Dhatu Roop in Sanskrit: संस्कृत भाषा में धातु मूल तत्व होता है। यह संस्कृत भाषा का पिलर होता है, जो कार्य की वास्तविक स्थिति को व्यक्त करने के लिए वर्तमान, भूत या भविष्य काल में प्रयोग किया जाता है। संस्कृत भाषा के हर एक शब्दों में धातु का प्रयोग किया गया होता है।
यदि आप संस्कृत भाषा सीखना चाहते हैं या कोई भी संस्कृत भाषा सीख रहा है तो उसे संस्कृत धातु रूप (sanskrit dhatu roop) के बारे में जानकारी निश्चित रूप से होनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना संस्कृत नहीं सीख सकते हैं।
यहां पर संस्कृत में धातु रूप (Dhatu Roop in Sanskrit), संस्कृत धातु रूप के भेद, परिभाषा, संस्कृत धातु रूप लिस्ट आदि के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
संस्कृत धातु रूप परिभाषा
संस्कृत व्याकरण में क्रियाओं के मूल रूप को धातु कहा जाता है, जो संस्कृत के शब्दों का निर्माण करता है।
धातु शब्द का अर्थ धारण करना है या फिर रखना होता है। जिन शब्दों के द्वारा किसी काम का करना या होना पाया जाता है, वही धातु होता है। उदाहरण के लिए पठति, गच्छति, क्रीडति आदि।
इन तमाम क्रियाओं में क्रमश: पठ्, गम्, क्रीड् धातुएँ हैं। धातु शब्द में भी ‘धा’ धातु का प्रयोग किया गया है। इसमें ‘तिन’ प्रत्यय जोड़कर इसे धातु बनाया गया।
इस प्रकार धातु के साथ प्रत्यय, उपसर्ग और सामासिक क्रियाओं के द्वारा सभी शब्द का निर्माण होता है।
संस्कृत धातु रूप के भेद
संस्कृत धातु रूप को तीन भागों में बांटा गया है, जो निम्नलिखित है:
- परस्मैपद: जिस वाक्य में क्रियाओं का फल करता को छोड़कर अन्य कर्म को मिलता है, उसे परस्मैपद धातु कहा जाता है। कर्तृवाच्य वाक्यों में परस्मैपद धातु का प्रयोग होता है।
- आत्मनेपद: आत्मनेपद वाक्य में क्रियाओं का फल सीधे करता को मिलता है। कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में सभी धातुएँ आत्मनेपदी होते हैं।
- उभयपद: परस्मैपद और आत्मनेपद, दोनों रूपों में चलने वाले क्रियाओं को उभयपद कहा जाता है।
संस्कृत धातु रूप में पुरुष
संस्कृत भाषा में तीन पुरूष होते हैं, जो निम्नलिखित है:
- प्रथम पुरुष
- मध्यम पुरुष
- उत्तम पुरुष
- प्रथम पुरूष – इसे अन्य पुरुष भी कहा जाता है। अस्मद् और युष्मद् शब्द के कर्ताओं को छोड़कर शेष जितने भी कर्ता हैं, वे सभी प्रथम पुरूष के अंतर्गत आते है।
- मध्यम पुरुष – मध्यम पुरुष में मात्र युष्मद् शब्द के कर्ता का प्रयोग होता है।
- उत्तम पुरूष –उत्तम पुरूष में मात्र अस्मद् शब्द के कर्ता का प्रयोग किया जाता है।
संस्कृत धातु रूप में वचन
संस्कृत भाषा में तीन वचन होते हैं।
- एकवचन
- द्विवचन
- बहुवचन
संस्कृत धातु रूपो के लकार
संस्कृत भाषा के वाक्य में वाक्य में प्रयोग होने वाले काल या वृत्ति को ‘लकार’ कहते हैं। संस्कृत भाषा में 10 प्रकार के लकार हैं।
यह एक तौर पर प्रत्यय होते हैं, जिन्हें संस्कृत धातु के साथ जोड़ करके अन्य शब्दों का निर्माण किया जाता है।
संस्कृत धातु के लकार के नाम निम्नलिखित हैं:
- लट् लकार
- लुट् लकार
- लृट् लकार
- लोट् लकार
- लुङ्ग् लकार
- लङ्ग् लकार
- आशीर्लिन्ग लकार
- विधिलिङ्ग् लकार
- लृङ्ग् लकार
- लिट् लकार
- लट् लकार (वर्तमान काल): यह लकार वर्तमान काल के अर्थ को प्रदर्शित करता है।
- लङ् लकार (भूतकाल): भूतकाल में किए गए कार्य के लिए इस लकार का प्रयोग होता है।
- लृट् लकार (भविष्यत काल): भविष्य काल में होने वाले कार्य के लिए इस लकार का प्रयोग किया जाता है।
- लोट् लकार (आज्ञा के अर्थ में): आज्ञा या आदेश संबंधित कथन को व्यक्त करने के लिए लोट् लकार का प्रयोग होता है।
- विधिलिङ् लकार (चाहिए के अर्थ में): सलाह है या परामर्श देने के लिए विधिलिङ् लकार का प्रयोग किया जाता है।
- लुङ् लकार (सामान्य भूतकाल): सामान्य भूतकाल के किसी कार्य को बताने के लिए लुङ् लकार का प्रयोग होता है।
- लिट् लकार (परोक्ष भूतकाल): ऐसी भूतकालिन घटना जो अपने साथ घटित ना होकर किसी इतिहास का विषय हो तो वहां पर लिट् लकार का प्रयोग किया जाता है।
- लुट् लकार (अनद्यतन भविष्य काल): इस लकार का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई क्रिया या घटना आज को छोड़कर आगे होने वाला है।
- आशिर्लिङ् लकार (आशीर्वाद हेतु): आशीर्वाद के भाव को व्यक्त करने के लिए आशिर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है।
- लृङ् लकार ( हेतुहेतुमद् भविष्य काल): किस लकार का प्रयोग तब होता है जब ऐसा होगा तो ऐसा होगा जैसे सशर्त अर्थ देना होता है।
संस्कृत लकार के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
संस्कृत धातु रूपो का वर्गीकरण
संस्कृत धातु रूप को 10 भागों में बांटा गया है:
- भ्वादिगण
- जुहोत्यादिगण
- दिवादिगण
- अदादिगण
- क्रयादिगण
- चुरादिगण
- स्वादिगण
- तुदादिगण
- रुधादिगण
- तनादिगण
भ्वादिगण
भ्वादिगण का 10 धातुओं में प्रमुख स्थान है। यह क्रिया में भी बहुत महत्व रखता है। इसकी प्रथम धातु ‘भू’ है। भ्वादिगण की प्रमुख धातुओं के रूप निम्नलिखित है:
- दा – यच्छ (देना) परस्मैपदी धातु
- भू – भव् (होना) परस्मैपदी धातु
- गम् – गच्छ (जाना) परस्मैपदी धातु
- दृश् – पश्य (देखना) परस्मैपदी धातु
- पठ् (पढना) परस्मैपदी धातु
- अर्च् (पूजा करना) परस्मैपदी धातु
- नी (ले जाना) उभयपदी धातु
- अस् (होना) परस्मैपदी धातु
- खाद् (खाना) परस्मैपदी धातु
- पच् (पकाना) उभयपदी धातु
- पत् (गिरना) परस्मैपदी धातु
- गुह् (छिपाना) उभयपदी धातु
- तप् (तप करना) परस्मैपदी धातु
- घ्रा – जिघ्र (सूँघना) परस्मैपदी धातु
- धाव (दौडना) उभयपदी धातु
- यज् (यजन करना) उभयपदी धातु
- लभ् (प्राप्त करना) आत्मनेपदी धातु
- पा – पिब् (पीना) परस्मैपदी धातु
- पत् (गिरना) परस्मैपदी धातु
- व्रज (जाना) परस्मैपदी धातु
- वृत् (होना) आत्मनेपदी धातु
- वस् (रहना/निवास करना) उभयपदी धातु
- भज् (भजन करना) उभयपदी धातु
- लिख (लिखना) परस्मैपदी धातु
- स्था- तिष्ठ (बैठना) परस्मैपदी धातु
- श्रु (सुनना) परस्मैपदी धातु
- सेव् (सेवा करना) आत्मनेपदी धातु
- वद् (बोलना) परस्मैपदी धातु
- शुच् (शोक करना) परस्मैपदी धातु
जुहोत्यादिगण
इसका प्रथम धातु ‘हु’ है, इसी कारण इसका नाम जुहोत्यादिगण पड़ा है। जुहोत्यादिगण की प्रमुख धातुओं के रूप निम्नलिखित है:
- भी (डरना) परस्मैपदी धातु
- हु (हवन करना) परस्मैपदी धातु
- दा (देना) उभयपदी धातु
दिवादिगण
इसका प्रथम धातु दिव है, जिस कारण इसका नाम दीवादिगण है। दिवादिगण धातुओं के रूप निम्नलिखित है:
- नृत् (नाचना) परस्मैपदी धातु
- दिव् (जुआ खेलना, चमकना) परस्मैपदी धातु
- विद् ( रहना ) आत्मनेपदी धातु
- क्रुध् (क्रोध करना) परस्मैपदी धातु
- नश् (नाश होना) परस्मैपदी धातु
- जन् (उत्पन्न होना) आत्मनेपदी धातु
- सिव् (सिलना) परस्मैपदी धातु
अदादिगण
इसकी प्रथम धातु ‘अद्’ है, जिस कारण इस गण का नाम अदादिगण पड़ा। अदादिगण धातुओं के रूप निम्नलिखित दिए गए हैं:
- दुह् (दूध दुहना) उभयपदी धातु
- ब्रू (बोलना) उभयपदी धातु
- अद् (भोजन करना) परस्मैपदी धातु
- आस् (बैठना) आत्मनेपदी धातु
- रुद् (रोना) परस्मैपदी धातु
- इ (आना) परस्मैपदी धातु
- विद् (जानना) परस्मैपदी धातु
- विद् (जानना) परस्मैपदी धातु
- जागृ (जागना) परस्मैपदी धातु
- द्विष् (द्वेष करना) उभयपदी धातु
- या (जाना) परस्मैपदी धातु
- हन् (मारना) परस्मैपदी धातु
- शी (सोना, sleep) आत्मनेपदी धातु
क्रयादिगण
क्रयादिगण में प्रथम धातु क्री होने के कारण इस गण का नाम क्रयादिगण है। क्रयादिगण धातुओं के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं:
- चुर् (चुराना) उभयपदी धातु
- कथ् (कहना) उभयपदी धातु
- क्री (खरीदना) उभयपदी धातु
- ज्ञा (जानना) परस्मैपदी धातु
- पू (पवित्र करना) उभयपदी धातु
चुरादिगण
इसमें ‘चुर्’ प्रथम धातु है, इसी कारण इस गण का नाम चुरादिगण है। चुरादिगण की प्रमुख धातुओं के रूप निम्नलिखित है:
- छिद्र (छेद करना) उभयपदी धातु
- गण् (गिनना) उभयपदी धातु
- पाल् (पालना करना) उभयपदी धातु
- चिन्त् (सोचना) उभयपदी धातु
स्वादिगण
धातु ‘सु’ प्रथम धातु के रूप में प्रयोग किया गया है, इसी कारण इस गण का नाम स्वादिगण है। स्वादिगण के प्रमुख धातुओं के रूप निम्नलिखित हैं:
- शक् (सकना) परस्मैपदी धातु
- सु (स्नान करना) उभयपदी धातु
- चि (चुनना) उभयपदी धातु
तुदादिगण
इसमें ‘तुद्’ प्रथम धातु है, जिससे इस गण का नाम तुदादिगण पड़ा। तुदादिगण के प्रमुख धातु के रूप निम्नलिखित हैं:
- मुच् / मुञ्च् (छोड़ना) उभयपदी धातु
- क्षिप् (फेंकना) उभयपदी धातु
- प्रछ्/प्रच्छ् (पूछना) परस्मैपदी धातु
- तुद् (दुख देना) उभयपदी धातु
- सिच् / सिञ्च (सींचना) उभयपदी धातु
- इष् (इच्छा करना) परस्मैपदी धातु
- विश् (घुसना) परस्मैपदी धातु
- स्पृश् (छूना) परस्मैपदी धातु
रुधादिगण
इसमें ‘रुध्’ प्रथम धातु होने के कारण इस गण का नाम रुधादिगण पड़ा। रुधादिगण के प्रमुख धातु के रूप में लिखित है:
- छिद् (काटना) उभयपदी धातु
- रुध् (रोकना) उभयपदी धातु
- भिद् (काटना) उभयपदी धातु
तनादिगण
तनादिगण में ‘तन्’ प्रथम धातु है, इसीलिए इस गण का नाम भी तनादिगण है। इसके प्रमुख धातुओं के रूप निम्नलिखित हैं:
- कृ (करना) उभयपदी धातु
- तन् (फैलाना) उभयपदी धातु
परस्मैपद लकारों की धातु रुप सरंचना
लट् लकार (वर्तमान काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ति | तस् (तः) | अन्ति |
मध्यम पुरुष | सि | थस् (थः) | थ |
उत्तम पुरुष | मि | वस् (वः) | मस् (मः) |
लृट् लकार (भविष्यत काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ष्यति | ष्यतम् (ष्यतः) | ष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | ष्यसि | ष्यथस् (ष्यथः) | ष्यथ |
उत्तम पुरुष | ष्यामि | ष्यावः | ष्यामः |
लङ् लकार (भूतकाल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | त् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
लोट् लकार (आज्ञा के अर्थ में)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | तु | ताम् | अन्तु |
मध्यम पुरुष | हि | तम् | त |
उत्तम पुरुष | आनि | आव | आम |
लुङ् लकार (सामान्य भूतकाल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | द् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
आशिर्लिङ् लकार (आशीर्वाद हेतु)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | यात् | यास्ताम् | यासुस |
मध्यम पुरुष | यास | यास्तम् | यास्त |
उत्तम पुरुष | यासम् | यास्व | यास्म |
लृङ् लकार (भविष्य काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | स्यत् | स्यताम् | स्यन् |
मध्यम पुरुष | स्यस् | स्यतम् | स्यत् |
उत्तम पुरुष | स्यम | स्याव | स्याम |
लिट् लकार (परोक्ष भूतकाल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | अ | अतुस् | उस् |
मध्यम पुरुष | थ | अथुस् | अ |
उत्तम पुरुष | अ | व | म |
विधिलिङ् लकार (चाहिए के अर्थ में)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | यात् | याताम् | युस् |
मध्यम पुरुष | यास् | यातम् | यात् |
उत्तम पुरुष | याम् | याव | याम |
लुट् लकार (अनद्यतन भविष्य काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस् |
मध्यम पुरुष | तासि | तास्थस् | तास्थ |
उत्तम पुरुष | तास्मि | तास्वस् | तास्मस् |
आत्मेनपद लकारों की धातु रुप सरंचना
ऐसी क्रियाएँ जिनका फल सीधा कर्ता को मिलता हो, उन्हें आत्मनेपद कहा जाता है। कर्मवाच्य एवं भाववाच्य की सभी धातुएं आत्मनेपदी होती है।
विधिलिङ्ग् लकार (चाहिए)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ईत | ईयाताम् | ईरन् |
मध्यम पुरुष | ईथास् | ईयाथाम् | ईध्वम् |
उत्तम पुरुष | ईय | ईवहि | ईमहि |
आशीर्लिन्ग लकार (आशीर्वाद)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | सिष्ट | सियास्ताम् | सीरन् |
मध्यम पुरुष | सीष्टास् | सीयस्थाम् | सीध्वम् |
उत्तम पुरुष | सीय | सीवहि | सीमहि |
लट् लकार (वर्तमान काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ते | आथे | अन्ते |
मध्यम पुरुष | से | आते | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ऐ | वहे | महे |
लङ्ग् लकार (भूतकाल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | त | ताम | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास | अथाम | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | इ | वहि | महि |
लुङ्ग् लकार (सामान्य भूतकाल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | त | आताम् | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास | आथम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ए | वहि | महि |
लिट् लकार (परोक्ष भूतकाल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ए | आते | इरे |
मध्यम पुरुष | से | आथे | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ए | वहे | महे |
लृट् लकार (भविष्यत काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | स्यते | स्येते | स्यन्ते |
मध्यम पुरुष | स्यसे | स्येथे | स्यध्वे |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावहे | स्यामहे |
लुट् लकार (अनद्यतन भविष्य काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस |
मध्यम पुरुष | तासे | तासाथे | ताध्वे |
उत्तम पुरुष | ताहे | तास्वहे | तास्महे |
लृङ्ग् लकार (हेतुहेतुमद् भविष्य काल)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | स्यत | स्येताम् | स्यन्त |
मध्यम पुरुष | स्यथास् | स्येथाम् | स्यध्वम् |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावही | स्यामहि |
लोट् लकार (आज्ञा)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | ताम् | आताम् | अन्ताम् |
मध्यम पुरुष | स्व | आथाम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ऐ | आवहै | आमहै |
FAQ
संस्कृत शब्दों के निर्माण में धातु मूल तत्व की तरह कार्य करते हैं। यह संस्कृत व्याकरण में क्रियाओं के मूल रूप होते हैं जिनकी संख्या लगभग 3356 है। इंडिया धातुओं के साथ उपसर्ग और प्रत्यय को मिलाकर अन्य शब्दों का निर्माण किया जाता है।
आधुनिक युग में संस्कृत भाषा का देवनागरी लिपि के साथ विशेष संबंध है। हालांकि संस्कृत भाषा को अन्य कई लिपियों में भी लिखा गया है और लिखा जा रहा है। लेकिन विशेष रूप से देवनागरी लिपि का ही प्रयोग किया जाता है इसीलिए इसमें हर एक चीह्न के लिए केवल एक ही ध्वनि है।
संस्कृत धातु रूप में कुल 10 लकार है। वैसे लकार प्रत्यय है जिन्हें धातु के साथ जोड़ा जाता है। लुट् , लृट्, लट् , लिट् , , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् यह सभी संस्कृत धातु रूप के लकार है।
देवनागरी लिपि में कुल 13 स्वर और 33 व्यंजन है।
संस्कृत भाषा में धातु के तीन भेद हैं: परस्मैपद, आत्मनेपद, उभयपद
निष्कर्ष
इस लेख में धातु रूप संस्कृत में (dhatu in sanskrit), भेद, परिभाषा, उदाहरण आदि के बारे में विस्तार से जाना है।
हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा। संस्कृत भाषा बहुत प्राचीन भाषा है। यदि संस्कृत भाषा का ज्ञान लेना है तो संस्कृत से संबंधित यह जानकारी होनी चाहिए।
इस लेख को आप अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम इत्यादि के जरिए अन्य लोगों के साथ जरूर शेयर करें। इस लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न या सुझाव आपके मन में हो तो आप हमें कमेंट में लिख कर बता सकते हैं।
संस्कृत व्याकरण
संस्कृत शब्द रुप | संस्कृत वर्णमाला | हिंदी से संस्कृत में अनुवाद |
संस्कृत में कारक | संस्कृत में संधि | समास प्रकरण |
सामान्य बोलचाल के संस्कृत शब्द | समास प्रकरण | संस्कृत विलोम शब्द |
BAHUT Badhiya . It helped me in the exam