक्तित्व के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। यदि आप भी यह जानना चाहते हैं कि किस प्रकार से हम रविंद्र नाथ टैगोर जी के जीवन (Rabindranath Tagore ki Jeevani) से प्रेरणा ले सकते हैं, तो हमारे इस लेख “रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय” को अंतिम तक अवश्य पढ़ें।
विषय सूची
रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी – Rabindranath Tagore Biography in Hindi
रविंद्र नाथ टैगोर कौन थे ?
Biography of Rabindranath Tagore in Hindi: रविंद्र नाथ टैगोर जी बीसवीं शताब्दी के भारत के एक प्रमुख कवि और लेखक थे, जो उस समय के सबसे प्रसिद्ध साहित्यकारों में से एक थे। यह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत के राष्ट्रीय गान की रचना की और साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार को प्राप्त किया। रविंद्र नाथ टैगोर जी बहुस्तरीय दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्तित्व के व्यक्ति थे।
Rabindranath Tagore Ji एक बंगाली कवि, ब्रह्म समाज दर्शनिक, हास्य कलाकार, नाटककार, उपन्यासकार, चित्रकार और एक संगीतकार के रूप में ही जाने जाते हैं और यही कारण है कि इन्हें बहु स्तरीय कला का ज्ञाता भी कहा जाता है।

इन सभी के अतिरिक्त रविंद्र नाथ टैगोर जी समाज सुधारक के रूप में भी विश्व विख्यात हैं। आज जब पूरा विश्व नई नई तकनीक की ओर अग्रसर हो चुका है और नई-नई प्रणाली कर विकास के क्षेत्र में अपनी सहयोग प्रदान कर रहा है। आज के इस आधुनिक दौर में भी यह दुनिया के लोग रविंद्र नाथ टैगोर जी के काव्य गीतों के द्वारा उनको याद किया करते हैं। रविंद्र नाथ टैगोर जी महान बुद्धिजीवियों में से एक है जो अपने समय से आगे थे और यही कारण है कि अल्बर्ट आइंस्टाइन के साथ उनकी मुलाकात को विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच टकराव सिद्ध करती है।
टैगोर जी अपनी विचारधारा के माध्यम से दुनिया के बाकी हिस्सों में ज्ञान के प्रकाश को फैलाने के लिए उत्सुक थे और इसीलिए जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में उन्होंने विश्व यात्रा करना शुरू किया। शीघ्र ही उनके द्वारा किए गए कार्यों को विश्व के देशों ने सराहना की और अंततः उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया जो कि पहले गैर-यूरोपीय नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में भी जाने जाते हैं। टैगोर जी ने ‘जन गण मन’ भारत के राष्ट्रीय गान के अतिरिक्त ‘अमर शोनार बांग्ला’ के लिए भी रचना की जो आगे चलकर बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में भी जाना गया।
रविंद्र नाथ टैगोर जी का जन्म और उनका प्रारंभिक जीवन – Rabindranath Tagore Information
- जन्म: 7 मई, 1861
- जन्म स्थान: कलकत्ता, ब्रिटिश भारत
- पिता: देवेंद्रनाथ टैगोर
- माता: शारदा देवी
- पति / पत्नी: मृणालिनी देवी
- बच्चे: रेणुका टैगोर, शामिंद्रनाथ टैगोर, मीरा टैगोर, रथिंद्रनाथ टैगोर और मधुरनथ किशोर
- निधन : 7 अगस्त, 1941
- मृत्यु का स्थान: कलकत्ता, ब्रिटिश भारत
- पेशा: लेखक, गीत संगीतकार, नाटककार, निबंधकार, चित्रकार
- भाषा: बंगाली, अंग्रेजी
- पुरस्कार: साहित्य में नोबेल पुरस्कार (1913)
Information About Rabindranath Tagore
विलक्षण प्रतिभा के धनी रविंद्र नाथ टैगोर जी का जन्म 7 मई 1861 को हुआ। इनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर और इनकी मां का नाम शारदा देवी था। इनका जन्म उनके पैतृक स्थान कोलकाता के जोड़ासाँको हवेली में हुआ था। यह अपने परिवार के सभी बच्चों में से सबसे छोटे बच्चे थे। उन्होंने अपनी मां को अपने छोटी उम्र में ही खो दिया था।
जिसकी वजह से उनका लालन पोषण नौकरों और नौकरानियों द्वारा किया गया था। रविंद्र नाथ टैगोर जी के पिता देवेंद्र नाथ टैगोर जी का पेशा व्यापक रूप से यात्रा करने वाला था और यही कारण अपने पुत्र को ज्यादा समय नहीं दे पाते थे। रविंद्र नाथ टैगोर जी अपनी बहुत कम उम्र में ही बंगाल पुनर्जागरण का हिस्सा बन गए थे और उनके परिवार की भी भागीदारी इसमें थी।
टैगोर जी बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे क्योंकि उन्होंने केवल 8 वर्ष की उम्र में ही कविताओं को पढ़ना शुरू कर दिया था। 16 वर्ष की उम्र तक टैगोर जी ने कला कृतियों की रचना करनी शुरू कर दी। इसके अतिरिक्त छद्म नाम भानुसिंह के तहत उन्होंने अपनी कविताओं को प्रकाशित करने का कार्य भी शुरू कर दिया था।
अपने प्रारंभिक जीवन को शुरू करते हुए रविंद्र नाथ टैगोर जी ने 1877 में लघु कथा ‘भिखारिनी’ और 1982 में कविता संग्रह ‘संध्या संगत’ की रचना भी कर दी थी। इसके अतिरिक्त रविंद्र नाथ टैगोर जी 1873 में अपने पिताजी के साथ अमृतसर की यात्रा की और वहां पर उन्होंने सिख धर्म से ज्ञान प्राप्त किया। सिख धर्म से प्राप्त अनुभव से उन्होंने बाद में 6 कविताओं और धर्म पर कई लेखों को कलमबद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया।
Read Also: भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की जीवनी
रविंद्र नाथ टैगोर जी की शिक्षा
टैगोर जी ने अपनी प्रारंभिक एवं ग्राम परीक्षा को ब्राइटन, ईस्ट ससेक्स, इंग्लैंड में एक पब्लिक स्कूल में शुरू की। रविंद्र नाथ टैगोर के पिता जी चाहते थे कि उनका बेटा बैरिस्टर बने और इसी के कारण उन्होंने 1878 में रविंद्र नाथ टैगोर जी को इंग्लैंड में भेज दिया था। बचपन से ही रविंद्र नाथ टैगोर जी स्कूली शिक्षा को ग्रहण करने के लिए दिलचस्पी नहीं रखते थे।
इसके बाद भी उन्हें एक बार लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कहा गया, जहां उनको कानूनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए बोला गया। परंतु उन्होंने एक बार फिर से अपनी इच्छा के अनुसार ही कार्य किया और उसके ठीक विपरीत वह अपने कार्य को करने लगे।
बाद में टैगोर जी ने अपने दम पर शेक्सपियर के कई कार्य को करना सीखा। फिर उसके बाद अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत का सार सीखने के बाद वह अपने स्वदेश लौट आए और यहां पर उन्होंने मृणालिनी देवी से शादी कर ली।
शांतिनिकेतन की स्थापना
रविंद्र नाथ टैगोर जी के पिता जी ने शांति निकेतन के क्षेत्र में एक जमीन का बड़ा हिस्सा खरीद कर रखा था। रविंद्र नाथ टैगोर जी ने अपने पिता की संपत्ति को स्कूल के रूप में रूपांतरित करने का विचार किया। इस कार्य का शुभारंभ उन्होंने 1901 में करना शुरू कर दिया।
रविंद्र नाथ टैगोर जी ने पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। यही आगे चलकर शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के नाम से जाना गया। इसके अंतर्गत दो परिषद हैं, एक सांतिनिकेतन और दूसरा श्रीनिकेतन है। श्रीनिकेतन के अंतर्गत कृषि, प्रौढ़, शिक्षा, गांव, कुटीर, उद्योग और हस्तशिल्प की शिक्षा प्रदान करने का कार्य होता है।
रविंद्र नाथ टैगोर जी के संगीत और कलाकृतियां
रविंद्र नाथ टैगोर जी बहुमुखी प्रतिभाशाली होने के अतिरिक्त वे एक अच्छे संगीतकार भी थे। रविंद्र नाथ टैगोर जी ने 2000 से भी अधिक संगीत की रचना की और उसे चित्र का रूप भी प्रदान किया। आज भी उनके संगीत को बंगाली संगीत संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता है।
रविंद्र नाथ जी के गीतों को रविंद्र संगीत के रूप से भी विश्व विख्यात है। उनकी संगीत की रचना में भक्ति में भजन और प्रेम सारांश तक सीमित है। इसके अतिरिक्त रविंद्र नाथ जी के संगीत मे मानवीय संगीत भावनाओं के पहलू भी देखने को मिल जाते हैं। जब रविंद्र नाथ टैगोर जी की उम्र 60 वर्ष की हुई तो उन्होंने पेंटिंग करना शुरू कर दिया और उन्होंने अपने जीवन काल में 2000 से भी अधिक चित्र रचनाएं की हैं और यह सभी अन्य देशों में भी प्रदर्शित हो चुकी है।

रविंद्र नाथ टैगोर जी की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘गीतांजलि’ रही और इसी के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। टैगोर जी की यह रचना लोगों द्वारा बहुत पसंद की गई और इसे अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी और रूसी आदि विश्व के सभी प्रमुख भाषाओं में इनकी इस रचना को अनुवादित किया गया था।
टैगोर जी द्वारा रचित कई प्रकार की कहानियां भी हैं जो बहुत ही प्रसिद्ध हुई उनमें से काबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्ट मास्टर भी है जो आज भी लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ी हुई है। रविंद्र नाथ टैगोर जी की प्रत्येक रचनाओं में स्वतंत्रा आंदोलन और उस समय के सामाजिक दृष्टि की झलक देखने को मिल जाती है।
Read Also: बाबा आमटे का जीवन परिचय
रविंद्र नाथ टैगोर जी का सामाजिक जीवन – About Rabindranath Tagore
16 अक्टूबर 1905 को रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर उन्होंने बंग – नामक आंदोलन का आरंभ हुआ था।ऐसा माना जाता है कि इसी आंदोलन की वजह से भारत में स्वदेशी आंदोलन का शुभारंभ हुआ था। इसके अतिरिक्त रविंद्र नाथ टैगोर जी ने सबसे बड़े नरसंहार जलियांवाला बाग कांड का बहुत ही कड़ें तरीके से निंदा की थी।
अंग्रेजों द्वारा रविंद्र नाथ टैगोर की बहुमुखी प्रतिभा को देखकर उन्हें ‘नाइटहुड’ की उपाधि प्रदान की गई थी। जलिया वाले बाग हत्याकांड के बाद कड़ी निंदा करने के बाद उन्होंने अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई इस उपाधि को वापस लौटा दिया था।
रविंद्र नाथ टैगोर जी की विरासत
रविंद्र नाथ टैगोर जी ने बंगाली साहित्य को एक नया आयाम प्रदान किया था और उसी के वजह से उन्हें कई लोगों ने अपने दिल में बसा लिया है। इसके अलावा कई देशों में इनकी प्रतिमाएं भी स्थापित है और वार्षिक आयोजनों में ऐसे कई प्रसिद्ध लेखकों को श्रद्धांजलि भी प्रदान की जाती है।
Rabindranath Ji Tagore द्वारा किए गए कार्यों को अंतर्राष्ट्रीय रूप भी प्रदान किया गया और कई देशों ने इनकी सराहना भी की है। रविंद्र नाथ टैगोर जी को समर्पित 5 संग्रहालय का निर्माण किया गया।
5 में से 3 हमारे देश भारत में स्थित है और 2 बांग्लादेश में स्थित है। लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष इनके संग्रहालय में लोग जाया करते हैं।
रविंद्र नाथ टैगोर जी का अंतिम दिन और मृत्यु
रविंद्र नाथ टैगोर जी ने अपने जीवन के अंतिम 4 वर्ष में बहुत बीमारियों का सामना किया और वे अपने इन 4 वर्षों में दर्द से पीड़ित रहे थे। अबे समय से बीमारी से लड़ने के बाद टैगोर जी का 7 अगस्त 1941 को स्वर्गवास हो गया। उनका स्वर्गवास उनके पैतृक हवेली जोरासांको में हुआ।
निष्कर्ष
रवींद्रनाथ टैगोर जी के पूरे जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में कोई भी कार्य अगर करना हो तो उसके प्रति हमें सदैव सचेत रहना आवश्यक होता है। मानव अगर चाहे तो किसी भी असंभव कार्य को अपनी इच्छा मात्र से एवं उसके प्रति सहज रहकर अपनी सफलता को प्राप्त कर सकता है।
Autobiography of Rabindranath Tagore
Rabindranath Tagore Short Biography – Rabindranath Tagore Biography in Hindi
Rabindranath Tagore Biography in Hindi
यदि आपको प्रेरणादायक Rabindranath Tagore ka Jeevan Parichay से कुछ भी प्रेरणा मिली हो तो आप हमें कमेंट में अवश्य बताएं। अपने विचारों एवं अपनी राय को हमसे साझा करने के लिए कमेंट बॉक्स का इस्तेमाल करें। साथ ही हमारा Facebook Page भी जरूर लाइक कर दें।
Read Also
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी
- छत्रपति संभाजी महाराज का इतिहास
- प्रेरणादायक अनमोल वचन
- धीरूभाई अंबानी के प्रेरणादायक अनमोल विचार