Vibhats Ras in Hindi: हिंदी ग्रामर जिसमें संधि और सर्वनाम के अलावा बहुत सारी महत्वपूर्ण इकाइयां होती हैं। जिसमें से एक राशि भी है। आज के आर्टिकल में हम ‘वीभत्स रस के बारे में बात करने वाले हैं।

वीभत्स रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण | Vibhats Ras in Hindi
विषय सूची
सामान्य रस परिचय
‘वीभत्स रस’ को समझने के लिए हमें पहले ‘रस’ को समझ लेना चाहिए। काव्य को सुनकर या पढ़ कर हमें जो आनंद आता है, उसे ही रस कहते हैं। वास्तव में आनंद के रूप में विभिन्न भाव व्यक्त होते हैं तथा इन भावों के आधार पर ही विभिन्न रस अस्तित्व में आते हैं।
अतः विभिन्न भावों के आधार पर ही आनंद के या रस के 9 प्रकार होते हैं। ‘वीभत्स रस’ इन्हीं 9 रसों में से एक है।
‘वीभत्स रस’ परिचय
वीभत्स रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा भयानक, वात्सल्य, शांत, करुण, भक्ति, हास्य रसों की उत्पत्ति इन्हीं प्रमुख चार रसों से हुई है। वीभत्स रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है जिस काव्य में काव्य की विषय वस्तु में घृणा योग्य उद्दीपन व अलाम्बनों का समावेश होता है।
वीभत्स रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है जब वह निराशा जनक विचार व उद्दीपन को त्याग देने वाली चिंता आदि से गुज़र रहा होता है। तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि काव्य के जिस भाग में घृणा को प्रकट किया जाता है वहां वीभत्स रस होता है।
‘वीभत्स रस’ परिभाषा
इसे एक मुक्तक के माध्यम से समझा जा सकता है जो कि वीभत्स रस को समझाने के लिए या इसकी व्याख्या के लिए ही रचा गया है।
काव्य को सुनने पर जब घृणा के से भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही वीभत्स रस कहते हैं। अन्य शब्दों में वीभत्स रस वह रस है जिसमें घृणा का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है।
वस्तु घिनौनी देखी सुनि घिन उपजे जिय मांहि।
छीन बाढ़े बीभत्स रस, चित की फुची मिट जांहि।
निन्द्य कर्म करि निन्द्य गति, सुने कि देखे कोई।
तन संकोच मन सम्भ्रमरु द्विविध जुगुत्सा होई।।
‘वीभत्स रस’ के अवयव
स्थायी भाव : जुगुप्सा।
आलंबन (विभाव) : कोई भी वस्तु, चरित्र, घटना या विचार आदि जिससे सामना होने पर घृणा
उत्पन्न हो जाए जैसे कोई सड़ी-गली वस्तु, या कोई निर्मम घटना आदि।
उद्दीपन (विभाव) : सडन, गंदगी, बदबू, स्मृति, घृणा योग्य अनुभूति या चेष्टा।
अनुभाव : आँखें मींच लेना, देह समेट लेना, स्वयं को पीछे कि ओर हटाना या ले जाना, नाक सिकुड़ना, मुंह सिकुड़ना, कंधे उचकाना या ऊपर कि ओर धकेलना, पीछे की ओर देखना या पलट जाना आदि।
संचारी भाव : उप्काई आना, एक प्रकार की चिंता का होना, अप्रसन्नता, उद्दीपन के त्याग की अनुभूति।
‘वीभत्स रस’ उदाहरण :
(1) सिर पर बैठो काग आँखि दौऊ-खात निकारत।
खींचत जीभहिं ल्यार अतिहि आनंद उर धारत।।
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ क्र आ जाते,
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभ्ला कर खाते,
(2) भोजन में श्वान लगे, मुर्दे थे भू पर लेते,
खा मांस चाट लेते थे, चटनी सम बहते-बहते बेटे।।
बहु चील्ह नोंचि ले जात तूच, मोड़ मठयो सबको हियो,
जणू ब्रह्म भोज जिजमान कोऊ, आज भिखारिन कहूँ दियो।
निष्कर्ष :
तो हमने देखा कि किस प्रकार वीभत्स रस की उपस्थिति में घृणा व त्याग का भाव होता है, जो कि काव्य में किसी चरित्र के द्वारा ऐसी घृणित या अन्य त्याग योग्य नकारात्मक परिस्थिती उत्पन्न करने के कारण लक्षित चरित्र के व्यव्हार में एक तरह की चिंता, पलायन, आदि परिवर्तन को लाता है और लक्षित व्यक्ति की एक घृणा विशेष आनन अभिव्यक्ति व शारीरिक अभिव्यक्ति को संचालित करता है।
ऐसी घृणा की स्थिती में काव्य में लक्षित चरित्र के पलायन, अंगों को समेटने की प्रवृत्ती होती है। तथा चरित्र उद्दीपन से दूर जाना चाहता है या उद्दीपन को ही दूर कर देना चाहता है और उद्दीपन की उपस्थिती में चरित्र पीछे की ओर हटने या जाने लगता है।
उसे एक अजीब सी चिंता उपजने लगती है तथा कभी-कभी उसके रोंगटे उठने लगते हैं। भौतिक उद्दीपन से घृणा की स्थिती में उप्काई भी आती है या आ सकती है, व विशेष आनन् अभिवक्ति जैसे मुह सिकुड़ना, नाक सिकुड़ना, चेहरा बहुत खराब सा बना लेना, थूकना आदि की प्रेरणा मिलती है।
अंतिम शब्द
इस आर्टिकल में हमने आपको वीभत्स रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण (Vibhats Ras in Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है। आर्टिकल पसंद आये तो शेयर जरुर करें। यदि आपके मन में इस आर्टिकल को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है, तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं।
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