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शब्दालंकार (परिभाषा, भेद और उदाहरण)

Shabdaalankar Kise Kahate Hain: हिंदी व्याकरण में अलंकार की इकाई बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। हिंदी व्याकरण में किसी भी शब्द को सही तरह से लिखना जरुरी होता है। हर शब्द का अपना अर्थ होता है। अलंकार को ऐसे भी कह सकते है की यह एक ऐसी इकाई है, जिसे हिंदी व्याकरण की शोभा बढ़ती है।

Shabdaalankar Kise Kahate Hain
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जिस प्रकार से महिला की शोभा आभूषण से बढ़ती है, उसी तरह काव्य की शोभा अलंकार से बढ़ती है। आज के आर्टिकल में हम आपको अंलकार के की परिभाषा के साथ साथ आपको शब्दालंकार की परिभाषा और प्रकार के बारे में भी जानकारी देने वाले है।

यह भी पढ़े: अलंकार किसे कहते हैं? (परिभाषा, भेद तथा प्रकार)

शब्दालंकार (परिभाषा, भेद और उदाहरण) | Shabdaalankar Kise Kahate Hain

सामान्य परिचय

अपने विचारों के आदान-प्रदान करने का माध्यम है भाषा। और अगर अपने विचारों का आदान-प्रदान को मनोरंजन के लिए किया जाना हो या आकर्षण के साथ या ताल व लय में प्रस्तुत करना हो, जिसको सुन कर आनंद आए तो उसे काव्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

अब अगर इस काव्य को और भी अधिक सुन्दर व आकर्षक व चमत्कृत बनाना हो तो इसे आभूषणों से सुसज्जित किया जाता है। इन आभूषणों को ही अलंकार कहते हैं।

अलंकार परिचय

सोने पे सुहागा। जी हाँ, किसी भी व्यक्ति या विचार में अगर अतिरिक्त आभूषणों को भी सम्मिलित कर दिया जाए तो सोने पे सुहागा हो जाता है अर्थात वह पहले से भी अधिक सुन्दर व आकर्षक बन जाता है। जैसे एक स्त्री प्राकृतिक रूप से सुन्दर होने पर भी अगर आभूषण धारण कर लेती है तो और भी अधिक सुन्दर लगने लगती है।

ठीक उसी प्रकार अगर काव्य में शब्दों को एक एसी विशेष व्यवस्था प्रदान की जाए जिससे काव्य का कथ्य सुसज्जित होकर प्रस्तुतु हो जाए तो एसी व्यवस्था को ही अलंकार कहते हैं। यहाँ अपने कथ्य के कारण काव्य पहले ही सुन्दर था परन्तु इस विशेष व्यवस्था के कारण या अलंकृत अर्थात आभूषणों से लैस हो आता है तथा और भी सुन्दर हो जाता है।

अलंकार की परिभाषा

किसी काव्य में शब्दों तथा अर्थ की शोभा बढाने वाले गुण या व्यवस्था को अलंकार कहते हैं। यह अलंकार या तो श्रवण के दौरान आनंद देते हैं या उसके अर्थ की स्थापना या समझ में आनंद देते हैं।

दुसरे शब्दों में काव्य में शब्दों की एक विशेष व्यवस्था के कारण काव्य में एक चमत्कार उत्पन्न होता है। यह चमत्कार या तो पठन में अनुभूत होता है या अर्थ में। इस चमत्कार के उत्पत्तिकारक व्यवस्था को ही अलंकार कहते हैं।  

अलंकार के भेद 

अलंकार की परिभाषा में हमने देखा की शब्दों की विशेष व्यवस्था से या तो शब्दों की भौतिक व्यवथा या उसके अर्थ में चमत्कार पैदा होता है। स्पष्ट है की अलंकर या तो शब्दों की भौतिक व्यवस्था के माध्यम से सम्मिलित होते हैं या अर्थ के माध्यम से।

अतः स्पस्ट है कि अलंकार के दो प्रकार हैं-

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार

अब हम अलंकारों को विस्तार से समझेंगे।

शब्दालंकार  

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि “शब्दालंकार” दो शब्दों से मिलकर बना है- “शब्द” और “अलंकार” अर्थात जब भाषा का यह अलंकार शब्द के रूप में हो (अर्थ के रूप में नहीं)। यह अलंकर काव्य के भौतिक स्वरूप या बनावट पर आधारित होता है इसके आतंरिक स्वरुप पर नहीं।

किसी काव्य में जब शब्दों की एक विशेष व्यवस्था के कारण काव्य में एक चमत्कार उत्पन्न होता है तो इसे शब्दालंकार कहते हैं।

शब्दालंकार सदैव पठन या श्रवण में प्रकट या अनुभूत होता है। अथवा अर्थ इसका आनंद अर्थ को समझने में नहीं वरन काव्य को सुनने या पढने में आता है।

शब्दालंकार काव्य में शब्द अथवा व्यंजन उनकी आवृत्ति उसके अनेकार्थ आदि के माध्यम से अलंकार रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। और इन प्रोयोगों के ही आधार पर शब्दालंकार को वर्गीकृत किया गया है। तो आइए इस वर्गीकरण पर एक प्रकाश डालें।

शब्दालंकार के भेद 

  • अनुप्रास अलंकार
  • यमक अलंकार
  • श्लेशालंकार
  • पुनरुक्ति अलंकार 
  • वक्रोक्ति अलंकार

शब्दों व व्यंजन की आवृत्ती व स्वरुप के अनुप्रयोगों में भेद होने के कारण ही शब्दालंकार में उपरोक्त सभी भेद पाए जाते हैं। आइए इन सभी अनुप्रयोगों को समझने के लिए इनके भेदों पर प्रकाश डालें।

अनुप्रास अलंकार

काव्य में किसी पंक्ति में विभिन्न शब्दों में जब एक ही वर्ण बार बार आता है तो इसे अनुप्रास अलंकार कहा जाता है। यह आवृत्ति कईं तरह से हो सकती है-

  • बिना किसी स्वर के किसी व्यंजन की आवृत्ति।

जैसे: बंदऊँ गुरू पद पदुम परागा।  

  • सुर के साथ किसी व्यंजन की आवृत्ति।

सुरभित सुन्दर सुखद सुमन तुम पर खिलते हैं।

जैसे;

यमक अलकार

यमक अलंकार के अंतर्गत काव्य में किसी पंक्ति में जब किसी शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है तो वहां यमक अलंकार होता है। यहाँ शर्त यह है कि प्रत्येक आवृत्ति में उस शब्द का अर्थ अलग होना चाहिए। जैसे:

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए।

यहाँ प्रत्येक “कनक” शब्द का एक भिन्न अर्थ है। एक कनक का अर्थ है- सोना तथा दुसरे कनक का अर्थ है- धतूरा। 

श्लेषालंकार

श्लेशालंकार को समझने के लिए पहले इसके अर्थ पर प्रकाश डालते हैं। श्लेष का अर्थ होता है चिपकन या चिपकना। अतः श्लेशालंकार शब्दों की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो या इससे अधिक अर्थों वाले शब्द को एक ही बार उपयोग किया जाता है परन्तु अर्थ के परिप्रेक्ष्य में वह एक से अधिक बार उपयोग में आता है।

इसे एक उदहारण से समझते हैं-

चरण धरत चिंताकारत भावत नींद ना शोर।  

सुबरन को ढूँढत फिरत कवि कामी और चोर।।

यहाँ “सुबरन” अर्थात सुवर्ण के तीन अर्थ हैं- कवि के लिए अच्छा रंग कामी के लिए सुन्दर स्त्री तथा चोर के लिए सोना।

पुनरुक्ति अलंकार

जैसा कि पुनरुक्ति शब्द से ही स्पष्ट है कि ये शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पुनः तथा उक्ति। पुनः का अर्थ होता है फिर से या दोबारा तथा उक्ति का अर्थ होता है प्रस्तुती। अतः शाब्दिक अर्थ के अनुसार पुनरुक्ति का अर्थ है बार बार या दोबारा आना।

अर्थात जब काव्य में किसी पंक्ति में जब कोई शब्द बार बार आता है तो उसे पुनरुक्ति अलंकार कहते हैं। इस तरह से किसी एक ही शब्द की आवृत्ति उस शब्द या उस भाव विशेष की तीव्रता को बताती है। अर्थात किसी भाव विशेष की तीव्रता को प्रकट करने के लिए इस अलंकार का उपयोग किया जाता है। जैसे:

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।

युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल।।

इन पंक्तियों में कवियित्री मधुरता की विशेष चाह करती है तथा चिरकाल के लिए दीपक के प्रकाश की तीव्र इच्छा व्यक्त करती है।

वक्रोक्ति अलंकार

इस अलंकार में कोई एक शब्द इस प्रकार उपयोग किया जाता है कि प्रत्येक पाठक या श्रोता उसका अपने नज़रिए से अर्थ निकलता है। अर्थात उस शब्द का अर्थ वस्तुनिष्ठ ना होकर के विशानिष्ठ होता है। जैसे:

मैं सुकमारि नाथ बन जोगू।

तुम्हीं उचित तप मो कहँ भोगू।।

निष्कर्ष

तो हमने देखा कि किस तरह शब्दों की विशेष व्यवस्था से किसी काव्य में विभिन्न तरह के चमत्कार उत्पन्न होते हैं। भिन्न भिन्न काव्य को पढ़कर तथा उनका विश्लेषण करके इन अलंकारों को और भी अच्छी तरह समझा जा सकता है।

इस आर्टिकल के द्वारा हमने आपको शब्दालंकार परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण (Shabdaalankar Kise Kahate Hain) के बारे में आपको बताया जो आपको पसंद आया होगा। आर्टिकल को शेयर जरुर करें।

अलंकार के अन्य भेद

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संज्ञास्वरव्यंजनउपसर्ग
विराम चिन्हसंधिप्रत्ययवाक्य
क्रियाउच्चारण स्थानरसछंद
समासअव्ययकारकविशेषण
शब्द शक्तिसयुंक्त क्रियाहिंदी वर्णमालाहिंदी बारहखड़ी
Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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