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भक्ति रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण

हिंदी व्याकरण में रस का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। रस एक महत्वपूर्ण इकाई है और रस को 9 भागों में विभाजित किया गया है। आज के लेख में हम भक्ति रस की परिभाषा उदाहरण सहित (Bhakti Ras in Hindi) विस्तारपूर्वक जानेंगे। यदि आप भक्ति रस की परिभाषा, भक्ति रस के उदाहरण के बारे में जानना चाहते है तो अंत तक जरुर पढ़े।

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Image : Bhakti Ras in Hindi

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भक्ति रस की परिभाषा (Bhakti Ras Ki Paribhasha)

काव्य में जब ईश्वर की महिमा का उल्लेख हो या उसे सुन कर जब ईश्वरीय समर्पण की अनुभूति हो तो उस अनुभूति को भक्ति रस कहते हैं।

जब काव्य में किसी ईश्वरीय चमत्कार या कृपा वर्णन के कारण जब रोम-रोम में ईश्वर से जुड़ाव व ईश्वर को समर्पित करने की अनुभूति या आनंद उपजता है तो यही आनंद भक्ति रस है।

भक्ति रस परिचय

भक्ति रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वात्सल्य रस, वीर रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा भयानक, वात्सल्य, शांत, करुण, भक्ति, हास्य रसों की उत्पत्ति इन्हीं प्रमुख चार रसों से हुई है।

भक्ति रस को ईश्वर प्रेम की अनुभूति के लिए जाना जाता है। भक्ति रस का स्थाई भाव है देव रति या भगवन विषयक रति। अर्थात काव्य सुनते या पढ़ते समय जब कहीं ईश्वरीय प्रेम भाव की अनुभूति होती है तो वहां भक्ति रस होता है।

‘भक्ति रस’ प्रधान काव्य की विषयवस्तु में देव महिमा, भगवन के प्रति समर्पण, देवताओं कि स्वरुप व वेश भूषा का वर्णन, भगवान् के पराक्रम व उनकी शक्ति का वर्णन आदि सम्मिलित होता है।

भक्ति रस के अवयव

स्थायी भाव: देव रति या ईश्वर विषयक रति।
आलंबन (विभाव): खुशबू ईश्वर, साधू-संत, पथ-प्रदर्शक, माता-पिता, गोरु आदि।
उद्दीपन (विभाव): अपूर्व ईश्वर का नाम, ईश्वर के स्वरुप का वर्णन, भजन, कीर्तन, ईश्वरीय, चमत्कार, ईश्वर की कृपा, ईश्वर की महिमा, ईश्वरीय साहित्य आदि।
अनुभाव: आँखें बंद कर लेना, आँखें नाम हो जाना, प्रसन्नता होना, समर्पित होना, देह को ढीला छोड़ देना आदि।
संचारी भाव: प्रसन्नता, निश्चिंतता, अलौकिकता से जुड़ाव आदि।

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भक्ति रस के उदाहरण (Bhakti Ras Ke Udaharan)

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी गंध अंग-अंग समाही।

राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे।
वाल्मिकी भए ब्रम्ह समाना।।

ना किछु किया न करि सक्या, ना करण जोग सरीर।
जो किछु किया सो हरि किया, ताथै भया कबीर कबीर।

राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।।

रामनाम गति, रामनाम गति, रामनाम गति अनुरागी।
ह्वै गए, हैं जे होहिंगे, तेई त्रिभुवन गनियत बड़भागी।।

मेरे तो गिरधर गोपाला, दूसरो ना कोई।
जाके सर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।

जब-जब होइ धरम की हानी।
बाहिं असुर अधम अभिमानी।।
तब-तब प्रभु धरि मनुज सरीरा।
हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।।

bhakti ras ki paribhasha
भक्ति रस की परिभाषा एवं उदाहरण

एक भरोसे एक बल, एक आस विश्वास,
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।

पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु,
किरपा करि अपनायो।
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो।

दुलहिनि गावहु मंगलचार
मोरे घर आए हो राजा राम भरतार ।।
तन रत करि मैं मन रत करिहौं पंच तत्व बाराती।
रामदेव मोरे पाहुन आए मैं जोवन मैमाती।।

जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी
फूटा कुम्भ, जल जलही समाया, इहे तथ्य कथ्यो ज्ञायनी।

जमकरि मुँह तरहरि पर्यो, इहि धरहरि चित लाउ।
विषय तृषा परिहरि अजौं, नरहरि के गुन गाउ।।

यह घर है प्रेम का खाला का घर नाहीं
सीस उतारी भुई धरो फिर पैठो घर माहि।

उलट नाम जपत जग जाना
वल्मीक भए ब्रह्म समाना।

राम तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ।।

एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।

राम सौं बड़ो है कौन मोसो कौन छोटो?
राम सौं खरो है कौन मोसो कौन खोटो?

हे गोविन्द हे गोपाल, हे दया निधान।

जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे।
कौने देव बराइ बिरद हित हटि-हठि अधम उधारे।
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया विवस बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम देखते हैं कि कैसे किसी भक्ति रस प्रधान काव्य की विषय वस्तु का केंद्रीय भाव ईश्वरीय प्रेम होता है, जिसको पढ़ कर या सुन कर एक श्रोता या पाठक ईश्वर के प्रति जुड़ाव महसूस करने लगता है तथा स्वयं को ईश्वरीय चरणों में पाता है। इस विषयवस्तु में ईश्वर से जुड़े किसी भी बिंदु का वर्णन हो सकता है।

उनके स्वरुप का वर्णन, उनके वेशभूषा का वर्णन, उनकी कृपा का वर्णन, उनके चमत्कार का वर्णन, उनकी महीमा का वर्णन, उन पर भक्त के आश्रय का वर्णन, उनके प्रति भक्त के समर्पण का वर्णन, ईश्वर के होते हुए एक भक्त की निश्चिंतता का वर्णन, ईश्वर से एक भक्त के जुड़ाव का वर्णन इत्यादि।

इस तरह के साहित्य में विषय वस्तु में ही जो चरित्र की मनः स्थिति रहती है, वही मनःस्थित श्रोता या पाठक भी महसूस करना है। अधिकांश भक्ति साहित्य श्री कृष्ण तथा श्री राम जी पर ही लिखे गए हैं तथा अधिकांश रचनाएं गोस्वामी तुलसीदास जी, सूरदास जी, मीरा बाई आदि के द्वारा ही लिखी गईं है।

इन साहित्यों में अधिकाशतः प्रभु की भक्त विशेष पर कृपा व प्रभु कि करुणा का ही वर्णन मिलता ही है। साथ ही श्रोता व पाठक को भी उस चरित्र विशेष की भक्ति यात्रा में साथ लेता है, जो पाठक व श्रोता को चरित्र की भक्ति का ज्ञान तो करता।

FAQ

भक्ति रस किसे कहते हैं?

काव्य में जब ईश्वर की महिमा का उल्लेख हो या उसे सुन कर जब ईश्वरीय समर्पण की अनुभूति हो तो उस अनुभूति को भक्ति रस कहते हैं।

भक्ति रस का उदाहरण लिखिए?

हे गोविन्द हे गोपाल, हे दया निधान।

भक्ति रस का स्थाई भाव क्या है?

भक्ति रस का स्थाई भाव देव रति या ईश्वर विषयक रति है।

अंतिम शब्द

हर परीक्षा में भक्ति रस के बारे में मुख्य रूप से पूछा जाता है। प्रश्न भक्ति रस किसे कहते हैं (Bhakti Ras Kise Kahate Hain), भक्ति रस का उदाहरण बताइए (Bhakti Ras Ka Udaharan), भक्ति रस के 10 उदाहरण लिखिए, भक्ति रस का स्थाई भाव क्या है आदि प्रकार से भी पूछे जा सकते हैं।

इस लेख में भक्ति रस की परिभाषा उदाहरण सहित (Bhakti Ras in Hindi) विस्तारपूर्वक जानी है। लेख पसंद आये तो शेयर जरुर करें। यदि आपके मन में इस आर्टिकल को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है, तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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