Maharana Pratap ki Jivani: आज के इस लेख के माध्यम से हम ऐसे शूरवीर महाराजा की बात करने वाले हैं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में वीरता और दृढ़ के लिए अमर है। जी हां, आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको महावीर प्रतापी राजा महाराणा प्रताप सिंह के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करवाने वाले हैं।
महाराणा प्रताप ने अनेकों बार मुगल वंश को युद्ध में हराया और विजय प्राप्त की। यहाँ पर हम महाराणा प्रताप का जीवन परिचय (Biography of Maharana Pratap in Hindi) और महाराणा प्रताप की कुछ युद्ध नीति के बारे में चर्चा करेंगे।
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय | Maharana Pratap ki Jivani
महाराणा प्रताप जीवनी एक नज़र में
नाम | महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया |
जन्म | 9 मई 1540 |
आयु | 95 वर्ष (मृत्यु तक) |
जन्म स्थान | राजस्थान राज्य के कुंभलगढ़ दुर्ग |
पिता का नाम | महाराजा उदय सिंह |
माता का नाम | रानी जयवंता कँवर |
पत्नी का नाम | अजबदे (महाराणा प्रताप ने 11 शादियाँ की थी) |
पेशा | महाराजा |
घोड़ा | चेतक |
बच्चे | 22 (17 पुत्र और 5 पुत्रियाँ) |
मृत्यु | 19 जनवरी 1597 |
मृत्यु स्थान | कुंभलगढ़ दुर्ग |
भाई-बहन | – |
राज्य | कुंभलगढ़ दुर्ग |
महाराणा प्रताप कौन थे? (Maharana Pratap Kaun The)
महाराणा प्रताप उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया नामक राजवंश के एक कुशल शासक थे। महाराणा प्रताप इतने प्रतापी और शूरवीर थे कि उनके वीरता और उनकी दृढ़ प्रण की गाथा इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर हो गए। यहां तक कि महाराणा प्रताप ने बादशाह अकबर के साथ अनेकों वर्षों तक संघर्ष किया और महाराणा प्रताप जी ने मुगल वंश को अनेकों बार युद्ध में पराजित भी किया।
महाराणा प्रताप जी का जन्म राजस्थान राज्य के कुंभलगढ़ में महाराजा उदय सिंह और माता रानी जयवंता कवर के घर में हुआ था। महाराणा प्रताप अपने शौर्य और वीरता के दम पर अनेकों राज्य को अपने अधीन किया था। परंतु उन्होंने उन राज्यों पर शासन ना करके वहां के राजाओं को अपना मित्र बनाया और उन राज्यों को उन्हीं राजाओं को सौंप दिया, जो वहां के मूल राजा थे।
ऐसा कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप किसी भी प्रकार का प्रण कर लेते हैं तो वह अपने प्रण से पीछे नहीं हटते और अपने प्राण को अपनी जान देकर भी निभाते थे। महाराणा प्रताप के पास एक बहुत ही समझदार घोड़ा था, जोकि महाराणा प्रताप का सच्चा साथी था।
महाराणा प्रताप के इस घोड़े के विषय में नीचे विशेष रूप से चर्चा की जाएगी। महाराणा प्रताप के पास अनेकों शूरवीर सैनिक थे और इन सैनिकों ने महाराणा प्रताप की जान बचाने के लिए अपने प्राण को भी दाव पर लगा दिया अर्थात वे महाराजा महाराणा प्रताप के प्रमुख सैनिक थे।
महाराणा प्रताप का जन्म कहां और कब हुआ था?
महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान राज्य के कुंभलगढ़ दुर्ग में महाराणा उदय सिंह और रानी जयवंता कवर के घर में 9 मई 1540 को हुआ था। महाराणा प्रताप का जन्म राजपूताना घराने में हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता की महारानी जयवंता के अलावा और भी पत्नियां थी, जिनमें से रानी धीरबाई (रानी भटियाणी) राजा उदय सिंह की प्रिय पत्नी थी।
रानी धीरबाई की यह इच्छा थी कि उनका पुत्र जगमाल महाराजा उदय प्रताप सिंह का उत्तराधिकारी बने। महाराणा उदय प्रताप सिंह के राणा प्रताप और जगमाल के अलावा अन्य दो पुत्र शक्ति सिंह और सागर सिंह भी थे। इन दोनों के मन में भी राणा उदय सिंह के बाद राज गद्दी संभालने की प्रबल इच्छा थी। परंतु प्रजा और राणा उदय सिंह जी ने प्रताप को ही अपना उत्तराधिकारी माना था। इसी कारण यह तीनों भाई महाराणा प्रताप से अत्यंत घृणा करते थे।
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महाराणा प्रताप की लंबाई और उनका वजन
महाराणा प्रताप का कद लगभग साढ़े 7 फुट का था और इसके साथ ही महाराणा प्रताप लगभग 110 किलो ग्राम के थे। महाराणा प्रताप के सुरक्षा कवच का वजन लगभग 72 किलोग्राम का था और उनके भाले का वजन 80 किलो था।
महाराणा प्रताप के तलवार ढाल वाला और कवच आदि को मिलाने पर उन सभी का वजन लगभग 200 किलोग्राम से भी अधिक था अर्थात महाराणा प्रताप 200 किलोग्राम से भी अधिक वजन के साथ लड़ाई करने जाते थे। महाराणा प्रताप के कवच तलवार इत्यादि जैसी बहुमूल्य वस्तुएं आज के समय में भी उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षा पूर्वक रखा गया है।
महाराणा प्रताप का प्रारंभिक जीवन (Maharana Pratap ka Jivan Parichay)
महाराणा प्रताप बहुत ही प्रतापी और साहसी राजा थे। उन्होंने अपने बचपन में ही पराक्रम दिखाना शुरू कर दिया। बचपन में सभी लोग शूरवीर महाराणा प्रताप को कीका नाम से पुकारते थे। शूरवीर महाराणा प्रताप बचपन से ही परम प्रतापी, शूरवीर, साहसी, स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय थे।
महावीर राणा प्रताप ने सिंहासन धारण करते हैं, उनके सामने एक बहुत ही संकटकारी विपत्ति आन पड़ी। परंतु महाराणा प्रताप ने इस विपत्ति का सामना बड़े ही धैर्य और साहस के साथ किया और उन्होंने इस विपत्ति को हरा भी दिया। महाराणा प्रताप के पिता के द्वारा उन्हें ढाल और तलवार चलाने का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया जाता था। क्योंकि उनके पिता महाराणा प्रताप को एक कुशल योद्धा बनाना चाहते थे।
महाराणा प्रताप ने बहुत ही छोटी सी उम्र में ही अपने विशाल साहस का परिचय लोगों को दिया। महाराणा प्रताप जब भी अपने बचपन में बच्चों के साथ घूमने के लिए जाते थे तो वह बात ही बात में अपना एक दल तैयार कर लेते थे और अपने दल के बच्चों के साथ वे ढाल और तलवार चलाने की शिक्षा का अभ्यास करते थे।
महाराणा प्रताप अपने इसी दल टुकड़ियों के साथ तलवार और ढाल चलाने के खेल के माध्यम से ही इस कला में बहुत ही पारंगत हो गए और महाराणा प्रताप को इस कला में हराना किसी के बस की बात नहीं रही।
महाराणा प्रताप अपने प्रण के लिए बहुत ही कर्तव्यनिष्ठ थे और उन्होंने अपने पिता की अंतिम इच्छा के अनुसार उन्होंने अपने सौतेले भाई जगमाल को राजा बनाने का निश्चय किया। परंतु मेवाड़ के विश्वासपात्र राजपुरोहित ने जगमाल के विषय में ऐसा बताया कि यदि जगमाल को मेवाड़ का सिंहासन दे दिया जाता है तो यह मेवाड़ वासियों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है और इसी के साथ जगमाल को राजगद्दी छोड़ने के लिए बाधित कर दिया गया।
जगमाल राज गद्दी छोड़ने के लिए इच्छुक नहीं थे और जब उनसे राजगद्दी छुड़ा ली गई तब हुए गुस्से में अकबर की सेना के साथ मिल गए और उन्होंने मेवाड़ की सारी जानकारी अकबर को बता दी। इसके बदले में जगमाल को जहाजपुर की जागीर जलालुद्दीन अकबर के द्वारा भेंट स्वरूप दे दी गई।
महाराणा प्रताप की वीरता के संबंध में बहुत ही आदर्श मत प्रस्तुत किया गया है और यह मत बहुत ही अद्वितीय है अर्थात ऐसा वर्णन अन्य किसी भी राजा के लिए नहीं किया गया था। महाराणा प्रताप ने जिन परिस्थितियों में संघर्ष किया है, वैसा करना अन्य किसी भी राजा के लिए असंभव साबित होता है।
ऐसी परिस्थितियों में भी उन्होंने संघर्ष किया और कभी हार नहीं मानी। यदि हम बात करें कि हिंदू राजपूतों को भारत के इतिहास में सम्मान पूर्वक स्थान मिल सका है तो वह केवल महाराणा प्रताप के द्वारा ही मिला है। अर्थात ऐसा होने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ महाराणा प्रताप को जाता है।
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महाराणा प्रताप का परिवार
भाई: शक्ति सिंह, जेत सिंह, खान सिंह, राय सिंह, अगर, जगमाल, विरम देव, नारायणदास, सगर, सुलतान, सिंहा, लूणकरण, पच्छन, सरदूल, भव सिंह, बेरिसाल, साहेब खान, महेशदास, रुद्र सिंह, नेतसी, चंदा, मान सिंह।
क्र.सं. | पत्नी का नाम | संतान |
01 | महारानी अजबदे पंवार | अमरसिंह और भगवानदास |
02 | अमरबाई राठौर | नत्था |
03 | शहमति बाई हाडा | पुरा |
04 | अलमदेबाई चौहान | जसवंत सिंह |
05 | रत्नावती बाई परमार | माल, गज, क्लिंगु |
06 | लखाबाई | रायभाना |
07 | जसोबाई चौहान | कल्याणदास |
08 | चंपाबाई जंथी | कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह |
09 | सोलनखिनीपुर बाई | साशा और गोपाल |
10 | फूलबाई राठौर | चंदा और शिखा |
11 | खीचर आशाबाई | हत्थी और राम सिंह |
महाराणा प्रताप की युद्ध नीति
महाराणा प्रताप बहुत से युद्ध में हिस्सा लिया और उन युद्धों को बड़ी ही सफलतापूर्वक विजय प्राप्त कर ली। ऐसे में क्या आप जानते हैं महाराणा प्रताप अपने युद्धों में किन युद्ध नीतियों का प्रयोग करते थे। यदि नहीं तो कृपया नीचे दिए गए निम्नलिखित बिंदुओं को अवश्य पढ़ें:
- महाराणा प्रताप की युद्ध नीति में सबसे ऊपर उनकी किसी भी अधीनता के विरुद्ध हार नहीं मानना आता है।
- महाराणा प्रताप का कहना था कि आप किसी भी युद्ध को लड़ने जाएं तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि आप स्वयं पर आत्मा विश्वास रखें।
- आपको किसी भी युद्ध में हिस्सा लेने से पहले उस युद्ध के संबंध में कुछ आवश्यक प्रण कर लेनी चाहिए।
- आपको किसी भी युद्ध में जीत हासिल करने के लिए कुशल एवं निपुण सैनिक और सेनानायक की आवश्यकता होगी।
मातृभूमि के रक्षक महाराणा प्रताप
जिस समय महाराणा प्रताप राजा बने थे, उस समय मेवाड़ राज्य बड़ा ही शक्तिहीन राज्य था। 1572 तक जलालुद्दीन अकबर ने मेवाड़ राज्य को उत्तर पूर्व और पश्चिम मुगल प्रदेशों से पूर्णतः घिर चुका था। अकबर यह चाहता था कि महाराणा प्रताप आर्थिक रूप से कमजोर हो जाएं। अकबर महाराणा प्रताप पर आर्थिक, सैनिक, राजनीतिक इत्यादि प्रकार के दबाव डालकर युद्ध किए बिना ही मेवाड़ राज्य को हथियाना चाहता था।
जैसा कि हमने आपको बताया राणा प्रताप का सौतेला भाई जगमाल जलालुद्दीन अकबर का जागीर पाकर के उसका गुलाम बन चुका था, अब केवल महाराणा प्रताप के पास मेवाड़ राज्य का संकुचित पर्वती क्षेत्र ही बचा हुआ था। इस पर्वतीय क्षेत्र की लंबाई लगभग 30 किलोमीटर और लगभग इतनी ही उसकी चौड़ाई भी थी।
अकबर के पास बहुत ही काफी मात्रा में धन संपत्ति थी, इसके मुकाबले मेवाड़ राज्य कुछ भी नहीं था। परंतु फिर भी महाराणा प्रताप ने अपने शौर्य और वीरता के साथ अकबर को हराया और उन्होंने अपने मातृभूमि की रक्षा भी की।
महाराणा प्रताप की हल्दीघाटी का युद्ध
वर्ष 1576 में अप्रैल माह को मान सिंह के नेतृत्व में अकबर ने अपनी एक संघ सेना की टुकड़ी भेजी, परंतु महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी की सुरक्षा के लिए पूर्णता मोर्चाबंदी कर दी थी। हल्दीघाटी के समान रंग वाली अत्यंत ही संकीर्ण पहाड़ी भूमि में महाराणा प्रताप सिंह की सेना और मुगल बादशाह जलालुद्दीन अकबर की सशस्त्र सेना आ पहुंची।
मुगल राजवंश के सेनापति मानसिंह की सेना में लगभग 80,000 सैनिक थे, इसके विपरीत महाराणा प्रताप के अधीन लगभग 20,000 सैनिक ही थे। मुगल वंश और राणा प्रताप के मध्य यह भीषण युद्ध लगभग 3 घंटों तक चला। इसी युद्ध में महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक मारा गया।
हल्दीघाटी के युद्ध में सेना की भारी क्षति हुई और इसी के साथ-साथ महाराणा प्रताप की सेना के लगभग 500 सैनिक दिवंगत हो गए। महाराणा प्रताप की सेना के साथ-साथ ग्वालियर के राजाराम शाह और उनके 3 पुत्र जयमल राठौड़, राम सिंह, वीरभाला सिंह यह चारों लोग इस युद्ध में वीरता पूर्वक लड़ाई करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप को न ही बंदी बनाया जा सका और ना ही मारा जा सका। फिर भी मान सिंह की सेना की विजय हो गई। मानसिंह की सेना के विजई होने के बावजूद भी राणा प्रताप हार कर भी विजई हुए।
इसके बाद वर्ष 1577 ईस्वी में जलालुद्दीन अकबर ने अपनी एक विशाल सेना की टुकड़ी भेज करके महाराणा प्रताप को बंदी बनाने का कठोर प्रयत्न किया। महाराणा प्रताप के साथ अनेकों लोगों ने गद्दारी की, जिसके कारण मेवाड़ राज्य और असुरक्षित हो गया।
इसके उपरांत वर्ष 1578 से 1585 तक मुग़ल सैनिक महाराणा प्रताप को अधीनता स्वीकार कराने के लिए उन्हें ढूंढते रहे। महाराणा प्रताप परिवार के साथ वे पहाड़ी में ही थे।
अकबर के सैनिकों ने लगातार कड़ी परिश्रम के साथ महाराणा प्रताप की खोज करते रहे। महाराणा प्रताप और उनका परिवार अनेक वर्षों तक कंदमूल खाकर इधर-उधर भटकता रहा। इतना ही नहीं महाराणा प्रताप के पुत्रों को घास की रोटियां तक खानी पड़ी थी।
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महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े कुछ रोचक कहानी
महाराणा प्रताप के भाई बन गए थे उनके विरोधी
महाराणा प्रताप के एक भाई भी था, जिनका नाम शक्ति सिंह था। शक्ति सिंह का महाराणा प्रताप के साथ बनती नहीं थी, अक्सर दोनों में तनाव रहता था। महाराणा प्रताप से बदला लेने के लिए शक्ति सिंह हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान अकबर की सेना में शामिल हो गया और अकबर की सेना के साथ महाराणा प्रताप के विरुद्ध लड़ रहा था।
लेकिन युद्ध के दौरान उसके हृदय में महाराणा प्रताप के प्रति भातृत्व प्रेम की भावना जाग उठती है और फिर जब वह मुगल के दो सेनाओं को महाराणा प्रताप के पीछे दौड़ते हुए देखता है तो वह दोनों सेनाओं को मार कर महाराणा प्रताप की जान बचाता है।
घास की रोटी खानी पड़ी थी
जिस महाराणा प्रताप ने बड़े-बड़े योद्धाओं को धूल चटा दी थी, जो मुगलों के साथ बहादुरीपूर्वक लड़े थे अपने बच्चों के करुण दृश्य को देख उन्हीं महाराणा प्रताप का दिल बैठ गया। शायद जीवन में किसी चीज ने उन्हें इतना उदास ना किया हो, जितना उस दृश्य ने किया था।
दरअसल जब महाराणा प्रताप अकबर से हार गए थे और उन्होंने अपना राज्य खो दिया तब वे अरावली पर्वत माला के बीच एक जंगल में कुछ दिन समय बिताया था, जहां पर खाने को कुछ ना था। जिसके कारण उनकी पत्नी ने घास की रोटी बनाई थी। रोटी के आधे टुकड़े को अपने बच्चों को खाने के लिए दिया और बाकी रोटी दूसरे दिन के लिए बचा कर रखा।
लेकिन तभी अचानक महाराणा प्रताप की बेटी की चिल्लाने की आवाज आती है और पता चलता है कि एक बिल्ली उनकी बेटी के हाथ से रोटी छीन कर भाग गई है। उनकी बेटी भूख से व्याकुल होकर रोने लगी। बेटी की आंख से आंसू टपकते देख महाराणा प्रताप भाव विभोर हो गए। उन्हें अपनी बेटी पर तरस आया, उन्हें अपने राज्यधिकार पर धिक्कार होने लगा।
उन्हें इस बात का दुख होने लगा कि ऐसे राज्यधिकार का क्या फायदा, जिससे ऐसे करुण दृश्य देखने पड़े। महाराणा प्रताप के जीवन की इस एक छोटी सी करुणात्मक प्रसंग को इतिहासकार ने कविताओं के जरिए जाहिर किया है।
हवा से भी तेज रफ्तार में दौड़ता था महाराणा प्रताप का चेतक घोड़ा
यूं तो इतिहास में कई महान योद्धा हुए, जिन्होंने अपने राज्य के आन बान की रक्षा करते हुए अपने आप को शहीद कर दिया। आज भी उन यौद्धाओं को हम बहुत गर्व से याद करते हैं। लेकिन उन शहीदों में चेतक को भी नहीं भुलाया जा सकता। भले ही वह एक जानवर था लेकिन अपने मालिक के प्रति जिस तरह से वफादारी दिखाई शायद इंसानों में भी ऐसी वफादारी पाना मुश्किल है।
चेतक घोड़ा महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा था। यह घोड़ा काफी समझदार था, जो परिस्थितियों को तुरंत ही भाप लेता था। इसने महाराणा प्रताप की कई परिस्थितियों में जान बचाई। यहां तक कि इस घोड़े ने हल्दीघाटी के युद्ध में भी महाराणा प्रताप की काफी मदद की। जब महाराणा प्रताप घायल हो गए थे और कोई सहायता के लिए नहीं था तब केवल चेतक ही था, जिसने महाराणा प्रताप की जान बचाई।
महाराणा प्रताप चेतक पर सवार वहां से निकल पड़े हैं और उनके पीछे दो मुगल सैनिक भी लगे हुए थे। घायल होने के बावजूद भी चेतक महाराजा की जान बचाने के लिए तेज रफ्तार से दौड़ता है, जिसके सामने उन दोनो सैनिकों की रफ्तार भी ढीली पड़ जाती है।
यहां तक कि बीच में पहाड़ी नाला आ जाता है, जिसे चेतक छलांग मार के पार कर लेता है। लेकिन अंत में वह पूरी तरीके से थक जाता है, जिसके कारण वह दौड़ नहीं पाता और अंत में महाराणा की जान बचाते हुए खुद शहीद हो जाता है। लेकिन इतिहास में अपना नाम अमर कर जाता है। आज भी जब महाराणा प्रताप के बारे में जिक्र होता है तो उनके प्रिय घोड़े चेतक की भी बात जरूर होती है।
भील समुदाय की सारी जनता थी महाराणा प्रताप की रक्षक
जैसे आपको पता है कि महाराणा प्रताप का जन्म सबसे पुरानी पर्वतों की श्रेणी अरावली की पहाड़ी पर स्थित कुंभलगढ़ किले में हुआ था और वहां पर उनका पालन पोषण भीलों की कछका जाति द्वारा किया गया था। वे जाती महाराणा प्रताप से बहुत प्यार करते थे और महाराणा प्रताप भी उन्हें जान से भी प्यारा समझते थे।
अकबर की सेना ने कुंभलगढ़ किले को चारों तरफ से घेर लिया था। उस वक्त यही भील समुदाय के लोगों ने उनके सैनिकों का सामना किया और उन्हें 3 महीने तक किले में जाने से रोका। लेकिन अंत में किसी कारणवश किले का पानी का स्त्रोत गंदा हो गया, जिसके कारण महाराणा प्रताप को यह किला छोड़ना पड़ा, जिस पर फिर अकबर ने कब्जा कर लिया।
लेकिन अकबर भी कुछ समय तक ही इस किले पर शासन किया, उसके बाद उसने भी इस किले को छोड़ दिया। बाद में फिर इस किले पर महाराणा प्रताप का अधिकार आ जाता है।
एक समय अकबर को भी करनी पड़ी महाराणा की प्रशंसा
अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुल रहीम खानखाना ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि एक बार अकबर ने भी महाराणा प्रताप की प्रशंसा की। दरअसल जब महाराणा प्रताप अकबर से हारकर जंगल में भटक रहे थे तब अकबर ने उनकी जासूसी करने के लिए अपने राज्य से एक जासूस को भेजा।
गुप्तचर महाराणा प्रताप की जासूसी करने के बाद वापस लौट कर अकबर को बताया कि महाराज महाराणा अपने परिवार के साथ जंगल में जंगली फल, पत्तियां और जड़े खा रहे हैं और वे सभी खुशहाल लग रहे हैं, उनमें से कोई भी दुखी नहीं है। यह बात सुन अकबर को भी काफी आश्चर्य हुआ और उसका हृदय पसिज गया और उसके दिल में महाराणा प्रताप के प्रति सम्मान पैदा हुआ।
उसी समय अकबर ने महाराणा प्रताप की प्रशंसा की थी, जिसके बारे में अब्दुल रहीम खानेखाना ने अपनी भाषा में लिखते हुए बताया कि महाराणा से उनका धन, भूमि, राज्य सब कुछ छीन लिया जाता है, उन्हें जंगलों में भटकना पड़ता है, भूख से तड़पना पड़ता है लेकिन तब भी वे अपना सिर नहीं झुकाते। हिंदुस्तान के राजाओं में शायद वे एकमात्र ऐसे राजा थे, जिन्होंने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा।
पिता ने नहीं दी राजगद्दी महाराणा प्रताप को
महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह था, जिनकी कई रानियां थी। उन समस्त रानियों में धीरबाई रानी से सर्वाधिक प्रेम था। यही कारण था कि उदय सिंह ने अपने मृत्यु के पश्चात जगमाल सिंह को राज्य का अधिकारी घोषित करने का निर्णय लिया। हालांकि जगमाल सिंह उदय सिंह का सबसे जेष्ठ पुत्र था, जिसके कारण राज्य का उत्तराधिकारी उसे बनाना स्वभाविक था।
लेकिन एक सही शासक के रूप में उसके अंदर कोई भी गुणवत्ता नहीं थी। वह काफी डरपोक और बहू की विलासिता एक कारण था कि प्रजा उससे काफी नफरत करती थी। लेकिन वहीँ इसके छोटे भाई महाराणा प्रताप को राज्य के सभी लोग बहुत प्रेम करते थे और सभी लोग महाराणा प्रताप को ही उत्तराधिकारी बनवाना चाहते थे।
जब उदय सिंह ने जगमाल सिंह को उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा की तो राज्य की जनता इनके निर्णय पर काफी नाराज हो गई और उनका विरोध करना शुरू कर दिया। यहां तक कि जब जगमाल सिंह राज्य के शासन पर बैठा तो घमंड में आकर उसने जनता पर खूब अत्याचार किया।
अत्याचार को रोकने के लिए महाराणा प्रताप सिंह जगमल सिंह के पास गए और उन्हें समझाते हुए कहा कि तुम इस तरह शासन का गलत इस्तेमाल मत करो। प्रजा को अत्याचार कर के असंतुष्ट करना सही नहीं। अगर तुम ऐसे ही करते रहे तो तुम और तुम्हारा राज्य खतरे में पड़ सकता है।
महाराणा प्रताप की इस बात को सुनकर जनमाल सिंह इसे अपनी शान के खिलाफ समझने लगा और वह क्रोधित हो गया और क्रोध में आकर महाराणा प्रताप को राज्य छोड़कर जाने का आदेश दे दिया। प्रताप बिना कुछ बोले चुपचाप राज्य से निकलने के लिए घोड़े की जीन कसने की आज्ञा दी। उनका घोड़ा चेतक उनका सबसे प्रिय था, जिसे लेकर वे राज्य की सीमा से बाहर चले जाते है।
महाराणा प्रताप के अंतिम पल
महाराणा प्रताप ने वर्ष 1586 में अपनी एक नई सेना का गठन किया और इसके बाद उन्होंने उदयपुर, मांडलगढ़, कुंभलगढ़ इत्यादि को अपने कब्जे में कर लिया। महाराणा प्रताप के लिए सबसे दुखद बात यह थी कि वह चित्तौड़ को अपने कब्जे में नहीं कर पाए। चित्तौड़ राज्य को प्राप्त करने के लिए महाराणा प्रताप ने युद्ध किया।
1597 में 19 जनवरी को 57 वर्ष की उम्र में चावंड राजधानी में धनुष की डोर खींचते समय प्रताप के आंत में एक चोट लगी, जिसके कारण इनकी मृत्यु हो गई। जब महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई थी तब इनके मृत्यु की खबर सुनकर अकबर की आखों में भी आंसू आ गये थे।
FAQ
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था।
महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान राज्य के कुंभलगढ़ दुर्ग में महाराणा उदय सिंह और रानी जयवंता कंवर के घर हुआ था।
महाराणा प्रताप की 11 रानियाँ थी।
महाराणा प्रताप के पुत्र का नाम अमर सिंह था।
महाराणा प्रताप की कुल 22 संताने थी, जिनमें 17 पुत्र और 5 पुत्रियाँ थी। जिनमें महाराणा प्रताप के अजाब्दे से पैदा हुए पुत्र अमर सिंह उत्तराधिकारी बनाये गये थे।
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद 1576 में चोट के कारण महारानी अजबदे का निधन हो गया था।
महाराणा प्रताप की पहली पत्नी का नाम अजबदे पंवार था।
महाराणा प्रताप द्वारा शासित मेवाड़ की अन्तिम राजधानी चावंड थी, जो कि इतिहास में प्रसिद्ध कस्बा है। यह सराड़ा तहसील में पड़ता है, जो उदयपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
1597 में 19 जनवरी को 57 वर्ष की उम्र में चावंड राजधानी में धनुष की डोर खींचते समय प्रताप के आंत में एक चोट लगी, जिसके कारण इनकी मृत्यु हो गई।
महाराणा प्रताप ने जिस भाले से हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा था, उसका वजन 110 किलोग्राम और उसकी लंबाई 7 फिट थी। अभी उस भाले को उदयपुर शहर में स्थापित सिटी पैलेस में रखा गया है। यहां पर महाराणा प्रताप का कवच और तलवार भी रखा हुआ है।
हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के बीच 18 जून 1576 में लड़ा गया था। अकबर के सेनाओं का समर्थन राजा मानसिंह प्रथम कर रहे थे। वहीँ महाराणा प्रताप का सहयोग भील जनजाति के लोग कर रहे थे।
निष्कर्ष
आज के इस लेख महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap History in Hindi) के द्वारा हमने आपको महाराणा प्रताप के बारे में जानकारी प्रदान कराई। ऐसे में इस कहानी का मुख्य उद्देश्य यह है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर संघर्ष करते रहना चाहिए। यदि आपको यह लेख महाराणा प्रताप हिस्ट्री इन हिंदी (Maharana Pratap ki Jivani) पसंद आया हो तो इसे शेयर करें।
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