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स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं

इस पोस्ट में Independence Day Poem in Hindi लेकर आये है, जिन्हें आप स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्हें प्रस्तुत कर सकते हैं या फिर 15 अगस्त पर कविता बोलने के लिए आपके लिए यह बहुत ही मददगार साबित होगी।

15 अगस्त का दिन हर भारतीय के बहुत महत्वपूर्ण और खास दिन है। 1947 में यानि 15 अगस्त 1947 में हमारे भारत देश के आजादी का सूर्य उदय हुआ था। इस दिन से हम हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में इसे मनाते आ रहे हैं।

Independence Day Poem in Hindi

हमने यहां पर बहुत ही फेमस स्वतंत्रता दिवस पर कविताए हिंदी में (15 august poem in hindi) शेयर की है। यह Desh Bhakti Kavita अपमे देशभक्ति का एक नया जोश पैदा कर देगी, अपने एक नई ऊर्जा का संचार होगा।

विषय सूची

स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं (Independence Day Poem in Hindi)

Poem on Independence Day in Hindi

आह्वान (अशफाकउल्ला खां)

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे
हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे
बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे
परवाह नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की।

है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे
दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे
मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।

-अशफाकउल्ला खां

मेरा देश (15 अगस्त पर छोटी सी कविता)

प्यारा प्यारा मेरा देश,
सबसे न्यारा मेरा देश।
दुनिया जिस पर गर्व करे,
ऐसा सितारा मेरा देश।
चांदी सोना मेरा देश,
सफ़ल सलोना मेरा देश।
गंगा जमुना की माला का,
फूलोँ वाला मेरा देश।
आगे जाए मेरा देश,
नित नए मुस्काएं मेरा देश।
इतिहासों में बढ़ चढ़ कर,
नाम लिखायें मेरा देश।

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स्वतंत्रता दिवस पर कविता इन हिंदी

नाला-ए-बुलबुल

दे दे मुझे तू ज़ालिम, मेरा ये आशियाना,
आरामगाह मेरी, मेरा बहिश्तख़ाना।

देकर मुझे भुलावा, घर-बार छीनकर तू,
उसको बना रहा है, मेरा ही कै़दख़ाना।

उसके ही खा के टुकड़े, बदख़्वाह बन गया तू,
मुफ़लिस समझ के जिसने, दिलवाया आबो-दाना।

मेहमां बना तू जिसका, जिससे पनाह पाई,
अब कर दिया उसी को, तूने यों बेठिकाना।

उसके ही बाग़ में तू, उसके कटा के बच्चे,
मुंसिफ़ भी बन के ख़ुद ही तू कर चुका बहाना।

दर्दे-जिगर से लेकिन चीखूंगी जब मैं हरदम,
गुलचीं सुनेगा मेरा पुर-दर्द यह फ़साना।

सोजे़-निहां की बिजली सर पर गिरेगी तेरे,
ज़ालिम! तू मर मिटेगा, बदलेगा यह ज़माना।

मुझको न इस तरह का, अब कुछ मलाल होगा,
गुलज़ार फिर बनेगा मोहन का कारख़ाना।

हम नन्हें-मुन्ने है बच्चे (वन्दना शर्मा)

हम नन्हें-मुन्ने हैं बच्चे,
आजादी का मतलब नहीं है समझते।

इस दिन पर स्कूल में तिरंगा है फहराते,
गाकर अपना राष्ट्रगान फिर हम,
तिरंगे का सम्मान है करते,
कुछ देशभक्ति की झांकियों से
दर्शकों को मोहित है करते
हम नन्हें-मुन्ने हैं बच्चे,
आजादी का अर्थ सिर्फ यही है समझते।

वक्ता अपने भाषणों में,
न जाने क्या-क्या है कहते,
उनके अन्तिम शब्दों पर,
बस हम तो ताली है बजाते।

हम नन्हें-मुन्ने है बच्चे,
आजादी का अर्थ सिर्फ इतना ही है समझते।

विद्यालय में सभा की समाप्ति पर,
गुलदाना है बाँटा जाता,
भारत माता की जय के साथ,
स्कूल का अवकाश है हो जाता,
शिक्षकों का डाँट का डर,
इस दिन न हमको है सताता,
छुट्टी के बाद पतंगबाजी का,
लुफ्त बहुत ही है आता,
हम नन्हें-मुन्ने हैं बच्चे,
बस इतना ही है समझते,
आजादी के अवसर पर हम,
खुल कर बहुत ही मस्ती है करते।।

।।भारत माता की जय।।

-वन्दना शर्मा

Read Also: स्वतंत्रता दिवस बधाई संदेश संस्कृत में

आजादी (राम प्रसाद बिस्मिल)

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं
असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं
रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं
यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं।

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?
कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं।

-राम प्रसाद बिस्मिल

स्वतंत्रता पर कविता हिंदी में

हमें मिली आज़ादी

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।
व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।
हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।

हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।
जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।
प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।
हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।

लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।
उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।
हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।
सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।

विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (श्यामलाल गुप्त पार्षद)

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा।।
सदा शक्ति बरसाने वाला
प्रेम सुधा सरसाने वाला
वीरों को हर्षाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा।।

स्वतंत्रता के भीषण रण में
लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में
काँपे शत्रु देखकर मन में
मिट जाये भय संकट सारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा।।

इस झंडे के नीचे निर्भय
हो स्वराज जनता का निश्चय
बोलो भारत माता की जय
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा।।

आओ प्यारे वीरों आओ
देश-जाति पर बलि-बलि जाओ
एक साथ सब मिलकर गाओ
प्यारा भारत देश हमारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा।।

इसकी शान न जाने पावे
चाहे जान भले ही जावे
विश्व-विजय करके दिखलावे
तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा।।

-श्यामलाल गुप्त पार्षद

15 अगस्त पर कविता हिंदी में

ऐ मेरे प्यारे वतन (प्रेम धवन)

ऐ मेरे प्यारे वतन,
ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझ पे दिल कुरबान।

तू ही मेरी आरजू़,
तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान।

तेरे दामन से जो आए
उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस जुबाँ को
जिसपे आए तेरा नाम।

सबसे प्यारी सुबह तेरी
सबसे रंगी तेरी शाम
तुझ पे दिल कुरबान।

माँ का दिल बनके कभी
सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं-सी बेटी
बन के याद आता है तू
जितना याद आता है मुझको
उतना तड़पाता है तू
तुझ पे दिल कुरबान।

छोड़ कर तेरी ज़मीं को
दूर आ पहुँचे हैं हम
फिर भी है ये ही तमन्ना
तेरे ज़र्रों की कसम।

हम जहाँ पैदा हुए उस
जगह पे ही निकले दम
तुझ पे दिल कुरबान।।

-प्रेम धवन

Short Poem on Independence Day in Hindi

लाल रक्त से धरा नहाई

लाल रक्त से धरा नहाई,
श्वेत नभ पर लालिमा छायी,
आजादी के नव उद्घोष पे,
सबने वीरो की गाथा गायी,

गाँधी, नेहरु, पटेल, सुभाष की,
ध्वनि चारो और है छायी,
भगत, राजगुरु और सुखदेव की
क़ुरबानी से आँखे भर आई,

ऐ भारत माता तुझसे अनोखी
और अद्भुत माँ न हमने पाय,
हमारे रगों में तेरे क़र्ज़ की,
एक एक बूँद समायी

माथे पर है बांधे कफ़न
और तेरी रक्षा की कसम है खायी,
सरहद पे खड़े रहकर
आजादी की रीत निभाई!

आज़ादी (azadi par kavita)

भागी परतंत्रता,
आयी स्वतंत्रता,
दिखलायी वीरता,
वीरों की ललकार,
देशभक्त की पुँकार,
आगे बढ़े तरुणाई
भारत को सजायेंगे
रक्षक हम आज़ादी के
गौरव को बढ़ायेंगे
रह्स्त्र गीत गाएंगे,
तिरंगा लहरायेंगे।

poem on independence day in hindi
आजादी के 75 वर्ष पर कविता

15 August Independence Day Poem in Hindi

अरुण यह मधुमय देश हमारा (जयशंकर प्रसाद)

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।

-जयशंकर प्रसाद

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आजादी का दीप (राम राज कुशवाहा)

14 अगस्त की शाम लिखा मैने
क्या आजादी का दीप जलेगा कभी
जो जले थे कभी वो भी बुझ गए
अगर सरकारें करती रहीं मक्कारी
तो न सुधरेगी जनता की बदहाली
ऐसे मे आजादी का दीप जलेगा कभी
कब तक लुटेगी बेटी की आबरु
क्या न मिलेंगी बेटी को आजादी
ऐसे मे आजादी का दीप जलेगा कभी
कब तक रहेगी अब बेरोजगारी
क्या अब न मिटेगी गरीबी कभी
ऐसे मे आजादी का दीप जलेगा कभी।।

-राम राज कुशवाहा

मेरा वतन वही है (इकबाल)

चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया
नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।

सारे जहां को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है
टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से
बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहां से
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।।

-इकबाल

15 अगस्त पर कविता

सारे जहाँ से अच्छा (मुहम्मद इक़बाल)

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा।।

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में,
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा।।

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का,
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा।।

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ,
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा।।

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा, वो दिन है याद तुझको,
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा।।

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।।

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा।।

-मुहम्मद इक़बाल

जब भारत आज़ाद हुआ

जब भारत आज़ाद हुआ, तब आजादी का राज हुआ था,
वीरों ने क़ुरबानी दी, तब भारत आज़ाद हुआ था..

भगत सिंह ने फांसी ली, इंदिरा का जनाज़ा उठा था,
इस मिटटी की खुशबू ऐसी, खून की आँधी बहती थी..

वतन का ज़ज्बा ऐसा, जो सबसे लड़ता जा रहा था,
लड़ते लड़ते जाने गई, तब भारत आज़ाद हुआ था..

फिरंगियों ने ये वतन छोड़ा, इस देश के रिश्तों को तोडा था,
फिर भारत को दो भागो में बाटा, एक हिस्सा हिन्दुस्तान और दूसरा पाकिस्तान कहलाया था..

सरहद नाम की रेखा खींची, जिसे कोई पार ना कर पाया था,
ना जाने कितनी माये रोइ, ना जाने कितने बच्चे भूके सोए थे ..

हम सब ने साथ रहकर, एक ऐसा समय भी काटा था,
विरो ने क़ुरबानी दी थी, तब भारत आज़ाद हुआ था.. 2…3…।।

ध्वजा वंदना (रामधारी सिंह ‘दिनकर’)

नमो, नमो, नमो।
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

नमो नगाधिराज – शृंग की विहारिणी!
नमो अनंत सौख्य – शक्ति – शील – धारिणी!
प्रणय – प्रसारिणी, नमो अरिष्ट – वारिणी!
नमो मनुष्य की शुभेषणा – प्रचारिणी!
नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो!

हम न किसी का चाहते तनिक अहित, अपकार।
प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार।
सत्य न्याय के हेतु, फहर-फहर ओ केतु
हम विचरेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु
पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो!

तार-तार में हैं गुँथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग!
दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग।
सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़
कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर
करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान,
अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिंदुस्तान!
प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

नौजवान आओ रे (बालकवि वैरागी)

नौजवान आओ रे, नौजवान गाओ रे।।
लो क़दम बढ़ाओ रे, लो क़दम मिलाओ रे।
ऐ वतन के नौजवान, इक चमन के बागवान।
एक साथ बढ़ चलो, मुश्किलों से लड़ चलो।
इस महान देश को नया बनाओ रे।।

नौजवान…
धर्म की दुहाइयाँ, प्रांत की जुदाइयाँ।
भाषा की लड़ाइयाँ, पाट दो ये खाइयाँ।
एक माँ के लाल, एक निशां उठाओ रे।।
नौजवान…

एक बनो नेक बनो, ख़ुद की भाग्य रेखा बनो।
सर्वोदय के तुम हो लाल, तुमसे यह जग निहाल।
शांति के लिए जहाँ को तुम जगाओ रे।।
नौजवान…

माँ निहारती तुम्हें, माँ पुकारती तुम्हें।
श्रम के गीत गाते जाओ, हँसते मुस्कराते जाओ।
कोटि कण्ठ एकता के गान गाओ रे।।
नौजवान…

-बालकवि वैरागी

जिस देश में गंगा बहती है (शैलेन्द्र)

होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफ़ाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है।।
मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है
ज़्यादा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गुज़ारा होता है
बच्चों के लिये जो धरती माँ, सदियों से सभी कुछ सहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है।।

कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं, इन्सान को कम पहचानते हैं
ये पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं
मिल जुल के रहो और प्यार करो, एक चीज़ यही जो रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है।।

जो जिससे मिला सिखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने
मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को नही पूजा हमने
अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है..।।

-शैलेन्द्र

देश मेरा यह

देश मेरा यह सबसे न्यारा
कितना सुंदर, कितना प्यारा।

पर्वत ऊँचे ऊँचे इसके
करते हैं रखवाली।

लंबी लंबी नदियाँ इसकी
फैलाएँ हरियाली।

देश मेरा यह सबसे न्यारा
कितना सुंदर, कितना प्यारा।

झर-झर करते निर्मल झरने
गीत ख़ुशी के गाएं।

सर सर करती हवा चले तो
पेड़ खड़े लहराए…

देश मेरा यह सबसे न्यारा
कितना सुंदर, कितना प्यारा।

बारी-बारी रितुए आतीं
अपनी छटा दिखलाती।

फल-फूलों से भरे बगीचे
चिड़ियाँ मीठे गीत सुनाती,

देश मेरा यह सबसे न्यारा
कितना सुंदर, कितना प्यारा।

कितना प्यारा देश हमारा
सबको है यह भाता,

इस धरती का बच्चा-बच्चा
गुन इसके है गाता,

देश मेरा यह सबसे न्यारा
कितना सुंदर, कितना प्यारा।

भारत माँ के अमर सपूतो

भारत माँ के अमर सपूतो, पथ पर आगे बढ़ते जाना
पर्वत, नदिया और समन्दर, हंस कर पार सभी कर जाना।।

तुममे हिमगिरी की ऊँचाई सागर जैसी गहराई है
लहरों की मस्ती और सूरज जैसी तरुनाई है तुममे।।

भगत सिंह, राणा प्रताप का बहता रक्त तुम्हारे तन में
गौतम, गाँधी, महावीर सा रहता सत्य तुम्हारे मन में।।

संकट आया जब धरती पर तुमने भीषण संग्राम किया
मार भगाया दुश्मन को फिर जग में अपना नाम किया।।

आने वाले नए विश्व में तुम भी कुछ करके दिखाना
भारत के उन्नत ललाट को जग में ऊँचा और उठाना।।

आजादी (15 अगस्त पर वीर रस की कविता)

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं
असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं
रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं
यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?
कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं

-राम प्रसाद बिस्मिल

प्यारे भारत देश (माखनलाल चतुर्वेदी)

प्यारेभारत देश
गगन-गगन तेरा यश फहरा
पवन-पवन तेरा बल गहरा
क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले
चरण-चरण संचरण सुनहरा
ओ ऋषियों के त्वेष
प्यारे भारत देश।।

वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी
प्रथम प्रभात किरण से हिम में जोत जागी
उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक
मानो आँसू आये बलि-महमानों तक
सुख कर जग के क्लेश
प्यारे भारत देश।।

तेरे पर्वत शिखर कि नभ को भू के मौन इशारे
तेरे वन जग उठे पवन से हरित इरादे प्यारे!
राम-कृष्ण के लीलालय में उठे बुद्ध की वाणी
काबा से कैलाश तलक उमड़ी कविता कल्याणी
बातें करे दिनेश
प्यारे भारत देश।।

जपी-तपी, संन्यासी, कर्षक कृष्ण रंग में डूबे
हम सब एक, अनेक रूप में, क्या उभरे क्या ऊबे
सजग एशिया की सीमा में रहता केद नहीं
काले गोरे रंग-बिरंगे हममें भेद नहीं
श्रम के भाग्य निवेश
प्यारे भारत देश।।

वह बज उठी बासुँरी यमुना तट से धीरे-धीरे
उठ आई यह भरत-मेदिनी, शीतल मन्द समीरे
बोल रहा इतिहास, देश सोये रहस्य है खोल रहा
जय प्रयत्न, जिन पर आन्दोलित-जग हँस-हँस जय बोल रहा,
जय-जय अमित अशेष
प्यारे भारत देश।।

-माखनलाल चतुर्वेदी

मेरे देश की आंखें (Independence Day Poem Hindi)

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे
छाया प्यार के छलावे बिछाती
मुकुर से उठाई हुई
मुस्कान मुस्कुराती
ये आंखें
नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं…

तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से
शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां
नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं…
वन डालियों के बीच से
चौंकी अनपहचानी
कभी झांकती हैं
वे आंखें,
मेरे देश की आंखें,
खेतों के पार
मेड़ की लीक धारे
क्षिति-रेखा को खोजती
सूनी कभी ताकती हैं
वे आंखें…

उसने
झुकी कमर सीधी की
माथे से पसीना पोछा
डलिया हाथ से छोड़ी
और उड़ी धूल के बादल के
बीच में से झलमलाते
जाड़ों की अमावस में से
मैले चांद-चेहरे सुकचाते
में टंकी थकी पलकें
उठाईं
और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं
मेरे देश की आंखें…

ध्वज-वंदना – स्वतंत्रता दिवस पर वीर रस की कविता

नमो, नमो, नमो।
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

नमो नगाधिराज – शृंग की विहारिणी!
नमो अनंत सौख्य – शक्ति – शील – धारिणी!
प्रणय – प्रसारिणी, नमो अरिष्ट – वारिणी!
नमो मनुष्य की शुभेषणा – प्रचारिणी!
नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो!

हम न किसी का चाहते तनिक अहित, अपकार।
प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार।
सत्य न्याय के हेतु, फहर-फहर ओ केतु
हम विचरेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु
पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो!

तार-तार में हैं गुँथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग!
दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग।
सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़
कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर
करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान,
अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिंदुस्तान!
प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

आजादी का मेला

लाल किले के आस-पास है आजादी का मेला
सबसे ऊपर नाच रहा है झंडा एक अकेला।।

कदम बढ़ाके सीना ताने फौजी आते – जाते
छोटे – बड़े बच्चे सारे चने कुरकुरे खाते।।

सभी कहते है आज के दिन आजाद हुआ था देश
सभी कहते है आज के दिन आजाद हुआ था देश।।

अभी कुछ तो समझ माँ आए आजादी और देश
हम तो छत से देख रहे हैं पतंगो के पेच।।

हमसे कोई पूछे बच्चों आजादी क्या होती हैं
हम कह देंगे उस दिन सबकी पूरी छुट्टी होती हैं।।

निष्कर्ष

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह स्वतंत्रता दिवस की कविताएँ (swatantrata diwas par kavita) पसंद आई है। इन्हें अपने दोस्तों और पहचान वालों के साथ शेयर जरूर करें।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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