Rani Ki Vav in Hindi: अपनी आकर्षक, अद्भुत बनावट और हद से भी ज़्यादा खूबसूरत नक्काशी के लिए पूरी दुनिया में फेमस रानी की वाव भारत के लिए गौरवान्वित धरोहर है। यह भारत के गुजरात राज्य के पाटण शहर में स्थित है। रानी की वाव भारत की सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहरों में से एक धरोहर है।
रानी की वाव अपने आप में ही उत्कृष्ट और अनूठी संरचना है जो कि धरती के गर्भ में समाहित पानी के स्त्रोतों से थोड़ी सी अलग दिखती है। रानी की वाव बहुत बड़ा जल का स्त्रोत हुआ करता था, इसकी बनावट देख कर मन प्रफुल्लित और चेहरा हैरान हो जाता है।

आपने अब तक यही सुना होगा कि प्यार की ख़ातिर प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के लिए ये तोहफा दिया या ताजमहल जैसा स्मारक बनाया, लेकिन आपने ये कभी नहीं सुना होगा कि एक प्रेमिका ने अपने प्रेमी के लिए ऐसा उपहार दिया या कुछ स्मारक का निर्माण करवाया हो। तो आज यह बात सुनेंगे और पढ़ेंगे भी कि भारत देश में प्यार की अहमियत क्या थी।
आज आप रानी की वाव से जुड़ी सारी जानकारी इस लेख में पढ़ पाएंगे।
रानी की वाव का इतिहास और रोचक तथ्य – Rani Ki Vav in Hindi
विषय सूची
रानी की वाव का निर्माण
सोलंकी वंश की रानी उदयमति ने अपने पतिदेव भीमदेव सोलंकी की याद में एक बावड़ी का निर्माण करवाया और उस बावड़ी से गाँव वालों के लिए पानी की समस्या से निजात मिल सकें। गाँव में बावड़ी को वाव कहा जाता था और रानी ने इसका निर्माण करवाया था तो इसका नाम रानी की वाव पड़ गया।
विश्व पटल पर प्रसिद्ध विशालकाय रानी की वाव गुजरात राज्य के पाटण शहर में स्थित है, इसकी शिल्पकला बहुत ही अनूठी है। इस विशाल बावड़ी का निर्माण सोलंकी वंश के शासक भीमदेव की पत्नी उदयमति ने अपने स्वर्गवासी पति की स्मृति में 10वीं – 11वीं सदी में करवाया था। सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव ने वडनगर गुजरात पर 1021 से 1063 ईस्वी तक शासन किया था।
आपको एक बात और बता दूँ कि पाटण पहले अन्हिलपुर के नाम से जाना जाता था और गुजरात राज्य की पूर्व राजधानी भी हुआ करती थी। बावड़ी के खंभों पर जो नक्काशी की गयी है, उसकी वजह से यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का टैग दिया है।

रानी की वाव का इतिहास (Rani Ki Vav History in Hindi)
जब सोलंकी राजवंश के भीमदेव की मृत्यु हुई तो उनकी याद में उनकी धर्मपत्नी उदयमति ने गाँव के लोगों के लिए एक बावड़ी का निर्माण करवाया था। यह बावड़ी तकरीबन 7 मंज़िल की है और इसका निर्माण 1063 ईस्वी में हुआ था। अहमदाबाद से 140 किमी की दूरी पर यह ऐतिहासिक धरोहर रानी की वाव स्थित है, जिसे वहाँ के लोग प्रेम का प्रतीक मानते है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस अनोखी बावड़ी का निर्माण पानी के उचित प्रबंध के लिए किया गया था, क्योंकि उस जगह बरसात बहुत ही कम होती थी।
लेकिन कुछ लोक कथाओं के अनुसार रानी उदयमति ने गाँव में पानी की समस्या से निजात पाने के लिए और पानी प्रदान करके पुण्य प्राप्त करने के लिए इस विशाल बावड़ी का निर्माण करवाया था।
रानी की वाव सरस्वती नदी के तट पर स्थित है, जिसकी वजह से नदी में आने वाली बाढ़ से धीरे-धीरे मिट्टी और कीचड़ के मलबे में बावड़ी नीचे दबती चली गई। जिसे करीब 80 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने इस जगह खुदाई करके बावड़ी को सबके सामने लाया। सबसे खास बात यह रही कि इतने सालों तक मलबे में दबे होने के बाद भी रानी की वाव की मूर्तियाँ और खंभों पर की गई शिल्पकारी बहुत ही अच्छी स्थिति में पाई गई थी।
रानी की वाव की बनावट एवं संरचना
मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का उपयोग करके रानी की वाव या बावड़ी का निर्माण किया गया है, 11वीं सदी की वास्तुकला का एक अनुपम और उत्कृष्ट उदाहरण है। बावड़ी की बनावट सैलानियों के लिए बड़ी ही उत्साहजनक होती है, क्योंकि इस बावड़ी में जल संग्रह प्रणाली का ऐसा नमूना है जो बड़ा ही नायाब तरीके से बनाया गया है। उस जमाने में भी पानी के बचाने के लिए बहुत सारे कार्य किये जाते थे।
सीढ़ियों वाली इस भव्य बावड़ी की पूरी संरचना जमीनी स्तर से भी नीचे बसी हुई है, जिसे इंग्लिश में स्टेप वेल कहा जाता है। रानी की वाव की 7 मंजिल थी लेकिन खुदाई करके निकाले जाने पर 2 मंजिल बहुत ही ज्यादा जर्जर अवस्था में पाई गयी। बावड़ी की लंबाई करीब 64 मीटर, चौड़ाई करीब 20 मीटर और गहराई करीब 27 मीटर है।
यह अपने समय की सबसे प्राचीनतम और अद्भुत स्मारकों में से एक है। इस बावड़ी की दीवारों पर बेहतरीन शिल्पकारी और सुंदर मूर्तियों की नक्काशी की गई है।
बावड़ी की मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ
इस अद्भुत बावड़ी की दीवारों पर सुंदर मूर्तियाँ और कलाकृतियों की अनूठी नक्काशी की गई है। रानी की वाव या बावड़ी में 500 से ज्यादा बड़ी मूर्तियाँ हैं, जबकि 1 हजार से ज्यादा छोटी मूर्तियाँ हैं। इस वाव में अगर एक नजर घुमाएंगे तो हमें भगवान विष्णु जी के दस अवतारों की कलाकृति देख पायेंगे। वो भी बहुत ही सलीके से दशावतारों को उकेरा गया है।

जैसा कि आपने पढ़ा कि विष्णु भगवान के सारे दस अवतारों मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि की कलाकृतियाँ बड़ी तल्लीनता के साथ उकेरी गई हैं। इसके अलावा इस विशाल बावड़ी में माता लक्ष्मी, पार्वती, भगवान गणेश, ब्रह्मा, कुबेर, भैरव और सूर्य समेत तमाम देवी-देवताओं की कलाकृतियाँ भी देखने को मिलती है।

इन सबके अलावा इस सुंदर बावड़ी में भारतीय महिला के 16 श्रृंगारों को परंपरागत तरीके से बेहद शानदार ढंग से शिल्पकारी के माध्यम से दर्शाया गया है। यही नहीं इस बावड़ी के अंदर कुछ नागकन्याओं की भी अद्भुत प्रतिमाएं देखने को मिलती है।
रानी की वाव में हर लेवल पर स्तंभों से बना हुआ एक गलियारा है जो कि वहाँ के दोनों तरफ की दीवारों को जोड़ता है, वहीं दूसरी ओर आकर्षक गलियारे में खड़े होकर रानी के वाव की अद्भुत सीढ़ियों का नजारा लिया जा सकता है। अपने प्रकार की इस इकलौती बावड़ी का आकार एक कलश के समान दिखता है और बावड़ी की दीवारों पर बनी शिल्पकारी मन मोह लेती है।
रानी की वाव का गहरा कुआँ
विश्व पटल पर प्रसिद्ध सरस्वती नदी के किनारे स्थित रानी की वाव के सबसे अंतिम तल पर एक गहरा कुआँ है, जिसे ऊपर से भी देखा जा सकता है। इस कुएँ के अंदर गहराई तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, लेकिन अगर इसे ऊपर से नीचे की तरफ देखते हैं तो यह दीवारों से बाहर निकले हुए कलश की तरह नजर आता है।

इस अनूठी बावड़ी की सबसे खास बात यह है कि इस वाव के कुएँ की गहराई में उतरने पर हमें शेषनाग की शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु की अद्भूत मूर्ति देखने को मिलती है, जिसे देखकर यहाँ आने वाले पर्यटक अभिभूत हो जाते हैं एवं इसे धार्मिक आस्था से भी जोड़कर देखा जा सकता है।
विश्व ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पहचान कब मिली?
वर्ल्ड हेरिटेज साइट यूनेस्को ने साल 2014 में इसे विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया था। इसके पीछे की वजह बहुत ही सामान्य थी, लेकिन धरोहर बड़ी विशिष्ट थी। वो सिंपल सी वजह यह थी कि सात मंजिला रानी की वाव ऐतिहासिक और विशाल बावड़ी थी जो कि अपनी अनूठी शिल्पकारी, अद्भुत बनावट और भव्यता के साथ-साथ जमीन के अंदर के पानी के उपयोग एवं बेहतरीन जल प्रबंधन की व्यवस्था अच्छे से कर पा रही थी।
रानी की वाव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
अब तक जो पढ़ा वो रानी की वाव का इतिहास था, अब इसके कुछ अनसुने तथ्य पढ़ लेते है। जो कि निम्नलिखित हैं:
- प्राचीन भारत में वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम कितना बेहतरीन और शानदार था। इसका उदाहरण 11वीं सदी में निर्मित रानी की वाव को देख कर लगाया जा सकता है। गुजरात के पाटण में स्थित यह ऐतिहासिक बावड़ी रानी की वाव दुनिया की ऐसी इकलौती बावड़ी है, जिसे अपनी अद्भुत संरचना और अनोखी बनावट एवं ऐतिहासिक महत्व के चलते वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया था।
- मारु-गुर्जर स्थापत्य शैली में बनी यह बावड़ी करीब 64 मीटर ऊंची, 20 मीटर चौड़़ी और करीब 27 मीटर गहरी है, जो कि करीब 6 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है। यह अपने प्रकार की सबसे विशाल और भव्य संरचनाओं में से एक है।
- सीढ़ीनुमा निर्मित रानी की वाव या बावड़ी के नीचे एक छोटा सा गेट भी है, जिसके अंदर करीब 30 किलोमीटर लंबी एक सुरंग बनी हुई है, जो कि पाटण के सिद्धपुर में जाकर खुलती है। ऐसा माना जाता है कि पहले इस खुफिया रास्ते का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध एवं कठिन परिस्थिति में करते थे। फिलहाल अब इस सुरंग को मिट्टी और पत्थरों से बंद कर दिया गया है।
- विश्व प्रसिद्ध रानी की वाव के बारे में सबसे ऐतिहासिक और रोचक तथ्य यह है कि करीब 50-60 साल पहले इस बावड़ी के आसपास तमाम तरह के आयुर्वेदिक पौधे हुआ करते थे, जिसकी वजह से रानी की वाव में एकत्रित पानी को बुखार, वायरल रोग आदि के लिए काफी अच्छा माना जाता था। वही इस बावड़ी के बारे में यह मान्यता भी है कि इस पानी से नहाने पर बीमारियाँ नहीं फैलती हैं, क्योंकि उन आयुर्वेदिक पौधों में सभी बीमारियों को नाश करने की शक्ति थी।
- गुजरात के पाटण में सरस्वती नदी के किनारे स्थित इस अनूठी बावड़ी की इसकी अद्भुत बनावट और भव्यता की वजह से 22 जून 2014 में यूनेस्कों ने विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया था।
- 7 मंजिला इस बावड़ी का चौथा तल सबसे गहरा बना हुआ है, जिसमें से एक 9.4 मीटर से 9.5 मीटर के आयताकार टैंक तक आ जाता है।
- विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल यह अनूठी बावड़ी में भारतीय महिला के परंपरागत सोलह श्रृंगार को भी मूर्तियों के जरिए बेहद शानदार तरीके से प्रदर्शित किया गया है।
- अपनी अनूठी मूर्तिकला के लिए विश्व भर में विख्यात इस अद्भुत बावड़ी में 11वीं और 12वीं सदी में बनी दो मूर्तियाँ भी चोरी कर ली गई थी, इनमें से एक मूर्ति गणपति और दूसरी ब्रह्म-ब्रह्माणी की थी।
- इस ऐतिहासिक बावड़ी की देखरेख का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का है। यह भव्य रानी की वाव गुजरात के भूकंप वाले क्षेत्र में स्थित है, इसलिए भारतीय पुरातत्व को इसके आपदा प्रबंधन को लेकर हर समय सतर्क रहना पड़ता है।
- अपनी कलाकृति के लिए मशहूर इस विशाल ऐतिहासिक बावड़ी को साल 2016 में दिल्ली में हुई इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस में क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस पुरस्कार से नवाजा गया है।
- साल 2016 में भारतीय स्वच्छता सम्मेलन में गुजरात के पाटण में स्थित इस भव्य रानी की वाव को भारत का सबसे स्वच्छ एवं प्रतिष्ठित स्थान का भी दर्जा मिला था।
- जल संग्रह प्रणाली के इस नायाब नमूने रानी की वाव को जुलाई, 2018 में RBI ने अपने नये 100 रुपए के नोट पर प्रिंट किया है।

निष्कर्ष
इस ऐतिहासिक बावड़ी को साल 2018 में RBI द्वारा जारी 100 रुपए के नए नोट पर भी प्रिंट किया गया है और सबसे खास बात यह है कि यह बावड़ी बाहरी दुनिया से कटे होने की वजह से काफी अच्छी परिस्थिति में है। इसी तरीके से इस धरोहर को बचाना हमारा परम कर्तव्य है।
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