Zulf Shayari in Hindi
Zulf Shayari in Hindi
जुल्फों पर शायरी |Zulf Shayari in Hindi
तेरी जुल्फे इशारो में कह गयी मुझे,
मैं भी शामिल थी तुझे बर्बाद करने में.
जुल्फ खुली रखती हु मै,
दिल बाँधने के लिए।
खोल दे इन काली जुल्फों को ,
बरसात आये हुए भी
एक अरसा सा लगने लगा है !!
कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जाना,
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे।
खुदखुशी करने से
मुझे कोई परहेज नही है,
बस शत॔ इतनी है
कि फंदा तेरी जुल्फों का हो।
बरसी थी काली घटा जब से,
उसके ज़ुल्फ़ की घटा की बादल छाई !!
दिल उसकी तार-ए-ज़ुल्फ़ में उलझ गया,
सुलझेगा किस तरह से ये बिस्तार है ग़ज़ब।
हमारे दिल की हालत
गेसू-ए-महबूब जाने है,
परेशान की परेशानी
को परेशान खूब जाने है.
रूठ कर तेरी जुल्फों
से चाँद भी सहम गया,
दागदार तो था
ही बादलों में भी छिप गया।
चेहरा तेरा चाँद सा रौशन,
और ज़ुल्फ़ बादलों का साया !!
बिजलिओं ने सीख ली
उनके तबस्सुम की अदा,
रंग जुल्फों का चुरा
लिया घटा बरसात की।
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तुझे देखेंगे सितारे तो ज़िया मांगेंगे,
प्यासे तेरी जुल्फों से घटा मांगेंगे.
यूँ मिलकर सनम तुमसे
रोने को जी चाहता है,
तेरी जुल्फों के साए में
सोने को जी चाहता है।”
ज़ुल्फ़ तेरी एक घनेरी शाम
की बदल है,
जो हर शाम रंगीन कर दे, ऐसी
वो तेरी आँचल है !!
इधर गेसू उधर रु-ए-मुनव्वर है तसव्वुर में,
कहाँ ये शाम आएगी कहाँ ऐसी सहर होगी।
झुकी नज़रें और ज़ुल्फ़ की घटा छाई,
बरसा है सावन और फिर उनकी याद आई !!
****
कम से कम अपने बाल तो
बाँध लिया करो,
कमबख्त बेवजह मौसम
बदल दिया करते हैं।
तेरी जुल्फों का वो Clip बना जाऊं,
जुल्फों से हटू तो तेरे लबो में दब जाऊं.
तेरी आगोश में आके,
मैं दुनिया भूल जाता हूँ,
तेरी जुल्फों के साये में,
सुकूँ की नींद पाता हूँ।
जुल्फें तुम्हारी परेशान करती है अक्सर,
उठती है लहरें समंदर की तरह !!
Zulf Shayari in Hindi
उसके रुख़्सार पर कहाँ है ज़ुल्फ़,
शोला-ए-हुस्न का धुआँ है ज़ुल्फ़।
आंसमा पे सरकता चाँद,
और कुछ रातें थी सुहानी,
तेरी जुल्फों से गुजरती हुई उंगलियाँ,
और तेरी साँसे थी जैसे मीठा पानी।
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उन्होंने ज़ुल्फें क्या झटकी अपनी,
सारे शहर में बारिश हो गई!!
बिखरी हुई ज़ुल्फ़ इशारों में कह गई,
मैं भी शरीक हूँ तेरे हाल-ए-तबाह में।
इतनी आजादी अच्छी नहीं लगती,
आपने अपनी जुल्फ़ों
को बहुत छूट दे रखी है.
हर खुशी माना है ,सनम तेरी
जुल्फों के साये में है, वो मज़ा मगर है
कहाँ, जो दिल के लुट जाने में।
“ज़ुल्फ़ पर शेर”
बहुत चालाकी से तेरे गालों को चूम लेती हैं;
इन ज़ुल्फ़ों को भी तूने सिर पर चढ़ा रखा हैं !!
तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई,
नम आँखों से पलक मुझसे गिराई न गई।
अंदाजा होता अगर
तुझे मेरी उलझनों का,
तो तू इतने आराम से
अपनी ज़ुल्फें न सुलझा रही होती !!
बड़े गुस्ताख हैं
झुक कर तेरा मुँह चूम लेते हैं,
बहुत सा तू ने
ज़ालिम गेसुओं को सर चड़ाया है।
इतनी ठंडक मिलती है तेरी
ज़ुल्फ़ों के साये में कि,
जी चाहता है की पूरी गर्मी तेरे
ज़ुल्फ़ों के छांव में गुज़ारूं!!
गम-ए-ज़माना तेरी ज़ुल्मतें ही क्या कम थी,
के बढ़ चले हैं अब इन गेसुओं के भी साए।
देख लेते जो मेरे दिल की परेशानी को,
आप बैठे हुए ज़ुल्फ़ें न सँवारा करते.
तेरी ज़ुल्फ़ क्या संवारी,
मेरी किस्मत निखर गयी,
उलझने तमाम मेरी,
दो लट में संवर गयी।
देख लेते जो आप मेरे
दिल की परेशानी को,
बैठे हुए जुल्फें न संवारा करते।
****
पहली मुलाक़ात थी और हम दोनों बेबस,
वो ज़ुल्फें सँभालती रही और मै खुद को.
चेहरे पे मेरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन,
क्यों रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन।
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रात की मदहोशी को तो जैसे तैसे
संभाला था मैंने,
सुबह उन्होंने ज़ुल्फ़ झटक के फिर से
बेहोश कर दिया !!
तेरे जुल्फों के अंधियारे
में अपना शहर भूल आया,
मैं वही शख्स हूँ
जो तेरे दिल में अपना घर भूल आया।
सबा आती है तो ज़ुल्फें सँवरती है उसकी,
गुलाब से चहरे का मुंह धो जाती है शबनम.
उलझा हूँ
मैं तेरे ज़ुल्फ़ों के साये तले,
सुलझ जाऊंगा मैं
फिर जब तू लगा लेगी मुझे गले !!
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हाथ टूटे मैंने गर छेड़ी
हो जुल्फें आप की,
आप के सर की
कसम बाद-ए-सबा थी मैं न था।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के साये में शाम कर लूंगा,
सफर इस उम्र का पल में तमाम कर लूंगा।
चाँद से रौशन जैसी तेरे चेहरे
को देख के मैं सुलझ जाऊ,
एक दफ़ा तु लगा ले गले मुझे,
दिल चाहता है की तेरे ज़ुल्फ़ों मे उलझ जाऊ!!
सुन छोरे मैं जु़ल्फें खुली रखती हूं,
तेरा दिल बांधने के लिए.
जूल्फों से यूँ चेहरे को छुपाते क्यूँ हो,
शर्माते हो तो सामने आते क्यूँ हो,
कर लो मेरी तरह इकरार तुम भी अब,
प्यार करते हो तो छुपाते क्यूँ हो।
झटक कर ज़ुल्फ़ों को कर देती हो
पानियों को आज़ाद,
ये आदत है या रिझाने की अदा
है तुम्हारी !!
मेरे जूनून को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख,
रस्ते में छाव पा के मुसाफिर ठहर न जाये।
ज़ुल्फें हटाते ही उनके रुख से,
चाँद हंसता है रात ढलती है.
कल मिला जो वक्त तो
जुल्फें तेरी सुलझाऊंगा,
आज उलझा हूँ
जरा मैं वक्त के सुलझाने में।
संवारों न ऐसे अपने ज़ुल्फ़ों को,
गिरे जब तुम्हारे चेहरे पर तो
धड़क उठता है मेरा दिल !!
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तेरी जुल्फों की छाँव के
भी तजुर्बे अजब रहे,
जब-जब किया तूने साया,
झुलसता ही रहा हूँ।
लिपट के तेरी जुल्फों में बादलों में खो जाना,
फिर से तेरी आंखों में डूब के पार हो जाना।
शायद इश्क़ हो गई है मेरी ज़िन्दगी
को तुम्हारे ज़ुल्फो से,
चाहे जितना भी मै इसे संभालू,
ये उलझती ही जाती है !!
उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में,
लो आप अपने जाल में सय्याद गया।
****
बिखरने दे तेरी खुशबू महक जाने दे
फिजाओं को, खुलके बिखरने दे
जुल्फों को, बरस जाने दे घटाओं को।
क्या खूब नजारा होता तुझे सोते
हुए देखने को,
सँवारत मैं तेरे ज़ुल्फ़ों को और
निहारता तेरे चेहरे को !!
छेड़ आती हैं
कभी लब को कभी रुक्सारों को,
तुमने जुल्फों को बहुत सर चड़ा रखा है।
तेरे रूखसार पर बिखरी जुल्फों की घटा,
मैं क्या कहूँ ऐ चाँद हाय तेरी हर अदा.
कोई हवा का झोंका,
जब तेरी जुल्फों को बिखराता है,
कसम खुदा की,
तू बड़ा ही कातिल नजर आता है।
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तेरे ज़ुल्फ़ों की तरह है काले बादल,
आग लगाना तो बखूबी आता है,
लेकिन बुझाना नही आता!!
पुकारतीं मुझे जब तल्खियाँ ज़माने की,
तेरे लबों से हालावत के घूट पे लेता,
हयात चीखती फिरती बढ़ाना-सर और मैं,
घनेरी जुल्फों के साए में छुप के जी लेता।
तेरी जुल्फों की ज़ंजीर
मिल जाती तो अच्छा था,
तेरे लबों की वो लकीर
मिल जाती तो अच्छा था।
अदा है मेरे महबूब को ज़ुल्फ
को सँवारने की,
चाँद से खूबसूरत है वो,
क्या ज़रूरत है इसे और निखारने की !!
हम हुए तुम हुए के मीर हुए,
उनकी जुल्फों के सभी असीर हुए।
तेरी जुल्फों के बिखरने का सबब है कोई,
आँख कहती है तेरे दिल में तलब है कोई।
जब भी मुँह ढँक लेता हूँ
तेरी जुल्फों की छाँव में,
जाने कितने गीत उतर आते हैं
मेरे मन के गाँव में।
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मेरी उंगलियाँ फिर तेरी जुल्फों से
गुज़र जायें, जब तू पलकें झुकाकर
फिर मेरी ज़िन्दगी में चली आये।
बहुत ही शरारती हैं
ये तेरी आवारा जुल्फें,
हवा का बहाना बनाकर
तेरे गालो को चूम लेती हैं.
फिर न सिमटेगी मोहब्बत
जो बिखर जायेगी,
ज़िंदगी ज़ुल्फ़ नहीं जो फिर संवर जायेगी।
बहते समुंदर सी तेरी ज़ुल्फ़ें जब लहराएं,
आशिकों के सीने से दिल चुरा ले जाएं.
बिजलियों ने सीख ली
उनके तबस्सुम की अदा,
रंग ज़ुल्फ़ों की चुरा लाई घटा बरसात की।
कुछ लम्हें उसके साथ ऐसे भी बिताए थे,
उसकी ज़ुल्फ़ों में अपने हाथों से फूल लगाए थे.
सर-ए-आम यूँ ही जुल्फ संवारा न कीजिये,
बे-मौत हमको हुस्न से मारा न कीजिये ।
****
ये उड़ी उड़ी सी रंगत
ये लुटी लुटी सी जु़ल्फ़ें,
तेरी हालत बता रही है
ज़िंदगी का फ़साना।
लहराती ज़ुल्फें कजरारे नयन और
ये रसीले होंठ, बस कत्ल बाकी है
औज़ार तो सब पूरे हैं।
बड़ी बेअदब हैं
जुल्फें आपकी हर
वो हिस्सा चूमती हैं,
जो ख्वाहिश है मेरी।
ज़ुल्फ़ ए सरकार से
जब चेहरा निकलता होगा,
फिर भला कैसे कोई
चाँद को तकता होगा।
तुझे देख दिल को लगा एक झटका है,
तेरी ज़ुल्फ़ों में जा मेरा दिल अटका है.
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पहले जुल्फ, फिर होठ, फिर दिल पे
हावी तेरे नैन हो गये, तुने चार दफा
Dp बदली हम चार
दफा तेरे फैन हो गये।
गुलाबी गाल तेरे आँखों में काजल हैं,
यह खुली ज़ुल्फ़ें तेरी करती हमें पागल हैं.
रेशमी जुल्फें हैं तेरी, मखमली है चेहरा तेरा,
हो जाऊं तुम्हारा या बना लूं तुम्हें अपना।
वों जुल्फें हवाओं संग लहरायी थीं,
हम असर इश्क का समझ बैठे.
ढूंढता चला हूँ मैं गली गली बहार की,
बस इक छांव ज़ुल्फ़ की
बस इक निगाह प्यार की.
ज़ुल्फें, सीना, नाफ़, कमर,
एक नदी में, कितने भँवर.
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जुल्फ़े सिर्फ “दांयी तरफ” मत रखा करो,
बांया झुमका खुद को
महफूज़ नहीं समझता।
दिल लेकर क्या करोगी? बताओ तो सही ?
तुमसे जुल्फे तो अपनी संभाली नही जाती।
किसी ने पूछा कौन याद आता है,
अक्सर तन्हाई में, हमने कहा कुछ
पुराने रास्ते, खुलती ज़ुल्फे और बस दो आँखें।
फूक मार के वो अपनी
जुल्फों को संवारती है,
लगता है जैसे हवा भी उसकी गुलाम है.
जुल्फे खोली हैं उन्होंने आज,
और सारा शहर बादलो
को दुआ दे रहा हैं।
बड़ी आरजू थी
महबूबा को बेनक़ाब देखने की,
दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी।
****
उनकी गहरी नींद का मंज़र भी
कितना हसीन होता होगा,
तकिया कहीं, ज़ुल्फ़ें कहीं,,
और वो खुद कहीं।
माथे को चूम लूँ मैं और,
उनकी जुल्फ़े बिखर जाये,
इन लम्हों के इंतजार में,
कहीं जिंदगी न गुज़र जाये।
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पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह,
ज़ुल्फ़ों को रूख पे डाल के झटका दिया कि यूँ.
– आरज़ू लखनवी
जुल्फों में तेरी पेंच ओ ख़म जितने,
मेरी मजबूरियाँ मेरे मुश्किलात बस इतने.
– ग़ालिब
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तेरी जुल्फें जब बिखर जाती है,
ए हसीना तू और
भी हसीन हो जाती है।
रुख-ए-यार पे यह जुल्फें,
यूँ फिसल रही है,
कभी दिन निकल रहा है,
कभी रात ढल रही है।
मुझे पसंद है उसकी खुली ज़ुल्फ़ों के साये,
उनकी उलझी ज़ुल्फ़ों में उलझा रहना चाहता हूँ.
उनके हाथों में मैंहदी लगाने का.
ये फायदा हुआ हमें,
कि रात-भर चेहरे से उनके,
ज़ुल्फें हटाते रहे हम।
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे,
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे.
ये उड़ती ज़ुल्फें, ये बिखरी मुस्कान,
एक अदा से संभलूँ, ,
तो दूसरी होश उड़ा देती है।
बिखरी हुई थी जुल्फे वही आँखोमें नमी थी,
हम चाहकर भी पूरी ना कर सके,
ऐ-जिंदगी तूझमें ऐसी क्या कमी थी।
चली आओ खिड़की पर जुल्फें संवारते हुए,
ताकि शाम आज की कुछ तो हसीन बने.
अच्छी लगती नही चांद पे बदलियां,
अपने चेहरे से जुल्फें हटा लीजिये ।
यूं ज़ुल्फें खोल कर न रखा कर मेरी जान,
उलझ सा जाता हूँ इनमें जब भी देखता हूँ.
न तो दम लेती है
तू और न हवा थमती है,
ज़िन्दगी ज़ुल्फ़ तेरी कोई सँवारे कैसे।
तेरी खुली~खुली सी ज़ुल्फ़ें,
इन्हें लाख तुम संवारो अगर हम
संवारते तो,कुछ और बात होती।
किसी ज़ुल्फ़ के साये में हमें नींद आती थी,
अब मयस्सर किसी दीवार का साया भी नहीं.
****
मैं घंटों निगाह भर
के देखता रहा उन्हें,
वो इत्मिनान से घंटों
धूप में जुल्फें सुखाती रहीं।
ज़ाहिद ने मेरा हासिल-ए-ईमान नहीं देखा,
रुख पर तेरी ज़ुल्फों को परेशान नहीं देखा.
जिस हाथ से मैंने तेरी जुल्फों को छुआ था,
छुप छुप के उसी हाथ को मैं
चूम रहा हूं।”मुशीर झिंझानवी”
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इजाजत हो तो मैं
तस्दीक कर लूँ तेरी जुल्फों से,
सुना है जिन्दगी इक
खूबसूरत जाम है साकी।”अदम”
पहली मुलाकात थी,
और हम दोनों ही बेबस थे,
वो जुल्फें ना संभाल सके,
और हम खुद को.
Zulf Shayari in Hindi
गुलों की तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना,
किसी कि ज़ुल्फ़ में इक रात सोना
और बिखर जाना. “बशीर बद्र”….।
हवा के झोके जुल्फों को बिखरा देंगे,
इन्हें देखकर हम दुनिया भुला देंगे.
किस ने भीगे हुए बालों से ये
झटका पानी झूम के आई घटा
टूट के बरसा पानी।”आरज़ू लखनवी”
जुल्फ़े बांधा ना करो तुम,
हवायें नाराज़ सी रहती हैं.
ज़ुल्फ़ घटा बन कर रह
जाए आँख कँवल हो जाए
शायद, उन को पल
भर सोचे और ग़ज़ल हो जाए।
“क़ैसर उल जाफ़री”
कर के बेचैन मुझे
उसका भी बुरा हाल हुआ,
उसकी ज़ुल्फें भी ना
सुलझी मेरी उलझन की तरह.
छाँव पाता है मुसाफिर तो ठहर जाता है,
ज़ुल्फ़ को ऐसे न बिखरा,हमे
नींद आती है. “मुनव्वर राना”।
मेरे मर जाने की वो सुन के खबर आई
“मोहसिन” घर से रोते हुए
वो बिन ज़ुल्फ़ सँवारे निकले।
ये कह कर सितमगर
ने ज़ुल्फ़ों को झटका,
बहुत दिन से दुनिया परेशाँ नहीं है।
ये ज़ुल्फ़ कैसी हैं? जंजीर जैसी हैं,
वो कैसी होगी जिसकी तस्वीर ऐसी हैं।
उड़े जब-जब जुल्फें तेरी कंवारियों का
दिल मचले कंवारियों का
दिल मचले, जिन्द मेरिये ।
ये रेशमी जुल्फे ये शरबती आंखे
इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी।
****
जो गुजरे इश्क में सावन सुहाने, याद आते हैं,
तेरी जुल्फों के मुझको शामियाने याद आते हैं।
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मेरे होठ जब तेरे होठों के पास आते है,
कमबख्त ये जुल्फ़ दीवार बन जाते हैं.
आह को चाहिये इक
उम्र असर होते तक,
कौन जीता है
तेरी जुल्फ के सर होते तक।
Zulf Shayari in Hindi
जुल्फें चाहे कितनी हंसीं क्यूँ न हो,
दुपट्टा शख़्सियत को
चार चाँद लगा देता है।
अपनी ज़ुल्फें मेरे शानों पे बिखर जाने दो,
आज रोको ना मुझे हद से गुज़र जाने दो.
माथे को चूम लूँ मैं और उनकी जुल्फ़े
बिखर जाये, इन लम्हों के
इंतजार में कहीं जिंदगी न गुज़र जाये।
ये किसका ढल गया है आँचल,
तारों की निगाह झुक गयी है,
ये किसकी मचल गयी हैं जुल्फें,
जाती हुई रात रुक गयी है।
उम्र भर जुल्फ-ए-मसाऐल यूँ ही सुलझाते रहे,
दुसरों के वास्ते हम खुद को उलझाते रहे ।
आवारा सी ज़ुल्फ तुम्हारी
गालों को जब सहलाती है,
हसीन बेशक उस वक़्त लगती हो,
पर मुझे तेरी जुल्फे जलाती है।
दिसम्बर से भी ठण्डा है
तेरी ज़ुल्फ़ का साया, जी चाहता है
की जून तेरे पास आकर गुजारूं।
अपनी जुल्फों से कह दो काबू में रहे,
तुम्हारे गालो को चूमने
का हक सिर्फ मेरा हैं।
पहले जुल्फ, फिर होठ , फिर दिल पे
हावी तेरे नैन हो गये, तुने तीन
दफा बदली डीपी,
हम तीन दफा तेरे फैन हो गये।
तेरी काली जुल्फेँ और
मुस्कराते होठोँ की लाली,
लोगोँ को दीवाना बना देती है।
जुल्फ देखी है या नजरों ने घटा देखी है,
लुट गया जिसने भी तेरी ये अदा देखी है।
हम कहाँ से अपने दिल को समझाये,
आप ने यूँ जुल्फ जो बिखेरी है।
तुम्हारी जुल्फे हैं
या ज़ंजीर मैं
इनमे कैद सा हो जाता।
फूक मार के वो
अपनी जुल्फों को संवारती है,
लगता है जैसे हवा भी उसकी गुलाम है।
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