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मस्तक पर चक्र – पंचतंत्र की कहानी

मस्तक पर चक्र (The Four Treasure-Seekers Story In Hindi)

Treasure Seekers Story in Hindi: प्राचीन समय में एक नगर में चार ब्राह्मण पुत्र रहते थे। उन चारों में गहरी मित्रता थी। वह चारों ही बहुत ही गरीब थे। चारों ही अपनी गरीबी के कारण बहुत ही चिंतित रहते थे।उन्होंने अपनी जिंदगी में यह अनुभव कर लिया था कि इस समाज में धनहीन जीवन यापन करने से तो अच्छा हम जंगली जानवरों के साथ जंगल में अपना जीवन व्यतीत करें।

क्योंकि हमारे समाज में गरीब व्यक्ति को अनादर की दृष्टि से देखते हैं। सभी भाई बंधु उनसे मुंह मोड़ लेते हैं। अपने परिवार के लोग ही उनसे कोई रिश्ता नहीं रखते हैं। इस संसार में धन के बिना ना यश संभव है ना सुख। धन से तो कायर भी वीर हो जाता है, कुरूप सुरूप कहलाता है और मूर्ख भी पंडित बन जाता है।

The Four Treasure-Seekers Story In Hindi
Four Treasure-Seekers Story In Hindi

यह सोचकर चारों मित्र धन कमाने के लिए अपनी जन्मभूमि से विदा लेकर, अपने भाई बंधुओं को छोड़कर विदेश यात्रा पर चल पड़े।

कई दिनों के बाद चलते चलते वे चारों शिप्रा नदी के तट पर पहुंचे। शिप्रा के शीतल जल में स्नान आदि करने के पश्चात उन्होंने महाकाल को प्रणाम किया। थोड़ी दूर आगे चलने के बाद उनका मिलन एक धर्मात्मा से हुआ। इन धर्मात्मा का नाम भैरवानंद था ।

धर्मात्मा इन चारों को अपने आश्रम में ले गए और यहां आने का कारण पूछा। चारों ने कहा की हम धन अर्जित करने के लिए यात्री बने हैं। धन कमाना ही हमारा लक्ष्य है। अब हम धन कमाने के बाद ही अपने देश को लौटेगे नहीं तो यही अपने प्राण त्याग देंगे। इस निर्धन जीवन से मृत्यु अच्छी है।

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धर्मात्मा ने इन चारों के निश्चय की परीक्षा के लिए कहा कि धनवान बनना तो भाग्य के हाथ में है, तब उन्होंने उत्तर दिया कि हां धनवान बनना तो भाग्य के हाथ में है पर हम अवसर मिलने पर हम अपने भाग्य को बदल भी सकते हैं।

कभी-कभी पुरुष का साहस देव से भी अधिक बलवान हो जाता है। इसलिए आप हमें भाग्य का नाम लेकर हमारा मनोबल कम ना करें। आप महात्मा हो,आपके पास अनेक सिद्धियां है अगर आप चाहें तो हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। योगी होने के कारण आपके पास अनेक शक्तियां हैं। हमारा उद्देश्य भी महान है और महान ही महान की सहायता कर सकता है।

भैरवानंद मैं जब उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति देखी तो बहुत ही प्रसन्नता हुई। प्रसन्न होकर धन कमाने का रास्ता बताते हुए कहा “तुम हाथों में दीपक लेकर हिमालय की और जाओ। वहां जाते-जाते जब तुम्हारे हाथ से दीपक नीचे गिर पड़े तो ठहर जाओ। उस स्थान को खोदो वही तुम्हें धन मिलेगा और धन लेकर वापस चले आना।”

चारों युवक हाथ में दीपक लेकर हिमालय की ओर चल पड़े। कुछ दूर जाने के पश्चात एक युवक के हाथ से दीपक नीचे गिर पड़ा। उस भूमि को खोदने पर उन्हें ताम्रमयी भूमि मिली। वह तांबे की खान थी। उसने कहा “जितना चाहो उतना तांबा यहां से ले लो।” अन्य युवक बोले “मूर्ख! तांबे से दरिद्रता दूर नहीं होती। हम आगे बढ़ेंगे आगे इससे भी मूल्यवान वस्तु है मिलेंगे।”

उसने कहा “तुम आगे जाओ, मैं यहीं रहूंगा।” यह कहकर उसने जितना चाहिए उतना तांबा लिया और घर लौट गया।

शेष तीनों मित्र आगे बढ़ गए। कुछ दूर जाने के पश्चात उनमें से एक के हाथ से दीपक नीचे गिरा। उसने खोदा तो वहां चांदी की खान मिली। प्रसन्न होकर वह बोला “जितनी चाहो यहां से चांदी ले लो आगे मत जाओ।”

शेष दोनों बोले “पीछे तांबे की खान मिली थी, यहां चांदी की खान मिली है तो निश्चय ही आगे सोने की खान मिलेगी।” यह कहकर दोनों आगे चल दिए।

उन दोनों में से एक के हाथ से फिर दीपक नीचे गिरा। वहां जमीन खोदने पर उसे सोने की खदान मिली। उसने कहा की “चाहे जितना सोना ले लो और घर लौट चलो आगे मत जाओ” इससे हमारी दरिद्रता का अंत हो जाएगा।

उसके मित्र ने उत्तर दिया “मूर्ख! पहले तांबे की खान मिली उसके बाद चांदी की खान मिली और अब सोने की खान मिली है तो निश्चय ही आगे मूल्यवान रत्नों की खान मिलेगी।”

सोने की खान छोड़ दे और आगे चल। किंतु वह नहीं माना। उसने कहा “मैं तो सोना लेकर घर जाऊंगा” तुम्हें आगे जाना है तो चले जाओ।

चौथा युवा अकेले ही आगे चल दिया। आगे रास्ता बहुत ही कठिन था। उसके पैर लहूलुहान हो गए कई बर्फीले रास्तों पर चलने के पश्चात उसे एक व्यक्ति मिला जिसके मस्तक पर एक चक्र घूम रहा था।

उस व्यक्ति के पास जाकर चौथा युवक बोला “तुम कौन हो और तुम्हारे मस्तक पर यह चक्र क्यों घूम रहा है?

“यहां कहीं जलाशय है तो बताओ, मुझे प्यास लगी है।”

यह कहते ही उसके मस्तक से चक्र उतरकर ब्राह्मण युवक के मस्तक पर लग गया। युवक अचंभित रह गया। दर्द से कर्राहते हुए उसने पूछा कि “यह क्या हो गया। यह चक्र आपके मस्तिष्क से उतरकर मेरे मस्तिष्क पर कैसे आ गया?”

अजनबी व्यक्ति ने उत्तर दिया “मेरे मस्तिष्क पर भी यह अचानक लग गया था। अब यह चक्र तुम्हारे मस्तक से तभी उतरेगा जब कोई व्यक्ति धन के लोभ में घूमता हुआ यहां पहुंचेगा और तुमसे बात करेगा।”

युवक ने पूछा “यह कब होगा?”

अजनबी “अब कौन राजा राज कर रहा है?”

युवक “वीणा वत्सराज”

अजनबी “मैं रामराज्य का दरिद्र हुआ था, और सिद्धि का दीपक लेकर यहां आया था। मैंने भी एक मनुष्य से यही प्रश्न किए थे, जो तुमने मुझसे किए हैं।”

युवक “किंतु इतने समय से तुम्हें भोजन और जल कैसे मिलता रहा?”

अजनबी “यह चक्र धन के अति लोभी पुरुषों के लिए बना है। इस चक्र के मस्तक पर लगने पर मनुष्य को भूख, प्यास, नींद, जरा, मरण आदि नहीं सताते केवल चक्र घूमने का कष्ट ही सताता है। वह व्यक्ति अंत काल तक कष्ट भोगता है।”

यह कहकर वह अजनबी चला गया और अति लोभी ब्राह्मण युवक वही कष्ट भोगने के लिए रह गया।

“शिक्षा: मनुष्य को कभी लोभी पुरुष नहीं बनना चाहिए।”

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Sawai Singh
Sawai Singh
मेरा नाम सवाई सिंह हैं, मैंने दर्शनशास्त्र में एम.ए किया हैं। 2 वर्षों तक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी में काम करने के बाद अब फुल टाइम फ्रीलांसिंग कर रहा हूँ। मुझे घुमने फिरने के अलावा हिंदी कंटेंट लिखने का शौक है।

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