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गुप्त साम्राज्य का इतिहास और शासनकाल

Gupta Dynasty in Hindi: भारतीय इतिहास में हमें कई राजवंशों का वर्णन मिलता है। भारत के सभी राजवंशों ने लगभग उत्तरी भारत में ही राज किया है। भारत में तीसरी और चौथी शताब्दी में ऐसे ही एक साम्राज्य की उत्पत्ति हमें देखने को मिलती है। इस साम्राज्य को हम गुप्त वंश के नाम से जानते हैं।

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Gupta Dynasty in Hindi

आपको इस लेख में इसी गुप्त वंश और गुप्त साम्राज्य (Gupta Dynasty in Hindi) के बारे में बताया जाएगा। अतः आप इस लेख को अंत तक जरूर पढ़े ताकि आपको इसके संबंध में पूरी जानकारी प्राप्त हो सके।

गुप्त साम्राज्य की स्थापना किसने की थी? (Gupta Dynasty in Hindi)

गुप्त साम्राज्य की स्थापना हिंदू धर्म के राजा श्री गुप्त द्वारा की गई थी। गुप्त साम्राज्य का साम्राज्य बहुत दूर तक फैला हुआ था तथा इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि गुप्त वंश ने पीढ़ी दर पीढ़ी लगभग 300 वर्षों तक शासन किया।

गुप्त वंश के ही एक शासक ने प्रभावती गुप्त के पुणे अभिलेख में गुप्त वंश की नींव रखने वाले श्रीगुप्त को आदिराज के नाम से संबोधित किया था। गुप्त साम्राज्य का नाम श्री गुप्त के नाम पर ही पड़ा था। श्री गुप्त की मृत्यु के बाद श्री गुप्त का पुत्र घटोत्कच श्री गुप्त की गद्दी पर बैठा। इस वंश का पहला प्रतापी राजा चंद्रगुप्त प्रथम था, जिसने इतने बड़े साम्राज्य की स्थापना की।

इतिहासकारों का यह भी मानना है कि पुराने समय में लगभग जितने भी चीनी यात्री भारत आए थे, उनके लिए गुप्त वंश की नींव रखने वाले श्री गुप्त ने एक मंदिर बनाया था तथा इस बात का जिक्र स्वयं एक चीनी यात्री इचिंग ने अपनी यात्रा वृतांत में किया है। इचिंग भी उसी दौरान भारत आया था, जिस दौरान भारत में गुप्त वंश का शासन था और उसी ने अपने यात्रा वृतांत में इस घटना का उल्लेख किया है।

गुप्त शासकों का राज्य चिन्ह क्या था?

आपने इतिहास की किताबों में गुप्त वंश के साम्राज्य का नाम तो सुना ही होगा। भारत के इतिहास में स्थापित प्रथम मौर्य वंश के बाद गुप्त वंश ही एक ऐसा साम्राज्य हुआ है, जो बहुत महत्वपूर्ण है।

प्रत्येक राज्य का कोई न कोई राज्य चिन्ह होता है। ऐसे में गुप्त वंश के शासकों ने अपने राज्य का चिन्ह गरुड़ को चुना था। गुप्त वंश के शाही मुहर पर भी गरुड़ का चित्र अंकित था।

गुप्त शासकों ने अपना राज्य चिन्ह गरुड़ को ही क्यों बनाया?

आपके मन में तो एक सवाल अवश्य ही आया होगा कि आखिर गुप्त शासकों ने अपना राज्य चिन्ह गरुड़ को ही क्यों चुना। गरुड़ पक्षियों का राजा होता है तथा भगवान श्री कृष्ण का वाहन भी और गरुड़ बहुत तीव्र गति से उड़ता है, जिसके कारण से गुप्त वंश के शासकों ने अपने राज्य चिन्ह गरुड़ को चुना। जिससे इस बात का पता चलता है कि गुप्त वंश कितना तीव्र और बहादुर था।

गुप्त वंश की उत्पत्ति के सिद्धांत

गुप्त साम्राज्य की उत्पत्ति तीसरी शताब्दी में मानी जाती है। इस वंश ने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया है और इन 300 वर्षो में इस वंश में कई वीर योद्धाओं की उत्पत्ति हुई है। गुप्त वंश के संस्थापक के रूप में श्रीगुप्त को माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन्ही ने गुप्त वंश की नींव रखी थी। गुप्त वंश के एक शासक प्रभावती गुप्त के पूना अभिलेख में श्रीगुप्त को “आदिराज” कहकर संबोधित किया गया है।

गुप्त साम्राज्य

ऐसा माना जाता है कि गुप्त वंश के राजाओं के काल में ही सबसे पहले प्रशस्ति लेखन का विकास हुआ है। प्रशस्ति को ही लेखन शैली के रूप में जाना जाता है। उस समय इन प्रशस्तियों की रचना राजाओं की प्रशंसा करने के लिए किया जाता था। राजाओं की प्रशंसा के साथ गुप्त वंश की भी जानकारी भी हमें उन प्रशस्तियों से मिलती है।

प्राचीन समय के कुछ मुख्य प्रशस्ति के रचयिता हरिसेन, वत्सभट्टि, वासुल इत्यादि प्रमुख थे जो उस समय प्रशस्ति लिखने का कार्य किया करते थे। इन्ही की लेखन शैली की वजह से हमें गुप्त साम्राज्य की कई प्रकार की जानकारी मिलती है। उनकी लेखन शैली से हमें हर्षचरित और कादंबरी हर्षवर्धन इत्यादि की जानकारी मिलती है।

गुप्त साम्राज की वंशावली

गुप्त काल के कई अभिलेख और ताम्रपत्र इतिहासकारों को मिले है, जिनसे उनके साम्राज्य की जानकारी और उनके वंशों में हुए महान शासकों की जानकारी मिलती है। उन सभी राजाओं का वर्णन इस प्रकार है, गुप्त वंश के कुछ प्रमुख राजा:

चन्द्रगुप्त प्रथम

कहा जाता है कि कुषाण काल में मगध राज्य की शक्ति और उस राज्य की महत्ता के खत्म होने के साथ ही चन्द्रगुप्त प्रथम ने इस राज्य को पुनर्स्थापित किया था। चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य को साकेत और वर्तमान प्रयागराज तक विस्तार किया था।

उस समय यह साम्राज्य मगध के नाम से जाना जाता था। ऐसा भी माना जाता है कि चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजवंश की राजकुमारी से विवाह किया था। चन्दगुप्त प्रथम को महाराजाधिराज की उपाधि से भी संबोधित किया जाता था।

समुन्द्रगुप्त

समुद्रगुप्त को चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र माना जाता है और समुद्रगुप्त को सभी गुप्त वंश के शासकों से सबसे महान माना जाता था। समुद्रगुप्त एक महान शासक था, जो कि स्वयं एक कवि, संगीतज्ञ, विद्वान और एक महान योद्धा था। समुद्रगुप्त को एक कुशल शासक भी माना जाता था, जो हिन्दू धर्म का अनुयायी था और साथ ही वह बौद्ध और जैन इत्यादि धर्मों का भी सम्मान करता था।

वह धर्मनिरपेक्ष प्रकार का राजा था, जो सभी धर्मों का सम्मान करता था और वह धर्म के संबंध में धर्म सहिष्णुता की नीति अपनाता था। समुद्रगुप्त एक महान शासक था और उसके विजयों की जानकारी हमें इलाहाबाद प्रशस्ति से मिलती है। अगर आपने एरण अभिलेख का नाम सुना हो तो आपको पता होगा कि समुद्रगुप्त की जानकारी हमें एरनपुरा अभिलेख और सिक्कों से भी मिलती है।

कवि हरिषेण द्वारा संस्कृत भाषा में लिखित एक प्रशस्ति में भी यह बताया गया है कि समुद्रगुप्त ने अपने आसपास के 9 राज्यों को हराया था। जिसमें दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उसके आसपास के क्षेत्र भी इसमें शामिल है। साथ ही यह भी बताया जाता है कि समुद्रगुप्त ने तकरीबन 12 राज्यों को जीतकर अपने अधीन किया था उनमें उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, पल्लव इत्यादि राज्य सम्मिलित है।

चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास और मौर्य वंश की स्थापना के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

विक्रमाद्वितीय

विक्रमाद्वितीय को चन्द्रगुप्त द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के अन्य नामों की जानकारी भी हमें अलग-अलग प्रशस्ति में मिलती है, जिसमें देवराज व देवगुप्त इत्यादि शामिल है। देश में अलग-अलग जगहों पर कई अभिलेख मिले है जैसे उदयगिरि, सांची, मथुरा, महरौली इत्यादि प्रशस्तियों में चन्द्र्रुप्त द्वितीय की जानकारी के स्त्रोत मिलते है।

इन सभी अभिलेखों से हमें चन्द्रगुप्त की बहादुरी के प्रमाण मिलते है, जिसमे यह बताया गया है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय ने गुजरात व मालवा और सौराष्ट्र जैसे राज्यों को हराकर अपने अधीन किया था। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उज्जयिनी यानी उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था।

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चन्द्रगुप्त और विक्रमादित्य की मुद्रा

कुमारगुप्त प्रथम

गुप्त वंश इतिहास में यह भी एक महान शासक के रूप में जाना जाता है। कई भितरी अभिलेख, भिल्साद सत्मभ अभिलेख, गढ़वा अभिलेख और मनकुवार मूर्ति अभिलेख से हमें कुमारपाल प्रथम की जानकारी के स्त्रोत मिलते है।

स्कन्दगुप्त 

कुमारपाल के पुत्र स्कन्दगुप्त भी एक ऐसा शासक था, जिसने शकों व हूणों को हराया था और उनको हरा कर स्कन्दगुप्त ने शंकर द्वितीय की उपाधि भी धारण की थी। जिस समय कुमार पाल के पुत्र स्कन्दगुप्त ने शकों व हूणों को हराया था, उस समय शकों ने भारत के उत्तर पश्चिम हिस्सों में कई बार आक्रमण किये थे।

ऊपर आपको गुप्त वंश के कुछ शासकों के बारे में बताया गया है, जिन्होने गुप्त वंश के शासन काल में कई महान काम किये है। गुप्त वंश के कुछ अन्य शासक जो गुप्त वंश से संबंधित थे, निम्न है:

  • श्रीगुप्त
  • घटोत्कच
  • चन्द्रगुप्त प्रथम
  • समुद्रगुप्त
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य)
  • कुमारगुप्त/महेन्द्रादित्य
  • स्कंदगुप्त
  • पुरुगुप्त
  • नरसिंहगुप्त (बालादित्य)
  • कुमारगुप्त द्वितीय, बुधगुप्त, भानुगुप्त
  • वैन्यगुप्त, कुमारगुप्त द्वितीय
  • विष्णुगुप्त तृतीय

गुप्त वंश का कार्यकाल कब तक था?

गुप्त वंश का संपूर्ण कार्यकाल लगभग 300 वर्षों तक रहा। जिसमें से पीढ़ी दर पीढ़ी प्रत्येक शासकों ने कुछ वर्षों तक शासन किया। उसके बाद उसकी दूसरी पीढ़ी ने शासन किया। ऐसे ही करते-करते गुप्त वंश का कार्यकाल 300 वर्षों तक चला। हमने नीचे कुछ शासकों का कार्यकाल था, उनके बारे में जानकारी दी है, जो निम्नलिखित है:

श्री गुप्त

गुप्त वंश का शासक इतिहासकार व राष्ट्रीय को कोई माना जाता है। लोगों का ऐसा मानना है कि श्री गुप्त गुप्त ने ही गुप्त वंश की नींव रखी थी, श्री गुप्त ने हीं महाराजा की उपाधि धारण की थी।

घटोत्कच

इसके बारे में कोई पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।

चंद्रगुप्त प्रथम

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक चंद्रगुप्त प्रथम ही है। क्योंकि पहले गुप्त वंश मगध तक ही फैला था लेकिन चंद्रगुप्त प्रथम ने उसे इलाहाबाद तक फैला दिया। गुप्त वंश के शासक में चंद्रगुप्त प्रथम ही एक शासक था, जिसने महाराजाधिराज की उपाधि को धारण किया।

कुछ समय पश्चात चंद्रगुप्त प्रथम लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। जिसके बाद में चलकर चंद्रगुप्त प्रथम को समुद्रगुप्त प्राप्त हुआ। चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने जीवनकाल में ही समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था किंतु समुद्रगुप्त को उत्तराधिकारी का युद्ध लड़ना पड़ा था। चंद्रगुप्त प्रथम का शासन काल 319 ईस्वी से लेकर 335 ईस्वी तक चला था।

समुद्रगुप्त

चंद्रगुप्त प्रथम के बाद गुप्त वंश का शासक समुद्रगुप्त बना। समुद्रगुप्त भी बहुत प्रतापी राजा था। इसने उत्तर भारत के 9 तथा दक्षिण भारत के 12 राजाओं को पराजित किया तथा समुद्रगुप्त ने भी कभी हार नहीं मानी। समुद्रगुप्त को 100 युद्ध का विजयी राजा कहा जाता है। समुद्रगुप्त के शरीर पर पूरे 100 घाव थे।

इसके काल में लगभग 6 प्रकार के सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिनमें अलग-अलग छवियां अंकित है। जिसमें किसी पर धनुर्धारी प्रकार के, परसु प्रकार के, व्याघ्रहनन प्रकार के, अश्वमेघ प्रकार के, गरुड़ प्रकार के और वीणा वादन प्रकार के उसके सिक्कों पर अंकित विदा इस बात का प्रतीक है कि स्कंद गुप्त संगीत प्रेमी था, जिसके कारण उसे कविराज की उपाधि दी गई है। समुद्रगुप्त का कार्यकाल 335 ईस्वी से लेकर 375 ईस्वी तक रहा।

चंद्रगुप्त द्वितीय

चंद्रगुप्त नाम का अर्थ होता है पराक्रम का सूर्य। चंद्रगुप्त द्वितीय बहुत पराक्रमी राजा था। चंद्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की चंद्रगुप्त आपने काल में लड़ाई एवं युद्ध के कारण बहुत चर्चा में था। केवल लड़ाई एवं युद्ध के कारण ही नहीं बल्कि अगाध अनुराग एवं प्रेम के कारण भी चंद्रगुप्त द्वितीय को जाना जाता था।

चंद्रगुप्त द्वितीय का शासन काल 380 ईसवी से लेकर 412 ईसवी तक चला था। चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में लगभग 9 विद्वान रहते थे, जिन्हें चंद्रगुप्त के नवरत्नों के नाम से जाना जाता था। उन सभी विद्वानों के नाम निम्नलिखित हैं, जो चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहते थे।

  • कविकुलगुरु कालिदास
  • धनवंतरी
  • क्षपडक
  • अमर सिंह
  • वराह मिहिर
  • वर रुचि
  • शंकु
  • बेताल भट्ट
  • घटपर्कर

चंद्रगुप्त के दरबार उपस्थित यही 9 विद्वान थे, जिन्हें चंद्रगुप्त के नौ रत्नों के नाम से जाना जाता था।

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कुमारगुप्त

कुमारगुप्त ने नए राज्यों को अपने राज्य में तो सम्मिलित नहीं किया बल्कि कुमारगुप्त ने अपने राज्य की सीमा को कम ना होने दिया। अर्थात कुमार गुप्ता ने अपनी राज्य की सीमा को जितना का उतना ही रहने दिया।

गुप्त वंश के शासकों में सबसे लंबे समय तक राज करने वाला यही शासक था, जिसने सबसे लंबे समय तक राज्य किया। इसके समय कुमारगुप्त के पुष्यमित्रों का आक्रमण होता है परंतु कुमारगुप्त पुत्र स्कंद गुप्त उन सभी लोगों को पराजित कर देता था। कुमारगुप्त का शासनकाल 415 ईसवी से लेकर 457 ईसवी तक रहा था।

स्कंद गुप्त

स्कंद गुप्त के शासनकाल में गुप्त वंश की राजधानी को स्थानांतरित करके अयोध्या को राजधानी बनाया गया। कई उल्लेख ओसिया पता चलता है कि मलेच्छों का आक्रमण चंद्रगुप्त के शासनकाल में हुआ था, जिसे स्कंद गुप्त ने पराजित कर दिया था। स्कंद गुप्त के शासनकाल में ही भारी वर्षा के कारण सुदर्शन झील का बांध टूट गया था। स्कंद गुप्त का शासनकाल 455 ईसवी से लेकर 467 ईसवी तक चला था।

पुरूगुप्त

गुप्त वंश के शासक में पूर्व गुप्ता ही एक ऐसा शासक था, जो कि अपनी सर्वाधिक आयु में गुप्त वंश का सम्राट बना। साथ ही साथ यही एक ऐसा गुप्त वंश का शासक था, जो बौद्ध धर्म का अनुयाई था।

बुद्धगुप्त

गुप्त के बाद बुद्ध गुप्त एक ऐसा शासक रहा, जो बौद्ध धर्म का अनुयाई था। इस के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य तीन शाखाओं में बट गया, वे शाखाएं निम्नलिखित हैं:

  • मालवा – भानुगुप्त
  • बंगाल – वैन्यगुप्त
  • मगध -नरसिंह गुप्त बालआदित्य

भानु गुप्त

भानु गुप्त के शासनकाल में हुड आक्रमण के दौरान गुप्त सेनापति के मारे जाने के बाद उसके पत्नी की सति होने की जानकारी प्राप्त होती है।

विष्णुगुप्त तृतीय

विष्णु गुप्त तृतीय गुप्त वंश का अंतिम शासक था।

गुप्त वंश से सम्बंधित प्रमुख तथ्य

  • गुप्त वंश एक इस प्रकार का साम्राज्य था, जिसके शासनकाल में केवल विकेन्द्रकीरण प्रवृत्ति बढी है।
  • गुप्त वंश के यह तीन शासक थे, जिन्होंने विक्रमा द्वितीय की उपाधि धारण की थी, जिसमें समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त और स्कंदगुप्त शामिल है।
  • इस शासन के काल में महिलाओं की स्थिति भी काफी बिगड़ी थी। इस शासन का कार्यकाल महिलाओं के लिए काफी बैकार था। इस काल में महिलाओं के लिए बाल विवाह, सती प्रथा, देवदासी प्रथा और पर्दा प्रथा जैसी कई प्रथाओं का प्रचलन बढ़ने लगा।
  • राजस्थान का भरतपुर इकलौता ऐसा जिला है, जहां पर सबसे ज्यादा गुप्तकालीन सिक्के मिले हैं।
  • गुप्त वंश के राजाओं का राजचिन्ह गरुण था और गरुण प्रकार के सिक्कों पर ही राजाज्ञा अंकित होती थी। उनके सिक्कों पर गरुड़ का चिन्ह हमेशा लगा होता था।
  • जब महाभारत और रामायण काल समाप्त हुआ तब गुप्त वंश का शुभारम्भ माना जाता है।
  • हमने अपने आसपास कई प्राचीन मंदिर देखे होंगे, उनमे से देवगढ व दशावतार का मंदिर भी इसी गुप्त वंश के काल में बना हुआ है। यह मंदिर पंचायतन शैली में बने हुए है।
  • गुप्त वंश के काल में ही उदयगिरी का प्राचीन मंदिर बना है, जिसमें विष्णु के 12 अवतारों की विशाल मूर्ति काफी प्रसिद्ध है।
  • अजंता की गुफाएं भी काफी प्रसिद्ध है, उनमें से गुफा 16, 17 और 19 भी इन्ही के काल में बनी है।
  • गुप्त वंश के काल में ही गणित व ज्योतिष का काफी विकास हुआ है। इस वंश के कुछ राजा तो स्वयं ही गणितज्ञ और विशेषज्ञ थे।
  • “पंचसिद्धांतिका” नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना और नागार्जुन कृत अष्टांगसंग्रह नामक आयुर्वेद ग्रंथ भी गुप्त काल में ही रचे गये है।
  • हम जिन पुराणों की बात करते है, वह पुराण की रचना भी गुप्त काल में ही हुई है।
  • शल्य चिकित्सा का विकास भी गुप्त काल में ही हुआ है।
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इस काल की अजन्ता चित्रकला

गुप्त वंश का पतन

ऐसा माना जाता है कि स्कन्दगुप्त की मृत्यु सन् 467 में हो गई थी। परन्तु इसके बाद भी आगे 100 वर्षों तक यह वंश चलता रहा और समय के साथ कमजोर होता गया। गुप्त वंश का अंतिम शासक विष्णुगुप्त तृतीय था।

FAQ

गुप्त वंश की स्थापना किसने की थी?

गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी।

गुप्त वंश का साम्राज्य विस्तार कहाँ तक था?

गुप्त वंश का साम्राज्य विस्तार उत्तर भारत के साथ साथ मध्य भारत और दक्षिण भारत तक फैला था।

गुप्त वंश का सबसे महान शासक किसे माना जाता है?

गुप्त वंश के वैसे तो सभी शासक महान ही थे, परन्तु हम समुद्रगुप्त को महान कह सकते है। क्योंकि इतिहास के स्रोतों में उनकी कई जानकारी मिलती है, जो उन्हें महान बनाती है।

गुप्त साम्राज्य की राजधानी कहा थी?

गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र मानी जाती है।

गुप्त साम्राज्य की मुख्य भाषाएं कौनसी थी?

गुप्त साम्राज्य में मुख्यतः संस्कृत और प्राकृत भाषा बोली जाती थी।

निष्कर्ष

इस लेख गुप्त वंश का इतिहास (gupta empire in hindi) में आपको गुप्त वंश के बारे में बताया गया है। गुप्त वंश की जरूरी जानकारी के बारे में आप इस लेख में पढ़ चुके है। उम्मीद करते है आपको यह लेख पसंद आया होगा। आपने अपने सुझाव हमें नीचे कमेंट कर के बता सकते है।

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Sawai Singh
Sawai Singh
मेरा नाम सवाई सिंह हैं, मैंने दर्शनशास्त्र में एम.ए किया हैं। 2 वर्षों तक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी में काम करने के बाद अब फुल टाइम फ्रीलांसिंग कर रहा हूँ। मुझे घुमने फिरने के अलावा हिंदी कंटेंट लिखने का शौक है।

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