Home > General > सेंगोल क्या है और इसके पीछे की कहानी

सेंगोल क्या है और इसके पीछे की कहानी

28 मई को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 13वीं सदी में चोल साम्राज्य के द्वारा बनी एक प्राचीन परंपरा को दोबारा दोहराई गई।

संसद भवन में नरेंद्र मोदी के द्वारा “सेंगोल” को स्थापित किया गया, इसके माध्यम से उन्होंने संसद भवन को भारत की प्राचीन परंपरा से जोड़ा।

संसद भवन में मंत्र उच्चारण पूजा अर्चना के बाद तमिलनाडु के मठ से आए अधीनम ने प्रधानमंत्री को सेंगोल सौंपा, जिसे प्रधानमंत्री ने लोकसभा में स्पीकर की कुर्सी के बगल में स्थापित किया।

Sengol Kya Hai
Image: Sengol Kya Hai

इस समारोह को देखने के बाद बहुत से लोगों को समझ में नहीं आया कि आखिर मोदी जी के द्वारा स्थापित की गई सेंगोल क्या है? (Sengol Kya Hai)

हालांकि कुछ दिन पहले ही गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा संसद भवन की उद्घाटन के समय नरेंद्र मोदी के द्वारा सिंगल स्थापना करने के गतिविधि के बारे में बताया गया और उसी समय से सेंगोल शब्द चर्चा में फैला गया।

तो चलिए इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि 1000 साल पुराने भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सेंगोल का महत्व क्या है? इसे नए संसद भवन में क्यों स्थापित किया गया और इसके बारे में जानकारी कैसे मिली। इसके साथ ही यह भी जानेंगे कि भारत की आजादी में सेंगोल की क्या भूमिका थी?

सेंगोल क्या है? (Sengol Kya Hai)

सेंगोल प्राचीन राजाओं के द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एक राजदंड है, जिसे सत्ता हस्तांतरण का एक प्रतीक माना जाता है।

प्राचीन समय में राजा अपने उत्तराधिकारी को उसके हाथों में सेंगोल थमाते हुए सत्ता हस्तांतरण करता था।

यह तमिल भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है “संपदा से संपन्न”। यह प्राचीन राजाओं की शक्ति और सत्ता का प्रतीक माना जाता था।

चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है सेंगोल

सेंगोल को चोल साम्राज्य की संस्कृति से जोड़ा जाता है। चोल साम्राज्य भारत उपमहाद्वीप पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक थे।

चोल साम्राज्य का शासनकाल 848 ईसवी में शुरू हुआ था और यह शासनकाल 431 वर्षों तक चला था, जिसमें 21 चोल राजाओं ने शासन किया था।

चोल भगवान शिव के उपासक हुआ करते थे, जिसके कारण उनका मानना था कि सेंगोल को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इसीलिए वे राज्य अभिषेक समारोह के दौरान जिसको उत्तराधिकारी बनाते थे, उनके हाथों में सत्ता स्थानतरण के प्रतिक के तौर पर सेंगोल थमाते थे, जो एक राज दंड हुआ करता था।

चोल शासकों में सेंगोल को न्याय प्रिय और निष्पक्ष शासन का प्रतीक माना जाता था।

कई राजवंशों में भी सेंगोल का प्रयोग किया जाता था

न्याय का प्रतीक माने जाने वाला सेंगोल चोल साम्राज्य के अतिरिक्त अन्य साम्राज्य में भी इसका प्रयोग किया गया।

सेंगोल जो एक राजदंड है, यह राजा और राज्य की संप्रभुता का प्रतीक माना जाने वाले तीन आधारभूत शक्तियों में से एक है।

इन प्रतीक में राजदंड के अलावा मुकुट और पताका भी प्रमुख है। पताका के जरिए राज्य की सीमा निर्धारित होती थी, वहीं मुकुट और छत्र प्रजा के बीच राजा की मौजूदगी का प्रतीक होता था।

राजदंड न्याय का प्रतीक माना जाता था, इसीलिए इसका प्रयोग कई साम्राज्य में किया गया। इतिहास के कई किताबों के जरिए जानकारी मिलती है कि मौर्य साम्राज्य में भी सेंगोल का प्रयोग होता था।

इसके अतिरिक्त गुप्त साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य में भी राजदंड के रूप में इसका प्रयोग किया गया है। इस तरह साही चीजों में राजदंड एक अहम शब्द है।

गुप्त साम्राज्य का इतिहास, शासनकाल आदि के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें।

5000 साल पुराने महाभारत में भी मिलता है इतिहास

इस तरह के राजतिलक और राजदंड की कई वेदीक रीतियों का जिक्र कई पुराने ग्रंथों में किया गया है। राजदंड के रूप में प्रयोग होने वाले सेंगोल के बारे में 5000 साल पुरानी महाभारत में भी जिक्र मिलता है।

महाभारत में भी राजदंड का उल्लेख मिलता है, जिसमें राज्याभिषेक के दौरान उत्तराधिकारी सोपे जाने के दौरान मुकुट पहनाना जैसे कई प्रतिक के तौर पर इस्तेमाल होने वाली चीज़ों के बारे में जिक्र होता है।

उसी के साथ राजा को धातु की छड़ी उनकी हाथों में सोंपना जिसे राजदंड कहा जाता है इसके बारे में भी उल्लेख मिलता है।

इसका जिक्र महाभारत में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक प्रसंड के दौरान किया गया है, जिसमें राज्याभिषेक के समय राजा जब गद्दी पर बैठते हैं, वे तीन बार ‘अदण्ड्यो: अस्मि’ कहता है।

जिसके बाद राजपुरोहित उन्हें पलाश दंड से मारते हैं, जिसके बाद राजा कहते हैं। ‘धर्मदण्ड्यो: असि’ जिसका अर्थ है कि उन्हें कोई दंड नहीं दे सकता तब राजपुरोहित उनके हाथों में राजदंड थमाते हुए कहते हैं कि राजा को भी धर्म दंडित किया जा सकता है।

यानी की राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगाने के प्रतिक के रूप में राजदंड का प्रयोग किया जाता है।

इस तरह महाभारत के शांति पर्व में राजदंड का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ‘राजदंड राजा का धर्म है, दंड ही धर्म और अर्थ की रक्षा करता है।’

1947 में देश की आजादी के समय “सेंगोल” की भूमिका

सेंगोल का संबंध भारत की आजादी से भी है। जब भारत आजाद हुआ और ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण की बात आई तो उस समय के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने उस समय के तत्कालीन नेता पंडित जवाहरलाल नेहरु से बात की।

उन्होंने उनसे पूछा कि सत्ता स्थानांतरण के समय प्रतीक के तौर पर किस तरह के गतिविधि को आप अपनाना चाहते हैं, किस तरह का समारोह आयोजित करना चाहते हैं?, उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास उनके प्रश्न का कोई जवाब नहीं था।

लेकिन उसके बाद में पंडित जी भारत के अंतिम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी से मिले और उनसे इसके बारे में राय ली।

तब सी राजगोपालाचारी ने इसके बारे में गहन शोध किया। अनेकों प्राचीन ग्रंथ को पढ़ा भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में जाना।

चूंकि राजगोपालाचारी तमिलनाडु से थे, इसीलिए उन्होंने दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य से जुड़ी एक परंपरा सेंगोल के बारे में पता चला।

जिसके बारे में उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरु को बताया कि चोल साम्राज्य में जब कोई शासक किसी अन्य राजा को उत्तराधिकारी बनाते थे, तब वे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर उन्हें सेंगोल दिया करते थे।

पंडित जवाहरलाल नेहरु को राजगोपालाचारी की यह राय पसंद आई और फिर उन्होंने सेंगोल बनाने का पूरा जिम्मेदारी राजगोपालाचारी को दे दिया।

सेंगोल बनवाने के लिए राजगोपालाचारी तमिलनाडु के तंजौर के धार्मिक मठ थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया। उसके बाद उन्होंने सेंगोल बनाने की तैयारी शुरू कर दी।

इस मठ ने सेंगोल बनाने की जिम्मेदारी चेन्नई के एक ज्वेलरी कंपनी को दी गई और वहां पर सेंगोल बनाने के लिए दो कलाकारों ने अपनी भूमिका निभाई।

सेंगोल बनने के बाद वह दिल्ली पहुंचा और वहां पर उसे लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा गया, जिन्होंने सत्ता कार्यक्रम के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरु को सत्ता के स्थानांतरण के प्रतीक के तौर पर उनके हाथो में थमाया।

सेंगोल के ऊपर की गई नक्काशी

जब आप सेंगोल को देखते हैं तो सेंगोल पर आपको कई खूबसूरत नक्काशी देखने को मिलती हैं और उस पर छोटी-छोटी प्रतिमाएं भी बनी हुई है।

  • सेंगोल गोल मंच पर बनी एक संरचना है और यह गोल मंच संसार का प्रतीक माना जाता है, जिसका अर्थ लगाया जाता है कि संसार में कर्मशिलता और शांतिच्चित ही सबसे ऊपर है।
  • सेंगोल के सबसे ऊपर नंदी की प्रतिमा विराजमान है, जो इसे शैव परंपरा से जोड़ता है। हालांकि नंदी के अन्य कई महत्व भी है। सेंगोल पर स्थापित नंदी की प्रतिमा समर्पण का भाव दर्शाती है।
  • भारत में सभी शिव मंदिरों में नंदी की प्रतिमा हमेशा भगवान शिव के सामने स्थिर मुद्रा में बैठी रहती है, जिसे हिंदू मिथको के अनुसार शासन के प्रति अडिग होने का प्रतीक माना जाता है। इस तरह जिसका न्याय अडिग है, उसी का शासन स्थिर होता है। इसीलिए सेंगोल पर नंदी की प्रतिमा सबसे शिर्ष स्थान पर है, जो स्थिर न्याय का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • सेंगोल के गोल हिस्से के सामने एक चौड़ी पट्टी बनी है, जिस पर धन की देवी महालक्ष्मी की खूबसूरत आकृति नक्काशी करके उकेरी गई है। मां लक्ष्मी धन समृद्धि का प्रतीक है। इस तरह राजदंड रूपी सेंगोल राज्य के वैभव का प्रतीक माना जाता है। मां लक्ष्मी की आकृति के आसपास हरियाली के तौर पर बेल बूटे, फूल पत्ती इत्यादि को भी खूबसूरत नक्काशी करके उकेरा गया है, जो राज्य की कृषि संपदा का प्रतिनिधित्व करती है।
  • सेंगोल की कुल लंबाई 5 फिट है, जिसका भी एक विशेष महत्व है। अगर सेंगोल को कोई आदमी पकड़ कर खड़ा होता है तो यह मनुष्य की औसत ऊंचाई के बराबर है। इससे यह सम्यक दृष्टि का प्रतीक माना जाता है। इस तरह इसकी ऊंचाई एक समान नागरिक का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसमें वेश भाषा, जाति, धर्म, पंथ के आधार पर कोई अंतर नहीं है।

75 साल बाद सेंगोल के सामने आने की कहानी

जैसे हमने आपको उपरोक्त लेख में बताया कि भारत की आजादी के समय ब्रिटिश सरकार के द्वारा सत्ता स्थानांतरण के समय सेंगोल की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसने सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भूमिका निभाई।

लेकिन उसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश लोगों को इसके बारे में नहीं पता था। वह समारोह के बाद न जाने सेंगोल कहां छुप गया, जिसके बारे में दोबारा फिर कभी जिक्र नहीं हुआ।

लेकिन आज फिर 75 साल के बाद जब भारत में नए संसद भवन का उद्घाटन होना था तब संसद भवन में प्रधानमंत्री के द्वारा सेंगोल के स्थापना की खबर आई, जिसके बाद फिर मन में यह प्रश्न आया कि आखिर इतने साल के बाद यह सेंगोल अचानक से सामने आया कैसे?

गृह मंत्री अमित शाह ने ही सेंगोल के बारे में बताते हुए कहा था कि अब तक सेंगोल इलाहाबाद संग्रहालय में था। लेकिन भारत के संसद भवन से उचित जगह उसके लिए और नहीं हो सकती है।

जब प्रधानमंत्री को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने सेंगोल की खोज करवाई। अब प्रश्न यह रहा कि आखिर प्रधानमंत्री को सेंगोल के बारे में पता कैसे चला?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सेंगोल के बारे में भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना डॉक्टर पद्मा सुब्रमण्यम के द्वारा लिखे पत्र के द्वारा मालूम पड़ा।

डॉक्टर पद्मा सुब्रमण्यम ने बताया था कि तमिल का एक लेख तुगलक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, जिसमें बताया गया था कि कैसे चंद्रशेखर सरस्वती ने 1978 में अपने शिष्य डॉ सुब्रमण्यम को सेंगोल के बारे में बताया। जिसके बारे में उन्होंने अपने किताब में जिक्र किया था।

सेंगोल से संबंधित जब चिट्ठी मिली तो सरकार ने सेंगोल की खोज के लिए संस्कृत मंत्रालय को एक टीम बनाने के लिए कहा।

इस तरह सरकार के द्वारा गठित एक टीम ने सेंगोल की खोज की, जिसे 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के समय नरेंद्र मोदी के द्वारा अध्यक्ष के सीट के सामने स्पीकर के पास स्थापित किया।

FAQ

सेंगोल किसका प्रतीक है?

सेंगोल अधिकार का प्रतीक है, सत्ता का प्रतीक है। चोल साम्राज्य में सेंगोल शक्ति, वैधता और संप्रभुता का फिजिकल प्रतीक बन चुका था। यह एक प्रतिष्ठा का प्रतीक है।

सेंगोल का प्रयोग कब किया जाता था?

सेंगोल का प्रयोग दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है, जो चोल साम्राज्य के राजा द्वारा राज्याभिषेक के दौरान सत्ता हस्तांतरण के प्रतिक के तौर पर प्रयोग किया जाता था।

सेंगोल किस तरह दिखने में होता है?

सेंगोल जिसे तमिलनाडु का राजदंड कहा जाता है, यह एक भाले या ध्वजदंड के आकार का होता है। इस पर सोने का पर्त चढ़ाया गया है। सेंगोल पांच फिट लंबा है, जिस पर तमिल में कुछ लाइनें भी लिखी हुई है। इसके ऊपर नंदी विराजमान हैं।

सेंगोल के बारे में कैसे पता चला?

यूं तो दक्षिण भारत की संस्कृति में सेंगोल का बहुत महत्व है लेकिन इसके बारे में पता प्रधानमंत्री कार्यालय को करीबन 2 साल पहले भारत की प्रख्यात नृत्यांगना डॉक्टर पद्मा सुब्रमण्यम के द्वारा मिले चिट्ठी के जरिए चला था और उसके बाद इसकी खोज शुरू की गई।

आधुनिक समय में सेंगोल का क्या महत्व है?

भारत के नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना करके तमिल संस्कृति को श्रद्धांजलि दी गई है। वर्तमान में यह विरासत और परंपरा का प्रतीक बन चुका है।

निष्कर्ष

इस लेख में नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा स्थापित न्याय और सत्ता का प्रतीक सेंगोल के बारे में जाना।

इस लेख में बताया कि आखिर सेंगोल क्या होता है? (Sengol Kya Hai), इसका इतिहास क्या रहा है और देश की आजादी में इसकी भूमिका क्या रही थी?

सेंगोल न केवल चोल साम्राज्य बल्कि संपूर्ण भारत की प्राचीन संस्कृति एंव विरासत है। हमें उम्मीद है कि उपरोक्त लेख के जरिए सेंगोल से जुड़े सभी प्रश्नों के जवाब आपको मिल गए होंगे।

यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से अन्य लोगों को भी जरूर शेयर करें।

यह भी पढ़ें

अशोक स्तंभ का सम्पूर्ण इतिहास

सोमनाथ मंदिर का इतिहास, कितनी बार तोड़ा और फिर कैसे बना?

7 भारत की सबसे पवित्र नदियां और इनकी पौराणिक कहानी

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास और विध्वंस व निर्माण की कहानी

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

Related Posts

Leave a Comment