हिंदी व्याकरण में रस का विशेष स्थान है और इसको मुख्य रूप से पढ़ा जाता है। यहाँ पर हम श्रृंगार रस की परिभाषा उदाहरण सहित (Shringar Ras in Hindi) जानने वाले है और साथ इनके भेद के बारे में भी विस्तार से जानेंगे।
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शृंगार रस की परिभाषा (Shringar Ras Ki Paribhasha)
शृंगार रस एक ऐसा रस है, जिसमें प्रेम व रति या वियोग का भाव निहित होता है। यह प्रेम व वियोग चाहे नायक और नायिका का एक दुसरे के प्रति हो, किसी चरित्र का या प्रकृति के प्रति हो। शृंगार रस में प्रेम के अतिरिक्त सौंदर्य का भी वर्णन निहित हो सकता है।
श्रृंगार रस परिचय (Shringar Ras in Hindi)
श्रृंगार रस को रसपति या सभी रसों का राजा कहा जाता है। श्रृंगार रस का स्थाई भाव है रति या प्रेम। अर्थात काव्य सुनते या पढ़ते समय जब कहीं प्रेम या रति की अनुभूति होती है तो वहां श्रृंगार रस होता है।
श्रृंगार रस के अवयव
- स्थायी भाव: रति।
- आलंबन (विभाव): खुशबू, पंछियों का गुंजन, सुहावना मौसम।
- उद्दीपन (विभाव): कीर्ती या मान की इच्छा, विपक्षी का पराक्रम या विपक्षी का अहंकार।
- अनुभाव: नायक तथा नायिका की चेष्टाएं आदि।
- संचारी भाव: उन्माद, अभिलाषा, आवेग, हर्ष आदि।
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श्रृंगार रस के भेद
शृंगार रस के दो भेद बताए गए हैं, संयोग शृंगार रस और वियोग शृंगार रस। नाम के अनुसार ही ये दोनों रस परस्पर विपरीत भावों की सूचना देते हैं। आइये इसे कुछ विस्तार से समझें।
संयोग श्रृंगार रस की परिभाषा
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, संयोग अर्थात संग में आना या योग होना। अर्थात इस रस के दौरान दो चरित्रों के देह या अंग या फिर मन समीप आना या होना पाया जाता है। या यह रस दो चरित्रों के प्रेमवश समीप आने की सूचना देता है।
संयोग श्रृंगार रस के सरल उदाहरण
बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाये।
सौंह करे, भौंहनि हँसै, दैन कहै, नटि जाये।
करत बतकही अनुज सन, मन सियरूप लुभान।
मुखसरोज मकरन्द छबि कर मधुप इव पान।।
वियोग श्रृंगार रस की परिभाषा
वियोग रस, संयोग रस का ठीक विपरीत है। वियोग का अर्थ होता है योग का विपरीत अर्थात दूर जाना या बिछड़ना। अर्थात इस रस के दौरान दो चरित्रों के देह या मन का बिछड़ना या दूर होना पाया जाता है। अतः यह रस दो चरित्रों के अलगाव की सूचना देता है।
वियोग श्रृंगार रस के सरल उदाहरण
निसिदिन बरसत नयन हमारे,
सदा रहति पावस ऋतु
हम पै जब ते स्याम सिधारे।।
दुःख के दिन को कोऊ भाँती बितै
बिरहागम रैन संजोवती है।
हम ही अपुनी दसा जानै सखी
निसि सोवती है कधि रोवती है।।
श्रृंगार रस के उदाहरण (Shringar Ras Ke Udaharan)
मेरे तो गिरधर गोपाला, दूसरो ना कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।
यह तन जारों छार कै कहों कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होइ परों कंत धरै वहं पाउ।।
अरे बता दो मुझे कहाँ प्रवासी है मेरा।
इसी बावले से मिलने को डाल रही हूँ मैं फेरा।।
हौं ही बोरी बिरह बरा, कैे बोरों सब गाउँ।
कहा जानिए कहत है, समिहि सीतकर नाउँ।।
दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई।
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई।।
कहत, नटत, रीझत, खीझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरै भौन में करत है, नैनन ही सों बाता।
तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये।।
हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी।
सजल नयन पुलकाबलि ठाढ़ी।।
गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे।
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।
कर मुंदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।
पीठ दिये निधरक लखै, इकटक दीठि लगाइ।।
रे मन आज परीक्षा तेरी।
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस निःश्रेयस पावें।
उद्धारक चाहें तो आवें।
यहीं रहे यह चेरी।
राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल टारत नाही।।
थके नयन रघुपति छबि देखें।
पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें।।
अधिक सनेहँ देह भै भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।
बचन न आव नयन भरि बारी।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी।।
लता ओर तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।
दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माही।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाही।।
राम को रूप निहारित जानकि कंकन के नग की परछाही।
यातें सबै भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं।।
मन की मन ही माँझ रही
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाही परत कही
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही
अब इन जोग संदेशनि, सुनि-सुनि बिरहिनी बिरह दही।
अति मलीन वृषभानुकुमारी।
हरि स्त्रम जल भीज्यौ उर अंचल, तिहिं लालच न धुवावति सारी।।
अध मुख रहति अनत नहिं चितवति, ज्यौ गथ हारे थकित जुवारी।
छूटे चिकुरे बदन कुम्हिलाने, ज्यौ नलिनी हिमकर की मारी।।
हरि सँदेस सुनि सहज मृतक भइ, इक विरहिनि, दूजे अलि जारी।
सूरदास कैसै करि जीवै, व्रजवनिता बिन स्याम दुखारी।।
के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास।।
क्या पूजा, क्या अर्चन रे।
उस असीम का सुन्दर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे।
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे।
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन जलकण रे।
लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।
जो थोड़ी भी श्रमित बह हौ गोद ले श्रान्ति खोना।
होठों की ओ कमल-मुख की म्लानतायें मिटाना।।
एक पल, मेरे प्रिया के दृग पलक
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय संबन्ध था।।
महा मधुर रस प्रेम कौ प्रेमा।
पीवत ताहिं भूलि गये नेमा।।
तैसी सखी रहै दिन-राती।
हित ध्रुव’ जुगल-नेह मदमाती।।
मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात
रिमझिम बूदें पड़ती थी घटा छाई थी।
गमक रही थी केतकी की गंध चारों ओर
झिल्ली झनकार यही मेरे मन भायी थी।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै, भौंहनु हँसे, देन कै नटि जाय।।
सतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हा।
घार बोली स-दुःख उससे श्रीमती राधिका यों।।
प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।
निष्कर्ष
तो इस प्रकार हम देखते हैं कि कैसे श्रृंगार रस अन्य रसों से विभिन्नता रखता है और कैसे स्वयं श्रृंगार रस के भेद सामान उद्दीपन और सामान आलंबन होते हुए भी किस तरह एक दुसरे के विपरीत भाव उत्पन्न करते हैं।
FAQ
शृंगार रस एक ऐसा रस है, जिसमें प्रेम व रति या वियोग का भाव निहित होता है। यह प्रेम व वियोग चाहे नायक और नायिका का एक दुसरे के प्रति हो, किसी चरित्र का या प्रकृति के प्रति हो।
के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास।।
अंतिम शब्द
परीक्षा में रस के बारे में विशेष रूप से पूछा जाता है। शृंगार रस किसे कहते हैं? (Shringar Ras Kise Kahate Hain), शृंगार रस की परिभाषा लिखिए? (Singar Ras Ki Paribhasha), श्रृंगार रस का उदाहरण क्या है? (Shringar Ras Ka Udaharan), श्रृंगार रस के 10 उदाहरण लिखिए? आदि प्रकार से सवाल पूछे जाते हैं।
इस लेख में शृंगार रस किसे कहते हैं उदाहरण सहित (Shringar Ras Ki Paribhasha Udaharan Sahit) विस्तारपूर्वक बताया है। लेख पसंद आये तो शेयर जरुर करें। यदि आपके मन में इस आर्टिकल को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है, तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं।
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