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जितिया व्रत कथा

जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha 

बहुत समय पहले गंधर्व के राजा जीमूतवाहन रहा करते थे। वह बहुत ही धर्मात्मा पुरुष थे। उन्होंने बचपन में ही अपने राज्य को त्याग कर अपने माता-पिता की सेवा करने के लिए जंगल में जाने का निर्णय ले लिया था। उन्होंने अपने निर्णय के अनुसार माता पिता की सेवा करने के लिए जंगल में चले गए और अपने माता-पिता के साथ रहकर उनकी सेवा करने में लग गए।

एक दिन जब जीमूतवाहन जंगल में घूम रहे थे, तभी उनको रास्ते में एक नाग माता मिली। नाग माता बहुत जोर जोर से रो रही थी। जीमूतवाहन ने नाग माता से उनके रोने का कारण पूछा तो नाग माता ने जीमूतवाहन को बताया की वह एक गरुण से बहुत परेशान है क्योंकि नाग माता ने गरुण को यह वचन दिया था कि वह एक सांप गरुण को  रोज दिया करेगी। जब जीमूतवाहन ने नाग माता से ऐसा करने का कारण पूछा और कहां की आपने ऐसा क्यों किया है?

जिसके बाद नाग माता ने बताया कि मैंने ऐसा विवश होकर किया था। अगर मैं ऐसा नहीं करती तो मेरा पूरा वंश खत्म हो जाता और गरुड़ मेरे पूरे वंश को मार डालते और रोज सामूहिक शिकार करते और वही शिकार ना करने के कारण मैंने उनको वचन दिया था कि मैं गरुण को एक नाग दिया करूंगी। जिससे वह हम लोगों का सामूहिक शिकार नहीं करेंगे और मेरे इस वचन को पूरा करने के लिए अब मेरे बेटे को गरुण के पास जाना पड़ रहा है।

जीमूत वाहन ने नाग माता की बात सुनकर नाग माता से कहा कि मैं आपके पुत्र को कुछ नहीं होने दूंगा। मैं आपको वचन देता हूं जब तक मैं जीवित रहूंगा मैं आपकी पुत्र की रक्षा करूंगा और उसको कुछ नहीं होने दूंगा। जीमूत वाहन ने अपने आप को नाग माता के पुत्र की जगह एक कपड़े में लपेट लिया और उसी जगह जाकर लेट गए, जहां पर गरुण आया करता था और नाग को उड़ा ले जाया करता था। थोड़ी देर बाद जब गरुण नाग को लेने के लिए आया और नाग समझकर जीमूत वाहन को अपने साथ उड़ा ले गया।

Jitiya Vrat Katha
Jitiya Vrat Katha

थोड़ी दूर जाने के पश्चात जब गरुड़ को कुछ अजीब सा लगा की आज कोई रोने की आवाज नहीं आ रही है ऐसा क्यों? जिसके बाद गरुड़ ने कपड़े को हटाकर देखा तो उसमें जीमूत वाहन को पाया तो जीमूत वाहन ने गरुड़ को सारी बात बताई। तब गरुड़ ने जीमूत वाहन को जीवित छोड़ दिया और वचन दिया कि अब मैं किसी भी ना को नहीं मारेंगे। जीमूत वाहन के कारण नाग माता का वंश सुरक्षित रहा ऐसा कहा जाता है कि जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है महाभारत में युद्ध हुआ था।

तब पांडवों ने एक-एक करके सभी कौरवो को कर्ण, दुर्योधन, पितामह भीष्मा, गुरु द्रोणाचार्य सब का निधन कर दिया था तब उनमें से सिर्फ अश्वथामा ही जिंदा बचे थे।अश्वत्थामा के पिता गुरु द्रोणाचार्य थे। अश्वत्थामा ने अपने पिता और बाकी कौरवों की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक योजना बनाई। जिसमें वह रात में पांडवों के शिविर में जाकर पांडवों को मार देंगे और इस कार्य को पूरा करने के लिए वह रात में पांडवों को शिविर में चले गए।

जहां पर पांडव ना होकर पांडवों के पुत्र सो रहे थे। अश्वत्थामा ने पांडवों के पांचों पुत्रों को मार दिया। जिसके बाद पांचों पांडवों ने अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा को पकड़ लिया और तभी अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया। अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया। तभी वहां पर भगवान कृष्ण आया और उन्होंने अर्जुन को ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने से रोक दिया और कहा कि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकराएंगे तो पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी।

अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वथामा को ब्रह्मास्त्र वापस लेने की विद्या नहीं आती थी। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे अजन्मे शिशु पर ब्रह्मास्त्र का प्रहार कर दिया। उत्तरा का शिशु मर गया।

भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहकर अश्वत्थामा के माथे में लगी मड़ी को निकाल लिया और फिर भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक तुम इस पृथ्वी पर रहोगे। तुम्हारे माथे से रिस रिस कर खून बहता रहेगा और तुम पृथ्वी पर कुड़ कुड़ के अपना जीवन व्यतीत करोगे।

लेकिन तुम्हें तब भी मृत्यु नहीं प्राप्त होगी। मैं तुम्हें अमर होने का वरदान देता हूं। भगवान कृष्ण ने उत्तरा के शिशु को दोबारा से जीवित कर दिया और दोबारा से जीवित होने के कारण उत्तरा के पुत्र का नाम परीक्षित और जीवित्पुत्रिका के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तभी से इस व्रत को मनाया जाने लगा। यह व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है तथा इस व्रत को जिउतिया व्रत था जितिया व्रत भी कहते है।

हर साल माताएं अपने पुत्र दीर्घायु और रोगों से मुक्त रहें उसके लिए व्रत करती है। तीज की तरह यह व्रत भी होता है। इसमें भी बिना भोजन वा पानी के निर्जला व्रत रखना होता है। यह तीन दिन तक मनाएं जाने वाला त्योहार है।

यह त्यौहार बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, नेपाल के मिथिला और थरूहत में बनाया जाता है। जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह उठकर सर्वप्रथम स्नान करके पूजा पाठ करती हैं और फिर एक बार भोजन को ग्रहण करती है और उसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखती है और फिर दूसरे दिन उठकर स्नान करके पूजा पाठ करती है और पूरा दिन निर्जला व्रत रखती है।

व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती है और सूर्य भगवान को अर्घ देने के बाद ही अन्न तथा जल को ग्रहण करती है। अष्टमी को प्रदोष काल में महिलाएं जीमूत वाहन की पूजा करती हैं। जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप, दीप, फूल, अक्षत, फल आदि को अर्पित कर कर पूजा की जाती है और इसके बाद मिट्टी तथा गाय के गोबर से सियारिन तथा चील की प्रतिमा बनाई जाती है और उनके माथे में लाल सिंदूर लगाया जाता है। पूजा समाप्त करने के बाद जीवित्पुत्रिका की कथा सुनी जाती है।

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