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चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास

Chittorgarh Fort History in Hindi: राजस्थान के प्राचीन किलों में से एक किला यह भी है, इसे किलों की खानदान का दादाजी भी कहा जाता है। राजस्थान का सबसे बड़ा किला यही किला है। इसने राजस्थान के किलों की कक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया हुआ है। राजस्थान का सिरमौर और महत्वपूर्ण किला चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh ka Kila) है।

चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh ka Kila)

यह किला चित्तौड़गढ़ जिले में आता है। आइये आज विश्व धरोहर चित्तौड़गढ़ किले के बारे में पूरी जानकारी पढ़ते है।

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास – Chittorgarh ka Kila

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास

चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण किसने करवाया है, यह अभी तक साबित नहीं हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार इस किले का निर्माण पाँडवों ने करवाया था। 4000 साल पहले जब योगी निर्भयनाथ ने भीम के सामने पारस पत्थर के बदले में किले के निर्माण की शर्त रखी थी तो पाँडवों ने मिलकर एक रात में ही दुर्ग का निर्माण कर दिया।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण मौर्य वंश के राजा चित्रागद मौर्य ने लगभग सातवीं शताब्दी में चित्रकूट की पहाड़ी पर करवाया था। इसका पहले नाम चित्रकूट ही था लेकिन जैसे-जैसे समय आगे चलता रहा इसका नाम चित्रकूट से चित्तौड़गढ़ पड़ गया। मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी को हरा कर बप्पा राव ने इस किले को अपने अधीन ले लिया। जिसे बाद में परमार वंश के राजा मुंज ने बप्पा राव को हराकर किले पर अपनी पताका फहराई।

दसवीं शताब्दी तक यह किला परमारों के पास रहा उसके बाद गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह ने परमार राजा यशोवर्मन को हराकर किले को अपने अधीन कर लिया। इसके बाद इल्तुतमिश ने इस पर आक्रमण कर किले को जीत लिया जिससे गुहिल शासक का राज इस किले पर होने लगा। अगर देखा जाएँ तो उस काल के सभी राजाओं के पास इस किले का आधिपत्य रहा ही है।

किले का भूगोल

राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित चित्तौड़गढ़ किला उदयपुर से 115 किमी, अजमेर से 233 किमी और जयपुर से 340 किमी दूर है। 590.6 फीट ऊँची पहाड़ी पर किला निर्मित है, इसके पास बेरच नदी गुजरती है। बेरच नदी बनास नदी की सहायक नदियों में से एक नदी है। इस किले में 84 जल निकाय हुए करते थे जो आज के समय 22 ही रह गए है।

इन जल निकायों से 50000 की सेना की पानी की जरूरत को पूरा किया जाता था और उनमें 4 बिलियन लीटर पानी को संरक्षित कर रख सकते थे। ये जल निकाय तालाब, कुओं और बावड़ियों के रूप में स्थित है। किला 13 किमी लंबी एक परिधि की दीवार से घिरा हुआ है और 45 डिग्री ढलान होने से दुश्मनों के लिए किला दुर्गम लगता था। किले के परिसर में देखने लायक 65 ऐतिहासिक निर्मित संरचनाएं है, जिसमें 4 महल, 19 मंदिर, 4 स्मारक और 20 कार्यात्मक मंदिर शामिल है।

किले में साके

चित्तौड़गढ़ किले में तीन साके ऐसे हुए है, जिसे पूरी दुनिया आज भी याद रखती है। पहले तो यह समझते है कि साका आखिर होता क्या है? साके को जौहर भी कहा जाता है और जौहर किले के अंदर रहने वाली महारानियों के साथ सैनिको की पत्नियाँ करती थी। जब युद्ध में हार मिल जाती है तब सारी पतिव्रता नारियाँ एक बड़े से कुंड में अपना दाह अग्नि को दे देती है, इसे ही जौहर या साका कहते है। इसके पीछे का कारण अपनी इज्ज़त को दूसरों के हाथों ना उछालना होता है।

जौहर कुंड

अब बात करते है उन तीन प्रसिद्ध साकों की।

पहला साका – 1303 ईस्वी में जब यहाँ के राजा राणा रतनसिंह थे तब अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा किले के ऊपर आक्रमण हुआ था और युद्द में रावलसिंह को हार मिली थी। यह खबर मिलते है रानी पद्मावती ने महल की महिलाओं के संग साका/जौहर किया था। यह इस किले का पहला साका था।

दूसरा साका – 1534 ईस्वी में राणा विक्रमादित्य किले के राजा बने, लेकिन वो इतने काबिल राजा नहीं थे, जितने पहले वाले राजा थे। वो हमेशा राग-रंग में मस्त रहते थे। जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने अपनी सेना के साथ इस किले के ऊपर आक्रमण किया तो विक्रमादित्य किले से भाग खड़े हुए। फिर रानी कर्मवती ने सभी स्त्रियों के साथ जौहर किया था।

तीसरा साका – 1567 ईस्वी में हुआ यह साका चित्तौड़गढ़ किले का आखिरी साका था। मुगल सुल्तान अकबर की सेना चित्तौड़गढ़ किले पर चढ़ाई करने लगी थी। चित्तौड़ की सेना ने मुगल सेना के साथ बड़े ही शूरवीरता से युद्ध लड़ा लेकिन मुगल सेना के सामने मेवाड़ की सेना को घुटने टेकने ही पड़े, जिसकी वजह से रानी फूल कंवर ने स्त्रियों के साथ मिलकर साका किया।

किले का महत्व

चित्तौड़गढ़ का किला (Chittorgarh ka Kila) अपनी भौगोलिक स्थिति तथा बनावट के कारण एक विशेष महत्व रखता हैं। देखा जाएँ तो इस किले के अंदर मैदान, मन्दिर, तालाब तथा सभी प्रकार के स्थल मौजूद थे, जिससे किला काफी समृद्ध था। लेकिन इस किले के साथ एक दिक्कत थी और वो दिक्कत यह थी कि आक्रमण के समय इस दुर्ग को आसानी से शत्रु सेना द्वारा घेरा जा सकता था।

इस कारण से राजपूत शासकों को रसद सामग्री और अन्न जैसी वस्तुओं को लाना मुश्किल हो जाता था। यही एक कारण था कि इतने दरवाजे तथा शक्तिशाली दुर्ग होने के बाद भी जब अनाज समाप्त हो जाता तो मजबूरन किले के दरवाजे खोलने पड़ते थे। इसी कारण के चलते किले के परवर्ती शासकों ने चित्तौड़ से हटाकर अपनी राजधानी उदयपुर में शिफ्ट की होगी।

किले के दरवाजे

चित्तौड़गढ़ किले (Chittorgarh ka Kila) में मुख्य सात द्वार हैं, जिसे स्थानीय भाषा में पोल कहा जाता है। सैट मुख्य पोल यह हैं- पदान पोल, भैरों पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोदल पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल है। जैसा कि नाम से ही जाहिर हो रहा है कि सारे द्वारों के नाम भगवान के नाम पर है। जिसमें से राम द्वार किले का मुख्य द्वार है। किले के सभी प्रवेश द्वार को सैन्य सुरक्षा के लिए सुरक्षित किलेबंदी के साथ बड़े पैमाने पर पत्थर की संरचनाओं के रूप में बनाया गया है।

किले का दरवाजा

नुकीले मेहराबों वाले दरवाजों को हाथियों और तोप के गोलों से बंद करने के लिए प्रबलित किया जाता है। दरवाजों के ऊपर की तरफ धनुर्धारियों के लिए दुश्मन सेना पर तीर चलाने के लिए पैरापेट्स बनाए गए है जो कि नोकदार हैं। किले के भीतर एक गोलाकार सड़क सभी फाटकों/दरवाजों को जोड़ती है और किले में कई स्मारकों, खंडहर महलों और 130 मंदिरों तक अपनी पहुंच प्रदान करती है।

सूरज पोल के दाईं ओर दरीखाना या सभा कक्ष है, जिसके पीछे एक गणेश मंदिर और ज़ेना (महिलाओं के लिए रहने का क्वार्टर) है। सूरज पोल के बाईं ओर एक विशाल जलाशय स्थित है। एक अजीब द्वार भी है, जिसे जोरला पोल (ज्वाइन गेट) कहते है, जिसमें एक साथ दो द्वार शामिल हैं। जोरला पोल का ऊपरी मेहराब लक्ष्मण पोल के आधार से जुड़ा हुआ है।

यह कहा जाता है कि ऐसा अद्भुत द्वार भारत के अलावा कही ओर देखने को नहीं मिलता है। किले के उत्तरी दिशा में एक सिरे पर लोकोटा बारी निर्मित है और वही दक्षिणी छोर पर एक छोटी सी जगह है जहाँ से अपराधियों को नीचे खाई में फेंकने के लिए बनाई गई थी।

चित्तौड़गढ़ किले के पर्यटन स्थल

चित्तौड़गढ़ किले (Chittorgarh ka Kila) के अंदर बहुत से ऐसे स्मारक, मंदिर और महल बने हुए जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते है। अपनी अनूठी शिल्पकला के चलते इस किले की दुनिया भर में पहचान है, इसलिए ही यह विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल है, हाँ जी चित्तौड़गढ़ किला वर्ल्ड यूनेस्को हेरिटेज साइट में शामिल है। आइये अब इस किले के कुछ रमणीय स्थल के बारे में जानकारी ले लेते है।

विजय स्तम्भ

विजय स्तम्भ (विजय की मीनार) या जय स्तम्भ, जिसे चित्तौड़ का प्रतीक कहा जाता है और विशेष रूप से विजय की अभिव्यक्ति है। 1458 और 1468 के बीच राणा कुंभा द्वारा मालवा के सुल्तान महमूद शाह प्रथम खिलजी पर अपनी जीत की याद में बनाया गया था। जहाँ से मैदानी इलाकों और चित्तौड़ के नए शहर का अच्छा दृश्य दिखता है।

विजय स्तम्भ

युद्ध के तक़रीबन 10 साल बाद इसके निर्माण की शुरुआत की गयी थी। यह 37.2 मीटर (122 फीट) ऊँचा और 47 वर्ग फीट (4.4 वर्ग मी) आधार पर बना हुआ है। 8वीं मंजिल तक इसकी तकरीबन 157 सीढियाँ है। 8वीं मंजिल से हमें चित्तौड शहर का मनमोहक नजारा देखने को मिलता है।

इस पर बने गुम्बद को 19वीं शताब्दी में क्षतिग्रस्त किया गया था। लेकिन वर्तमान में इस स्तंभ को शाम के समय लाइटिंग से सजाया जाता है और इसकी सबसे ऊपरी मंजिल से हम चित्तौड़ का मनमोहक नजारा देख सकते है।

कीर्ति स्तम्भ

कीर्ति स्तम्भ 72 फीट ऊँचा टॉवर है, जो 30 फीट के आधार पर 15 फीट के शीर्ष पर बनाया गया है। इस स्तम्भ के बाहर की तरफ जैन मूर्तियां बनी हुई है और यह स्तम्भ विजय स्तम्भ से छोटा है।

कीर्ति स्तम्भ

बघेरवाल जैन व्यापारी जीजाजी राठौड़ द्वारा निर्मित, यह स्तम्भ प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। मीनार की सबसे निचली मंजिल में, जैन पन्थ के विभिन्न तीर्थंकरों की आकृतियाँ दिखाई देती हैं, जो बिलकुल ही अनूठे ढंग से निर्मित किए गए है। यह एक दिगंबर स्मारक हैं। 54 चरणों वाली एक संकीर्ण सीढ़ी छह मंजिला के शीर्ष तक जाती है। इसे टॉवर ऑफ फेम भी कहते है।

रानी पद्मिनी का महल

रानी पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए इस महल का नाम रानी पद्मावती महल भी है। रानी पद्मिनी का महल या रानी पद्मावती का महल एक सफेद इमारत और तीन मंजिला संरचना है। यह किले के दक्षिणी भाग में स्थित है। झील के किनारे रानी पद्मिनी का छोटा सा महल है।

रानी पद्मिनी महल

पद्मिनी महल में दर्पण इस तरह से लगा है कि झील के बीच में बने महल की सीढ़ियों पर खड़े व्यक्ति का प्रतिबिंब उसमें साफ नजर आता है। अलाउद्दीन खिजली ने इस दर्पण में ही रानी पद्मिनी का प्रतिबिंब देखा था और उसके बाद उसकी सुंदरता का कायल हो गया था।

अन्य रमणीय स्थल

  1. भाक्सी – चत्रग तालाब के उत्तर की ओर थोड़ा दूर जाने के बाद दाहिनी हाथ की ओर एक चारदीवारी है, जिसे बादशाह की भाक्सी कहा जाता है। यहाँ पर राजा कुंभा ने प्रथम खिलजी को बंदी बना कर रखा था।
  2. घोड़े दौड़ने का मैदान – भाक्सी के पश्चिम दिशा में थोड़ी दूर पर एक बंजर जमीन है, जहाँ उस समय घोड़े दौड़ाये जाते थे।
  3. खातर रानी महल – पद्मिनी महल के दक्षिण दिशा की ओर महरजा क्षेत्रसिंह की धर्मपत्नी रानी खातर का महल बना हुआ है जो अभी खंडहर बना हुआ है।
  4. गोरा और बादल की छत्री – पद्मिनी महल के दक्षिण पूर्व में दो गुंबदें बनी हुई है, जिसे गोरा और बादल की इमारत कहा जाता है। गोरा महाराणा रतन सिंह की सेना के सेनापति थे और बादल उनका भतीजा था। अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध करते हुए चाचा भतीजा वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनकी याद में यह स्मारक बनाया गया था।
  5. जौहर स्थल – इस स्थान को महासती स्थल भी कहा जाता है। यह स्थल विजय स्तम्भ और समाधीश्वर मंदिर के बीच में एक खुला मैदान है जो चारदीवारी से घिरा हुआ है। इसके पूर्व और उत्तर में दो द्वार मौजूद है। यहाँ पर रानी पद्मिनी ने अपने साथ अनेक वीरांगनाओं के साथ विश्व प्रसिद्ध जौहर किया था।
  6. राव रणमहल की हवेली – गोरा बादल की छतरियों से थोड़ा आगे जाकर पश्चिम की ओर एक विशाल इमारत दिखाई देती है जिसे राव रणमहल की हवेली के नाम से जाना जाता है।
  7. कालका मंदिर – इस मंदिर की खास बात यह है कि कालका माँ की जो मूर्ति है वो एक विशाल कुर्सी जैसी दिखती है। इसलिए इसे कुर्सी वाला मंदिर भी कहते है। इसको 9वीं सदी में गुहिलवंश के राजाओं ने बनवाया था, लेकिन मूल रुप से यह एक सूर्य मंदिर है। इसकी छतों और दीवारों पर अप्रतिम शिल्पकारी की गई है, जो देखने लायक है। यहाँ हर साल वैशाख शुक्ल अष्टमी को मेला लगता है।
  8. सूर्यकुंड – कालका मंदिर के उत्तर-पूर्व में एक विशाल कुंड है, जिसे सूर्यकुंड कहा जाता है। एक किवंदती के अनुसार इस कुंड में से रोज एक सफ़ेद घोड़े पर एक सशक्त योद्धा निकलता था जो महारणा को युद्ध में सहायता करता था।
  9. समाधिश्वर महदेव का मंदिर – गोमुख कुंड के उत्तरी छोर पर महादेव जी का एक भव्य और पुराना मंदिर है जिए 11वीं सदी में राजा भोज ने बनवाया था। इसके गर्भगृह के नीचे की तरफ शिवलिंग है और पीछे की दीवार पर शिवजी की त्रिमूर्ति है। इसे त्रिभुवन नारायण का शिवालय और भोज का मंदिर भी कहा जाता है।

इनके अलावा चित्तौड़गढ़ किले (Chittorgarh ka Kila) में बहुत सारे रमणीय स्थल है। जैसे – जयमल पत्ता की हवेली, गोमुख कुंड, जटाशंकर शिवालय, कुंभश्याम का मंदिर, मीराबाई का मंदिर, सतबीस देवला, महारणा कुंभा का महल, फतह प्रकाश, मोती बाजार, शृंगार चौरी, महारणा सांगा का देवरा, तुलजा भवानी का मंदिर, बनवीर की दीवार, नवलखा भण्डार, पातालेश्वर महादेव का मंदिर, भामशाह की हवेली, आल्हा काबरा की हवेली, पादन पोल, बाघसिंह का स्मारक, भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल, राम पोल, पता पोल एवं कुकड़ेश्वर मंदिर, हिंगलू अहाड़ा के महल, रत्नेश्वर तालाब, लाखोटा की बारी, महावीर स्वामी का मंदिर, नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, सूरज पोल, साईं दास का स्मारक, अद्भुत मंदिर, राजटीला, चित्रग तालाब और चित्तौड़ बुर्ज।

उफ़्फ़ मेरे हाथों में दर्द हो गया सारे पर्यटन स्थल के नाम लिखते–लिखते और शायद आपको भी पढ़ते-पढ़ते चक्कर आ गए होंगे। मतलब साफ हो गया है कि जब भी चित्तौड़गढ़ घूमने जाएँ तब 3 दिन का सफ़रनामा इसके नाम करते जाएँ।

घूमने की इतनी जगह वाह भाई वाह! पूरा दिन निकल जाएँ लेकिन जगह कम ना पड़े और क्या चाहिए घूमने वाले जगह पर।

चित्तौड़गढ़ किले तक कैसे पहुँचे

राजस्थान के किसी भी हिस्से से चित्तौड़गढ़ बहुत ही आसानी आ सकते हैं। चित्तौड़गढ़ बस व ट्रेन की सेवाओं से अच्छी तरीके से जुड़ा हुआ है, जिससे सैलानी आराम से यहाँ पहुँच सकता है। अगर कोई सैलानी हवाई जहाज के माध्यम से सफर करना चाहता है तो वो भी ना घबराएँ आप हवाई जहाज से भी सफर करके यहाँ पहुँच सकते है, बस कुछ घंटे का सफर सड़क मार्ग से भी निकालना होगा। बस आपको उदयपुर के डबोक एयरपोर्ट से उतरकर 113 किमी सड़क मार्ग का सफर तय करना है।

चित्तौड़गढ़ किले की टाइमिंग और टिकिट

चित्तौड़गढ़ किले की टाइमिंग सुबह 09:45 बजे से शाम 06:30 बजे तक रहती है, इस दरम्यान सैलानी दुर्ग को अच्छी तरीके से देख सकते है। भारतीय नागरिकों का प्रवेश शुल्क मात्र दस रुपए और विदेशी सैलानियों का प्रवेश शुल्क 100 रुपए है।

अगर सैलानी अपने साथ कैमरा लेकर आया है तो उसे अपने साथ अंदर ले जाने के लिए 25 रुपए का शुल्क अतिरिक्त देना होगा। यहाँ आपको गाइड भी मिल जायेंगे, उनकी फीस तीन-चार घंटों के लिए 300-500 रुपए तक की होती है।

चित्तौड़गढ़ किले से जुड़े कुछ प्रश्नोत्तर

चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण किसने करवाया?

चित्तौड़गढ़ किले के निर्माण के ऊपर अभी तक कोई ठोस सबूत ना पेश होने के कारण इसके निर्माता को लेकर अभी तक इतिहासकारों के बीच असमंजस है। लेकिन कुछ हद तक कहा जा सकता है इस किले का निर्माण बप्पा रावल ने करवाया था।

चित्तौड़गढ़ किले में कितने जौहर/साके हुए है?

चित्तौड़गढ़ किले में तीन साके/जौहर हुए है।

चित्तौड़गढ़ किले का प्रसिद्ध जौहर कौनसा था?

चित्तौड़गढ़ का जो पहला जौहर हुआ था वो ही सबसे प्रसिद्ध जौहर था। यह जौहर रानी पद्मिनी के नेतृत्व में हुआ था।

रानी पद्मिनी ने कितनी वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था?

रानी पद्मिनी ने 16000 वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था।

विजय स्तम्भ कहाँ स्थित है?

विजय स्तभ चित्तौड़गढ़ में स्थित है।

निष्कर्ष

लिखते-लिखते यह तो समझ आ चुका है कि चित्तौड़गढ़ राजस्थान के इतिहास का वो स्वर्णिम पन्ना है जिसे कितनी भी बार खोला हमेशा गर्व ही महसूस करवाता रहता है। इसी के साथ अलविदा मिलते है अगले लेख में।

मैं उम्मीद करता हूँ कि मेरे द्वारा शेयर किया गया यह लेख “चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास (Chittorgarh ka Kila)” आपको पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह जानकारी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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