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वर्ण विभाग (वर्ण, वर्णमाला, परिभाषा, भेद और उदाहरण)

वर्ण विभाग (वर्ण, वर्णमाला, परिभाषा, भेद और उदाहरण) | Varn Vibhag

Varn Vibhag
Varn Vibhag

वर्ण किसे कहते है?

वर्ण वह मूल ध्वनि है जो खंड या टुकड़ों में नहीं बंट सकता है।

अथवा

भाषा हिंदी में प्रयोग होने वाला ”वर्ण” सबसे छोटी इकाई के रूप में जाना जाता है।

उदाहरण के लिए: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख्, ग्, घ्।

जैसा कि आपको अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर यह पता होगा कि हम जिन ध्वनियों का उच्चारण करते हैं। यदि उन्हें लिखकर बताना है तो उसके लिए कुछ विशेष चिन्ह निर्मित किए गए हैं तथा इन्हीं चिन्हों का प्रयोग हम अपनी ध्वनि को व्यक्त करने के लिए कहते है और इन्हे वर्ण का नाम देते है।

सामान्य शब्दों में “वर्ण भाषा की ध्वनि का लिखित रूप है।”

वर्ण की परिभाषा

“वर्ण वह मूल ध्वनि है, जिसके खंड या टुकड़े नहीं हो सकते। हिंदी भाषा में प्रयोग की जाने वाली सबसे छोटी इकाई को ही वर्ण कहते हैं।”

मानक देवनागरी वर्णमाला

स्वर

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

अनुस्वार

ं (अं), : (अ:)

व्यंजन

क, ख, ग, घ, ड़ (क वर्ग)
च, छ, ज, झ, ञ (च वर्ग)
ट, ठ, ड, ढ़, ण (ट वर्ग)
त, थ, द, ध, न (त वर्ग)
प, फ, ब, भ, म (प वर्ग)

अंतस्थ: य, र, ल, व

उष्म: श, ष, स, ह

संयुक्त

क्ष ( क् + स )
त्र( त् + र)
ज्ञ( ज् + ञ)
श्र( श् + र)

कुछ आगत वर्ण भी उपस्थित है, लेकिन इनका स्थान हिंदी की वर्णमाला में नहीं है।

उदाहरण: क़, ख़, ग़, ज़, झ़, फ़ तथा य़।

Read Also: वर्ण (परिभाषा, भेद और उदाहरण)

हिंदी भाषा में वर्णमाला

वर्णमाला

वर्णों का एक व्यवस्थित समूह जिसे हम वर्णमाला के नाम से जानते हैं। हिंदी की वर्णमाला में कुल वर्ण संख्या में 52 है।इन हिंदी वर्णमाला में पहले स्वर तथा बाद में वर्ण व्यवस्थित किए गए हैं।

मूल वर्ण: मूल वर्णों की संख्या 44 होती है, जिसमें अं, अ:, ड़, ढ, क्ष, त्र और श्र के अलावा 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं।

उच्चारण के आधार पर कुल वर्णों की संख्या:

इसमें ऋ, अं, अ:, ड़, ढ को छोड़ दे तो कुल 47 वर्ण अर्थात स्वर 10 और व्यंजन 37 है।

कुल वर्ण: कुल वर्ण संख्या में 52 है, जिनमें 13 स्वर और 39 व्यंजन है।

वर्णों की संख्या (लेखन के आधार पर): लेखन के आधार पर वर्णों की संख्या 52 है, जिसमें स्वरों की संख्या 13 और व्यंजन 39 है।

मानक वर्ण: मानक वर्णों की संख्या 52 है और 13 स्वर तथा 39 व्यंजन मिलकर ही मानक वर्ण बनाते है।

मानक देवनागरी वर्णमाला: हिंदी वर्णमाला को उच्चारण एवं प्रयोग के आधार पर दो भागों में बांटा गया है।

  1. स्वर
  2. व्यंजन

हिंदी भाषा में “स्वर” के विषय में जानकारी

“वर्णमाला के समूहों में से जिन वर्णों के उच्चारण स्वतंत्र रुप से किए जाते है, जो वर्ण व्यंजन को उच्चरित करने में भी सहायक होते हैं उन्हें स्वर कहते हैं।”

इन स्वरों की कुल संख्या 13 है, जो निम्न है: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:

उच्चारण के समय के अनुसार स्वर के तीन भेद हैं।

  1. ह्रस्व स्वर
  2. दीर्घ स्वर
  3. प्लूत स्वर

1.ह्रस्व स्वर की परिभाषा: ह्रस्व स्वर के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है। ये चार होते है: अ, इ, उ तथा ऋ। इनका दूसरा नाम मूल स्वर है।

2.दीर्घ स्वर की परिभाषा: जब दीर्घ स्वर का उच्चारण करते हैं तब उसमें ह्रस्व स्वर की अपेक्षा दो गुना अधिक समय लगता है। हिन्दी भाषा में दीर्घ स्वरों की संख्या सात होती है। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ तथा औ।

नोट: ह्रस्व स्वर दीर्घ स्वर के दीर्घ रूप नहीं होते है, यहां उच्चारण के समय लगने वाले समय को आधार मानकर दीर्घ शब्द लगाया गया है।

3.प्लूत स्वर: ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर के उच्चारण से भी अधिक समय लगता है, वह प्लुत स्वर कहलाते हैं। इन्हे तब प्रयोग करते हैं जब दूर से किसी को बुलाना हो। आऽऽ, ओ३म्, राऽऽम जैसे शब्द प्लूत स्वर के उदाहरण है।

जिव्हा के प्रयोग के आधार पर स्वरों के भेद

जिव्हा के प्रयोग के आधार पर स्वरों के तीन भेद है।

  1. अग्र स्वर
  2. मध्य स्वर
  3. पश्च स्वर

1. अग्र स्वर: ऐसे स्वर का उच्चारण जिनमें जिव्हा के अग्र भाग का प्रयोग किया जाता है, अग्र स्वर कहलाते हैं। उदाहरण – इ, ई, ए, ऐ।

2. मध्य स्वर: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ के मध्य भाग का उपयोग किया जाता है, वे स्वर मध्य स्वर के नाम से जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए – अ

3. पश्च स्वर: इस स्वरों के उच्चारण में जिव्हा के पश्च भाग अर्थात पीछे वाले भाग से कम लिया जाता हैं। उदाहरण – आ, उ, ऊ, ओ

संवृत एवम् विवृत स्वर

1. संवृत स्वर: जब संवृत स्वर का उच्चारण किया जाता हैं तब मुख के द्वार में संकरापन आ जाता हैं। इनकी संख्या 4 हैं। इ, ई, उ, ऊ

2. अर्द्ध संवृत स्वर: जब अर्द्ध संवृत स्वरों का उच्चारण करते हैं तब मुख द्वार उतना संकरा नहीं होता जितना संवृत स्वर का उच्चारण करते समय मुख संकरा हो जाता है।

3. विवृत स्वर: जब विवृत स्वर का उच्चारण करते हैं तब मुख का द्वार पूरी तरीके से खुला होता है। इनकी संख्या दो है। आ और आऀ

अर्द्ध विवृत स्वर

जब अर्द्ध विवृत स्वर का उच्चारण करते है, तब मुख का द्वार आधा खुला हुआ होता है। इनकी संख्या 4 है। अ, ऐ, औ, ऑ

सांध्य तथा समान स्वर

1. सांध्य स्वर: सांध्य स्वरों की संख्या चार होती है। ए, ऐ, ओ, औ

2. समान स्वर: सांध्य स्वरों को छोड़कर बाकी सभी स्वर समान स्वर की सूची में आते हैं। इनकी संख्या 9 है। अ, आ, इ, ई, उ, ऋ, ऊ, अं, अ:

Read Also: स्वर (परिभाषा और भेद)

मात्रा किसे कहते है?

जब स्वरों के रूप में थोड़ा परिवर्तन हो जाता है तब उसे मात्रा का नाम दिया जाता है।

अथवा

उच्चारण करने में जो समय लगता है उसी समय को मात्रा कहा जाता है, स्वर में निम्न मात्राएं हैं:

×

दम

ा 

राम

ि

तिल

ई 

नीर

उ 

सुपर

ू 

रुपय

ृ 

ऋण

पेन

ै 

पैर

मोबाईल 

लौकी

हिंदी भाषा में “व्यंजन” के विषय में जानकारी

जब वर्णों का उच्चारण किया जाता है, तब उनमें स्वरों की सहायता ली जाती है और स्वरों की सहायता से ही जो वर्ण बोले जाते हैं, उन्हें व्यंजन कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि व्यंजन को बिना स्वर की सहायता के उच्चरित नहीं किया जा सकता है, इनकी कुल संख्या 39 होती है।

व्यंजन के पास स्वयं के कुछ मूल स्वर होते हैं।

जैसे: क्, ख्, ग्, घ्, छ्, ज् इत्यादि लेकिन इनमें यदि अ जोड़ दिया जाए तो हलंत का चिन्ह ( ्) खत्म हो जाता है
और हलंत का चिन्ह हटने के पश्चात इनको इस रूप में लिखते हैं- क, ख, ख, च, छ, ज इत्यादि

व्यंजन में तीन भेद पाए जाते हैं।

  1. स्पर्श व्यंजन
  2. अन्त:स्थ व्यंजन
  3. ऊष्म व्यंजन

1 . स्पर्श व्यंजन: स्पर्श व्यंजन के पांच वर्ग होते है और प्रत्येक वर्ग में पांच पांच व्यंजन व्यवस्थित है। पहले वाले वर्ग के अनुसार ही इनका नाम रखा गया है।

उदाहरण

क, ख, ग, घ, ड़ – क वर्ग
च, छ, ज, झ ,ञ – च वर्ग
ट, ठ, ड, ढ़, ण तथा ड़, ढ – ट वर्ग
त, थ, द, ध, न – त वर्ग
प, फ, ब, भ, म – प वर्ग

2. अन्त:स्थ व्यंजन: अन्त:स्थ व्यंजन संख्या में 4 होते हैं। य, र, ल तथा व

3. ऊष्म व्यंजन: ऊष्म व्यंजन की संख्या 4 होती है। श, ष, स तथा ह।

संयुक्त व्यंजन

जिस स्थान पर दो या दो से अधिक व्यंजनों का मेल होता हैं, उन्हे संयुक्त व्यंजन कहते है। लेकिन देवनागरी लिपि में वर्णों के मेल के बाद स्वरूप में परिवर्तन हो जाते है। दो व्यंजनों के मेल से बने शब्दो के उदाहरण निम्न है:

  1. क्ष = क् + ष (अक्षर, क्षत्रिय)
  2. ज्ञ = ज् + ञ (ज्ञान, यज्ञ)
  3. त्र = त् + र (त्रिशूल, त्रयोदशी)
  4. श्र = श् + र (श्रीमान, श्रेष्ठ)

कुछ विद्वान क्ष, त्, ज्ञ एवम् श्र की गिनती को वर्णमाला की श्रेणी में गिनते हैं। लेकिन इन्हे संयुक्त व्यंजन ही कहते है। इस कारण वर्णमाला की श्रेणी में इसे रखना सही प्रतीत होता है।

Read Also: व्यंजन (परिभाषा और भेद)

अनुस्वार और अनुनासिक

अनुस्वार

अनुस्वार का प्रयोग पंचम वर्ण (ड़, ञ, ण, न्औ र म्) पर किया है। इसे ( ं) से प्रदर्शित करते हैं।

जैसे

सम्भव – संभव
सञ्जय – संजय

अनुस्वार: पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार ( ं) को पंचम वर्ण (ड़, ञ, ण, न् और म्) जिन्हे पंचमाक्षर के नाम से भी जाना जाता है। इसके स्थान पर किया जाता है। अनुस्वार चिन्ह का प्रयोग कर लेने के पश्चात जो वर्ण आता है। वह क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग तथा प वर्ग से संबंधित होता हैं और ऐसे में अनुस्वार को इन्ही पंचम वर्णों के लिए प्रयोग कर लेते है।

उदाहरण

चञ्चल – चंचल
झण्डा – झंडा
पुण्य – पुन्य
कम्पन – कंपन

अनुस्वार को पंक्षमाक्षर में में बदलने के लिए निम्न नियमों का पालन करना आवश्यक है।

  • अगर पंचमाक्षर के पश्चात किसी अन्य वर्ग में यदि किसी वर्ण स्थान है तो पंचमाक्षर अनुस्वार का स्वरूप परिवर्तित नहीं किया जाएगा। उदाहरण: अन्य, चिन्मय, तथा उन्मुख को अंय, चिंमय तथा उंमुख के रुप में नही प्रदर्शित किया जा सकता है।
  • यदि द्वित्व रूप में पंचम वर्ण का दोहराव होता हैं तो पंचम वर्ण को अनुस्वार के स्वरूप में बदलते नही है। उदाहरण: प्रसन्न, सम्मेलन तथा अन्न को क्रमश: प्रसंन, संमेलन तथा अंन में परिवर्तित नही किया जा सकता है।
  • कुछ ऐसे भी शब्द है, जिनमें अनुस्वार के पश्चात य, र, ल, व और ह आता है तो ऐसे शब्दों मे अनुस्वार में कोई बदलाव नहीं किया जाता है, वह अपने मूल रूप में ही रहता है। उदाहरण: कन्या, मान्यता, कान्हा, चिन्ह इत्यादि।
  • अन्त:स्थ व्यंजन य, र, ल तथा व एवम् ऊष्म व्यंजन श, ष, स तथा ह से पूर्व आने वाला अनुस्वार बिंदु (ं) के रूप में प्रयोग होता है क्योंकि ये व्यंजन किसी भी वर्ग का भाग नहीं है। उदाहरण: मांस, अंश, संशय, संयम इत्यादि।

अनुनासिक (चंद्रबिंदु)

जब स्वरों के उच्चारण में मुख और नासिका दोनों की सहायता ली जाती है तब अक्षरों के ऊपर चंद्रबिंदु लगा देते है और उन्हें अनुनासिक के नाम से जानते हैं।

उदाहरण:

काँच, पाँच, आँख, कुआँ, ताँगा, तितलियाँ, दाँत, आँच।
यहाँ-वहाँ, जहाँ, कहाँ, मूँछ, पूँछ, अँधा।

अनुनासिक के ऊपर बिंदु का प्रयोग

शब्दों को लिखने के बाद ऊपर शिरोरेखा लगाई जाती है। यदि इन्हीं शिरो रेखा के ऊपर स्वर की मात्रा लगी हो तब यहां बिंदु का प्रयोग करते हैं ताकि लिखावट सुविधाजनक हो।

उदाहरण

मैं, गोंद, बिंदु।

अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर

अनुनासिक स्वर तथा अनुस्वार का मूल रूप व्यंजन है।

जब इनका प्रयोग किया जाता है तो कुछ शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं।

उदाहरण

हंस और हँस
हंस एक पक्षी है जबकि हँसना एक क्रिया है।

विसर्ग

  • विसर्ग (:) महाप्राण सूचक स्वर है, जो ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न लिपिया है। उनमें यह सांकेतिक रूपों में पाया जाता है। उदाहरण के लिए कुछ शब्दो में राम:, प्रातः
  • अतः और संभव: के अंत में विसर्ग मौजूद है लेकिन यह अपने आप में कोई अलग वर्ण नहीं है बल्कि यह स्वराश्रित है। इसका उच्चारण करते समय मुख से ह् की ध्वनि निकलती है और इसे (:) से दिखाते हैं। उदाहरण :- प्रायः, नमः, अतः, प्रात: इत्यादि।
  • अगर विसर्ग से पूर्व ह्रस्व स्वर अथवा व्यंजन है तो उसके उच्चारण में मुख से निकली हुई ध्वनि है जैसी होनी चाहिए। दूसरी स्थिति में अगर विसर्ग से पूर्व दीर्घ स्वर और व्यंजन है तो विसर्ग का उच्चारण हा जैसा होना चाहिए। विसर्ग से पहले ‘अ’ कार मौजूद है तो इस स्थिति में उच्चारण ह जैसा आ है तो हा जैसा, ओ है तो हो जैसा, इ है तो हि जैसा आदि होता हैं पर यदि विसर्ग से पहले ए ‘कार’ है तो विसर्ग का उच्चारण हि जैसा होगा।

उदाहरण के लिए

  • केशव – केशव: (ह)
  • बाला – बाला: (हा)
  • मो – मो: (हो)
  • भूमे – भूमे: (हे)

हलंत

कभी कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यंजन का प्रयोग स्वर रहित रुप में होता हैं तथा उसके नीचे एक तिरछी सी रेखा का प्रयोग करते हैं, यह रेखा हल कहलाती हैं। उदाहरण के लिए – विद्यालय

हलंत – ब्राह्मी लिपि में जितनी भी लिपियां है, उनमें एक चिन्ह प्रयुक्त करते हैं और यह चिन्ह जिस किसी भी व्यंजन के साथ लगा हो उनमें जो अ शब्द छिपा रहता है, वह खत्म हो जाता है। हलंत को विभिन्न भाषाओं और लिपियों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। देवनागरी में हलंत तो मलयालम में इसे चंद्रकला के नाम से जानते है।

वर्णों के उच्चारण स्थान

मुख के जिस भी भाग से वर्ण का उच्चारण किया जाता है, उसे ही वर्णों का उच्चारण स्थान कहते है।

उच्चारण की स्थान तालिका

मुख में अलग अलग स्थानों पर वायु को दबाने से भिन्न भिन्न उच्चारण निकलते हैं। मुख के अंदर मुख्यत: 5 विभाग होते है, जिन्हे स्थान कहते है।

इन्हीं पांच विभागों में से एक एक स्वर को उत्पत्ति होती हैं तथा यही स्वर 5 शुद्ध स्वरों के नाम से जाने जाते है, जिसे एक ही ध्वनि के अंदर बहुत समय तक बोला जा सकता है, उसे ही स्वर कहते है।

इस लेख में आपने जाना वर्ण विभाग किसे कहते हैं और वर्ण विभाग के कितने भेद होते हैं। उसके साथ आप लोगों ने वर्ण विभाग (Varn Vibhag) के कुछ उदाहरण भी देखें। जिससे कि आपको समझ में आ गया होगा, यह कितने प्रकार के होते हैं। और किस तरह से वर्ण विभाग (Varn Vibhag) शब्द मिलकर किसी वाक्य को परिवर्तित कर देते हैं। वर्ण विभाग (Varn Vibhag), परिभाषा, भेद और उदाहरण आदि सभी की जानकारी इस लेख में दी गई है।

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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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