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जाने विध्वंस से निर्माण तक श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या का सम्पूर्ण इतिहास

History of Ram Mandir in Hindi

History of Ram Mandir in Hindi: अयोध्या भारत की एक धार्मिक और ऐतिहासिक जगह है। भगवान राम की जन्म भूमि के नाम से जानी जाने वाली अयोध्या नगरी लंबे वर्षों से विवादों में रही थी। 2019 में यह विवाद खत्म हुआ और साल 2020 से इस पावन भूमि पर भगवान श्री राम के मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ।

आखिरकार यह निर्माण कार्य खत्म हो चुका है और 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में निर्मित राम मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा, जो हर एक हिंदू भारतीय के लिए बहुत ही सम्मान की बात है। हम अयोध्या को भारत की एक धार्मिक जगह मानते हैं। लेकिन अयोध्या का इतिहास बहुत ही रोचक रहा है।

इस लेख में राम जन्मभूमि का इतिहास (Ayodhya Ram Mandir History in Hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।

अयोध्या की स्थापना

अयोध्या कौशल प्रदेश की प्राचीन राजधानी हुआ करती थी, जिसे बौद्ध काल में साकेत कहा जाता था। इसे अवध के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या मंदिरों का शहर है।

यहां पर न केवल हिंदू मंदिर पर बल्कि जैन धर्म और बौद्ध धर्म से भी जुड़े मंदिर के अवशेष देखने को मिलते हैं। जैन मतो के अनुसार अयोध्या में जैन धर्म के पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।

बात करें अयोध्या शहर को किसने बसाया था तो रामायण में इसका जिक्र किया गया है कि सूर्य देव के पुत्र मनु ने अयोध्या शहर को बसाया था। मनु भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि से उत्पन्न ऋषि कश्यप के पुत्र थे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि मनु एक बार भगवान ब्रह्मा से अपने लिए एक शहर बनाने के लिए कहते हैं तब भगवान ब्रह्मा उन्हें भगवान विष्णु के पास ले जाते हैं। भगवान विष्णु मूर्तिकार विश्वकर्मा को सरयू नदी के तट पर स्थित इस शहर को आबाद करने के लिए भेजते हैं।

विश्वकर्मा ही इस शहर का निर्माण करते हैं। स्कंद पुराण में कहा गया है कि अयोध्या भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र पर विराजमान है। महर्षि वशिष्ठ ने भी भगवान राम के अवतार के लिए इसी स्थान को उपयुक्त माना था। इसलिए इसी भूमि पर कालांतर में भगवान श्री राम का जन्म हुआ।

उसी समय से अयोध्या नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का शासन काल स्थापित हो गया, जो कि महाभारत काल तक रहा। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम की जन्म भूमि अयोध्या की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है।

अयोध्या का पुनः निर्माण

कहा जाता है कि रामायण के अंत में जब भगवान श्री राम जल समाधि ले लेते हैं तो उसके पश्चात अयोध्या नगरी कुछ काल के लिए उजड़ जाती है। लेकिन बाद में भगवान श्री राम के पुत्र कुश इस नगरी का पुनः निर्माण करते हैं, जिसके बाद अगले 44 पीढ़ियों तक सूर्यवंश के राजाओं का शासन काल रहता है।

अयोध्या नगरी पर शासन करने वाले अंतिम सूर्यवंशी राजा बृहद्बल थे, जिनकी मृत्यु महाभारत काल में अभिमन्यु के हाथों हो गई थी। उसके बाद अयोध्या नगरी एक बार फिर उजड़ गई लेकिन इस जन्म भूमि पर भगवान श्री राम का मंदिर ज्यों का त्यों रहा।

विक्रमादित्य के द्वारा अयोध्या का पुनर्निर्माण

अयोध्या पर सूर्यवंशी के अंतिम शासक बृहद्वल की मृत्यु के बाद कई वर्षों तक यह भूमि वीरान रही। यह नगर घने जंगल में तब्दील हो गया था। लेकिन ईशा के 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक बार अपनी सेना के साथ घूमते हुए अयोध्या पहुंच गए।

थकान होने के कारण वह अपनी पूरी सेना सहित सरयू नदी के तट पर अयोध्या में एक आम के वृक्ष के नीचे आराम करने लगे। उस समय इस नगरी में कोई भी बसावट नहीं था। विक्रमादित्य को इस नगरी में कई चमत्कार देखने को मिले। उसके बाद उन्होंने इस नगरी की खोज आरंभ की।

उन्हें यहां पर पास के कुछ योगी और संतों से ज्ञात हुआ कि यह भगवान श्री राम की अवध भूमि है, जिसके बाद सम्राट विक्रमादित्य ने यहां पर सरोवर, महल और कूप बनवाएं। विक्रमादित्य ने श्री राम जन्मभूमि पर काले रंग की कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर श्रीराम मंदिर का निर्माण करवाया था, जो बहुत ही भव्य था।

विक्रमादित्य के बाद अयोध्या में निर्मित श्री राम मंदिर का समय-समय पर कई राजाओं के द्वारा देखरेख किया गया। विक्रमादित्य के बाद एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, जो कि अयोध्या से प्राप्त एक शिलालेख से जानकारी मिली।

चंद्रगुप्त द्वितीय के समय अयोध्या काफी समय तक गुप्त साम्राज्य की राजधानी रही। उसी के समकालीन महाकवि कालिदास ने रघुवंश में कई बार अयोध्या का उल्लेख किया है।

इतिहासकारों का कहना है कि 600 ईसा पूर्व में अयोध्या एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। पांचवीं शताब्दी में इस स्थान को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गई थी जब यह स्थान एक प्रमुख बौद्ध केंद्र के रूप में विकसित हुआ। उस समय अयोध्या साकेत नाम से प्रसिद्ध था।

इस स्थान पर चीनी भिक्षुक फाह्यान भी आए। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री हैंनत्सांग भी यहां पर आए। उन्होंने अपने द्वारा लिखे किताब में जिक्र किया है कि उस समय यहां पर 20 बौद्ध मंदिर थे और 3000 भिक्षु यहां पर रहा करते थे।

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अयोध्या पर विदेशी आक्रमण की शुरुआत

11वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जयचंद ने अयोध्या मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य की प्रशास्ती शिलालेख को उखाड़ कर अपना नाम लिखवा दिया था। लेकिन पानीपत के युद्ध के बाद उसका निधन हो गया।

उसके निधन के बाद भारत पर कई विदेशी आक्रमणकार्यों का आक्रमण बढ़ गया। जिन्होंने भारत में मथुरा, काशी सहित अयोध्या में लूटपाट की। यहां के मूर्तियों को तोड़ना शुरू कर दिया।

आक्रमणकारी अयोध्या के राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए लेकिन उसके बाद मुगलों का अधिकार बढ़ने के साथ ही राम जन्मभूमि और अयोध्या को नष्ट करने के कई अभियान चलाए गए।

1527-28 के बीच बाबर के शासनकाल में भगवान श्री राम की जन्म भूमि पर निर्मित अयोध्या मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया, जो कालांतर में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। यह मंदिर 1992 तक विद्वमान रहा।

राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए हुए युद्ध

राम जन्मभूमि पर बाबर के आक्रमण के समय सिद्ध महात्मा श्यामनंद जी महाराज का राम जन्मभूमि के मंदिर पर अधिकार था। उन्होंने इस मंदिर को बचाने के लिए बाबर की सेना से युद्ध लड़ा।

कहा जाता है कि यह युद्ध कई दिनों तक चला लेकिन अंत में हजारों वीर सैनिक शहीद हो गए। कहा जाता है कि एक लाख हिंदुओं की लाशे इस युद्ध में गिरी थी।

 उसके बाद अयोध्या से 6 मील की दूरी पर सनेथु नाम के एक गांव के पंडित देवादिन पांडे ने आसपास के गांव के लोगों को एकत्रित करके फिर से युद्ध शुरू किया। लेकिन इस युद्ध में पंडित सहित कई हजारों हिंदू शहीद हो गए और बाबर की सेना एक बार फिर जीत गई।

पंडित की मृत्यु के 15 दिन के बाद महाराजा रणविजय सिंह हजारों सैनिकों के साथ आमिर बाकी की विशाल और शास्त्रों से सुसज्जित सेना से राम मंदिर को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किए लेकिन महाराज इस युद्ध में वीरगति हो गए।

कहा जाता है कि महाराजा रणविजय सिंह की वीरगति के बाद उनकी पत्नी रानी जयराज कुमारी हंसवर राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए 3000 नारियों की सेना लेकर जन्म भूमि पर हमला करती हैं और यह युद्ध हुमायूं के समय तक जारी रहा।

रानी जयराज कुमारी के नेतृत्व में संन्यासियों की सेना बनाई गई। लेकिन इस युद्ध में रानी जयराज कुमारी लड़ते हुए शहीद हो गई और फिर इस जन्म भूमि पर एक बार फिर मुगलों का अधिकार हो गया।

राम जन्मभूमि पर हिंदू अपने अधिकार के लिए अकबर के शासन काल तक युद्ध करते रहे। लेकिन अकबर के काल में शाही सेना हर दिन इस युद्ध से कमजोर हो रही थी, जिसके बाद अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर एक कूटनीति बनाई, जिसके अंतर्गत उसने अयोध्या जन्म भूमि पर एक चबूतरे पर 3 फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया।

उसके बाद राम जन्मभूमि पर कुछ समय के लिए रक्त नहीं बहा और यह क्रम शाहजहां के समय तक चला। लेकिन औरंगजेब के काल में 10 बार अयोध्या में मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलाकर अयोध्या के सभी प्रमुख मंदिर और उसकी मूर्तियों को उसने तोड़ डाला।

उस समय गुरु श्री रामदास जी महाराज के शिष्य श्री वैष्णव दास जी ने इस जन्म भूमि को मुक्त करने के लिए 30 बार औरंगज़ेब की सेना पर आक्रमण किया।

नवाब वाजिद अली शाह के समय में हिंदू समर्थकों ने एक बार फिर राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए आक्रमण किया। उस संग्राम में बहुत भयंकर खून खराबा हुआ। दो दिन और रात तक यह संग्राम चला, जिसमें संकड़ों हिंदू मारे गए। लेकिन उसके बावजूद हिंदुओं ने श्री राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया।

इस तरह औरंगजेब के द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को एक बार फिर से बनाया गया और चबूतरे पर 3 फीट एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया गया और इस तरीके से पुनः रामलला मंदिर की स्थापना हो गई।

रामलला मंदिर को लेकर हिंदूओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा

1853 में हिंदुओं का आरोप था कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। इस आरोप के बाद हिंदुओं और मुसलमान के बीच भारी हिंसा हुई, जिसके बाद 1857 की क्रांति में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ राम जन्मभूमि के उधार का प्रयास किया।

उस समय कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों को यह रास नहीं आई, जिसके बाद 18 मार्च 1858 को कुबेर टिला स्थित एक इमली के पेड़ में बाबा रामचरण दास और मौलवी आमिर अली को अंग्रेजों के द्वारा फांसी पर लटका दिया गया।

उस घटना के बाद ब्रिटिश शासकों के लिए लोगों का आक्रोश बढ़ गया, जिसके बाद 1859 में ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थान पर बाड़ लगाकर परिसर के भीतर के हिस्से में मुसलमान को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी।

अयोध्या विवाद के मामले को पहली बार कोर्ट में पेश करना

हिंदू महंत रघुवर दास ने पहली बार अयोध्या मामले को 19 जनवरी 1885 को फैजाबाद के न्यायाधीश के सामने रखा।

उस मामले में यह कहा गया कि मस्जिद की जगह पर भगवान श्री राम का मंदिर बनवाना चाहिए। क्योंकि इस मस्जिद से पहले वहां पर भगवान श्री राम का मंदिर था और यह भगवान श्री राम का जन्म स्थान है।

1947 में भारत सरकार ने मुसलमानों को विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डालते हुए हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक अलग जगह से प्रवेश बनाया।

1950 में एक अलग ही चमत्कार हुआ। राम जन्मभूमि पर बनी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्ति पाई गई। इस पर मुसलमानों ने विरोध व्यक्त किया और फिर दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर किया, जिसके बाद सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित किया और यहां पर ताला लगवा दिया।

बाबरी मस्जिद का विध्वंस

1984 में विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में कुछ हिंदुओं ने भगवान राम के जन्म स्थल को मुक्त करने के लिए एक समिति का गठन किया, जिसका नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने किया।

1986 में जिला मजिस्ट्रेट ने विवादित मस्जिद के दरवाजे से ताला खोलकर हिंदुओं को प्रार्थना करने का आदेश दिया। इसके 3 साल के बाद विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर के निर्माण के लिए अभियान को तेज करते हुए विवादित स्थल के नजदीक मंदिर की नींव रखी।

उस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल के मुख्य द्वार को खोलते हुए इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देने का आदेश दिया। 30 अक्टूबर 1990 को हजारों राम भक्त इस विवादित स्थल पर आकर विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज को फरा दिया।

6 दिसंबर 1992 को लाखों राम भक्तों ने बाबरी ढांचे को नष्ट कर दिया, जिसके परिणाम स्वरुप देश भर में दंगे हुए। इस दंगों के दौरान भारत के 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने की मांग हुई थी।

जिस समय विवादित ढांचे को गिराया गया था, उस समय राज्य में कल्याण सिंह की सरकार थी। उस दिन सुबह 10:30 बजे के बीच हजारों की संख्या में कारसेवक विवादित स्थल पर पहुंचे और 12-1 बजे तक कार सेवकों का एक बड़ा सा जत्था मस्जिद की दीवारों पर चढ़ने लगा और देखते ही देखते कुछ ही घंटो में पूरे ढांचे को कारसेवकों ने जमींदोज कर दिया।

फिर उस स्थान पर पूजा अर्चना करके रामशिला की स्थापना की गई। इस तरह 1527-28 ईस्वी में बाबर के सेनापति के द्वारा राम मंदिर को नष्ट करके बनाई गई बाबरी मस्जिद को 77 से भी अधिक युद्ध और सैकड़ों दंगों के पश्चात साल 1992 में पूरी तरीके से नष्ट कर दिया गया।

राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला और वास्तु कला

राम जन्मभूमि पर भले ही साल 1992 में बाबरी मस्जिद को पूरी तरीके से नष्ट कर दिया गया लेकिन कानूनी रूप से वहां पर राम मंदिर के निर्माण का आदेश नहीं मिला था।

लेकिन लंबे इंतजार के बाद 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ विवादित भूमि हिंदू पक्ष को देने और विवादित स्थल से कुछ दूर मुसलमानों को मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने का फैसला सुनाया।

इस फैसले के बाद 25 मार्च 2020 को रामलला की प्रतिमा को टेंट से बाहर निकाल कर फाइबर मंदिर में शिफ्ट किया गया और यहां पर रामलला मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया गया।

राम मंदिर की नींव भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी और तब से लेकर अब तक कई लॉजिस्टिक बधाओं को पार करते हुए राम मंदिर के निर्माण का कार्य जारी रहा।

राम मंदिर का निर्माण 2.77 एकड़ की जमीन पर किया गया। इस मंदिर के निर्माण के लिए आवश्यक फंड को पूरे भारत भर के हिंदू श्रद्धालुओं से इक्ट्ठा किया गया। इस फंड में तकरीबन 3000 करोड़ रुपए का चंदा मिला था।

मंदिर के निर्माण में आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी रुड़की सहित देश के कई अन्य संस्थाओं के वरिष्ठ इंजीनियर भी शामिल हुए।

मंदिर के निर्माण में राजस्थान के भरतपुर से पत्थर मंगवाए गए। अयोध्या राम मंदिर का निर्माण नागर शैली में भव्य तरीके से किया गया है। मंदिर का निर्माण गुलाबी बलुआ पत्थर से किया गया है।

मंदिर एक बड़े से प्रांगण से घिरा हुआ है, जिसमें हिंदू देवी देवताओं को समर्पित कई छोटे मंदिरों का भी निर्माण किया गया है। राम मंदिर 161 फीट ऊंचा है, जो कि तीन मंजिलों का है।

इस मंदिर की तीसरी मंजिल पर अयोध्या के इतिहास और संस्कृति को प्रदर्शित करता हुआ एक संग्रहालय के रूप में बनाया गया है। वहीं दूसरा मंजिल भगवान हनुमान जी को समर्पित है और पहले मंजिल में भगवान श्री राम की प्रतिमा विराजमान होगी।

मंदिर का परिसर 67 एकड़ में फैला हुआ है। रामलला मंदिर परिसर में यज्ञ और हिंदू अग्नि अनुष्ठान के संचालन के लिए एक यज्ञशाला, एक सामुदायिक रसोई और एक चिकित्सा सुविधा भी शामिल की गई है।

राम मंदिर का उद्घाटन

तकरीबन 500 साल के लंबे इंतजार और खूब लड़ाई और संघर्षों के बाद आखिरकार राम लला मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो ही गया है।

22 जनवरी 2024 को रामलला मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के लिए शुभ तारीख तय की गई है। यह कार्यक्रम 12:20 पर होगा। 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा।

उसके बाद सभी भक्तजन मंदिर में रामलला के दर्शन के लिए आ पाएंगे। मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा से एक सप्ताह पहले से ही पूजा पाठ का कार्यक्रम शुरू हो जाएगा।

FAQ

राम मंदिर के निर्माण का ठेका किसको दिया गया?

राम मंदिर के निर्माण और डिजाइन का ठेका नवंबर 2020 को लार्सन ऐंड टुब्रो को दिया गया। वहीं निर्माण के लिए परियोजना प्रबंधन सलाहकार के रूप में टाटा कंसलटिंग इंजीनियर को नियुक्त किया गया।

निष्कर्ष

उपरोक्त लेख में आपने भारत का धार्मिक और पवित्र स्थल अयोध्या जो कि भगवान श्री राम की जन्म भूमि है, उसके इतिहास के बारे में जाना।

हमें उम्मीद है कि यह लेख राम मंदिर अयोध्या हिस्ट्री (Ram Mandir History in Hindi) आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा। इस लेख को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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