नमस्कार दोस्तों, आज हम इस पोस्ट में महान हिन्दू कवि और संत दर्जा प्राप्त, रामचरितमानस जैसे ग्रन्थ के रचियता गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas ka Jivan Parichay) विस्तार से बताने जा रहे हैं। यदि आप संत तुलसीदास के बारे में पूरी जानकारी पाना चाहते है तो हमारे इस लेख “Tulsidas ki Jivni” को अंत तक जरूर पढ़ें। इस लेख के अंत में हमने तुलसीदास जी के जीवन पर बना एक विडियो भी संलग्न किया उसे जरूर देखें।

तुलसीदास जी का मानना है कि उन्होंने श्री राम ने दिव्य दर्शन दिए है और उनको हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त है। हनुमान जी के आशीर्वाद से ही उन्होंने रामचरितमानस की रचना की है और हनुमान जी ने भगवान राम के बारे में बताया था।
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विषय सूची
तुलसीदास का जीवन परिचय (Biography of Tulsidas in Hindi)
नाम | गोस्वामी तुलसी दास |
उपनाम | रामबोला |
जन्म | 1511 ई. (संवत् 1589), राजापुर, चित्रकूट जिला |
मृत्यु | 1623 ई. (संवत् 1680),112 वर्ष में, अस्सी घाट |
शिक्षा | वेद, पुराण एवं उपनिषदों की शिक्षा |
माता-पिता | माता-हुलसी पिता-आत्मा राम दुबे |
पत्नी | रत्नावली |
पुत्र | ज्ञात नहीं |
धर्म | हिन्दू |
गुरू | नर हरिदास |
पेशा | संत और कवि |
प्रसिद्ध रचनाएं | रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक आदि |
बचपन और माता-पिता
गोस्वामी तुलसी दास जी के जन्म के बारे अभी मतभेद है। लेकिन कई विद्वानों का मानना है तुलसीदास का जन्म 1511 ई. (संवत् 1589) को उतरप्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर में हुआ था। इनके पिताजी का नाम आत्मा राम दुबे और माता जी का नाम हुलसी था। तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था।
जब Tulsidas ka Janm हुआ तब रोने की बजाय इनके मुख से सबसे पहले राम का नाम ही निकला था। इसलिए इनका बचपन से ही नाम रामबोला रख लिया गया। इनका जन्म 32 दांतों के साथ ही हुआ था। हर नवजात शिशु अपनी की कोख में 9 महीने तक रहता है लेकिन तुलसीदास जी 12 महीने तक अपनी मां की कोख में रहे।
तुलसी दास जी के जीवन को लेकर एक दोहा प्रसिद्ध है, जो यहां दे रहे हैं:
पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर।।
कई विद्वान यह दावा करते हैं कि वो पराशर गोत्र के एक सारूपरेण ब्राहमण थे और कुछ का मानना है कि ये कन्याकुब्जा या संध्याय ब्राहमण थे।
तुलसीदास जी के जन्म ज्योतिषियों ने बताया कि उनके जन्म का समय अशुभ है। जन्म के दूसरे ही दिन उनकी माता जी इस दुनिया चली गई और इनके पिता जी ने सन्यास ग्रहण कर लिया। लेकिन उनके पिताजी ने सन्यास धारण करने से पहले उन्होंने तुलसी दास जी को चुनिया दासी को संभाल दिया था। 5 वर्षों तक लालन-पोषण करने के बाद दासी चुनिया भी इस दुनिया से चल बसी। चुनिया के निधन के बाद तुलसीदास जी अनाथ हो गये।
तुलसीदास के गुरू (Tulsidas ke Guru)
जन्म के दूसरे दिन माता का छोड़ जाना, पिता का सन्यास ले लेना और फिर 5 वर्ष बाद लालन-पोषण करने वाली दासी चुनिया का भी चले जाने से तुलसीदास जी अकेल पड़ गये थे। तब वहां के रामानंद के मठवासी आदेश पर करने वाले नर हरिदास ने इनको अपना लिया और रामबोला को अपने अयोध्या आश्रम में रहने दे दिया।
तुलसीदास जी ने संस्कार के समय बिना कंठस्थ किए गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया। ऐसा देखकर वहां के सभी लोग अचंभित हो गये। तुलसीदास जी बचपन से तेज बुद्धि वाले थे, जो भी एक बार पढ़ लेते थे वो उनका कंठस्थ हो जाता था।
वेदों और साहित्य का ज्ञान (Tulsidas ka Sahityik Parichay)
तुलसीदास जी जन्म से ही तेज बुद्धि और कुशाग्र थे। वो जो भी पढ़ लेते थे, उनको पूरी तरह से याद हो जाता था। वाराणसी में संत तुलसीदास जी ने संस्कृत व्याकरण सहित 4 वेदों का ज्ञान लिया और 6 वेदांग का भी अध्ययन किया।
इन्होंने साहित्य और शास्त्रों के विद्वान और प्रसिद्ध गुरू शेषा सनातन से हिंदी साहित्य और दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया। इन्होने अपनी पढ़ाई 16 से 17 वर्ष तक जारी के बाद वापस राजापुर लौट आये।
तुलसीदास का विवाह (Tulsidas in Hindi)
जो भी ज्ञान तुलसीदास जी के पास था वो हमेशा अपने दोहों और अपनी कथाओं के माध्यम से सुनाते थे और लोगों को भक्ति करने के लिए प्रेरित किया करते थे। एक बार की बात जब तुलसीदास जी हमेशा की तरह लोगों को अपनी कथा और दोहे सुना रहे थे। तभी वहां पर मौजूद पंडित दीन बंधु पाठक उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पुत्री रत्नावली से विवाह तुलसीदास जी से करवा दिया।
रत्नावली से उनका विवाह 29 वर्ष की आयु में राजापुर के निकट स्थित युमना नदी के किनारे हुआ था। उनका विवाह तो हो गया था परन्तु गौना नहीं हुआ था (गौना एक विवाह के बाद की रस्म है, जिसमें वर अपने ससुराल जाता है और कुछ रीती रिवाज को पूरा करके अपनी वधु को साथ लेकर आता है)।
गौना नहीं होने के कारण तुलसीदास जी काशी जाकर वेद वेदांग के अध्ययन में लग गये। वेद वेदांग का अध्ययन करते समय एक दिन अचानक उनको अपनी वधु रत्नावली याद आने लगी। तभी उन्होंने अपनी गुरू से आज्ञा से लेकर वे राजापुर आ गये।
रत्नावली अपने मायके में थी क्योंकि उनका गौना नहीं किया हुआ था। तुलसीदास जी काली अंधेरी रात में रत्नावली से मिलने के लिए निकल गये और उस समय बहुत तेज बारिश भी हो रही थी। तेज बारिश के कारण यमुना नदी पुरे उफान पर थी, जिसमें तुलसी दास जी को एक लड़की का लट्ठा दिखाई दिया। उसके सहारे उन्होंने उफनती नदी को पार किया और रत्नावली के घर तक पहुँच गये।
रत्नावली के घर के पास एक बड़े से पेड़ पर एक रस्सी लटक रही थी, उसके सहारे वो रत्नावली के कक्ष तक पहुँच गये। तुलसीदास जी रत्नावली से मिलने के लिए इतने उत्सुक थे कि उनको यमुना नदी में एक लाश लड़की का लट्ठे के रूप में और पेड़ पर लटक रहा सांप एक रस्सी के रूप में दिखाई दिए।
जब रत्नावली ने उनको देखा तो वह भयभीत गई और उनको कहा कि वापस चले जाए। क्योंकि गौना नहीं होने के कारण वह नहीं मिल सकती, इसके कारण उनकी लोक-लज्जा पर सवाल उठेंगे।
रत्नावली ने तुलसीदास को एक दोहे के माध्यम से शिक्षा दी यह दोहा इस प्रकार है:
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।
इस दोहे के माध्यम से रत्नावली ने तुलसीदास जी को समझाया कि आप हाड़ मांस के शरीर से जितना प्रेम करते हैं, यदि उसका आधा भी यदि भगवान से कर लें तो वह भवसागर से पार हो जायेंगे।
इस दोहे का तुलसीदास जी पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपना पारिवारिक जीवन त्याग दिया और गाँव आ गये। वहां पर साधू बनकर लोगों को श्री राम की कथा सुनाने लगे और श्री राम की भक्ति में लीन हो गये।
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तुलसीदास जी तीर्थयात्रा
Tulsidas ka Jivan Parichay
तुलसीदास जी ने सम्पूर्ण भारत में तीर्थ यात्रा की थी। तुलसीदास जी द्वारका, पुरी, बद्रीनाथ, हिमालय और रामेश्वर में लोगों के बीच में जाते और वहां के लोगों के बीच में श्री राम का गुणगान करते।
अपना अधिकतर समय उन्होंने काशी, अयोध्या और चित्रकूट में ही व्यतीत किया। परन्तु अपने आखिरी समय में वो काशी आ गये।
हनुमानजी का आशिर्वाद
Tulsidas ka Jivan Parichay
वो अब श्री राम की भक्ति में लीन हो गये थे। हर समय उठते बैठते श्री राम का नाम ही लिया करते थे। चित्रकूट के अस्सी घाट पर उन्होंने 1580ई. अपने में महाकाव्य रामचरितमानस लिखना प्रारम्भ किया। तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ को 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन में पूर्ण किया।
कहा जाता है कि रामचरितमानस महाग्रंथ लिखने में उनको हनुमान जी का मार्गदर्शन मिला था। तुलसीदास जी अपनी कई रचनाओं में यह उल्लेख किया है कि उनको हनुमान जी की मुलाकात कई बार हुई है।
वाराणसी में तुलसीदास जी ने हनुमान जी के लिए संकटमोचन मंदिर भी स्थापित किया था। तुलसीदास जी के अनुसार उन्हें हनुमान जी आशीर्वाद दिया, जिसके कारण ही श्री राम के दर्शन प्राप्त हुए है। तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में हनुमान जी के दर्शन के अलावा पार्वती और शिव के दर्शन का उल्लेख किया है।
श्री राम के दर्शन
Tulsidas ka Jivan Parichay
तुलसीदास को श्री राम की प्रबल और अटूट भक्ति व हनुमान जी आशीर्वाद से श्री राम के दर्शन चित्रकूट के अस्सी घाट पर हुए।
एक बार तुलसीदास जी कदमगिरी पर्वत की परिक्रमा करने के लिए निकले तो उन्होंने एक घोड़े की पीठ पर दो राजकुमार बैठे देखा। लेकिन उस समय वो उनकी पहचान नहीं कर सके। लेकिन थोड़े ही समय के बाद उनको पता लगा कि वो हनुमान जी की पीठ राम-लक्ष्मण थे और वो दुखी हो गये। इन सभी घटनाओं का उल्लेख उन्होंने अपनी रचना गीतावली में किया है।
फिर अगली सुबह जब तुलसी दास जी चंदन घिस रहे थे तो श्री राम और लक्ष्मण ने उनको फिर दर्शन दिए उनको कहा कि वे तिलक करें। लेकिन तुलसीदास जी उनके दिव्य दर्शन में अभिभूत हो चुके थे, इस कारण वो तिलक करना भूल गये। फिर भगवान राम ने खुद अपने हाथों से तुलसीदास के माथे पर तिलक लगाया।
तुलसीदास जी के जीवन का ये सुखद पल था इस घटना के लिए ये दोहा बहुत प्रसिद्ध है:
चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।
चित्रकूट में हुए इस चमत्कार के बारे में विनयपत्रिका में बताया है और वहां पर श्री राम का धन्यवाद भी किया।
तुलसीदास की मृत्यु (Death of Tulsidas)
कहा जाता है कि तुलसीदास का निधन किसी बीमारी के चलते हुआ था और इनके जीवन के अंतिम क्षण अस्सी घाट पर गुजारे थे। ये भी कहा जाता है कि उन्होंने अपनी अंतिम समय में अपनी रचना विनय-पत्रिका लिखी थी और इसी रचना पर भगवान श्री राम ने अपने हस्ताक्षर किये थे।
विनय पत्रिका को पूरा लिखने के बाद 1623 ई. (संवत् 1680) में तुलसीदास जी का देवलोक गमन हो गया। तुलसीदास जी ने अपनी जीवन की यात्रा के 112 वर्ष लिए।
Tulsi das Jivan Parichay in Hindi Video
तुलसीदास जी की कुछ रोचक जानकारियां (Information About Tulsidas in Hindi)
- तुलसीदास जी अपने 32 दांतों के साथ ही जन्मे थे।
- उनके मुंह से सबसे पहला और आखिरी शब्द राम था।
- उन्होंने रामनवमी (यानि त्रेतायुग के आधार पर राम-जन्म) के दिन प्रातःकाल रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की।
- 1 अक्टूबर 1952 को भारत सरकार द्वारा गोस्वामी तुलसीदास को महान कवि के रूप में सम्मानित करते हुए, एक डाक टिकट जारी की गई।
साहित्यिक कार्य (Tulsidas Information in Hindi)
तुलसीदास का जीवन परिचय Class 10
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 12 रचनाएँ (6 छोटी और 6 मुख्य) बहुत प्रसिद्ध है भाषाओं के आधार पर 2 समूहों में विभाजित है।
अवधी
- रामचरितमानस
- रामलला नहछू
- बरवाई रामयण
- पार्वती मंगल
- जानकी मंगल
- रामाज्ञा प्रशन
ब्रज
- कृष्णा गीतावली
- गीतावली
- साहित्य रत्न
- दोहावली
- वैराग्य संदीपनी
- विनय पत्रिका
ये 12 रचनाएँ तो मशहूर है ही इसके साथ ही 4 रचनाएँ भी बहुत मशहूर है जिनमें हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक, हनुमान बहुक और तुलसी सतसाई है।
तुलसीदास की रचनाएँ (Tulsidas Ki Rachnaye)
रामचरितमानस | रामललानहछू | वैराग्य-संदीपनी | बरवै रामायण |
कलिधर्माधर्म निरुपण | कवित्त रामायण | छप्पय रामायण | कुंडलिया रामायण |
छंदावली रामायण | सतसई | जानकी-मंगल | पार्वती-मंगल |
श्रीकृष्ण-गीतावली | झूलना | रोला रामायण | राम शलाका |
कवितावली | दोहावली | रामाज्ञाप्रश्न | गीतावली |
विनयपत्रिका | संकट मोचन | हनुमान चालीसा | करखा रामायण |
तुलसीदास जी से जुड़े कुछ प्रशन
तुलसीदास के गुरु नर हरिदास थे।
तुलसीदास का जन्म राजापुर, चित्रकूट जिला,उतरप्रदेश में हुआ था।
तुलसीदास के पिता नाम आत्मा राम दुबे था।
तुलसीदास की मृत्यु 1623 ई. (संवत् 1680) में 112 वर्ष में हुई थी।
कई विद्वान यह दावा करते हैं कि वो पराशर गोत्र के एक सारूपरेण ब्राहमण थे और कुछ का मानना है कि ये कन्याकुब्जा या संध्याय ब्राहमण थे।
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के महान कवि थे।
तुलसीदास की पत्नी रत्नावली थी।
तुलसीदास ने अवधी एवं ब्रजभाषा दोनों में काव्य रचना की।
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very nice