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काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास और विध्वंस व निर्माण की कहानी

Kashi Vishwanath Temple History in Hindi: भारत में कई तीर्थ स्थान हैं, जहां पर लोग अपनी आस्था से जाते हैं। ऐसे तीर्थ स्थान भारत के कई अलग-अलग राज्यों में बने हुए है। भारत में बने उन तीर्थ स्थलों मे कई ऐसे है, जो गगन चूमती पहाड़ियों पर स्थित है तो कहीं जमीन पर ही अपनी उपस्थिति मात्र से लोगों का कल्याण करते हैं।

Kashi Vishwanath Temple History in Hindi
Kashi Vishwanath Temple History in Hindi

ऐसे तीर्थ स्थलों के बारे में देखे कई स्थल काफी प्रसिद्ध है। ऐसे ही तीर्थ स्थल में से एक तीर्थ स्थल के बारे में हम आपको इस लेख के माध्यम से बता रहे हैं। इस तीर्थ स्थल को हम काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जानते हैं। यहां पर आपको इससे संबंधित सम्पूर्ण जानकारी दी जाएगी। अतः आप इस लेख को अंत जरूर पढ़ें, जिससे आपको इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल सके।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास (Kashi Vishwanath Temple History in Hindi)

इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो इस मंदिर को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे मुख्य मंदिर माना जाता है। इस मंदिर को शिव व पार्वती के स्थान के रूप में भी जाना जाता है। यही वजह है कि आर्दिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही विश्व में सबसे प्रथम लिंग माना गया है।

यह मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण 1780 में माना जाता है और ऐसे भी स्त्रोत मिले है कि इस मंदिर का निर्माण अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। यह मंदिर उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी में गंगा नदी के किनारे स्थित है, जो कि एक पवित्र घाट माना जाता है। इस मंदिर की काफी मान्यताएं है।

यह हिन्दू धर्म में भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के लिए सबसे पहले नींव 11वी शताब्दी में रखी गई थी, जिस समय राजा हरिश्चन्द्र ने इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया था। प्राचीन समय में भारत पर कई विदेशी आक्रमण हुए थे, जिसका काफी असर भारत की धरोहर पर भी पड़ा था। इस मंदिर पर उसका प्रभाव दिखाई देता है।

इतिहास के स्रोतों में ऐसी भी घटना दर्ज की गई है कि 1194 में इस मंदिर को मोहम्मद गौरी ने तुड़वा दिया था। इसके बाद इस मंदिर को फिर बनाया था, पर 1447 मे इस मंदिर पर एक बार फिर आक्रमण हुआ और इसे तोड़ दिया गया था। इस मंदिर का आखिरी पुनर्निर्माण सन 1915 में करवाया था। जो वर्तमान स्वरूप हमें इस मंदिर का दिखाई देता है, वह 1915 में ही बना था।

काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण

पवित्र मंदिर काशी विश्वनाथ का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा सन 1780 ईस्वी में कराया गया था। यह मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बनारस उर्फ काशी शहर में गंगा तट के किनारे उपस्थित है। यह मंदिर बहुत ही पवित्र माना जाता है, काशी विश्वनाथ मंदिर के पास उपस्थित दशाश्वमेध घाट पर सूर्यास्त के समय गंगा घाट की आरती की जाती है। यह गंगा आरती पूरे भारत में बहुत प्रसिद्ध है।

महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया था, परंतु बाद में इस मंदिर को राजा रणजीत सिंह द्वारा भव्य रूप दिया गया। राजा रणजीत सिंह ने सन 1853 ईसवी में काशी विश्वनाथ मंदिर को 1000 किलोग्राम शुद्ध स्वर्ण की सहायता से बनवाया गया और आज आप इस मंदिर की पवित्रता का प्रसिद्धिया देख ही सकते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि काशी विश्वनाथ जैसे भव्य और पवित्र मंदिर को सन 1194 में मोहम्मद गौरी द्वारा जो अफगान का सेनापति था और बाद में चल कर गौरी साम्राज्य का सुल्तान बन गया, उसी मोहम्मद गौरी ने इस भव्य मंदिर का विनाश कर दिया।

अर्थात इस पवित्र और भव्य मंदिर को तोड़ दिया, लेकिन उसके बाद भी इस मंदिर को एक बार और बनाया गया। परंतु जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने 1447 में इस मंदिर को वापस से तोड़ दिया।

दूसरी बार मंदिर टूट जाने के बाद भी राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट द्वारा इस मंदिर को सन 1585 ईस्वी में पुनर्निर्माण कराया गया। परंतु दूसरे शासक कहां मानने वाले थे शाहजहां ने फिर से इस मंदिर को तोड़ने का आदेश 1632 ईसवी में दे दिया।

परंतु इस बार हिंदू धर्म के लोगों ने उनका जमकर विरोध किया और काशी विश्वनाथ मंदिर का केंद्रीय मंदिर नहीं तोड़ने दिया। परंतु शाहजहां की सेनाओं ने काशी के कुल 63 मंदिरों को तोड़ दिया था।

काशी विश्वनाथ मंदिर में जाने का अच्छा समय

काशी विश्वनाथ मंदिर में जाने के लिए अच्छा समय नवंबर से लेकर फरवरी तक होता है। क्योंकि यदि आप बरसात में जाएंगे तो वहां के नजारे का आनंद नहीं उठा पाएंगे क्योंकि बरसात के मौसम में वहां के नदी का जलस्तर बढ़ जाता है और सारी सीढ़ियां डूब जाती है, जिसके कारण से आप वहां के खूबसूरत नजारे का आनंद नहीं उठा पाएंगे।

काशी विश्वनाथ मंदिर का नजारा रात में भी बहुत खूबसूरत होता है, इसीलिए आपको नवंबर से लेकर फरवरी महीने के बीच में काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन करने के लिए या वाराणसी घूमने के लिए जाना चाहिए क्योंकि इस महीनों में वहां का नजारा बेहद खूबसूरत होता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में तथ्य

देश में सबसे मुख्य माने जाने वाले इस तीर्थ स्थान के बारे में मुख्य तथ्य:

  • घाट पर माना जाता है भगवान शिव का आर्शीवाद: हिन्दू धर्म में इस स्थान को सबसे पवित्र माना जाता है। इस स्थान को अंतिम संस्कार के लिए अच्छा माना जाता है। वैसे तो इस मुख्य घाट पर कई छोटे-मोटे घाट हैं, जिसमें मणिकर्णिका घाट भी एक है। ऐसा माना जाता है कि इस घाट को भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त है। इस घाट के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां पर चिता शांत नहीं रहती है, यहां पर हर समय पर किसी न किसी की चिता जलती रहती है।
  • इस स्थान को भगवान विष्णु का तपस्या स्थल माना जाता है: पुराणों में इस घाट के बारे में ऐसा भी बताया गया है कि इस घाट पर स्वयं भगवान विष्णु ने तपस्या की थी। इस स्थान पर भगवान विष्णु ने भगवान शिव से वरदान मांगा था कि सृष्टि के विनाश के समय काशी को नष्ट न किया जाए। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव और पार्वती ने विष्णु भगवान को यह वरदान दिया था।
  • घाट के नामकरण रहस्य: इस घाट के रहस्य के बारे में बात करें तो इस कुंड पर भगवान शिव और पार्वती ने स्नान किया था और इस कुण्ड को भारतीय धार्मिक इतिहास में मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता है। इस नाम के बारे में कहा जाता है कि पार्वती माता के नाहते समय उनका एक फूल कुंड में गिर गया था, जिसे भगवान महादेव ने ढूंढ निकाला था। तब से ही इस कुंड का नाम मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता है।
  • महाश्मशान के नाम से भी जाना जाता है यह घाट: हिन्दू ग्रंथों मे इस बात का भी जिक्र है कि इस घाट पर भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को जला कर उसका अंतिम संस्कार किया था तभी से इस घाट का नाम महाश्मशान पड़ा था। लोग मोक्ष की चाह में इस घाट पर आकर कामना भी करते है।
  • मणिकर्णिका घाट की यही है परम्परा: इस घाट की इस परंपरा के बारे में आप शायद ही जानते होंगे कि इस घाट पर हर साल जलते मुर्दो के बीच एक महोत्सव होता है। इस महोत्सव को हर साल चैत्र नवरात्रि के समय मनाया जाता है। इस महोत्सव में नगर वधुएं घुंघरू पहनकर हिस्सा लेती है, जहां पर वे डांस करती है। इस अनोखी परम्परा के कारण इस परम्परा को श्मशान नाथ महोत्सव के नाम से जाना जाता है।
  • नगर वधूओं की नाचने की प्रथा का शुभारम्भ: इस प्रथा के चलन का कारण है कि नगर वधूएं वर्तमान में जिस जगह पर वे है, इस स्थान पर वे नाचते हुए प्रार्थना करती है कि अगले जन्म में उन्हे ऐसा जीवन वापस प्राप्त न हो। इस प्रथा के बारे में कहा जाता है कि अगर वे नटराज को साक्षी मानकर नृत्य करती है तो उन्हें अगले जन्म में ऐसा जीवन न मिले, ऐसी वे प्रार्थनाएं करती है। इस प्रथा का चलन राजस्थान के कछवाहा वंश के राजा सवाई राजा मानसिंह के समय से माना जाता है तब से यह प्रथा चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि राजस्थान के इस शासक ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

यह भी पढ़े: केदारनाथ मंदिर का इतिहास और केदारनाथ कैसे जाएँ?

काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रति धारणा

हिंदू धर्म के अनुसार ऐसा माना जाता है कि प्रलय के समय भी इस मंदिर का लोप नहीं होता। सृष्टि जब परेशानी में होती है यानी प्रलय का समय आता है तो भगवान शिव अपने त्रिशूल से इस काशी को नीचे उतार देते हैं। इस भूमि को ही आदि सृष्टि के रूप में जाना जाता है।

इस स्थान के बारे में यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने अपनी तपस्या से इसी स्थान पर आशुतोष को प्रसन्न किया था और उसके बाद उनकी नाभि से कमल पर भगवान ब्रह्मा उत्पन्न हुए थे, जिन्होने सारे सृष्टि की रचना की थी।

ब्रह्मा की ने की थी सृष्टि की रचना

इस घाट के बारे में यह भी कहा जाता है या इस घाट के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी घाट से सृष्टि का निर्माण किया था। इसलिए भी इस घाट को सबसे पवित्र माना जाता है।

काशी विश्वनाथ घाट के संदर्भ में महिमा

इस घाट को सर्वतीर्थमयी और सर्वसंतापहारिण मोक्षदायिनी के नाम से भी जाना जाता है और ऐसा माना जाता है कि इस घाट पर प्राण त्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान ने भी इस घाट पर उपदेश दिये थे, ऐसी भी मान्यता के बारे में कहा जाता है। इस घाट के संदर्भ में आनंद-कानन में पांच प्रमुख मुख्य तीर्थ है, जो निम्न है:

  1. दशाश्वेमघ
  2. लोलार्ककुण्ड
  3. बिन्दुमाधव
  4. केशव
  5. मणिकर्णिका

एक प्रतिज्ञा के कारण कंकड

इस मंदिर के बारे मे कहा जाता है कि यह मंदिर मुगल काल में हिंदू आस्था का सबसे बड़ा और सबसे मुख्य केंद्र बन चुका था। अकबर के काल में टोडरमल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और उसके बाद राजा मानसिंह ने इस मंदिर में एक लाख शिव मंदिर बनाने की प्रतिज्ञा ली।

इस मंदिर में इतने सारे मंदिर बनने नामुमकिन थे, जिस वजह से इस मंदिर में रखे पत्थरों पर कई मंदिर खोद दिये और प्रतिज्ञा की संख्या पूरी की। इस कहानी के बाद से काशी, कंकड में विराजे शंकर के नाम जाना जाता है, यह मुहावरा काफी प्रसिद्ध है।

काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?

यदि आप वाराणसी शहर में रहते हैं और आप काशी विश्वनाथ मंदिर जाना चाहते हैं तो आपके लिए काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचना बहुत आसान है। यदि आप वाराणसी में नहीं है किसी और जिले में है फिर भी आप काशी विश्वनाथ मंदिर बड़ी आसानी से जा पाएंगे। इसके लिए आपको बस, ट्रेन, ऑटो, कैब या फिर अपने फोर व्हीलर या टू व्हीलर वाहन की सहायता से बड़ी आसानी से पहुंच पाएंगे।

यदि आप किसी और राज्य में है या फिर किसी और देश में है और आप काशी विश्वनाथ मंदिर को घूमना चाहते हैं, यहां के नजारे का आनंद उठाना चाहते है तो आप यहां ट्रेन या हवाई जहाज की सहायता से बड़ी ही आसानी से आ पाएंगे। हमने नीचे ट्रेन या फिर हवाई जहाज से काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने के बारे में बताया है, जो निम्नलिखित है।

रेल मार्ग से काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे हैं?

आमतौर पर वाराणसी में बहुत से रेलवे स्टेशन मौजूद है। ऐसे में वाराणसी सिटी स्टेशन काशी विश्वनाथ मंदिर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वही वाराणसी जंक्शन काशी विश्वनाथ मंदिर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

हवाई मार्ग के जरिए काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?

वाराणसी में लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा एयरपोर्ट मौजूद है, जो कि काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप कहीं से भी हवाई जहाज से यात्रा करके लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा एयरपोर्ट पर आ जाते हैं।

उसके बाद आपको एयरपोर्ट से बाहर निकलना है और अब आप किसी भी वाहन जैसे बस, कैब, ऑटो या अन्य किसी वाहन की सहायता से काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच पाएंगे और वहां दर्शन कर पाएंगे।

सड़क मार्ग से काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?

यदि आप वाराणसी में या फिर वाराणसी के आस पास वाले शहर में रहते हैं और आप काशी विश्वनाथ मंदिर जाना चाहते हैं तो आप बड़ी आसानी से जा पाएंगे। वाराणसी के पास ऐसे कुछ शहर या फिर गांव है, जहां पर बसे जाती हैं, उन्हीं बसों की सहायता से आप वाराणसी पहुंच जाएंगे। वाराणसी कैंट पहुंचने के बाद आपको ऑटो, कैब या अन्य किसी वाहन की सहायता से काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंच जाएंगे।

काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचने के बाद आपको बहुत ही पतली गलियां दिखेंगी। काशी विश्वनाथ के मुख्य मंदिर पर के पहुंचने के लिए आपको पतली गलियां दिखेंगी, इन्हीं पतली गलियों में से आपको जाना होगा तथा हम आपको बता दें कि इन पतली गलियों को विश्वनाथ गली के नाम से भी जाना जाता है।

कई हमलों का साक्षी रहा है यह मंदिर

यह मंदिर काफी प्राचीन है। इस मुगल काल में इस मंदिर पर कई हमले भी हुए है। 14वीं शताब्दी में इस मंदिर पर शर्की सुल्तानों की फौज ने आक्रमण किया था। इसके अलावा भी इस मंदिर पर कई हमले व आक्रमण हुए थे।

FAQ

काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ माना जाता है?

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के लिए सबसे पहले नींव 11वीं शताब्दी में रखी गई थी, जिस समय राजा हरिश्चन्द्र ने इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया था।

काशी विश्वनाथ मंदिर कहां पर आया हुआ है?

यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के किनारे पर आया हुआ है।

काशी विश्वनाथ क्यों प्रसिद्व है?

काशी विश्वनाथ हिन्दुओं की धार्मिक मान्यता के लिए प्रसिद्ध है।

काशी विश्वनाथ के दर्शन हेतु कौनसा महीना उचित है?

वैसे तो भगवान के दर्शन के लिए कोई भी महीना उचित ही है, परन्तु यहां पर चैत्र महीने में जाना उचित रहता है।

काशी विश्वनाथ किस नदी के किनारे बसा है?

काशी विश्वनाथ गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है।

निष्कर्ष

इस लेख में आपको काशी विश्वनाथ मंदिर की प्राचीनता के बारे में व इसके इतिहास के बारे में बताया गया है। उम्मीद करते है आपको इस लेख काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हिंदी में (Kashi Vishwanath Temple History in Hindi) में बताई गई जानकारी आपको पसंद आई होगी। आप अपने सुझाव हमें नीचे कमेंट करके बता सकते है।

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Sawai Singh
Sawai Singh
मेरा नाम सवाई सिंह हैं, मैंने दर्शनशास्त्र में एम.ए किया हैं। 2 वर्षों तक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी में काम करने के बाद अब फुल टाइम फ्रीलांसिंग कर रहा हूँ। मुझे घुमने फिरने के अलावा हिंदी कंटेंट लिखने का शौक है।

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