पंचतंत्र साहित्य पंचतंत्र स्टोरी इन हिंदी (Panchatantra Stories in Hindi) भारत ही नहीं बल्कि विश्व के साहित्य में भी अपना विशेष स्थान रखता हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इसके इतने प्रसिद्ध होने का कारण मनोरंजन, सफलता, रोचकता, मनोविज्ञान और राजीनीति शास्त्र का संगम हैं। पंचतंत्र को प्रत्येक वर्ग के लोग पसंद करते हैं फिर चाहे वो बच्चे Hindi Stories for Kids, बूढ़े, जवान, दार्शनिक व नेता चाहे कोई भी हो।

पंचतंत्र क्या हैं? | Panchatantra Kya Hai
अक्सर पंचतंत्र नाम के उच्चारण से हमें ऐसा प्रतीत होता हैं की हम किसी बड़े नीतिशास्त्र के बारे में चर्चा कर रहे हैं। वैसे देखा जाये तो पंचतंत्र का असली नाम ‘नीति शास्त्र’ ही हैं। पंचतंत्र कि मूल रचना संस्कृत भाषा में पंडित विष्णु शर्मा ने कि थी।
संस्कृत कि नीति कथाओं में पंचतंत्र का प्रथम स्थान हैं। पंचतंत्र कि लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं की यह विश्व कि 50 से भी अधिक अलग-अलग भाषाओं में इसका अनुवाद हो चूका हैं। वर्तमान में उपलब्ध अनुवादों के आधार पर कहा जा सकता हैं की पंचतंत्र कि रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास कि गयी थी।
पंचतंत्र को मुख्य रूप से 5 भागों में बांटा गया हैं, जिसमें मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव व अलगाव), मित्रलाभ अथवा मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति और उसके लाभ), काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा), लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना), अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)।
पंचतंत्र कि कहानियों (Story of Panchtantra in Hindi) में पात्रों में मनुष्य के अलावा पशु-पक्षी भी हैं, उनके माध्यम से कई शिक्षाप्रद बातें बतलाई गयी हैं।
पंचतंत्र का इतिहास
पंचतंत्र का इतिहास बहुत ही रोचक हैं। लगभग 2000 साल पहले पूर्व दक्षिण के किसी जनपद में एक नगर था महिलारोप्य। वहाँ का राजा अमरशक्ति बड़ा ही पराक्रमी तथा उदार था। संपूर्ण कलाओं में पारंगत राजा अमरशक्ति के तीन पुत्र थे बहुशक्ति, उग्रशक्ति तथा अनंतशक्ति। राजा स्वयं जितना ही नीतिज्ञ, विद्वान्, गुणी और कलाओं में पारंगत था, दुर्भाग्य से उसके तीनों पुत्र उतने ही उद्दंड, अज्ञानी और दुर्विनीत थे।
राजा अमरशक्ति ने अपने लड़कों को व्यावहारिक शिक्षा देने का बहुत प्रयास किया लेकिन उन पर किसी बात का असर नहीं हुआ। थक-हारकर एक राजा ने अपने मंत्रीमंडल से कहा कि “मूर्ख और अविवेकी पुत्रों से अच्छा तो निस्संतान रहना होता। पुत्रों के मरण से भी इतनी पीड़ा नहीं होती, जितनी मूर्ख पुत्र से होती है। मर जाने पर तो पुत्र एक ही बार दुःख देता है, किंतु ऐसे पुत्र जीवन-भर अभिशाप की तरह पीड़ा तथा अपमान का कारण बनते हैं।”
अमरशक्ति राजा ने कहा कि हमारे राज्य में हजारों विद्वान्, कलाकार एवं नीतिविशारद महापंडित रहते हैं। कोई ऐसा उपाय करो कि ये निकम्मे राजपुत्र शिक्षित होकर विवेक और ज्ञान की ओर बढ़ें।
अत्यंत विचार-विमर्श के बाद एक मंत्री सुमति ने राजा को बताया कि महाराज, व्यक्ति का जीवन-काल तो बहुत ही अनिश्चित और छोटा होता है। हमारे राजपुत्र अब बड़े हो चुके हैं। विधिवत् व्याकरण एवं शब्दशास्त्र का अध्ययन आरंभ करेंगे तो बहुत दिन लग जाएँगे। इनके लिए तो यही उचित होगा कि इनको किसी संक्षिप्त शास्त्र के आधार पर शिक्षा दी जाए, जिसमें सार-सार ग्रहण करके निस्सार को छोड़ दिया गया हो; जैसे हंस दूध तो ग्रहण कर लेता है, पानी को छोड़ देता है।
ऐसे में यदि राजकुमारों को शिक्षा देने और व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करने का उत्तरदायित्व पंडित विष्णु शर्मा को सौंपा जाए जो कि हमारे ही राज्य में रहते हैं। उचित होगा सभी शास्त्रों में पारंगत विष्णु शर्मा की छात्रों में बड़ी प्रतिष्ठा है। आप राजपुत्रों को शिक्षा के लिए उनके हाथों ही सौंप दीजिए। वे अल्प समय में ही राजकुमारों को शिक्षित करने की समर्थ रखते हैं।
राजा अमरशक्ति अपने मंत्री के इस सुझाव से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने तुरंत महापंडित विष्णु शर्मा का आदर-सत्कार करने के बाद विनय के साथ अनुरोध किया, “आर्य, आप मेरे पुत्रों पर इतनी कृपा कीजिए कि इन्हें अर्थशास्त्र का ज्ञान हो जाए। मैं आपको दक्षिणा में सौ गाँव प्रदान करूँगा।”
पंडित विष्णु शर्मा ने कहा की “राजन में अपनी विद्या का विक्रय नहीं करता हूँ, मैं सौ गाँव के बदले में अपनी विद्या बेचूंगा नहीं। लेकिन मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं मात्र 6 माह में आपके पुत्रों को नीतियों में पारंगत कर दूंगा। यदि ऐसा न हुआ तो ईश्वर मुझे विद्या शुन्य कर दे।”
पंडित विष्णु शर्मा कि यह भीष्म प्रतिज्ञा सुनकर राजा अमरशक्ति स्तब्ध रह गये।
राजा अमरशक्ति ने मंत्रियों के साथ विष्णु शर्मा की पूजा-अभ्यर्थना की और तीनों राजपुत्रों को उनके हाथ सौंप दिया। पंडित विष्णु शर्मा तीनों राजकुमारों को अपने आश्रम ले आये। विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को अलग-अलग प्रकार कि नीतिशास्त्र से संबंधित कहानियां सुनाई।
Panchatantra Stories के पात्रों में मनुष्य, पशु-पक्षी आदि का वर्णन किया और अपने विचारों को उन पात्रों के मुख से व्यक्त किया। उनको पात्रों को आधार बनाकर पंडित विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को उचित-अनुचित और व्यावहारिक ज्ञान में प्रशिक्षित किया। राजकुमारों कि शिक्षा पूरी होने के बाद विष्णु शर्मा ने उन कहानियों को पंचतंत्र कि कहानियों के रूप में संकलित किया।
वर्तमान में उपलब्ध प्रमाणों के आधार यह कहा जा सकता हैं कि पंचतंत्र ग्रंथ कि रचना पूरी होने के दौरान पंडित विष्णु शर्मा कि उम्र लगभग 80 वर्ष कि रही होगी। वे दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर में रहते थे।
पंचतंत्र के भाग
पंचतंत्र को पांच भागों में बांटा गया हैं।
- मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
- मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
- संधि-विग्रह/काकोलूकियम (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
- लब्ध प्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
- अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठायें)
पंडित विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की कहानियों (Panchatantra Stories in Hindi with Moral) को बेहद रोचक तरीके से पेश किया हैं, यह कहानियां मनोविज्ञान, व्यावहारिकता तथा राजकार्य से सिधान्तों कि सीख देती है। पंचतन्त्र की कहानियां बहुत जीवंत हैं। इनमे लोकव्यवहार को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। बहुत से लोग इस कहानियों को नेतृत्व क्षमता विकसित करने का एक सशक्त माध्यम मानते हैं।
इस आर्टिकल में हम Panchtantra ki Kahaniyan प्रकाशित कर रहे हैं, साथ ही समय-समय पर इस कहानियों को अपडेट भी किया जायेगा। आपसे अनुरोध हैं कि इस पेज को बुकमार्क कर लें, ताकि आप बाद में इसे आसानी से पढ़ सकें।
पंचतंत्र की कहानियां | Panchatantra Stories in Hindi
मित्रभेद (The Separation of Friends)
बन्दर और लकड़ी का खूंटा (पंचतंत्र की कहानी)
एक बार की बात है किसी शहर के पास एक बड़े मंदिर के निर्माण का कार्य बहुत ही जोरो पर हो रहा था। उस निर्माण कार्य में बहुत संख्या में मजदूर कार्य में लगे हुए थे। वहां पर लड़कियों का काम अधिक होने के कारण वहां पर लकड़ी चीरने के लिए अधिक मजदूर थे।
सियार और ढोल (पंचतंत्र की कहानी)
एक समय की बात है, जब दो राजाओं के बीच एक जंगल के पास बड़ा युद्ध हुआ। इस युद्ध में एक राजा हारा और एक राजा जीता। इस युद्ध के बाद दोनों सेनाएं अपने नगर को लौट आई। सेना का एक ढ़ोल जिसे सेना के साथ गए चारण और भांड रात में वीरता की कहानियां सुनाते थे, वह पीछे ही रह गया।
व्यापारी का पतन और उदय (पंचतंत्र की कहानी)
वर्धमान नामक शहर में एक कुशल व्यापारी रहता था, जिसके कुशलता के चर्चे राजा तक को भी ज्ञात थे। इसी कारण राजा ने एक दिन उसे एक शहर का प्रशासक बना दिया। उस व्यापारी के कुशलता के प्रभाव में उस शहर के आम आदमी भी बहुत प्रसन्न थे और अपने कुशलता के प्रभाव में उन्हे खुश रखा। दूसरी तरफ राजा भी उसकी कुशलता से बहुत प्रभावित थे।
मूर्ख साधू और ठग (पंचतंत्र की कहानी)
एक गांव के मंदिर में देव शर्मा नाम का एक प्रतिष्ठित साधु रहता था। गांव वाले साधु का बहुत ही सम्मान करते और उनको मानते थे। उसे अपने भक्तों से दान में तरह-तरह के वस्त्र भोजन एवं धनराशि मिलती थी। साधु उन वस्तुओं को बेचकर काफी धनराशि एकत्रित कर ली।
लड़ती भेड़ें और सियार (पंचतंत्र की कहानी)
एक दिन सियार एक गांव के बाजार से गुजर रहा था। बाजार में उसने भीड़ देखी। कुतूहलवंश सियार यह देखने गया कि क्या हो रहा है। वहां जाकर सियार ने देखा कि दो भेड़े आपस में लड़ रही है। उन भेड़ों के मध्य लड़ाई इतनी जोरदार चल रही थी कि दोनों लहूलुहान हो गए।
दुष्ट सांप और कौवे की कहानी (पंचतंत्र की कहानी)
एक जंगल में एक पुराने बरगद का बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ पर कौवा-कव्वी अपना घोंसला बनाकर रहते थे। उसी पेड़ की खो में एक काला नाग रहता था। हर वर्ष मौसम आने पर कव्वी उस घोसले में अंडे देती थी। वह सांप मौका पाकर अडों को चट कर जाता। जब कौवा-कव्वी अपने घोंसले पर लौटते तो अंडों के खोल देख कर बहुत दुखी होते थे।
बगुला भगत और केकड़ा (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक वन प्रदेश में बहुत बड़ा तालाब था। वहां प्रत्येक प्रकार की सामग्री होने के कारण अत्यधिक जीव रहते थे, जिसमें मछलियां, केकरा बुगला पक्षी आदि रहते थे। उसी तालाब के किनारे एक आलसी बुगला रहता था।
चतुर खरगोश और शेर (पंचतंत्र की कहानी)
एक जंगल में एक बहुत बड़ा शेर रहता था। जब वह शिकार पर निकलता तो जंगल के बहुत सारे जानवरों को मार देता था। इस कारण जंगल के सभी जानवर दुखी थे। जंगल के सभी जानवरों ने इसका उपाय सोचने के लिए सभी को एकत्रित किया। सभी जानवरों ने मिलकर इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक उपाय सोचा कि उनका दल महाराज के पास जाएगा और उन से विनती करेगा।
खटमल और बेचारी जूं (पंचतंत्र की कहानी)
एक राजा के कक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की एक जू रहती थी। वह रोज रात को राजा के सोने के बाद चुपके से राजा के पास आती एवं राजा का खून चुस्ती। अपने कार्य को इस प्रकार अंजाम देती की राजा को उसके बारे में पता ना चले। संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ गया।
नीले सियार की कहानी (पंचतंत्र की कहानी)
एक समय की बात है, एक बार एक सियार एक पुराने पेड़ के नीचे खड़ा था कि उसी समय एक जोरदार हवा के झोंके ने उस पुराने पेड़ को नीचे गिरा दिया। इसी कारण वह सियार उस पेड़ के नीचे आ गया और बुरी तरह घायल हो गया।
शेर, ऊंट, सियार और कौवा (पंचतंत्र की कहानी)
किसी वन में मदोत्कट नाम का शेर रहता था। सियार, कौवा और बाग तीनों उसके नौकर थे। एक दिन शेर ने एक ऊंट को देखा जो अपने गिरोह से भटक गया। शेर ने सबको बुलाकर पूछा कि यह विचित्र जीव कौन है? तुम सब जाकर पता लगाओ कि यह प्राणी वन्य प्राणी है या ग्राम्य प्राणी और यह यहां क्या कर रहा है।
टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक समुंद्र के किनारे टिटिहरी का एक जोड़ा रहता था। वे दिन भर अपने दाना पानी की व्यवस्था करते और शाम के समय वापस अपने घौसले पर आ जाते। जब टिटिहारी के अंडे देने का समय आया उससे एक दिन पहले उसने अपने पति से कहा कि कहीं सुरक्षित स्थान की खोज कर ले वहां जाकर मैं अपने अंडे रखूंगी। टीटीहरे ने कहा “यह स्थान पर्याप्त सुरक्षित है, तुम चिंता मत करो।”
मूर्ख बातूनी कछुआ (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में कम्बुग्रीव नाम का एक कछुआ एक तालाब में रहता था। उस तालाब में दो हंस तैरने के लिए आते थे। दोनों हंसों का स्वभाव बहुत ही मिलनसार और हंसमुख था। वे कछुए की मंद चाल और भोलापन देखकर बहुत ही प्रसन्न होते थे। कछुए और हंसो में मित्रता हो गई।
तीन मछलियों की कथा (पंचतंत्र की कहानी)
एक नदी के किनारे एक जलाशय था। जलाशय के चारों ओर लंबी झाड़ियां होने के कारण उसका पता किसी को नहीं था, जिसके कारण नदी से अनेक मछलियां आकर उस जलाशय में रहती थी। वह जगह मछलियों के अंडे देने के लिए भी उपयुक्त थी। जलाशय काफी ज्यादा गहरा था जिसके कारण उसमें मछलियों के पसंदीदा पौधे और कीड़े पाए जाते थे जिन्हें मछलियां आसानी से अपना भोजन बना लेती थी और जलाशय की गहराई में वे आसानी से अंडे दे सकती थी।
हाथी और गौरैया (पंचतंत्र की कहानी)
एक गौरैया अपने साथी के साथ एक पेड़ पर घोंसला बनाकर रहती थी। उस घोसले में उस गौरैया के अंडे थे। गोरैया प्रतिदिन उन अंडो पर बैठकर उनको गर्मी देती थी ताकि वह जल्दी से जल्दी पक जाए और अंडे में से चूजे बाहर आ जाए। एक दिन की बात है जब गौरैया का साथी भोजन की तलाश में घोंसले से कुछ दूर गया हुआ था और गौरैया अपने अंडों पर बैठी थी तभी अचानक एक मदमस्त हाथी वहां आ पहुंचा।
सिंह और सियार (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में हिमालय की किसी पहाड़ी पर एक बहुत ही ताकतवर शेर रहता था। एक दिन शिकार एवं भक्षण के बाद पुनः अपनी गुफा की ओर लौट रहा था तो बीच रहा मैं उसे एक मरियल सियार दिखाई दिया जिसने दंडवत प्रणाम किया।
चिड़िया और बन्दर (पंचतंत्र की कहानी)
एक जंगल में एक गौरैया पेड़ पर घोंसला बनाकर रहती थी। एक दिन कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। तीन चार बंदर इस कड़ाके की ठंड से बचने के लिए आसरा ढूंढते ढूंढते उस पेड़ के पास आ पहुंचे। उनमें से एक बंदर ने कहा यदि हम आग जला ले तो उसे ठंड दूर हो जाएगी।
गौरैया और बन्दर (पंचतंत्र की कहानी)
जंगल में एक विशाल पेड़ पर एक चिड़ा चिड़ी अपना घोंसला बनाकर रहते थे। वे अपने दांपत्य जीवन में बहुत ही खुश थे। दोनों सुख एवं आनंद में अपना जीवन यापन कर रहे थे। वे नित्य खाने की तलाश में इधर-उधर घूमते अपना भोजन प्राप्त करते एवं साय काल होने से पहले अपने घोंसले तक लौट आते।
मित्र-द्रोह का फल (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में हिम्मतनगर नाम के एक गांव में दो मित्र रहते थे, जिनका नाम धर्मबुद्धि और पापबुद्धि था। धर्मबुद्धि सीधा-साधा इंसान था और पापबुद्धि लोमड़ी के समान चालाक व्यक्ति था। एक बार पापबुद्धि के मन में ख्याल आया कि मैं धर्मबुद्धि के साथ राजधानी जाकर धनोपार्जन करू और किसी ना किसी तरीके से वह सारा धन धर्मबुद्धि से हड़प लूँ ताकि मेरे आगे की जीवन यात्रा सुखचैन से कट जाए।
मूर्ख बगुला और नेवला (पंचतंत्र की कहानी)
एक जंगल में तालाब के किनारे वट वृक्षों के तनो के खोल में कई बुगले रहते थे। उसी वृक्ष के नीचे के भाग में एक सांप रहता था। वह सांप उन बुगलों के बच्चो को खाकर अपना जीवन आसानी से चला लेता था। एक बगुला सांप द्वारा बार-बार उसके बच्चे खाने के कारण परेशान होकर तालाब किनारे जाकर विलाप करने लगा।
जैसे को तैसा (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक नगर में जीर्णधन नाम का एक बनिया रहता था। वह अकेले ही अपना जीवन यापन करता था क्योंकि उसके आगे पीछे कोई नहीं था। बनिए ने धन अर्जित करने के लिए विदेश जाने का सोचा। वैसे तो उसके पास कोई विशेष संपत्ति नहीं थी, केवल एक मन (चालीस किलोग्राम) भारी लोहे की तराजू थी।
मूर्ख मित्र (पंचतंत्र की कहानी)
एक बार एक राजा के पास एक बंदर था। वह बंदर राजा का विश्वासपात्र और सेवक था। उस बंदर को महल में कहीं भी बिना रोक-टोक जाने की आज्ञा थी। वह बंदर राजा की खूब सेवा किया करता था। एक दिन दोपहर में राजा अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे और बंदर उनको पंखे से हवा दे रहा था। तभी कहीं से एक मक्खी उड़ती हुई आई और राजा के मुख पर जा बैठी।
मित्र सम्प्राप्ति (The Gaining of Friends)
साधु और चूहा (पंचतंत्र की कहानी)
दक्षिण में महिलरोपियम नाम का एक शहर जहां एक शिव का मंदिर था। जहां एक पवित्र और निर्मल ऋषि रहते थे। वे हमेशा भिक्षा के लिए पास ही के शहर जाया करते थे और वहां से अपनी आवश्यकता से अधिक अन्न लाया करते थे। वे सुबह जाया करते थे और शाम को भोजन बनाने हेतु वापस आते थे। आवश्यकता के अनुसार अपना भोजन बनाकर बचा हुआ अन्न बर्तन में भरकर रख देते और गरीबों को बांट देते थे, जिससे वह गरीब सुबह मंदिर की सफाई और सजावट कर देते थे।
गजराज और मूषकराज की कहानी (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन काल में एक नदी के किनारे एक सुंदर नगर बसा था। वह नगर उस राज्य का व्यापार का केंद्र था। नगर बहुत बड़ा था, नगर में रोजाना हजारों लोगों का आना जाना लगा रहता था। एक वर्ष अत्यधिक बरसात हुई जिसके कारण नदी ने अपना रास्ता बदल लिया।
ब्राह्मणी और तिल के बीज (पंचतंत्र की कहानी)
एक समय एक निर्धन ब्राह्मण परिवार एक गांव में रहता था। एक दिन उनके यहां कुछ अतिथि आए थे। घर में सारा खाने पीने का सामान खत्म हो चुका था। इसी को लेकर दोनों दंपत्ति बात कर रहे थे। ब्राह्मण “कल कर्क सक्रांति है, मैं भिक्षा के लिए दूसरे गांव जाऊंगा। वहां एक ब्राह्मण सूर्य देव की तृप्ति के लिए कुछ दान करना चाहता है।
व्यापारी के पुत्र की कहानी (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में किसी नगर में सागर दत्त नाम का एक धनी व्यापारी रहता था। वह स्वभाव से थोड़ा कंजूस था। एक बार उसके पुत्र ने एक पुस्तक खरीदी जिसका मूल्य ₹100 था। उस पुस्तक में केवल एक ही श्लोक लिखा हुआ था- जो वस्तु जिसको मिलने वाली होती है, वह उसे अवश्य ही मिलती है।
अभागा बुनकर (पंचतंत्र की कहानी)
एक नगर में सोमिलक नाम का एक बुनकर रहता था। वह बहुत ही उत्कृष्ट एवं सुंदर वस्त्र बनने के बाद भी उसे कभी उपभोग से अधिक धन प्राप्त नहीं हुआ। अन्य बुनकर मोटा तथा सादा कपड़ा बनने के बाद भी उन्हें बहुत अधिक धन मिलता था, जिसके कारण उन्होंने काफी धन एकत्रित कर लिया था।
संधि-विग्रह/काकोलूकियम (कौवे एवं उल्लुओं की कथा) – Of Crows and Owls
कौवे और उल्लू के बैर (पंचतंत्र की कहानी)
एक बार मोर, कोयल, कबूतर, सारस, हंस, तोता, बगुला उल्लू आदि सभी पक्षियों ने मिलकर एक सभा बुलाई। सभा बुलाने का मुख्य प्रयोजन यह था कि पक्षियों के राजा गरुड़ तो सारा समय भगवान विष्णु की पूजा अर्चना और सेवा में लगे रहते हैं।
हाथी और चतुर खरगोश (पंचतंत्र की कहानी)
एक वन में चतुर्दंत नाम का हाथी रहता था, वह अपने हाथियों के समूह का सरदार था। वन में एक वर्ष बहुत ही बढ़िया अकाल पड़ा, जिसकी वजह से तालाब, झील तथा नदियां सूखने लगी। जिसकी वजह से बहुत से हाथी के बच्चे प्यासे मरने लगे और पानी ना होने की वजह से वन सूखने लगा।
धूर्त बिल्ली का न्याय (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में जंगल में एक पेड़ के खोखले तने में कपिंजल नाम का एक तीतर रहता था। एक बार वह तीतर अपने साथियों के साथ धान की नई फसलों को खाने के लिए अपने घर से बहुत दूर निकल गया। उसी शाम को एक शीघ्रगो नाम का एक खरगोश आश्रय की खोज करता हुआ उस वृक्ष के पास पहुंचा जहां तीतर रहता था। वह स्थान खाली देखकर खरगोश उसमें रहने लगा।
बकरा, ब्राह्मण और तीन ठग (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक गांव में शंभूदयाल नाम का एक ब्राह्मण रहता था। एक बार उसे दूसरे गांव के एक घर से भोजन का न्योता आया। ब्राह्मण देव ने उस न्योते को स्वीकार कर लिया। तय दिन पर ब्राह्मण देव दूसरे गांव में भोजन के लिए पहुंच गए। भोजन करवाने के पश्चात यजमान ने ब्राह्मण देव को दक्षिणा के रूप में एक बकरा दिया।
कबूतर का जोड़ा और शिकारी (पंचतंत्र की कहानी)
एक जगह एक क्रूर और निर्दई शिकारी रहता था। रोजाना पक्षियों को पकड़ता और उनको मारकर खा जाता था। इस नित्यक्रम को देखकर उसके परिजनों व उसके चाहने वालों ने उसका त्याग कर दिया। उस दिन के बाद वह जाल एवं लकड़ी के साथ अकेले ही रहने लगा।
ब्राह्मण और सर्प की कथा (पंचतंत्र की कहानी)
किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। जब वर्षा ऋतु होती तो वह कृषि का कार्य किया करता और उसी से ही वर्ष पर अपना जीवन व्यतीत करता। वर्षा ऋतु के अलावा वह अधिकांश समय खाली ही बैठा रहता था। ग्रीष्म ऋतु के समय वह एक विशाल पेड़ की छांव में बैठा था। तभी उसकी नजर उस पेड़ के पास बने एक बिल पर पड़ी जिस पर सर्प फन फैलाए हुए बैठा था।
बूढा आदमी, युवा पत्नी और चोर (पंचतंत्र की कहानी)
एक गांव में एक किसान रहता था। किसान बुढा था किंतु उसकी पत्नी जवान थी। उसकी नजर हमेशा पुरुषों पर रहती थी। एक दिन एक ठग ने औरत को अकेले ही घर से निकलते देखा। ठग ने उस औरत का पीछा किया। जब वह औरत एकांत जगह पर पहुंच गई तो ठग उसके पास आया और बोला “मेरी पत्नी का देहांत हो चुका है और मैं आपको पसंद करता हूं तो आप मेरे साथ चलिए।”
ब्राह्मण, चोर और दानव की कथा (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक गांव में द्रोण नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह भीक्षा मांग कर अपनी आजीविका चलाता था। उसके पास वातावरण के अनुरूप पहनने के लिए कपड़े भी नहीं थे। एक बार एक यजमान ने उस ब्राह्मण पर दया करके उसे एक बैलों की जोड़ी दे दी।
दो सांपों की कथा (पंचतंत्र की कहानी)
एक नगर के राजा का नाम देव शक्ति था। एक बार किसी कारण वंश राजा के पुत्र के पेट में एक सांप घुस गया। राज्य के विद्वान से विद्वान वैद्यो द्वारा उसका उपचार होने लगा, किंतु उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं आया। राजकुमार का शरीर धीरे-धीरे क्षय होने लगा। अतः वह निराश होकर गृह राज्य छोड़कर अन्य राज्य में एक साधारण भिखारी की तरह एक मंदिर में रहने लगा।
चुहिया का स्वयंवर (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में गंगा नदी के किनारे याज्ञवल्क्य नाम के एक ऋषि का आश्रम था। एक दिन जब वह प्रातः काल में अपनी साधना में लीन थे तो उनकी हथेली में एक चुहिया आन पड़ी जिसे बाज अपने भोजन के लिए ले जा रहा था। चुहिया में अभी भी प्राण बाकी थे।
सुनहरे गोबर की कथा (पंचतंत्र की कहानी)
एक पर्वतीय प्रदेश में महाकाल वृक्ष पर सिंधुक नाम का एक पक्षी रहता था। उस पक्षी में एक विशेषता थी, उसकी विष्ठा मैं स्वर्ण-कण होते थे। एक बार एक शिकारी महाकाल वृक्ष के पास से गुजरा रहा था। शिकारी को उस पक्षी के बारे में पता नहीं होने के कारण उसे अनदेखा कर दिया, किंतु मूर्ख सिंधुक ने उस शिकारी के सामने विष्ठा कर दी। विष्ठा को देखते ही शिकारी ने स्वर्ण के लोभ में आकर उस वृक्ष पर जाल फेंका और सिंधुक को पकड़ लिया।
बोलने वाली गुफा (पंचतंत्र की कहानी)
एक बार एक जंगल में एक शेर रहता था। वह शेर एक बार पूरे दिन तक भोजन की तलाश करता रहा किंतु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थक हार कर एक गुफा में जा बैठा। उसने सोचा कि इस गुफा में कोई ना कोई जानवर जरूर रहता है। रात्रि काल में वह इस गुफा में विश्राम करने के लिए जरूर आएगा तब मैं उसका शिकार कर लूंगा और अपनी भूख को शांत कर लूंगा।
सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कथा (पंचतंत्र की कहानी)
किसी पर्वतीय प्रदेश में मंदविष नाम का एक वृद्ध सर्प रहता था। वृद्ध होने के कारण शिकार करने में असमर्थ था और उसका शरीर भूख के मारे कमजोर होता जा रहा था। एक दिन वह विचार करने लगा कि बिना कोई परिश्रम किए उसको शिकार मिल जाए। तभी उसके मन में एक विचार आया।
कौवे और उल्लू का युद्ध (पंचतंत्र की कहानी)
दक्षिण देश में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। नगर के पास एक बड़ा पीपल का वृक्ष था। उसकी घने पत्तों से ढकी शाखाओं पर पक्षियों के घोंसले बने हुए थे। उन्हीं में से कुछ घोंसलों में कौवों के बहुत से परिवार रहते थे। कौवों का राजा वायसराज मेघवर्ण भी वहीं रहता था। वहाँ उसने अपने दल के लिये एक व्यूह सा बना लिया था। उससे कुछ दूर पर्वत की गुफा में उल्लओं का दल रहता था। इनका राजा अरिमर्दन था।
लब्ध प्रणाशा (Loss of Gains)
बंदर का कलेजा और मगरमच्छ (पंचतंत्र की कहानी)
एक बार की बात है, एक नदी के किनारे बहुत सारे जामुन के पेड़ थे और वहां पर एक बंदर रहता था। जामुन के पेड़ में बहुत रशीले और मीठे जामुन लगे हुए थे, जिसको बंदर बहुत चाव से खाता था। कोई मस्त जिंदगी बिता था। एक दिन बन्दर जामुन खाने में मस्त था तभी वहां अचानक वहां एक मगर आया। मगर बहुत ही दुर्बल था। मगर ने बंदर को देखा और पूछा भाई तुम क्या खा रहे हो।
लालची नागदेव और मेढकों का राजा (पंचतंत्र की कहानी)
एक कुएं में बहुत सारे मेंढक रहते थे। उन मेंढकों के राजा का नाम गंगदत्त था। गंगदत्त बहुत ही चिड़चिडे और झगड़ालू स्वभाव का था। उस कुँए के आसपास दो-तीन और कुए थे। उन कुओं में भी बहुत सारे मेंढक रहते थे। हर कुँए का एक अलग राजा था।
शेर और मूर्ख गधा (पंचतंत्र की कहानी)
एक घने जंगल में एक करालकेशर नाम का शेर रहता था। उसके साथ एक धूशरक नाम का गीदड़ रहता था। एक दिन में शेर एक हाथी के शिकार में उससे झगड़ पड़ा, उसी समय वह कई तरह से घायल हो गया और यही नहीं उसका एक पैर भी टूट गया।
कुम्हार की कहानी (पंचतंत्र की कहानी)
एक गांव में युधिष्ठिर नाम का भार रहता था। उसको शराब पीने की बुरी आदत थी। एक दिन रात्रि के समय जब शराब पीकर अपने घर लौटा तो पैर लड़खड़ा जाने के कारण वह गिर गया। नीचे जमीन पर कुछ टूटे हुए घड़े के कुछ टुकड़े पड़े हुए थे। उनमें से एक टुकड़ा कुमार के सिर में लग गया, जिसके कारण बहुत गहरा घाव हो गया था।
गीदड़ गीदड़ ही रहता है (पंचतंत्र की कहानी)
एक जंगल में शेर शेरनी का एक युग में रहता था। वे दोनो बहुत ही आराम से अपना जीवन यापन कर रहे थे। उन दोनों के दो पुत्र थे। शेर शिकार करके हिरण लेकर आता था और दोनों मिलकर खाते थे। एक दिन शेर जंगल में खूब घुमा किंतु उसे कोई शिकार हाथ नहीं आया। निराश होकर जब वह अपनी गुफा की ओर लौट रहा था तो बीच रास्ते में उसे एक गीदड़ का बच्चा मिला। उसे देखकर शेर को उस पर दया आ गई। शेर ने उसे सावधानी पूर्वक अपने मुंह में पकड़ कर अपनी गुफा पर ले आया।
वाचाल गधा और धोबी (पंचतंत्र की कहानी)
एक शहर में शुद्धपट नाम का एक धोबी रहता था। उसके पास एक गधा भी था। गधे को पर्याप्त भोजन ना मिलने के कारण वह बहुत ही दुबला पतला और कमजोर हो गया था जिसके चलते वह ढंग से काम भी नहीं कर पा रहा था। धोबी को चिंता होने लगी, उसके मन में विचार आया कि कुछ दिन पहले जंगल में घूमते हुए उसे एक मरा हुआ शेर दिखाई दिया उसकी खाल धोबी के पास थी।
अविवेक का मूल्य (पंचतंत्र की कहानी)
एक गांव में उज्वलक नाम का एक बढ़ाई रहता था। वह बहुत ही गरीब था। उसके परिवार के लिए पर्याप्त खाने-पीने की भी व्यवस्था नहीं हो पाती थी। उसके बढाई का काम सही से नहीं चल रहा था। उसने धनोपार्जन के उद्देश्य से विदेश जाने का निश्चय किया। दूसरे दिन वह यात्रा पर निकल गया। बीच रास्ते में एक जंगल पड़ता था।
सियार की रणनीति (पंचतंत्र की कहानी)
एक जंगल में महचतुरक नाम का सियार रहता था। एक दिन उसे जंगल में घूमते हुए एक मरा हुआ हाथी मिला। उस हाथी को मरे हुए काफी दिन हो चुके थे, जिसके कारण उसका शरीर भूल चुका था और चमड़ी बहुत मोटी हो चुकी थी। सियार ने उसको खाने की मंशा से अपने दांतो से हाथी की चमड़ी को फाड़ने की कोशिश की किंतु चमड़ी बहुत मोटी होने के कारण वह चमड़ी कटने में नाकाम रहा।
कुत्ता जो विदेश चला गया (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक गांव में चित्रांग नाम का एक कुत्ता रहता था। एक बार उस गांव में अकाल पड़ गया। अकाल पड़ने के कारण अन्न की बहुत ज्यादा कमी हो गई, जिसके कारण कई कुत्तों के वंश का नाश हो गया। चित्रांग भी इस समस्या के कारण बहुत ही चिंतित रहता था।
स्त्री का विश्वास (पंचतंत्र की कहानी)
एक नगर में ब्राह्मण एवं उसकी पत्नी बहुत ही प्रेम के साथ रहते थे। ब्राह्मण की पत्नी का स्वभाव ब्राह्मण के परिवार वालों से अच्छा नहीं था। परिवार में प्रतिदिन झगड़ा होता रहता। झगड़ा से परेशान होकर ब्राह्मण ने अपनी पत्नी के साथ कहीं दूर जाकर रहने का निश्चय किया। अपने कुटुंब को छोड़कर पत्नी के साथ यात्रा पर निकल गया।
स्त्री-भक्त राजा (पंचतंत्र की कहानी)
एक बहुत बड़े राज्य का राजा नंद थे। वे बहुत पराक्रमी राजा थे। उनका यश और कीर्ति चारों ओर फैली हुई थी। अन्य राज्यों के राजा उनकी जय-जयकार करते थे। नंद का राज्य इतना बड़ा था कि उनके राज्य का एक छोर समुंद्र तक था और दूसरा छोर पर्वत तक। राजा नंद का एक मंत्री वररुचि था। वह सभी विद्याओं में निपुण और कुशल मंत्री था।
अपरीक्षित कारक (Ill-Considered Actions)
हमेशा सोच समझ कर काम करो (पंचतंत्र की कहानी)
दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध नगर पाटलिपुत्र में मणिभद्र नाम का एक धनिक महाजन रहता था। लोक सेवा और धार्मिक कार्यों में निहित रहने के कारण मणिभद्र के पास धन संचय में कमी हो गई। इस बात को लेकर मणिभद्र काफी चिंतित रहता था। उसकी यह चिंता निरर्थक नहीं थी। धन विहीन मनुष्य के गुण भी दरिद्रता के तले दब जाते हैं। निर्धन मनुष्यों के गुणों का समाज भी आदर नहीं करता।
ब्राह्मणी और नेवला की कथा (पंचतंत्र की कहानी)
एक बार देव शर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था। उसके पास नकुली नाम का एक मादा नेवला था। जिस दिन ब्राह्मण के घर में पुत्र का जन्म हुआ उसी दिन नकुली ने भी एक नेवले को जन्म दिया। देव शर्मा की पत्नी बहुत ही दयालु स्वभाव की स्त्री थी। उसने नेवले को भी अपने पुत्र के समान पाल पोस कर बड़ा किया।
मस्तक पर चक्र (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक नगर में चार ब्राह्मण पुत्र रहते थे। उन चारों में गहरी मित्रता थी। वह चारों ही बहुत ही गरीब थे। चारों ही अपनी गरीबी के कारण बहुत ही चिंतित रहते थे।उन्होंने अपनी जिंदगी में यह अनुभव कर लिया था कि इस समाज में धनहीन जीवन यापन करने से तो अच्छा हम जंगली जानवरों के साथ जंगल में अपना जीवन व्यतीत करें।
जब शेर जी उठा (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में चार मित्र रहते थे। उन चारों में से तीन कुशल वैज्ञानिक थे किंतु बुद्धि रहित थे। चौथा मित्र वैज्ञानिक तो नहीं था किंतु वह बुद्धिमान था। उन सब ने सोचा की हमारे विज्ञानिक होने का क्या मतलब जब हम इससे कुछ कर ही नहीं सकते। हमें विदेश जाकर अपनी विद्या से धनोपार्जन करना चाहिए। यह विचार करके चारों यात्रा पर निकल गए।
चार मूर्ख पंडितों की कहानी (पंचतंत्र की कहानी)
एक समय की बात है। एक स्थान पर चार पंडित रहते थे, वह चारों विद्या अध्ययन के लिए कान्यकुब्ज गए। निरंतर 12 वर्षों तक विद्या अध्ययन करने के बाद वह चारों पंडित शास्त्रों में महान हो गए। विद्या अध्ययन करने के बाद उन चारों ने निर्णय लिया कि हम स्वदेश लौट जाएंगे।
दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय में एक तालाब दो मछलियां रहती थी, जिनका नाम शतबुद्धि (सौ बुद्धि वाली) और सहस्त्रबुद्धि (हजारबुद्धि वाली) था। उसी तालाब में एक मेंढक रहता था, जिसका नाम एकबुद्धि था। सहस्त्र बुद्धि और शतबुद्धि को अपनी बुद्धि पर बहुत ही अभिमान था, किंतु मेंढक के पास एक बुद्धि होने के कारण उसे अपनी बुद्धि का जरा भी अभिमान नहीं था।
संगीतमय गधा (पंचतंत्र की कहानी)
एक धोबी अपने गधे के साथ रहता था। वह गधे से पूरे दिन कपड़ों की पोटलिया ढोने का काम करवाता था। किंतु वह गधे के लिए चारे का प्रबंध नहीं करता था। धोबी निर्दई और कंजूस था। धोबी पूरे दिन गधे से काम करवाता और रात को उसे चरने के लिए छोड़ देता। पास में कोई चारावाह नहीं होने के कारण गधे को पूर्ण रूप से भोजन नहीं मिलता। पूर्ण रूप से भोजन ना मिलने के कारण गधे की हालत बहुत खराब हो गई।
ब्राह्मण का सपना (पंचतंत्र की कहानी)
एक नगर में एक कंजूस ब्राह्मण रहता था। वह प्रतिदिन भिक्षा मांग कर अपना गुजारा करता था। भिक्षा से प्राप्त आटे में से वह कुछ आटा खा लेता एवं शेष आटे को घड़े में डाल देता। ऐसा करते करते उसका घड़ा आटे से भर गया। ब्राह्मण ने घड़े को खूंटी में टांग दिया और उसके नीचे ही खटिया डालकर लेटे लेटे ख्वाबी घोड़े दौड़ाने लगा।
दो सिर वाला जुलाहा (पंचतंत्र की कहानी)
एक समय एक मंथरक नाम का जुहाला अपने परिवार के साथ रहता था। एक बार उसके सभी उपकरण जिससे वह कपड़ा बुनता था, वह टूट गए। उपकरणों को पुनः बनाने के लिए उसे लकड़ी की जरूरत थी। जुहाला लकड़ी काटने के लिए समुंद्र तट के पास वाले वन में चला गया।
वानरराज का बदला (पंचतंत्र की कहानी)
एक नगर के राजा का नाम चंद्र था। उसके एक पुत्र को बंदरों से खेलने का शौक था। इसलिए राज महल में बंदरों के एक झुंड को रखा जाता था। बंदरों का सरदार बहुत ही चतुर था। वह सभी बंदरों को नीतिशास्त्र पढ़ाया करता था एवं सभी बंदर उसकी आज्ञा का पालन करते थे। राजपूत्र भी बंदरों के सरदार को बहुत मानता था।
राक्षस का भय (पंचतंत्र की कहानी)
भद्रसेन नाम का एक राजा था। वह अपने राज्य को सुचारू रूप से चलाता था। उसकी एक कन्या थी, जिसका नाम रत्नवती था। वह दिखने में इतनी सुंदर थी की उसकी तुलना अफसरों से की जाती। उसे हर समय डर रहता की कोई राक्षस उसका हरण ना कर ले। इसलिए वह अपने महल के चारों और पहरेदारी के लिए हर समय सैनिक तैनात किए हुए थे। रात के समय उसका डर और भी ज्यादा हो जाता।
दो सिर वाला पक्षी (पंचतंत्र की कहानी)
प्राचीन समय की बात है। एक तालाब के किनारे एक विचित्र पक्षी रहता था, जिसका नाम भारण्ड था। उस पक्षी के दो सिर थे पर शरीर एक था, एक शाम तालाब के किनारे उनको एक अमृतसमान फल मिला। उस फल का कुछ हिस्सा पहले सिर ने खाया और दूसरे सिर से बोला कि “यह फल बहुत ही स्वादिष्ट है मैंने पूरी जिंदगी में कई फल खाए पर इतना स्वादिष्ट, इतना मधुर फल कभी नहीं खाया।”
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