Purnima Kab Hai 2023: ज्योतिषशास्त्र में पूर्णिमा का बहुत ही महत्व है। साल के 12 पूर्णिमा में कई महान आत्माओं के जन्म के उत्सव से लेकर बड़े-बड़े त्यौहार तक मनाए जाते हैं। ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है।
जिसके कारण चंद्रमा का व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव पड़ता है, इसीलिए पूर्णिमा के दिन चंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं। इतना ही नहीं इस तिथि पर जन्मे लोगों को बहुत ही भाग्यशाली भी माना जाता है। हर साल पुराना हर महीने अलग-अलग तारीख को पड़ती है।

साल 2023 में पूर्णिमा हर महीने कौन कौन से तारीख को पड़ने वाली है इसके बारे में हमने आज के इस लेख में बताया है। इसके साथ ही पूर्णिमा के दिन क्या करना शुभ होता है और कौन-कौन से कार्य को करना अशुभ माना जाता है इसके बारे में भी जानकारी दी है। इसीलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
पूर्णिमा कब है (Purnima Kab Hai)
दिनांक | महिना | पूर्णिमा तिथि शुभारंभ | पूर्णिमा तिथि समाप्त |
6 जनवरी 2023 | पौष | 6 जनवरी 2023, सुबह 02.14 बजे | 7 जनवरी 2023, सुबह 04.37 बजे |
5 फरवरी 2023 | माघ | 4 फरवरी 2023, रात 09.29 बजे | 5 फरवरी 2023, सुबह 11.58 बजे |
7 मार्च 2023 | फाल्गुन | 6 मार्च 2023, शाम 04.17 बजे | 7 मार्च 2023, शाम 06.09 बजे |
5 अप्रैल 2023 | चैत्र | 5 अप्रैल 2023, सुबह 09.19 बजे | 6 अप्रैल 2023, सुबह 10.04 बजे |
5 मई 2023 | वैशाख | 4 मई 2023, सुबह 11.44 बजे | 5 मई 2023, रात 11.03 बजे |
3 जून 2023 | ज्येष्ठ | 3 जून 2023, सुबह 11.16 बजे | 4 जून 2023, सुबह 09.11 बजे |
3 जुलाई 2023 | आषाढ़ | 2 जुलाई 2023, रात 08.21 बजे | 3 जुलाई 2023, शाम 05.08 बजे |
1 अगस्त 2023 | अधिक मास | 1 अगस्त 2023, सुबह 03.51 बजे | 2 अगस्त 2023, रात 12.01 बजे |
30 अगस्त 2023 | श्रावण | 30 अगस्त 2023, सुबह 10:58 बजे | 31 अगस्त 2023, सुबह 07.05 बजे |
29 सितंबर 2023 | भाद्रपद | 28 सितंबर 2023, शाम 06.49 बजे | 29 सितंबर 2023, दोपहर 3.26 बजे |
28 अक्टूबर 2023 | अश्विन | 28 अक्टूबर 2023, सुबह 04.17 बजे | 29 अक्टूबर 2023, रात 01.53 बजे |
27 नवंबर 2023 | कार्तिक | 26 नवंबर 2023, दोहपर 03.53 बजे | 27 नवंबर 2023, दोहपर 02.45 बजे |
26 दिसंबर 2023 | मार्गशीर्ष | 26 दिसंबर 2023, सुबह 05.46 बजे | 27 दिसंबर 2023, सुबह 06.02 बजे |
पूर्णिमा क्या है?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार 1 महीने के 30 दिन को 15-15 दिन के दो पक्षों में विभाजित किया गया है। एक पक्ष को कृष्ण पक्ष एवं दूसरे पक्ष को शुक्ल पक्ष कहते हैं। कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावस्या होता है, ठीक इसी तरह शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन पूर्णिमा होता है।
जहां पर अमावस्या में पूरी तरीके से चांद लुप्त हो जाता है, वहीँ पूर्णिमा के दिन चांद अपने पूर्ण स्वरूप में दिखाई देता है। जिसके कारण पूरी धरती चंद्रमा की चांदनी रोशनी से चमक उठती है। हर महीने में पूर्णिमा आता है और इस तरह वर्ष में 12 पूर्णिमा होते है।
हालांकि किसी किसी महीने में दो पुर्णिमा हो जाते हैं। ऐसे में दूसरे पूर्णिमा को ब्लूमून कहा जाता है। ऐसी दुर्लभ घटना दो पूर्णिमा के बीच 31 दिनों से कम समय के अंतराल के कारण होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंद्रमा पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है और जिस दिन पूर्णिमा रहता है, उस दिन चांद सामान्य दिन की तुलना में ज्यादा बड़ा दिखता है। जिसके कारण पूर्णिमा के दिन समुद्र के पानी का स्तर भी ऊपर आ जाता हैं। मानव शरीर में भी 70% पानी होने के कारण पूर्णिमा वाले दिन व्यक्ति के स्वभाव में कुछ ना कुछ परिवर्तन आ जाता है।
पूर्णिमा को कहीं पौर्णिमी तो कहीं पूर्णमासी भी कहा जाता है। कार्तिक और वैशाख और माघ महीने के पूर्णिमा को बहुत ही शुभ माना जाता है और कई जगह पर तो मेले भी आयोजित होते हैं।
हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व होने के कारण कई लोग पूर्णिमा के दिन अपने घर पर सत्यनारायण की पूजा भी रखवाते हैं। माना जाता है ऐसा करने से उनके घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।
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साल के 12 पूर्णिमा के नाम
साल में पड़ने वाले 12 पूर्णिमा को उनके माह के नाम पर ही बुलाया जाता है जैसे कि माघ महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा, कार्तिक महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा। लेकिन इसके अतिरिक्त कुछ पूर्णिमा को विशेष नाम से भी जाना जाता है एवं प्रत्येक पूर्णिमा का कुछ ना कुछ महत्व होता है। यहां पर प्रत्येक पूर्णिमा का नाम उल्लेखित है:
चैत्र पूर्णिमा
चेत्र माह में पड़ने वाले पूर्णिमा को चैत्र पूर्णिमा कहते हैं। कुछ लोग इस पूर्णिमा को प्रेम पूर्णिमा भी कहते हैं। इस पूर्णिमा का विशेष महत्व यह है कि इसी दिन भगवान शिव के 11 वें रुद्र अवतार श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था।
वैशाख पूर्णिमा
वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। बौद्ध संप्रदाय के लोगों के लिए यह पूर्ण बहुत ही महत्व रखता है। क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसके अतिरिक्त इस पूर्णिमा को पीपल पूर्णिमा भी कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन यदि पीपल की पूजा की जाए तो व्यक्ति ग्रह और पितृ दोष से निवारण पा सकता है।
हालांकि इसके अतिरिक्त वैशाख पूर्णिमा के दिन लोग धर्मराज व्रत भी रखा जाता है। इस पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करके दान पुण्य करने से कुंभ में स्नान के समान पुण्य प्राप्त होता है। वैशाखी पूर्णिमा के दिन सूर्य अपनी उच्च राशि में और चांद भी अपनी उच्च राशि तुला में रहता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा
ज्येष्ठ महिने में पड़ने वाली पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा कहते हैं। इसे देव स्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इसे वट पूर्णिमा भी कहते हैं। क्योंकि इस दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इसीलिए इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है और बरगद के पेड़ की उपासना करती हैं। इसके अतिरिक्त इस दिन स्नान, दान और व्रत करने से कामनाओं की पूर्ति होती है।
आषाढ़ पूर्णिमा
यह पूर्णिमा आषाढ़ महीने में पड़ती है। इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसीलिए इस दिन गुरु शिष्य परंपरा के चलते गुरु एवं शिक्षकों का सम्मान किया जाता है।
कहा जाता है कि इसी पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। यह पूर्णिमा कबीर जयंती के रूप में भी होता है। कहा जाता है कि इसी दिन से 4 माह तक का समय अध्ययन, ध्यान और साधना के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है।
श्रावण पूर्णिमा
श्रावण पूर्णिमा को भारत के दक्षिण एवं समुद्री क्षेत्रों में रहने वाले लोग नारियल पूर्णिमा के नाम से जानते हैं। इसी पूर्णिमा को पूरे भारत में सभी हिंदू रक्षाबंधन का त्यौहार मनाते हैं, जिसमें भाई बहन के पवित्र रिश्ते के बंधन को मजबूत करने का यह विशेष दिन होता है। इसके अतिरिक्त इस दिन दान पुण्य भी किया जाता है, जिससे जीवन में चल रही समस्त समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
भाद्रपद पूर्णिमा
भादव में पड़ने वाली पूर्णिमा को भाद्रपद पूर्णिमा कहते हैं। कहा जाता है भाद्रपद पूर्णिमा से ही 16 दिनों का श्राद्ध पक्ष शुरू होता है। इस दिन बहुत से लोग व्रत रखते हैं एवं स्नान दान करते हैं, जिससे समस्त कष्टों से छुटकारा मिलता है। इसके अतिरिक्त इस दिन महिलाओं के लिए उमा महेश्वर का व्रत रख शिव और पार्वती की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
आश्विन पूर्णिमा
आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पूर्णिमा औषधि के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के लिए बहुत ही खास होता है। इस पूर्णिमा को चांद नीला दिखाई देता है। कहा जाता है कि इस पूर्णिमा में चांद की रोशनी में बिल्कुल अमृत के समान शक्ति होती है।
इसीलिए रात के समय चांद की रोशनी में दूध या खीर रखकर खाने का विशेष महत्व इस पूर्णिमा को होता है। इसके अतिरिक्त इस पूर्णिमा के दिन लोग लक्ष्मी एवं कुबेर की पूजा भी करते हैं और इसी पूर्णिमा से कार्तिक मास के स्नान दान और व्रत नियम प्रारंभ हो जाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा काफी ज्यादा महत्व रहता है। इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन माना जाता है कि दान पुण्य करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। इसीलिए इस दिन लोग अपनी बहन, भांजे, मामा या बुआ के बेटे को दान स्वरूप कुछ ना कुछ देते हैं, जिससे घर में धन संपदा बनी रहती है।
इस पूर्णिमा को देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन राजस्थान के पुष्कर में पुष्कर का मेला भी आयोजित होता है। इसी पूर्णिमा के दिन नानक देव जी की जयंती भी मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान और विष्णु पूजा का बहुत ही ज्यादा महत्व रहता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को अगहन पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इस पूर्णिमा पर कई लोग गंगा नदी में स्नान दान करते हैं। माना जाता है ऐसा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौष पूर्णिमा
पौष पूर्णिमा से जैन धर्म में पुष्यभिषेक यात्रा का प्रारंभ हो जाता है। इस दिन बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन शाकंभरी जयंती भी मनाई जाती है।
माघ पूर्णिमा
माघ पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है इस दिन दान दक्षिणा करने से 32 गुना फल मिलता है। मां के पूर्णिमा के दिन श्री ललित श्री भैरव जयंती, रविदास जयंती भी मनाई जाती है। माघ महीने मे कुंभ मेले का भी आयोजन होता है और माघ पूर्णिमा के दिन मेरे मे संगम पर खास करके स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है।
फाल्गुन पूर्णिमा
फागुन पूर्णिमा मार्च में लगभग पड़ता है और हिंदू कैलेंडर के अनुसार फागुन ही साल का अंतिम दिन होता है। जिससे फागुन पूर्णिमा साल का अंतिम पूर्णिमा होता है, जिसके बाद नया साल शुरू हो जाता है। फागुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन भी होता है, जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक होती है।
पूर्णिमा के दिन पूजा और व्रत की विधि
पूर्णिमा के दिन पूजा और व्रत का विशेष महत्व होता है। इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर नदी में स्नान करना चाहिए। यदि नदी में स्नान करना संभावना ना हो तो घर पर ही पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इससे भूतकाल में किए गए सारे पाप मिट जाते हैं।
पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है, इसीलिए इस दिन भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की भी पूजा आराधना करनी चाहिए। पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से उपवास का प्रारंभ होता है और चंद्र दर्शन के साथ समाप्त होता है।
पूर्णिमा व्रत के लाभ
- पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- माना जाता है कि जिस जातक की कुंडली में चंद्र दूषित होते हैं, उनके जीवन में इसके कारण बहुत सारी समस्याएं आती है। ऐसे में उसे पूर्णिमा के दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए हैं।
- पूर्णिमा के दिन व्रत करने से पारिवारिक कलह और अशांति दूर होती है, घर में शांति बनी रहती है।
- पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से मानसिक चिंता से ग्रसित लोगों को मुक्ति मिलती हैं।
- पूर्णिमा के दिन यदि शिवलिंग पर कच्चा दूध, बेलपत्र, शहद और शमी पत्र अर्पित करें तो भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती हैं।
- पूर्णिमा का व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि आता है, प्यार बढ़ता है।
पूर्णिमा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
- कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन मांस, मछली, प्याज, लहसुन, अंडा जैसे तामसिक भोजन का परहेज करना चाहिए। इसके साथ ही नशीले पदार्थों का भी सेवन नहीं करना चाहिए।
- यदि किसी के भी कुंडली में चंद्र का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो उसके जीवन में बहुत सारी समस्याएं आती है। इसीलिए चंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए पूर्णिमा के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यदि संभव हो तो पूर्णिमा के दिन भूमि पर सोना चाहिए।
- पूर्णिमा के दिन किसी भी गरीब, असहाय या घर में किसी भी व्यक्ति को अपशब्द नहीं बोलना चाहिए। ना ही किसी का अपमान करना चाहिए।
- पूर्णिमा के दिन जितना हो सके, लोगों से शांति बनाकर रखनी चाहिए। किसी से उलझना या झगड़ा नहीं करना चाहिए।
पूर्णिमा के दिन मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव
- वैज्ञानिकों का मानना है कि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का काफी ज्यादा प्रभाव होता है, जिस कारण पूर्णिमा के दिन लोगों पर मानसिक और शारीरिक प्रभाव पड़ते हैं। इस दिन बहुत से लोगों के मन में ज्यादा बेचैनी रहती है, जिसके कारण उन्हें नींद भी बहुत कम आती है।
- इस दिन चंद्रमा के तेज प्रभाव के कारण शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स की क्रियाशीलता भी बढ़ जाती हैं, जिसके कारण इंसान बहुत बार बहुत ज्यादा उत्तेजित या फिर भावुक हो जाता है और ऐसा केवल एक ही पूर्णिमा को नहीं बल्कि हर पूर्णिमा को होता है।
- पूर्णिमा के दिन तो कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति के मन में बहुत बार हत्या करने या आत्महत्या करने का विचार बढ़ जाता है।
- पूर्णिमा के दिन अक्सर सुनने को आता है कि जिन लोगों के पेट में चय पचय की क्रिया शिथिल होती है, उन्हें पूर्णिमा के दिन भोजन करने के बाद अक्सर नशा जैसा महसूस होता है।
- पूर्णिमा के दिन न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाने के कारण दिमाग का नियंत्रण शरीर पर बहुत कम रहता है, जिसके कारण व्यक्ति इस दिन भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाता।
FAQ
पूर्णिमा के दिन अंडा, प्याज, लहसुन मीट, मछली जैसे तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और ना ही नशीले पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इसलिए पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व होता है। हालांकि इसके अतिरिक्त इस दिन माता लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना की जाती है।
साल में 12 पूर्णिमा होते हैं और प्रत्येक पूर्णिमा का कुछ ना कुछ खास महत्व होता है। कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव जी ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का सहार किया था। इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था।
पूर्णिमा की रात शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यक्ति को प्रभावित करती है। इस दिन बहुत से लोगों को बेचैनी और कम नींद आती है। इसके अतिरिक्त कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। इस दिन इंसान ज्यादा ही भावुक रहता है।
पूर्णिमा के दिन बहुत से लोगों का जन्म होता है लेकिन बात करें किसी महान व्यक्ति की तो आषाढ़ महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि को महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था।
कहा जाता है जो बच्चे पूर्णिमा के दिन जन्म लेते हैं, वे सुंदर शरीर वाले, प्रफुल्लित चित वाले, दयावान एवं पुण्य आत्मा के होते हैं।
महिलाओं को हर सप्ताह गुरुवार के दिन बाल धोने से मनाई किया जाता है। लेकिन इसके अतिरिक्त अमावस्या के दिन, पूर्णिमा के दिन और एकादशी के दिन भी महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए।
28 अक्टूबर 2023
निष्कर्ष
यहाँ पर हमने साल 2023 में पूर्णिमा तिथि हर महीने कौन कौन से तारीख को पड़ेगी समय सहित (Purnima Kab Hai) जाना। उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा।
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