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निधि नरवाल की कविताएं

निधि नरवाल एक सोशल मीडिया स्टार और इनफ्लुएंसर है, जो अपनी कविताओं और शायरी के लिए जानी जाती है। इनकी शायरी सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती है।

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Nidhi Narwal Love Poetry

यहां निधि नरवाल की प्रसिद्ध कविताएं (nidhi narwal poetry) शेयर की है। यह कविताएं बहुत लोगों द्वारा पसंद की गई है और सोशल मीडिया पर बहुत ही वायरल हुई है।

निधि नरवाल कविताएं | Nidhi Narwal Poetry Lyrics

टूटा खिलौना (Toota Khilona)

मेरी एक तस्वीर है।
मेरी एक तस्वीर है, लगभग 15 साल पुरानी।
मैं छोटी-सी नज़र आती हूँ उसमें,
छोटी 4 साल की बच्ची, जिसके दोनों हाथों में दो गुड़ियाँ है
जिनकी हालत बेहद बदतर, बेहद बदतर।
प्लास्टिक की वो गुड़ियाँ, फटे से लिबास में बिगड़े,
जिसके बाल थे टूटे-फूटे जिनके हाल थे।
उन्हें ट्रोफी की तरह उपर उठाकर,
मैं बिखरे हुए से छोटे बालों में मैं हंस रही रही थी,
जोर-जोर से खिल-खिलाते,
बड़े फक्र के साथ जैसे जीत लिया हो मैंने खोकर कुछ।
दिखा रही थी अपनी मां को अपने टूटे खिलौने,
खिलौने जो मैंने जिद्दी होकर खरीदवाए।
कुछ देर तो खेली उससे, संभाल कर प्यार से आराम से,
फिर तोड़-फोड़ कर टुकड़े उनके मैंने पूरे घर में फैलाये।
पर उन टुकड़ों के बीच मैं पूरी थी खुश थी।

मेरा टूटा हुआ दिल यूँ ट्रोफी की तरह उठा नहीं पाती,
दिखा नहीं पाती, मैं मां को दिखा नहीं पाती क्यूँ?
इस बार तो जबकि मैंने खुद ने इसे तोड़ा भी नहीं,
और बिखरे नहीं इनके टुकड़े इसके सिमटे हुए है,
मेरे सीने में चुभते है हर जगह जहन में,
फटा-फटा सा लिबास दिल का कोई दिलचस्प नहीं इसे सीने में क्यूँ?

और लोग सवाल ही सवाल करते है और सवाल भी बेमिसाल करते है
कहते है दिल टूटा तुम्हारा है भी कभी,
कोई तस्वीर ही नहीं
कोई तस्वीर ही नहीं टूटे दिल के साथ मेरे क्यूँ?
फिर उन्हें क्या जवाब दूँ
देखो दिल तो प्लास्टिक का नहीं है,
दिल प्लास्टिक का नहीं है, दिल बाजार में बिकता नहीं है,
दिल रंगबिरंगा नहीं है, दिल कागज़ की कश्ती या तिरंगा नहीं है,
डिब्बे में पैक होके नहीं आता, दिल चाबी से चलाया नहीं जाता,
जान बसती है दिल में, दिल यूँ ही तो नहीं गुमाया जाता,
तोड़ कर यूँ फर्श पर फैलाया तो नहीं जाता।
और दिल तोड़ने वाले मुस्कुराते है, दिल तोड़कर
दिल तोड़ने वाले मुस्कुराते है, दिल तोड़कर क्यूँ?
ना बाजारो था, ना उनका था तो खोना नहीं था ना,
वो तोड़ गये है कि दिल मेरा, दिल तो खिलौना नहीं था ना
दिल तो खिलौना नहीं था।

Credit – UnErase Poetry

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पतंग (Patang by Nidhi Narwal)

हवा के झोंके जब जुल्फों को उड़ाकर जाते हैं
पलकों को सहला कर जाते हैं
तब लगता है कि अब जाकर
इस खुली हवा में सांस ली है खुल कर

इसी हवा के संग साथ बहती सी लगती है
जिंदगी हंसकर मुझसे कुछ कहती सी लगती है
चलो चलें कहकर हाथ बढ़ाती है हाथ थमाने को
पास आने को पुकारती है मुझे साथ जाने को
और मैं आँखों में ख्वाबों के बने पंख लिए
जिन्दगी का हाथ कस के पकड़ती हूं आगे बढ़ती हूं

इतने में ही पीछे से एक अदृश्य डोर जो मुझसे बंधी हुई है जिससे मैं बंधी हुई हूं
वो मुझे झटके से अपनी तरफ खींच लेती है बार बार

ऐसा लगता है कि मैं कोई रंग बिरंगे पतंग हूं
जो मस्त मल्लिका के भाती अदा से उड़ रही हैं, नाजनीन हवा से लड़ रही है
मगर मेरी एक बेरंग डोर है जो किसी के हाथ में है
या यूं कहूं कि ऐसा लगता है कि मेरी परवाज एक रील में लपेट रखी है और कोई लगातार

मुझे ढील दे रहा है बेबाक होकर जिन्दगी से मिलाने को
और दूसरे ही पल झटके से डोर को वापस खींच लेता है मुझे मेरी हदें याद दिलाने को
और जितनी बार भी ये डोर तंग होती है
मुझे ये महसूस होता है कि मैं उड़ नहीं रही
बल्कि मुझे कोई अपने मुताबिक उड़ा रहा है
और ये हवाएं उसका बखूबी साथ निभा रही हैं
जो उसके हक में चलती जा रही हैं वो भी मेरी नाक के बिल्कुल नीचे से

ऐसा लगता है कि मुझे उड़ने के लिए बनाया गया
बेशक मुझे उड़ने के लिए बनाया गया बढ़िया से तैयार किया सजाया गया
मगर मेरे पंख किसी और के हाथ में थमा दिए और बनाने वाले ने महज तंज करने को मेरी तकदीर में उड़ान लिख दिए

हर शख्स को अपने हाथ में केवल मेरी डोर चाहिए
पर कितने लोगों तो शायद बेसब्री से इस रंग बिरंगी पतंग के कट जाने की राह तकते होंगे ताकि एक कटी हुई पतंग को किसी गली मोहल्ले में वो गिरा हुआ पा सके और फिर उसे हासिल करके अपने ढंग से उड़ा सके

और मैं पागल हूं एक पागल पतंग,
जो आसमान की ऊंचाइयों को छू कर बार बार,
ये अनदेखा कर देती है कि मेरी एक डोर है
जो वहां किसी के हाथ में है।

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उसे पसंद है (USEY PASAND HAI)

बाते बेहिसाब बताना,
कुछ कहते कहते चुप हो जाना,
उसे जताना, उसे सुनाना,
वो कहता है उसे पसंद है,

ये निगाहें खुला महखाना है,
वो कहता है, दरबान बिठा लो,
हल्का सा वो कहता है, तुम काजल लगा लो,
वेसे ये मेरा शौक नही, पर हाँ, उसे पसंद है,

दुपट्टा एक तरफ ही डाला है,
उसने कहा था की सूट सादा ही पहन लो,
बेशक़ तुम्हारी तो सूरत से उजाला है,
तुम्हारे होठों के पास जो तिल काला है,
बताया था उसने, उसे पसंद है,

वो मिलता है, तो हस देती हूं,
चलते चलते हाथ थाम कर उससे बेपरवाह सब कहती हूं,
और सोहबत मैं उसकी जब चलती है हवाएं,
मैं हवाओं सी मद्धम बहती हूं,

मन्नत पढ़ कर नदी मैं पत्थर फेंकना,
मेरा जाते जाते यू मुड़ कर देखना ,
ओर वो गुज़रे जब इन गलियों से ,
मेरा खिड़की से छत से छूप कर देखना,
हां उसे पसंद है,

झुल्फों को खुला ही रख लेती हूं,
उसके कुल्हड़ से चाय चख लेती हूं,
मैं मंदिर मे सर जब ढक लेती हूं,
वो कहता है उसे पसंद है,

ये झुमका उसकी पसंद का है,
और ये मुस्कुराहट उसे पसंद है,
लोग पूछते है सबब मेरी अदाओ का ,
मैं कहती हूं उसे पसंद है,

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कोई तो हो (Koi To Ho Nidhi Narwal Lyrics)

कोई तो हो जो सुने तो सुने बस मेरी निगाह को
क्योंकि जुबान पर अक्सर ताले
और नज़रों में बहुत सारी कहानियाँ रखती हूँ मैं
वो मुझसे बात करने आये और कहें
की मुझसे नज़रें मिलाओ
फिर हो यूँ की वो कहें
कि कुछ कहना चाहती हो?
जो नहीं कहना चाहती हो वो तो मैंने सुन लिया

दिल तो हर जगह से टूटा हुआ है मेरा
दिल के हर कोने, हर दीवार में छेद है
मगर कोई तो हो जो झांक कर अंदर आने में दिलचस्पी रखें
झांक कर भागने में नहीं
दिल तो ढेर हो चुका एक घर है
जो मरम्मत नहीं मांगता, बस सोहबत मांगता है
उस शख्स की जो कि इसकी टूटी हुई दीवारों के अन्दर आ कर
इसे जोर जोर से ये बताए कि इसकी बची कुची दीवारे मैली है
जो रंगी जा सकती है

कुछ तस्वीरें टंगी है अब भी पुरानी
जो फेंकी जा सकती है
हाँ वैसे काफी नुकसान हुआ है दर-ओ-दीवार के टूटने से
मगर इसकी बुनियाद अब भी सलामत है
कोई तो हो कि जो देखें तो देखें बस मुझको
कहें मुझसे कि ये मुस्कराहट ना खूबसूरत तो है
मगर ख़ास नहीं

ख़ास है ये ज़ख्म जो तुमने कमाये है पहने नहीं
कहें मुझसे कि ये ख़ुशी मेरी है मैं नहीं
कहे मुझसे कि जो मैं दिखती हूँ ना वो मैं हूँ नहीं
कहें मुझसे कि मैं अपनी नज़्मों को
अपनी ज़हन के आगे का पर्दा बना कर रखती हूँ
पर्दा जिसके आर पार दिखता है

कहें मुझसे कि मेरी मुस्कुराहटें बस मेरी नाकाम कोशिशें है
अपने जज़्बात पे लगाम लगाने के लिए
कहें मुझसे कि ये नक़ाब उतार कर रख दे तू
और आइना देख महज खुद को देखने के लिए
छुपाने के लिए नहीं
कहें मुझसे कि तू दर्द का चेहरा है
दरारों से भरा हुआ, बिगड़ा हुआ
दर्द जो हसीं है, इश्क़ है
कहें मुझसे की तू दर्द है, हसीं है, इश्क़ है

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चोरी हुई किताब (Chori Hui Kitab)

यह स्कूल की बात है उस किताब पर नाम मेरा लिखा था
तो जाहीर है कि मेरी थी फिर भी कोई दूजा उसे चुरा ले गया
अब चोर काबिल था या ना समझ पता नहीं
पर एक बात हैं तब भी ख्याल आया था

आज भी आता हैं कि इस चश्म मे तो रहता होगा
वो चोर भी कि पड़ ले समझ ले वो किताब पर
मेरी तरह समझ नहीं पाएगा
क्यू कि वो किताब मेरी थी
यह स्कूल की बात है उस किताब पर नाम मेरा लिखा था
तो जाहीर है कि मेरी थी फिर भी कोई दूजा उसे चुरा ले गया
अब चोर काबिल था या ना समझ पता नहीं
पर एक बात हैं तब भी ख्याल आया था

आज भी आता हैं कि इस चश्म मे तो रहता होगा
वो चोर भी कि पड़ ले समझ ले वो किताब पर
मेरी तरह समझ नहीं पाएगा
क्यू कि वो किताब मेरी थी
उस किताब का 3 4 शेफा मेने हल्का सा फाड़ रखा था
उसने ओर शेफे फाड़ दिये होंगे पर
उस 3 4 शेफे के फटे हुए टुकड़े मेरे पास थे,
शाबित क्या करना था किताब मेरी थी

उस किताब के अंदर रखे हुए कुछ कोरे पन्ने
मे आँगन के फूल की एक पंखुर
ओर एक बोरियत मे बनाये हुआ स्केच उसने फ़ेक दिये होंगे
ताकि यह पता ना लगे किसी को कि वो किताब मेरी थी
एक दिन उस चोर को पकड़ लिया मैंने
मैंने उससे कहा सुनो यह किताब मेरी हैं
उसने किताब पर अपना नाम दिखाया ओर
फटे हुए शेफे दिखाये

ओर बोला नहीं, मैंने कहा सुनो
सुनो धूल जम गई है इस पर
तुम्हारी होती तो यह हसर ना होता इसका
वो चुप हो गया पर माना नहीं की वो किताब मेरी नहीं है

आज के दिन जब मैं तुम्हें किसी ओर की बाहो मे देखती हू
तो तुम्हारी मोहब्बत मुझे उस चोरी हुई किताब सी लगती हैं
एक दिन उस चोर को पकड़ लिया मैंने
मैंने उससे कहा सुनो यह किताब मेरी हैं
उसने किताब पर अपना नाम दिखाया ओर
फटे हुए शेफे दिखाये

ओर बोला नहीं, मैंने कहा सुनो
सुनो धूल जम गई है इस पर
तुम्हारी होती तो यह हसर ना होता इसका
वो चुप हो गया पर माना नहीं की वो किताब मेरी नहीं है

आज के दिन जब मैं तुम्हें किसी ओर की बाहो मे देखती हू
तो तुम्हारी मोहब्बत मुझे उस चोरी हुई किताब सी लगती हैं

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मैं ऐसी नहीं थी (Main Aisi Nahi Thi Poetry)

जिस रस्ते पे में चल रही थी
मुझे मालूम तक नहीं की जाना कहा है
फिर भी चल रही हु
और जिस रस्ते से होकर मैंने यहाँ
तक का सफर तय किया है
उस रस्ते पर युही यु मेरे कदमो के निशान मुझे दिखाई देते है
मगर फिर भी में मुड़कर उस और
वापस नहीं जा सकती

मन करता है काश कोई एक तो नामुमकिन
ख्वाइश मांगने का हक़ तो दिया होता खुदा ने
तो वापस वह तक जाती जहा से सब शुरू हुआ था
मोहब्बत के लिए नहीं सपनो के लिए नहीं
हसरतो के लिए आगाज़ तक जाती
कुकी मुझे मिलना है खुद से और मिलना है उन लोगो
से जोकि तब मेरे साथ थे
जबकि दिन और हम कुछ और ही थे
आज वो हु और अनजान हु उन लोगो से जो मेरे बगल में,

मेरे सामने फगत बैठे है या खड़े है
है मगर इन चेहरों से तो वाक़िफ़ हु
मेहबूब से बिछड़ जाना बोहोत दर्दनाक होता है
मेहबूब से बिछड़ जाना दिल में खलील कर देता है
पैर यक़ीन मनो खुद से बिछड़ जाना बेहतर है, कियो
तुम फोटो हाथ में लेकर लोग दर लोग
पूछ नहीं सकते की इसे देखा क्या

main-aisi-nahi-thi

तुम अखबार में इस्तेहार नहीं छपवा सकते की ये लापता है
तुम छुप छुप कर देख नहीं सकते,
मालूम नहीं करवा सकते
की वो इंसान जो खो गया है वो खैरियत से है भी या नहीं

तुम अपनी हालत का भला ज़िम्मेदार किसको टेहराओगे
की कौन छोड़ गया तुम्हे यहाँ,
कियुकी वो इंसान तो तुम खुद हो
तुम अगर रुककर एक जगह खड़े होकर शांति से
याद करने की भी कोशिस करोगे न,
तुम कैसे हुआ करते थे
तो यकीन मनो यादो की जगह बस हाल ही मिलेंगे

ये जीती जगती मौत के जैसा है,
तुम ज़िंदा हो ….तुम ज़िंदा हो …
मगर तुम्हारा ज़नाज़ा बिना चार कंधो के ही उठ चूका है

ऐसे में तुम बस बैठ कर अफ़सोस कर सकते हो
और वो करके भी तुम्हे बस अफ़सोस ही मिलेगा
मगर मुझे एक बार रूबरू होना है खुद से
मुझे देखना है,
मुझे जानना है की आज दिन में आखिर कितनी बर्बाद हु
या और कितनी और मोहलत बची है मेरे पास,
ज़िन्दगी तक वापस आने की
में ये एक खाल का लिबास जिसमे खवाब, मोहब्बत, दर्द,
जिसमजु कुछ भी नहीं है

में ये नहीं हु,
में मेरी रूह को कही पीछे छोड़ आयी हु
मुझे वापस जाना है
में अनजान बानी बोहोत दूर तक आचुकी हु
मुझे एक बार आगाज़ तक ले चलो,
यकीन मनो
मैं ऐसी नहीं हु…

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करीब तो मेरे भी है तू (Kareeb To Mere Bhi Hai Tu)

KE WO AAKAR NASHEEN HUA,
MERE JISM PAR
ANKHON PAR AJAB SI PYAS THI.
MUJHE KEHNE LAGA TUMHE CHAHTA HU..

MEIN SUN RAHI THI BAATIEN USKI..
MUJHE KEHNE LAGA TUMHARI SHAKAL SURAT MEIN KOI AAB NAHI
TUMHARE MEHBOOB KE ARAYE ISHQ KE KYA KEHNE
SHAYAD MUJHME WO BAAT NAHI..

KAREEB TO TU MERE BHI HAI SACH KEH RAHA HU
BAS TERI ROOH KE MEIN PAAS NAHI
MEIN USSE DUNIYA JANHA SE CHHUPANE LAG JAATI ..
TOH PAGAL SA HOKAR KEHTA KI HAAN,
HAAN AZIZ NAHI HU TUMHARA TO AITRAAZ KARO
OR DOOR RAKHO YE NIGHA TUM..

KUCHH GINTI KE PAL BACHE HEIN MER PASS..
BAS DEKH LENE DO YE CHEHRA MUJHE BEPANHA..

DUM TOD HI JAUNGA..
BHOT JALD MEIN,
KYO WAQT SE PEHLE DETI HO MARNE KI WAJHA TUM..

EK TARFA ASHIQUE THA MERA
THA AFSOS TO USKE SEENE BHI
ISI AFSOS MEIN MACHALTA THA
WO MERE MEHBOOB SE JALTA THA..

kareeb-to-mere-bhi-hai-tu

MAINE BHI NAFRAT TO KHOOB KARI USSE
PAR HASHRA USKA DEKH HAR YE JIGAR ROOTH SA JATA THA..
WO AYA THA KHOONI YAADIEN CHASHMA ANKHON MEIN LIYE
APNI AKHRI SAANSE YAADON M LIYE KU
KUCH WAQT WO ZINDSA RAHA,
MERI MOHABBAT MEIN SHARMINDA RAHA

BEKADRA THA,BEPARWAH THA,,
PAR ZAKHMI THA WO BHI KANHI BEWAJHA TO BEPARWAH KOI HOTA NAHI..
MAINE FIR BHI USKA KHAYAL KARA,,
ROZ USSE SAWAAL KARA
KI AB KAISE ,KI AB KAISE..

WO BADE DIN TOH KHAMOSH RHA..
FIR EK DIN MUJHE MERE MEHBOOB KE YAADON MEIM LIPATTA DEKH..
MUSKURA KAR MUJHSE KEHNE LAGA,
KI TUM OR TUMHARA MEHBOOB..
KAMBKHAT EK JAISE HAI..
TUM BHI TO MERA ITNA KHAYAL MERE WAJOOD KO KHATAM KARNE KE HI LIYE RAKHTI HO..
ZAKHMI HOKAR AYA WO AYA THA WO ZAKHM MERA APNI MAUT KI RANJHIS MEIN..
MERE BADAN PAR DAAG DE GAYA

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चक्कर (Chakkar by Nidhi Narwal)

किसी भी रिश्ते मे रूठना मानना चलता है
कभी कभी दूरिया भी आ जाती है
बहुत ज्यादा मगर यार ऐसा है
कि अगर तुम्हारे दिल मे और उस शख्स
के दिल में तुम्हारे लिए और तुम्हारे दिल
मे उस शख्स के लिए जो फिक्र हैं

ना वो सच्ची है तो तुम्हें ये बात हमेशा
याद रखनी चाहिए कि जो दूरिया है
ये बस कुछ पल की है और अक्सर बातें
याद रखने के लिए हम क्या करते हैं

तो यही बात खुद को याद दिलाने के
लिए लिखा हैं मेने एक ख्याल चक्कर

एक बहुत बाड़ा गोल सा चक्कर है
किसी मैराथन ट्रैक के जैसा
इस चक्कर का अखिर चक्कर क्या है
देखो इस चक्कर पर न तुम और मैं
खड़े हैं तुम नहीं तुम और मैं मगर एक

दूसरे की तरफ पीठ करके
तुम उस तरफ मुह किए हो और मैं
इस तरफ क्युकी अभी अभी हम दोनों
ने अपनी अपनी अना को अपनी अपनी
मोहब्बत से उपर रखकर ये तय किया है

chakkar

कि अब से तुम उस तरफ चलोगे और
मैं इस तरफ कुछ फैसले लिए है
कि अब से ये राहें अलग अलग हैं
अब से हाथ पकड़कर क्या हाथ छोडकर

भी साथ नहीं चलना
तुम रोने लगे तुम्हारे पास भागते
हुए नहीं आना हैं और अगर मैं गिरने
लगी तो तुम ये हरगिज़ नहीं दिखाओगे

कि तुम अब भी परवाह करते हो
और पीछे नहीं मुड़ना याद रखना
पीछे नहीं मुङना याद रखना बिल्कुल
ऐसा ही करना हैं अलग अलग चलना है

अकेले चलना हैं चलते जाना है
एक दूसरे से दूर होते जाना हैं और
पीछे मुड़कर नहीं देखना हैं टस से मस
नहीं होना है चाहे कुछ भी हो जाए

1 सेकंड,
तब क्या होगा जब इस बड़े से चक्कर की
ये दो राहे जिन पर हम अलग अलग
चल रहे हैं ये दोनों एक दूसरे की तरफ
आने लगेंगे तुम यहा आने लगोगे मैं वहां
जाने लगूंगा ना तुम वापिस मुड़ पाओगे

ना मैं वापिस मुड़ पाउंगा क्युकी पीछे नहीं
मुड़ ना हैं ये तो हमने तय किया था और
चलो मान ले मुड़ जाते हैं दोनों मे से
अगर कोई भी एक शख्स मुड़ा और वो

दूसरा नहीं मुड़ा तो वो एक दूसरे के पीछे
चलने लग जाएगा और मानो अगर दोनों
के दोनों मुड़ गए तो वो दोनों एक दूसरे
की तरफ चलने लग जाऐंगे ये सिलसिला
चलता रहेगा तुम और मैं चलते रहेंगे

कभी इस तरफ कभी उस तरफ और घूमते
फिरते कभी एक दूसरे की तरफ और
वेसे ना अलग अलग दिशा मे चलने मे भी
मुझे कोई ऐतराज़ नहीं क्युकी देखो दो

लोग है एक यहा खड़ा है एक यहा खड़ा हैं
ईन दो लोगों को अगर एक दूसरे से दूर
जाना हैं तो अलग अलग दिशा मे चलना
पड़ेगा मगर अगर उन लोगों को एक
दूसरे के करीब आना है तो भी अलग
अलग दिशा मे ही चलना पड़ेगा

तुम्हारा और मेरा रिश्ता महज एक चक्कर
के जेसा है तुम यहा जाओ या यहा वहा
जाओ तुम कहीं ना कहीं मुझसे टकरा ही

जाओगे और फिर अलग अलग भी चलोगे
घूम फिर कर मेरे पास ही आओगे अब
ज़माना यू ही थोड़ी ना कहता हैं कि
इसका और इसका चक्कर चल रहा है

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मुझे अधूरा रहने दो (Mujhe Adhoora Rehne Do)

Kuch kami jab lagti h, saansein bda machalti h,
Varna to kambaqt ye, itra kr hi chlti h.
To pyaas zara si tum meri saanson me bhi rehne do
Mujhe adhoora rehne do.

Tum jaante bhi the bhala ki ragon me kinaro tk tha tumhara naam bhara,
Thoda apna naam tum apni nabz me behne do,
Mehsoos krna chahti hu main khud ko mujhe adhoora rehne do.
Gulaab k bahane kaanton se meri zindagi mat sajao rehne do
Agar tumhe lgta h ki tum mere poorak ho to Mujhe adhoora rehne do.

Daag to Chand pe bhi hota h, pr agr tb bhi tumhe lgta h ki mujhme koi aib h,
To mere hr Daag ko main panah dungi, mujhe adhoora rehne do.
Dekha h, suna h maine ki aakhiri Panne tk aa k band ho jati h kitaab, Lekhak yaad rhta nhi gum ho jati h kitaab,
To mere agle panno ko tum Kora hi rhne do, yaad rahungi main barso, mujhe adhoora rehne do.

Poora ishq poora dil ye sb to kitaabi baatein h,
Aksar shayar bhi to mehfil me toota dil le k aate h.
To meri pehchan tum gumshuda hi rhne do,
Sab poochenge naam mera pr mujhe adhoora rehne do.

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मां बता मुझे (Maa Bata Mujhe By Nidhi Narwal)

माँ तू कमजोर तो नहीं है
ये मैं जानती हूँ
पर मुझे बात करनी है
तुझसे और बात दरअसल ये है

कि मैं यह चाहती हूँ
कि आज तू बात करे मुझसे
तो ठीक है ना तूने खाना खाया दवाई ली
घर पर सब कैसे हैं अच्छा शहर का मौसम

तेरी तबीयत सब कैसा है
तू ठीक है ना मेरी याद आती है
मैं घर आऊँ ये सब नहीं जानना मुझे
ईन सब के जबाब तो मुझे
पहले से पता है क्युकी बर्षों से ये सवाल

maa-bata-mujhe

और इनके जबाब बदले नहीं हैं
मुझे तुझसे वो जानना हैं
जो तेरी आखों के बगल मे पड़े
नील चीख़ चीख कर मुझे बताता हैं
बच्ची नहीं हूँ माँ बड़ी हो गयीं हू

कहानिया सुनकर नींद नहीं आती
बता वो सच्चाई जो तेरे होठों
पर बर्फ के जेसी ज़मी रखी है
बता वो सब मुझे जिसका शोर तेरी
चुपी से साफ़ साफ़ सुनाई देती है

बता वो किस्सा जो तेरी पीठ पर
मुझे हर बार दिखाई देता है
तेरे सुर्ख गालों पर मेहरून
और नीले धब्बे है

जो घूंघट के पीछे तूने सालों तक रखे है
मगर मुझे नजर आते हैं
माँ तू कितनी भोली हैं
तेरी चूडिय़ां तेरी कलाई की चोट
को छुपा नहीं पाती तेरी हालत
सब बताती है

तू खुद बता क्यू नहीं पाती के
तेरे फर्ज के बदले कौन से किस
किस्म के तोहफे है ये तेरी जीस्त की
आखिर कौन सी किताब के सफे हैं

ये मुझे बता मैं वो किताब फाड़कर
कहीं फेंक दूंगी ये तोहफे देने वाले को
मेरा वादा है तुझसे तोहफे देने वाले
को सूत समित वापिस दूंगी
माँ मैं तेरी बेटी हूं इतना तो

काबिल तूने बनाया है मुझे
कि पैर मे चुभा काटा खुद निकाल
फेंक सुकू गुनाहगारों और गुनाह के मुह
पर एक तमाचा टेक सकू
माँ बता मुझे माथे पर सिंदूर की
जगह ये खून क्यू रखा है तेरा

इसे रखने वाला सच सच बता पिता है
मेरा मुझे शर्म नहीं आएगी अरे
कोई मोहब्बत का इज़हार है
क्या तू बोल तो सही तू बोलती

क्यू नहीं माँ तेरे हकों का इतबार है
क्या मैं कमजोर नहीं हू मैं कमजोर
बिल्कुल नहीं हू माँ मगर मुझसे
बात कर वरना शायद
कमजोर पड़ जाऊँ

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ज़िन्दगी सुन (Zindagi Sunn)

चली जा रही हो चली जा रही हो
रुको तो सही?
कबसे सदाऐं दे रही हूँ
कुछ सुनो तो सही?

मैं कितने ख़त भिजवा चुकी
कितनी कोशिशें करी मैंने
दीवार के जैसी ठहरकर मेरी
हर ख़िश्त में ढूंढा तुमको कहाँ गयी है,

कब आएगी मैनें जाकर पूछा सबको
क्या ताल्लुक भुला दिए हैं मुझसे?
क्या मैं याद नहीं तुम्हें.. सच में?
बहाने मुंह पर रहते है

कल आओगी कहती हो
तुम आजाओगी चलो मान लिया
पर ये “कल” आए
तब तो तुम्हारा कल आज तक नहीं आया
और पता नहीं कितना वक़्त लगेगा
कितनी रातें, कितने दिन,

पता नहीं कब तक और ये इंतज़ार जगेगा
एक परिंदे को भेजा था
कि तूझसे कुछ पैगाम ही मिल जाता

मैं राह तक रही हूँ
आज तक परिंदे को भी लगता है
तेरी हवा लग गयी रुख बदला फिज़ा का मेरे शहर में
दरवाज़े खिड़की खुले रखे दिन रात मैंने

और दोपहर में कि तू आ ही जाएगी या पैगाम कोई पहुंचाएगी
एक रोज़ शाम हुई पैगाम आया शुक्र है
तेरा सलाम आया किसी सितम से कम नहीं है
ये दो लफ़्ज़ जो तूने लिखकर भेजें हैं
कम्बख़्त कि “कल आउंगी”

उससे अगली सुबह आफ़ताब ढ़लकर वापस आया
पर आज तलक भी वो रात कटी नहीं है
बहुत मसरूफ़ हो गयी हो
शायद तुम शायद यकीनन!
तुम्हें वक़्त नहीं मिलता मैं कुछ वक़्त देने घर तक आऊँ?

जिन्दगी सुन
मिल लिया कर कभी-कभी!

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चाय (Chay by Nidhi Narwal)

नहीं चाय पर कोई खयाल नहीं है,
चाय के बारे में कुछ नहीं कहना।
वो तो बनी-बनाई मिल जाती है, पी
लेते हैं। स्वाद लगती है, पी लेते हैं।
वो चाय वाला इतनी देर लगाता है कि चाय पती
का रंग और अदरक-इलायची का ज़ायका
पूरी तरह से निखरे। इतनी बार
उबाल लेकर आता हैं। उबलती चाय अपने
बदन के पास कुल्हड़ रखकर उसमें
छानकर, हमें दे देता है “लो भैया”
हम दस रुपए दे आते हैं। कीमत पा दी और क्या।
आजकल प्यार भी यूं ही मिलता है। कोई तो
बनाने में ज़िंदगी लगा रहा है जख्म और
जफ़ा की खाई की नोक फर खड़े होकर,
कोई फ़ुरसत में आकर घूंट भर रहा है दाम देके।
चाय वाले का क्या?

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फांसी

जैसे लटका दिया जाता है
एक कैदी को फांसी पे
उसके मुंह को काले कपड़े से
पूरा ढ़क के

ये स्याही वैसे
काले लिबास के जैसे
पहनाकर मैंने
कतार से
फांसी पे
लफ्ज़ लटकाएं हैं

आशुफ़्ता आसीर
जख्म-दर्द मेरे
मारकर वे
सब लटकाए हैं

इनका गुनाह क्याद है..
छोड़ो भी!
गुनाहगार को ही होती है
कहां हर बार फांसी

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मेरी पहचान समुंदर है

मेरा गांव एक समुंदर है
ये शहर समुंदर के किनारे किसी चट्टान के जैसा लगता है
और मैं समुंदर की एक लहर
जो मदहोश और नादान थी, नासमझ भी
दूसरे छोर से दरिया पार करके इस छोर तक आयी
मदमस्त होकर समुंदर को छोड़ने चली थी
चट्टान को भागते हुए आकर गले से लगाया
मग़र उसने रोका नहीं मुझे, बस मैं ही उसे पकड़े हुए थी..
वापस जाना ही था
देर से समझ में आता है, देर से समझ में आया
कि समुंदर सदा दे रहा था वापस आजा’
उसे अपनी हर तरंग हर लहर से इश्क़ है
क्योंकि उसकी हर लहर को पता है कि वो कितना गहरा है
मग़र किसी और को ये बात लहरें पता लगने नहीं देती
मेरा घर, मेरी पहचान समुंदर है।

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गिर रहा हूँ, गिर चुका हूँ
दर्द क्यों होता नहीं?
ऐ ख़ुदा, बता ख़ुदा, कोई
मर्ज़ क्यों होता नहीं?
हंस रहा हूँ, इस हंसी का
कर्ज़ क्यों होता नहीं?
किताब तेरी, गुनाह मेरा, गुनाह
दर्ज क्यों होता नहीं?
दो कदम चल लिया, दो कदम हूँ चल रहा –
फ़ासले में फिर भला कुछ
फर्क क्यों होता नहीं?
अश्क बक्श दे रो रहा हूँ.
नींद बक्श दे सो रहा हैँ.
पारहा हूँ, खो रहा हूँ
ग़म दे रहा हूँ, ढ़ो रहा हूँ
बेसब्र मैं हूँ सब्र मे
लाश ज़िंदा है मेरी
क्यों खाल की इस कब्र में?

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टूटी, बिखरी बैठी रहती हूँ
खूद से हर पल ये कहती रहती हूँ –
हूँ किसी काम की नहीं मैं
जीतकर भी कई दफ़ा हार ही गयी मैं
कहाँ हार को अपनी मैं लेकर जाऊं
हया के छाले किस कपड़े में छुपाऊं
कितनी बेकाम हूँ!

और

आईने के सामने खड़ी होकर
मेरी कुर्ती में, मेरे झुमके में
छोटी बहन कहती रहती है
के दीदी जैसी बनूं मैं!

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जरूरी है

Nidhi Narwal Poetry

चलना जरूर है
ठहरना भी पड़ेगा मगर
संभलना जरूरी है
बहकना भी पड़ेगा मगर
सिमटना जरूरी है
बिखरना भी पड़ेगा मगर
हंसकर कांच से
गुजरना भी पड़ेगा मगर
चमकना जरूरी है
जलना भी पड़ेगा मगर
उड़ना जरूरी है
उतरना भी पड़ेगा मगर
जीना जरूरी है
मरना भी पड़ेगा मगर
नशा बुरा है इश्क
करना भी पड़ेगा

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nidhi narwal shayari

क्या सजा था आसमान
क्या हसीन वो रात थी
क्या सुनो वो ख़्वाब था
या वो सही में साथ थी?

क्या नशा वो एक नज़र
क्या समा, क्या बात थी
क्या हुआ मैं क्या कहूँ
लड़की नहीं शराब थी

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छोटी बहन

यहाँ-वहाँ की सारी बातें
आकर मुझ से कहती है
बेफ़िज़ूल पर प्यारी बातें
आकर मुझ से कहती है

चंद ख़्वाब और ज़िंदगी
पन्नों पर रंगती रहती है
पहन पुरानी जिन्स मेरी
शीशे में सजती रहती है

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काफ़ी वक़्त है हुआ
बहुत से दिन गुज़र गए
हमारी ज़िंदगी से वो
हमारे बिन गुज़र गए

काफ़ी शाम है हुई
सभी तारे बिखर गए
जहाँ यादें तेरी रखी
भटक भी हम उधर गए

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मआल/नतीजा

तोड़कर के बंदिशें
सभी मेरे अयाल की
नस पकड़ क़लम से
किसी बावरे ख़याल की
हादसों से होड़ कर
न सोचकर मआल की
देख कर के शक्ल
किसी मर्ज़ या मलाल की
लिखना है

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मैं अजीब हूँ अलग हूँ (Main Ajeeb Nahi, Alag Hu)

कुछ जख्म अब पायाब है (Kuch Jakham Ab Payab Hai)

टूटा दिल निधि नरवाल (Toota Dil by Nidhi Narwal)

एक टूटे हुए इंसान के पास वोह बेहद मिलता है,
जिसके लिए अक्सर लोग तरस जाते हैं उम्मीद।
उम्मीद मिलना बहुत आससन हैं,
मगर उम्मीद रखना शायद सबसे मुश्किल।
मेरा दिल जब पहली दफा टूटा था,
मुझे आज भी याद है मुझे ऐसा लगा था मनो मैंने अपना सब कुछ खो दिया हो।
की मनो वोह एक इंसान वोह खवाब या वोह वक़्त वोह एक लम्हा जो बेहद खूबसूरत था बेहद प्यारा था,
जो मुझे कभी ना वापस आने के लिए छोड्र गया, वही मेरा आखिरी था।
और मैं उस वक़्त यही सोच कर बिखरी के वही मेरा आखिरी था,
थोड्रा वक़्त जरूर लगा मगर उम्मीद मिली मुझे,
सारी रात एक खिड्रकि के पास बैठकर अक्शो मै लिपटी
और शिकायतों का ढेर लगा दीया और सुबह होने पर आफताब की
पहली झलक पर बस एक ख्याल आया की अगर यह कम्बख्त हर शाम ढलने के बावजूद भी
उतने ही उजाले उतने ही जनून के साथ वापस लोट कर आ सकता है तो मैं क्यों नही।
तो मैं क्यों नही। जब तक मैं चाहती हूँ की मैं ज़िन्दगी तक रहूंगी मैं रहूंगी क्योकि एक बात तो तय है
के मोत किसी की नहीं आती मोत को हम बुलाते है।
जिसे जाना था वोह तो जा चूका, हां माना के उसके और मेरे दर्मिया कुछ फासले तय हो गए
मगर ज़िंदगी से तो अब तक उतनी ही नज़दीकिया बरकरार हैं।
थोड्रा वक़्त जरूर लगा ज़रूर लगा मगर समझ मैं आया मुझे की पहले तो बस एक दिल धाडरकता था।
मगर अब इसे टूट हुए दिल का एक एक टुकड़रा धड़कता है,
तो तुम्हे अगर हो भी तो अफ़सोस ना करना की मैं बेकस रह गयी तुम बोसीदा ही छोड़ गए मुझे
क्योकि यकीन मनो यह तुम्हारे दिल तोड़ने का ही नतीजा है,
की मेरे टूटे हुए दिल की दरारे उम्मीदो से भरी हैं,
यह दरारे अब ज़र के जैसी चमकती हैं और बेहद खूबसूरत लगता है दिल पहले से ज्यादा
कई जयादा तो तुम्हारा दिल से शुक्रिया है के तुम दिल तोड़ गए।

अंधेरा (Andheraa)

नज़र (Nazar)

कोई तो जरुर होगा (Koi Toh Zaroor Hoga)

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Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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