ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे बहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है कम बे-शक पर उन को मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे
ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है
ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्से काम की बातें, बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ.!
एहसान करो तो दुआओं में मेरी मौत मांगना, अब जी भर गया है जिंदगी से ! एक छोटे से सवाल पर इतनी ख़ामोशी क्यों… बस इतना ही तो पूछा था- ‘कभी वफा की किसी से’ … – जावेद अख़्तर
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नों*, ये भी जला डालो कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा नहीं लगता
तू तो मत कह हमें बुरा दुनियातू ने ढाला है और ढले हैं हम तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती !
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है – जावेद अख़्तर
तुमको देखा तो ये ख़याल आया ज़िन्दगी धूप तुम घना साया
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे हमने क्या खोया, हमने क्या पाया
जब जब दर्द का बादल छाया, जब ग़म का साया लहराया जब आंसू पलकों तक आया,जब यह तनहा दिल घबराया हमने दिल को यह समझाया, दिल आखिर तू क्यों रोता है, दुनिया में यूँ ही होता है.!
“ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए” – जावेद अख़्तर
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया
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एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
अब अगर ाओ तोह जाने के लिए मत आना, सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना मैंने पलकों पे तमन्नाएं सजा रखी हैं!
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है – जावेद अख़्तर
रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ ख़्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी
Javed Akhtar Shayari In Hindi
तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
दिल में उम्मीद की सौ शम्में जला रखी हैं ये हसीं शम्में बुझाने के लिए मत आना.!
तुम्हारी फुर्कत में जो गुजरता है, और फिर भी नहीं गुजरता, मैं वक्त कैसे बयाँ करूँ , वक्त और क्या है? कि वक्त बांगे जरस नहीं जो बता रहा है.!
वो मुफ़लिसों से कहता था , की दिन बदल भी सकते हैं ! – जावेद अख़्तर
धीरे धीरे वह पूरा गोला निगल के बाहर निकलती है रात, अपनी पीली सी जीभ खोले, गुलाम है वक्त गर्दिशों का, कि जैसे उसका गुलाम मैं हूँ !!
तुम अपने कस्बों में जाके देखो वहां भी अब शहर ही बसे हैं कि ढूंढते हो जो जिंदगी तुम वो जिंदगी अब कहीं नहीं है – जावेद अख़्तर
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उस के बंदों को देख कर कहिए हम को उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
अपनी वजहें-बर्बादी सुनिये तो मजे की है जिंदगी से यूं खेले जैसे दूसरे की है – जावेद अख़्तर
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
“इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं” – जावेद अख़्तर
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया – जावेद अख़्तर
Javed Akhtar Shayari In Hindi
कोई शिकवा न ग़म न कोई याद बैठे बैठे बस आँख भर आई – जावेद अख़्तर
किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं शेर की मैं तहज़ीब निभाऊं या अपने हालात लिखूं – जावेद अख़्तर
अगर दुसरो के जोर पर उड़कर दिखाओगे तो अपने पैरो से उड़ने की हुनर भूल जाओगे – जावेद अख़्तर
आज मैंने अपना फिर सौदा किया और फिर मैं दूर से देखा किया ज़िन्दगी भर मेरे काम आए असूल एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद सी खैर तुमने जो किया अच्छा किया – जावेद अख़्तर
सँवरना ही है तो किसी की नजरों में संवरिये, आईने में खुद का मिजाज नहीं पूछा करते – जावेद अख़्तर
एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं – जावेद अख़्तर
आप भी आए, हम को भी बुलाते रहिए दोस्ती ज़ुर्म नहीं, दोस्त बनाते रहिए – जावेद अख़्तर
“मैं भूल जाऊं अब यही मुनासिब है, मगर भुलाना भी चाहूं तोह किस तरह भुलाऊँ, की तुम तोह फिर भी हकीकत हो, कोई ख्वाब नहीं.” – जावेद अख़्तर
बहुत आसान है पहचान इसकी अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है – जावेद अख़्तर
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यही हालात इब्तदा से रहे लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे इन चिराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे उसके बंदों को देखकर कहिये हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे ज़िन्दगी की शराब माँगते हो हमको देखो कि पी के प्यासे रहे – जावेद अख़्तर
ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है – जावेद अख़्तर
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।