Postage Stamps History in Hindi: पहले के समय में डाक टिकट दूर बैठे लोगों तक संचार स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हुआ करता था। लेकिन आधुनिक समय में मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के कारण लोग डाक टिकट का बहुत कम इस्तेमाल करने लगे हैं। यूं कहे कि लोगों ने इसे अलविदा ही कह दिया है।
लेकिन ऐसा नहीं है कि डाक टिकट का प्रचलन पूरी तरीके से खत्म हो चुका है। अभी भी सुदूर सरकारी ऑफिस से संवाद स्थापित करने के लिए डाक टिकट का इस्तेमाल किया जाता है। वैसे भारत में डाक टिकट का इतिहास काफी दिलचस्प है। इसका इतिहास देश के आजादी के जितना ही पुराना है।
तो चलिए इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि दुनिया में पहला डाक टिकट कब शुरू किया गया और भारत में डाक टिकट का प्रचलन कब और कैसे शुरू हुआ, इसके अलावा डाक टिकट से जुड़ी और भी रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे।
दुनिया में पहली डाक टिकट की शुरुआत
दुनिया का पहला डाक टिकट अंग्रेजी शिक्षक और समाज सुधारक रोलैंड हिल ने आज से 178 साल पहले किया था। हालांकि इसका पहला इस्तेमाल 6 मई 1840 को किया गया था। दुनिया का पहला डाक टिकट ब्रिटेन में जारी हुआ था, जिसका नाम था “ब्लैक पेनी”।
उस काले रंग के डाक टिकट पर महारानी विक्टोरिया का चित्र बना हुआ करता था, जिसकी कीमत ब्रिटेन की एक मुद्रा पेनी में हुआ करती थी। शुरुआत में इस पहले डाक टिकट की 6.8 करोड़ प्रतियां छापी गई थी।
एक पेनी के डाक टिकट से किसी भी दूरी तक 14 ग्राम तक का पत्र भेजा जा सकता था। यह टिकट तकरीबन 1 साल तक प्रचलन में रहा, उसके बाद 1841 में ब्लैक पेनी की जगह पर पेनी रेड टिकट का इस्तेमाल होने लगा।
अब भले ही डाक सेवा का प्रचलन कम हो गया हो लेकिन अभी भी दुनिया की लगभग 82 फ़ीसदी आबादी को डाक के जरिए ही होम डिलीवरी की सुविधा प्राप्त होती है, जिसमें 77% लोग ऑनलाइन डाक सेवा का लाभ उठा रहे हैं।
भारत में डाक टिकट की शुरुआत
भारत में डाक टिकट का इतिहास 168 साल पुराना है। सबसे पहले भारत में 1 अक्टूबर 1854 को महारानी विक्टोरिया के नाम पर डाक टिकट जारी किया गया था। उसी समय भारत में डाक विभाग की स्थापना की गई थी।
भारत के डाक टिकट में भारत के गुलामी से लेकर उसके आजादी तक का सफर नजर आता है। भारत जब ब्रिटिश शासन के हाथों में था तब डाक टिकट ब्रिटिश केंद्रित हुआ करता था। उस समय भारत में डाक विभाग शुरू करने का उद्देश्य भारतीयों का शोषण करना था। ब्रिटिश प्रशासन ने अपने हित के लिए ज्यादातर सुविधा शुरू की थी।
लेकिन बाद में भारतीयों को भी इसका फायदा मिला। भारत आजाद होने के बाद 1947 के बाद जारी डाक टिकट में नए भारत को संप्रेषित किया गया।
आजाद भारत का पहला डाक टिकट महात्मा गांधी के ऊपर जारी किया गया था और सबसे ज्यादा महात्मा गांधी के नाम पर ही डाक टिकट जारी हुए है। भारत के डाक टिकट पर स्वतंत्रता सेनानी से लेकर देश की धरोहर और कई लोकप्रिय चेहरों को इसमें स्थान दिया गया।
डाक टिकट की कीमत में परिवर्तन
देश की आजादी से लेकर अब तक डाक टिकट की कीमत में काफी परिवर्तन हुआ है। शुरुआत समय में जब भारत आजाद हुआ था, उस समय डाक टिकट का इस्तेमाल केवल भारत के अंदर डाक भेजने के लिए होता था।
आजाद भारत में जारी पहला डाक टिकट के ऊपर भारतीय ध्वज का चित्र और जय हिंद लिखा हुआ है। उस समय डाक टिकट की कीमत “आना” में हुआ करती थी। उस समय एक रुपए 100 पैसे का नहीं बल्कि 64 पैसा यानी कि 16 आने का होता था।
उस समय रुपए के जगह पर चवन्नी, अठन्नी ज्यादातर प्रचलन में थे। आजाद भारत के पहले डाक टिकट की कीमत साढे तीन आना यानी कि 14 पैसे के बराबर हुआ करती थी।
डाक टिकट पर लोकप्रिय चेहरे
डाक टिकट कई लोकप्रिय चेहरे और ऐतिहासिक जगहों के नाम से जारी किया जाता है। ऐसे शख्सियत जो देश के निर्माण में, देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, उनके नाम से डाक टिकट जारी होता है।
14 नवंबर 2013 को भारत के पूर्व क्रिकेटर और भारत रत्न प्राप्तकरता सचिन तेंदुलकर का क्रिकेट में अहम योगदान को देखते हुए उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया गया। सचिन तेंदुलकर देश के पहले जीवित व्यक्ति है, जिन पर डाक टिकट जारी किया गया।
इसके अतिरिक्त ऐसे कई व्यक्ति के नाम से डाक टिकट जारी किए गए हैं, जिन्होंने देश के निर्माण में बहुत योगदान दिया है। जैसे कि भारत रत्न मदर टेरेसा, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पूर्व राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी, लोकप्रिय इंजीनियर डॉक्टर एम विश्वरिया और समाज सुधारक डीके कर्वे जिनके जीवन काल में उनके नाम से डाक टिकट जारी किया गया।
हालांकि सबसे पहले महात्मा गांधी के नाम पर डाक टिकट जारी किया गया था। 1947 को महात्मा गांधी के नाम पर डाक टिकट जारी हुआ था, उस समय वे जीवित थे। लेकिन किसी ने कहा कि आजादी के जश्न पर डाक टिकट जारी होना चाहिए, जिसके कारण 15 अगस्त 1948 को महात्मा गांधी के नाम से डाक टिकट जारी हुआ। उस समय उनकी मृत्यु हो चुकी थी।
वैसे अब तक कई शख्सियत के नाम पर डाक टिकट जारी हो चुके हैं लेकिन सबसे ज्यादा महात्मा गांधी के नाम से डाक टिकट जारी हुए हैं। कई ऐसे लोगों के नाम पर भी डाक टिकट जारी हो चुके हैं, जिनमें से कुछ डाक टिकट प्रचलन में नहीं आए लेकिन उन्हें केवल सम्मान स्वरूप प्रकाशित किया गया।
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विश्व डाक दिवस
लोगों को डाक विभाग के बारे में जानकारी देने, उसके प्रति जागरूक करने और डाकघर के बीच सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से हर साल विश्व भर में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है।
साल 1874 में स्विट्जरलैंड के बर्न में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की स्थापना की गई और इस अवसर पर 9 अक्टूबर को हर साल विश्व डाक दिवस मनाने की भी घोषणा की गई। भारत ने 1 जुलाई 1876 को यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की सदस्यता ग्रहण की थी।
इस तरह भारत एशिया का पहला देश है, जो यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य है। हर साल विश्व डाक दिवस के दिन नए-नए थीम होते हैं। साल 2023 में विश्व डाक दिवस की थीम together for trust: collaborating for safe and connected future था।
FAQ
डाक टिकट को संग्रहित करने की कला को फिलैटली कहा जाता है। डाक टिकट को जिंदा रखने के लिए, उसके महत्व को समझाने के उद्देश्य से भारत में डाक विभाग स्कूलों में फिलैटली क्लब भी खोला गया है।
भारत में वर्तमान में 1.50 लाख से भी अधिक डाकघर है। भारत में 1 अक्टूबर 1854 को एक विभाग के तौर पर डाक विभाग की स्थापना हुई थी।
निष्कर्ष
उपरोक्त लेख में आपने डाक टिकट का इतिहास, भारत में सबसे पहले किसके नाम से डाक टिकट की शुरुआत की गई, भारत में डाक टिकट का सफर और डाक टिकट से जुड़े कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की।
हमें उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए बहुत ही जानकारी पूर्ण रहा होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया के द्वारा अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।