Raudra Ras In Hindi: हिंदी व्याकरण में ऐसे बहुत सारी इकाइयां है, जिनको बारीकी से पढ़ना बहुत ही जरूरी होता है। हिंदी ग्रामर में संधि और सर्वनाम के अलावा भी और कई ऐसे अन्य टॉपिक है, जो हिंदी ग्रामर के अहम भाग है।
इस लेख में हम रस के ही एक भाग रौद्र रस की परिभाषा उदाहरण सहित समझने वाले है। यहाँ पर हम रौद्र रस के सरल उदाहरण द्वारा रौद्र रस के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
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रौद्र रस की परिभाषा (Raudra Ras Ki Paribhasha)
काव्य को सुनने पर जब क्रोध के से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही रौद्र रस कहते हैं। अन्य शब्दों में रौद्र रस वह रस है, जिसमें क्रोध का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव क्रोध होता है।
रौद्र रस परिचय
रौद्र रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा यही अन्य रसों के उत्पत्तिकारक रस हैं। रौद्र रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है, जिस काव्य में काव्य की विषय वस्तु में गुस्से का समावेश होता है।
रौद्र रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है जब वह नकारात्मक या विध्वंसात्मक रूप से ऊर्जावान होता है तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि काव्य के जिस भग में क्रोध को प्रकट किया जाता है, वहां रौद्र रस होता है।
रौद्र रस के अवयव
- स्थायी भाव: क्रोध।
- आलंबन (विभाव): क्रोध दिलाने वाला व्यक्ति या विपक्षी।
- उद्दीपन (विभाव): वह घटना जिससे क्रोध आ जाए या विपक्षी की कोई चेष्टा।
- अनुभव: मुट्ठियाँ भींचना, दांत पीसना, चेहरा लाल होना, भौह चढ़ाना आदि।
- संचारी भाव: क्रोध दिलाने वाला व्यक्ती या विपक्षी स्मृति, उग्रता, उद्वेग आदि।
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रौद्र रस का स्थाई भाव क्या है?
रस का स्थाई भाव क्रोध है।
रौद्र रस के उदाहरण (Raudra Ras Ke Udaharan)
जब तैं कुमति जियं ठयऊ। खंड-खंड होइ हृदउ न गयऊ।।
बर मागत मन भइ नहिं पीरा। गरि न जीह मुँह परेउ न कीरा।।
उबल उठा शोणित अंगो का, पुतली में उत्तरी लाली।
काली बनी स्वय वह बाला, अलक अलक विषधर काली।।
श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भुलाकर, करतल युग मलने लगे।।
अरे ओ! दुःशासन निर्लज्ज, देख तू नारी का भी क्रोध।
किसे कहते उसका अपमान, करा दूंगी मैं उसका बोध।।
शत घूर्णावर्त, तरंग-भंग, उठते पहाड़,
जल- राशि, राशि-जल पर चढ़ता खाता पछाड़,
तोड़ता बंध प्रतिसंध धरा, हो स्फीत-वक्ष,
दिग्विजय- अर्थ प्रतिपल समर्थ बढ़ता समक्ष।।
सुनहूँ राम जेहि शिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा न त मारे जइहें सब राजा।।
रे नृप बालक कालबस, बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार।।
प्रभु हो या परात्पर हो
कुछ भी हो सारा तुम्हारा वंश
इसी भाँति पागल कुत्ते की तरह
एक-दूसरे को परस्पर फाड़ खाएगा
तुम खुद उनका विनाश करने के कई वर्षों बाद
किसी घने जंगल में
साधारण व्याध के हाथों मारे जाओगे
प्रभु हो पर मारे जाओगे पशुओं की तरह।
सुनत लखन के बचन कठोर। परसु सुधरि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देर दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालक बध जोगू।।
समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए।
सुनत बचन फिरि अनत निहारे देखे चाप खंड महि डारे।
असि रिस बोले बचन कठोर। कहु जड़ जनक धनुष के तोरा।।
अब तक हमने रौद्र रस के १० उदाहरण जाने। चलिए अब रौद्र रस के 10 उदाहरण और जानते है, जिससे आप रौद्र रस को और आसानी से समझ सको।
उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।
भारत का भूगोल तड़पता, तड़प रहा इतिहास है।
तिनका – तिनका तड़प रहा है, तड़प रही हर सांस है।
सिसक रही है सरहद सारी, मां के छाले कहते हैं।
ढूंढ रहा हूं किन गलियों में, अर्जुन के सूत रहते हैं।।
जो राउर अनुशासन पाऊँ।
कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ।।
काँचे घट जिमि डारिऊँ फोरी।
सकौं मेरु मूले इव तोरी।।
विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीत।।
क्या हुई बावली
अर्धरात्रि को चीखी
कोकिल बोलो तो
किस दावानल की
ज्वालाएं है दिखीं?
कोकिल बोलो तो।।
खून उसका उबल रहा था।
मनुष्य से वह दैत्य में बदल रहा था।।
फिर दुष्ट दुःशासन समर में शीघ्र सम्मुख आ गया।
अभिमन्यु उसको देखते ही क्रोध से जलने लगा।
निश्वास बारम्बार उसका उष्णतर चलने लगा।
अतिरस बोले बचन कठोर।
बेगि देखाउ मूढ़ नत आजू।
उलटउँ महि जहाँ लग तवराजू।।
रौद्र रस, वीर रस से कैसे अलग है?
अक्सर रौद्र रस तथा वीर रस को पहचाननें में या उनमें भेद करने में लोगों के दुविधा होती है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि इन दोनों ही रसों की परिस्थितियों में लक्षित व्यक्ति में ऊर्जा का संचार होता है तथा हाव भाव या भाव भंगिमा भी सामान रहती है। परन्तु इन दोनों रसों के उत्पन्न होने के लिए जो स्त्रोत परिस्थितियाँ होती हैं, उनमें अंतर होता है।
तकनीकी रूप से देखा जाए तो रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है जबकि वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है। रौद्र रस में एक कुछ नकारात्मक या विध्वंसात्मक ऊर्जा का संचरण होता है तथा लक्षित व्यक्ति का व्यवहार भी विध्वंसात्मक सा हो जाता है।
जबकि वीर रस में एक सकारात्मक या प्रतिरक्षात्मक ऊर्जा का संचरण होता है तथा लक्षित व्यक्ति में कुछ कर गुजरने का भाव होता है। हाँ, दोनों रसों में आलमन अवश्य सामान हो सकते हैं परन्तु लक्षित व्यक्ति कि प्रत्योत्तर प्रयोजन में अंतर पाया जाता है।
निष्कर्ष
हमने देखा कि किस रौद्र रस की उपस्थिति में क्रोध का भाव होता है जो कि काव्य में किसी चरित्र के द्वारा ऐसी अपमानजनक या अन्य क्रोध योग्य परिस्थिती उत्पन्न करने के कारण लक्षित चरित्र के व्यव्हार में क्रोधयुक्त परिवर्तन को लता है और लक्षित व्यक्ति की एक क्रोध विशेष आनन अभियाक्ती व शारीरिक अभिव्यक्ति को संचालित करता है।
रौद्र रस स्थायी भाव के आधार पर वीर रस से भिन्नता रखता है। जहां वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ होता है, वहीं रौद्र रस का स्थायी भाव ‘क्रोध’ होता है।
FAQ
काव्य को सुनने पर जब क्रोध के से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही रौद्र रस कहते हैं।
रे नृप बालक कालबस, बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार।।
रस का स्थाई भाव क्रोध है।
अंतिम शब्द
इस लेख में हमने रौद्र रस की परिभाषा, उदाहरण सहित (Raudra Ras In Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक जाना। यदि आपका कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं और लेख को आगे शेयर जरुर करें।
रस के अन्य प्रकार और हिंदी व्याकरण के बारे में जरुर पढ़े
Thanks for Raudra ras examples