“कभी निराशा कभी प्यास है कभी भूख उपवास, कुछ सपनें भी फुटपाथों पे पलते लेकर आस।…!” –
सारे वजन उठा के देख लो , दाल, रोटी ही सबसे भारी है।
माँ रोटी को में ठंडी नहीं सेकती, मैं फुटपाथ पे भी जलते हुए चूल्हे देखे है
अक्षरों के भिगो के थोड़े चावल, मात्राओं की हरी दाल मिलाता हूँ, नमक, राई, और घी के शे’रों से, ग़ज़ल वाली खिचड़ी बनाता हूँ!!
हाथ हो सख़्त-नरम वक़्त दे कभी ज़ख्म आँखों में हसीं ख्वाब रोटी का निवाला नर्म..
वो मेरा कितना ख़याल रखते हैं. सामने मेरे बेतुके सवाल रखते हैं, इतने आँसू पी चुका हूँ अब तक मैं खाने में बिनौ नमक की दाल रखते हैं।
हर इंसान को पेट को रोटी बदन पर कपड़े सर पर छत बहुत अच्छे है ये सपने मगर सच्चे नही होती..#
वो इश्क़ ही क्या गर जुद़ाई ना मिले , आशिक हैं जी Hostel की दाल नहीं जो हर रोज मिले ।॥
Roti Shayari in Hindi
अश्कों में छिपे गम हाय रोना भी सितम पानी मिटाये कभी भूख वक़्त पे मिले रोटी कम..!!
तेरे हुस्न की दाल में पड़ने वाला तड़का हूं में, तू भूखी लड़की; जोमैटो वाला लड़का हूं मैं।
ये मत देखो हिंदू कौन है, मुसलमान कौन है अपने पडोस में पाटा लागो भूखा इन्सां कौन है
अपना मिलन है मधुर स्वर्णिम, देखो ना चलाओ चाल प्रिये! मैं गेंहू की रोटी हूं और तुम अरहर की दाल प्रिये !
खुदा की रहमत सभी पर बरसे दो वक्त की रोटी के लिए कोई न तरसे, जीत हासिल करनी है ते काबिलियत बढ़ाओ किस्मत की रोटी ते कुत्तों को भी नसीब होती है
बीवी के सामने मेरी दाल नहीं गलती। इसलिए लीटते वक्त सब्जी ले आता हूँ।
रोटी का आकार गोल नहीं, बल्कि चोकोर जैसा – होना चाहिए था क्योंकि रोटी ही प्रश्न है बहुतो के जीवन का ।
सब्ली बहुत हैं महँगी आजकल, भाव तुम जेंसे बढ़ गया इसका, रहने दो मत करो तकलीफ़, खा लेंगे हम दाल उबाल कर।।
शब्दों में पिरोये कम ज़िंदगी लिखे कलम किस्मत और वक़्त नंदिता रोटी अहम..
मुद्दा ये नहीं है की दाल महंगी है। दर्द ये है कि किसी की गल नहीं रही है ।।
पिता को दिनभर धूप में चलती रही ये रोटी, माँ को दिन भर काम करा करा कर थक जाती रही ये रोटी, बच्चो को माँ से दूर शहर नचात रही ये रोटी, ना जाने क्या-क्या कमाल दीकाये रोटी ने ।
बचपन में बहुत उड़ता था मै पर अब दाल रोटी ने मेरे पैरों में बेड़ियाँ डाल दी हैं। शायद कोई जिंदा ख़्वाब अपने पूरा होने की तपिश से इनको पिघला पाएगा।
घुटन क्या चीज है ये पूछिये उस बच्चे से जो काम करता है रोटी के लिए खिलौनों की दुकान पर..#
मुझे मेरी थाली में दो रोटी और दाल चाहिए , अच्छे दिन के लिए और कितने साल चाहिए।
इक रोटी की भूख कभी किसी को सताए ना सताए तो मेहनत करें, किसी के सामने हाथ फैलाए ना..!!
इस संसार में सितम चाहे रब से रहम कुछ वक़्त दे सुकून रोटी दिखाती वहम
बाटी में घी का , दाल में नीबू का , चूरमे में बूरे का , और जीवन में हीरे का , बड़ा ही महत्त्व है।
रोटी को धुंडता कूदे के धेर पार, दीखा है में एक चांद का टुकड़ा जमीन पर..
Roti Shayari in Hindi
वो मिले भी तो भंडारे में बाल्टी पकड़े हुए , अब दिल माँगते या दाल , हाय रे मेरे हमसफर।
कोई पडोस मे न भूखा है इसलिये शयद, मेरे गेलिये से निकाला नहीं विटारा है।
मेरे खुदा ने आज ये कैसा कमाल कर दिया, रोटी कमाने निकला तो सिर पर ताज रख दिया।
गरीब दिन भर भटकता है रोटी कमाने के लिए , अमीर तो अमीर है , वक्त नही है उसके पास रोटी भी खाने कि लिए ।
जिंदगी में कभी ख़ुशी इस कदर ना मिले, जैसे खैरात किसी गरीब को रोटी मिले।
अमीरी की चाह कोठी तक, गरीबी की चाह रोटी तक।
खुशी मिली तो हमें कुछ यूं मिली , जैसे चंद लम्हात के लिए हो जिन्दगी मिली , सुबह से शाम तक सैकड़ो पिज्जा पहुंचाता है , तब जाकर परिवार को वो रोटी खिलाता है ।
ग़रीब भूख मिटाने को रोटी लेकर भाग गया, बड़े दिनों बाद लगता है पूरा भारत जाग गया। साहब और नेताओं की चोरी सबको दिखती है , लेकिन डर उस वक्त सबकी जुबान सिलती है।
ये रोटी बड़े मेहनत से बनती है, पहले गेंहूँ की फसल काटी जाती है, उसे धोया जाता है, सुखाया जाता है, पीसा जाता है, गूथा जाता है, बेला जाता है, पकाया जाता, इसके बाद इसे खाया जाता है।
भूख से बड़ी कोई मजबूरी नही होती और , रोटी से बड़ी कोई ताकत नही होती।
ठंडी रोटी आप ही को मिलती है, जो अपने , घरवालो के लिए गर्म रोटी लेने जाते है।
किस्तम की रोटी तो मिल ही जाती है , पर इज्जत की रोटी पाने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है ।
वो करते नही अब ज़िद खिलौनों की, क्योंकि समझने लगे है वो कीमत रोटी की।।
सेंकते रहते हो अपनी उम्मीदो की रोटी . मेरी बेचैनियाँ तुम्हे आग नजर आती है ।
भूख इक एहसास है जिसे रोटी मिटाती है, पर मोहब्बत के बिना ये जिन्दगी अधूरी रह जाती है।
चाय ठंडी रोटी ही क्यों ना हो बस , टाइम पे मिल गई हम तो उसी में खुश हैं।
खींच लाता है गांव में बड़ों का प्यार , छाछ गुड़ के साथ गेहूं की रोटी का स्वाद।
सांझ भी मुन्ताजिर है , तेरी झलक पाने को , ऐ चांद जल्दी आजा , साथ रोटी खाने को ।
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मुझसे ना पूछा कीजिए ये खुदाओ की बातें , बात रोटी की हो तो हुलिया पहचानता हूँ मै ।
बिकती है बोटी , तो मिलती है रोटी , दुनिया बड़ी पर , इंसानियत है छोटी ।
गरीब भूख मिटाने को रोटी लेकर भाग गया , बड़े दिनो बाद लगता है पूरा भारत जाग गया , साहब और नेताओ की चोरी सबको दिखती है , लेकिन डर उस वक्त सबकी जुबान सिलती है ।
मेहनत की रोटी में ही स्वाद होता है, वरना पूरा जीवन ही बेस्वाद होता है।
सभी के पेट को रोटी , बदन पर कपड़े , सर पर छत , बहुत अच्छे है ये सपने मगर सच्चे नही होती ।
भूख से बड़ा ‘ मजहब ’ और रोटी से बड़ा ‘ ईश्वर ‘ कोई हो तो बता देना , मुझे भी “ धर्म ” बदलना है ।
ठंडी रोटी अक्सर उनके ही नसीब में होती है.. जो अपनों के लिए कमाई करके देर से घर लौटते है ।
चाहे सूखी रोटी ही क्यो न हो , अपने श्रम से अर्जित भोजन से मधुर और कुछ नही होता ।
रूखी रोटी को भी बांट कर खाते हुए देखा मैने , सड़क किनारे वो भिखारी शहंशाह निकला।
कोई परेशान है कुर्सी के लिए , कोई ख्वाहिश के लिए और एक किसान परेशान है , उधार के किश्तो और रोटी के लिए ।
भगतसिंह , सुखदेव , मै इन फिरंगियो की सूखी रोटियों का मोहताज नही , मुझे भूख फकत स्वराज की है ।
Roti Shayari in Hindi
गरीबी की भी बड़े अदब से हंसी उड़ाई जाती है , एक रोटी देकर 100 तस्वीर खिचवाई जाती है ।
गरीब का रिश्ता बस , भूख से होता है , एक रोटी भी मिल जाए उसमें भी सूकून होता है ।
दाग जाते नही कभी मां की रोटी से , उफ्फा वो कितनी मेहनत करती है ।
जवां हुआ हूँ सबसे , सजदे ही कर रहा हूँ , दादी ने कहा था कभी, रोटी ही खुदा है ।
रोटी को हाशिये पर धकेल , तवे सत्ताधीश हो गये , भूख को जलते रहे वो , आग उसकी बुझने तलक ।
कई दिनों से भूखा था , मैने रोटी को देखा , कल तुम्हारी गली से गुजरा था , मैने तुमको देखा ।
कोई अपनो के लिए मुंह की रोटी भी छीन देता है , पर इस दुनिया को क्या कहें , जहां कोई रोटी के लिए अपनो को ही छोड़ देता है ।
मिलती नही रोटी उसे , जिसका लिखा है नाम , न्याय की तलाश में , भटकते रहे श्रीराम ।
रोटी का आकार गोल नही , बल्कि प्रश्नचिन्ह जैसा होना चाहिए था , क्योंकि रोटी ही प्रशन है बहुतो के जीवन का ।
हाथों से थमाकर मीठा वो कड़वा सुना गये , खायी थी उसकी एक रोटी, वो मेरा सारा खाना खा गये ।
धर्म के नाम पर राजनीति की रोटी सेकने वाले कभी धर्म के नाम पर रोटियां भी बांटतर देखे , भूखे को भोजन मिल जाएगा , और उन्हे दुआए ।
मौला मेरे हिस्से की रोटी कम कर दे , मगर किसी भूखे का पेट भर दे ।
क़िस्मत की लक़ीरे नहीं थीं उसके हाथों में, माथे पर पसीना, उसकी रोटी का गवाह था
मोहब्बत से भरता गर पेट तो ये रोटी की बातें क्यों लिखनी पड़ी हैं।
हाथ में रोटी लिए उसने हँस के पूछा, “किस धर्म से ताल्लुक रखते हो?” उस भिखारी ने भी रोके कहा, “जिस धर्म के नाम से वो रोटी मिल जाये!”
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।