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महाराणा कुम्भा का इतिहास और जीवन परिचय

Maharana Kumbha History in Hindi: राजपूताना भूमि पर जन्म लेने वाले मेवाड़ के हिंदू शासक राणा कुंभा भारत के प्रसिद्ध योद्धाओं में से एक है, जिन्होंने भारत में मुस्लिम साम्राज्य को समाप्त कर राजपूत एकता को बढ़ावा दिया।

इन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए निरंतर वीरता का परिचय दिया। इनकी शौर्य गाथाएं जितनी बताई जाए, उतना ही कम है। इन्होंने 30 वर्षों तक का शासन किया और अपने शासनकाल में इन्होंने प्रजा के बीच खूब प्रेम बटोरे।

Maharana Kumbha
Image: Maharana Kumbha

इनकी वीरता के किस्से अन्य राज्यों में भी प्रसिद्ध थे। चित्तौड़ में स्थित विश्वविख्यात कीर्ति स्तंभ की स्थापना भी राणा कुंभा ने ही करवाई थी। इन्हें राजस्थान में स्थापित कई ऐतिहासिक दुर्ग और मंदिरों के निर्माण के लिए याद किया जाता है।

इस लेख में हम महाराणा कुंभा का जीवन परिचय जानेंगे। जिसमें महाराणा कुंभा का इतिहास (Maharana Kumbha History in Hindi), महाराणा कुंभा का युद्ध, महाराणा कुंभा के पिता का नाम, महाराणा कुंभा का जन्म स्थान, कुम्भा की रचनाएँ, महाराणा कुंभा की मृत्यु कैसे हुई आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

महाराणा कुंभा का जीवन परिचय (Maharana Kumbha History in Hindi)

नाममहाराणा कुम्भा
पूरा नामकुंभकर्ण सिंह
जन्म और जन्मस्थान
पिता का नामराणा मोकल
माता का नामसौभाग्यवती परमार (सौभाग्य देवी)
संतानराणा रायमल, उदयसिंह प्रथम
शासनकाल1433 से 1468
राजवंशसिसोदिया राजवंश
राज्याभिषेक1433
शासन क्षेत्रचित्तौड़
महत्वपूर्ण युद्धसारंगपुर का युद्ध, नागौर युद्ध
मृत्यु1468

राणा कुंभा का प्रारंभिक जीवन

राणा कुंभा के पिता का नाम महाराणा मोकल था और माता का नाम सौभाग्य देवी था। इनका जन्म मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत वंश में हुआ था।

महाराणा कुंभा को महाराणा कुंभकरण के नाम से भी जाना जाता था। यह बचपन से ही काफी निडर और बहादुर थे। इसके साथ ही कलाप्रेमी भी थे।

अपने पिता की मृत्यु के बाद 1433 ईस्वी में राणा कुंभा मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठे। उस समय इनकी आयु मात्र 10 वर्ष थी।

राणा कुंभा का इतिहास (Maharana Kumbha History in Hindi)

राणा कुंभा के पिता की हत्या कर दी गई थी और अपने पिता के हत्यारों से बदला लेने के लिए इन्होंने राजगद्दी पर बैठने के समय प्रण लिया था और अपने शासनकाल में उन सभी हत्यारों से चुन-चुन कर बदला लिया।

राणा कुंभा के समय मेवाड़ के राजाओं में राणा कुंभा को छोड़कर कोई भी इतना अधिक शक्तिशाली नहीं था। उन्होंने लंबे समय तक मुस्लिम सुल्तानों के साथ युद्ध किया और निरंतर सफलता भी प्राप्त की।

इनका सबसे पहला युद्ध मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी के साथ हुआ था, जिसमें उन्होंने उसे बुरी तरीके से हराकर मालवा पर शासन स्थापित किया था और उस उपलब्धि उन्होंने विजय स्तंभ की स्थापना की थी।

इन्होंने 1433 से लेकर 1468 तक शासन किया था। इन्होंने अपने शासनकाल में कई सुदृढ़ मजबूत रियासतों पर कब्जा किया जैसे कि अजमेर, सारंगपुर, खाटू, बूंदी, नागौर, मंडोर आदि।

अपने शासनकाल में ये इस कदर प्रख्यात हो गए थे कि कोई भी सुल्तान या राजा इनसे टकराने की हिम्मत नहीं कर पाता था। हालांकि उस समय इनके कई दुश्मन भी बने, जिन्होंने मिलकर मेवाड़ पर कई बार आक्रमण करने की कोशिश की। लेकिन राणा कुंभा ने वीरता पूर्वक उन्हें पराजित किया।

महाराणा कुंभा को स्थापत्य कला से काफी लगाव था, जिसके कारण इन्होंने अपने शासनकाल में तकरीबन 32 किलो का निर्माण करवाया था, जिसमें से कुंभलगढ़ किला को सबसे मजबूत किला माना जाता है।

मेवाड़ के राजगद्दी पर बैठने के बाद इन्होंने चित्तौड़गढ़ किले में कुंभ महल का निर्माण करवाया, जो आज भारत का एक ऐतिहासिक धरोहर है।

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राणा कुंभा का विवाह और पुत्र

राणा कुंभा के विवाह के संबंध में कहा जाता है कि इन्होंने जबरन कई राजकुमारियों से विवाह किया था और कुछ राज्य कन्याओं से उनके पिता ने स्वयं विवाह करवाया था।

वैसे इनके सभी रानियों का नाम कहीं उपलब्ध तो नहीं है, लेकिन इनकी कुछ रानियों का नाम शिलालेख पर देखने को मिलते हैं। जिनमें अपूर्वदेवी, कउंभलदएवई और पुवाड़रेगभरत्न जैसे रानियों का नाम आता है।

इसके अतिरिक्त महाराणा कुंभा के 10 पुत्रों का भी उल्लेख किया गया है। जिनका नाम खेता, अचलदास, उदा, अमरसिंह, गोविन्ददास, रायमल, आसकरण, जैतसिंह महारावल, नागराज और गोपाल है।

महाराणा कुम्भा द्वारा लड़े गए महत्वपूर्ण युद्ध

महाराणा कुंभा ने अपने 30 वर्ष के शासनकाल में कई युद्ध लड़े, जिनमें से इन्होंने सुल्तान मोहम्मद खिलजी के साथ कई युद्ध लड़े।

अपने शासनकाल में इनके द्वारा लड़े गए अधिकतर युद्ध में ये विजय हुए। महाराणा कुंभा के द्वारा लड़े गए कुछ विश्व प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण युद्ध इस प्रकार है:

सारंगपुर का युद्ध

महाराणा कुंभा के द्वारा लड़े गए महत्वपूर्ण युद्धों में से एक प्रमुख युद्ध है सारंगपुर युद्ध। यह युद्ध 1437 ईस्वी में महाराणा कुंभा और सुल्तान मोहम्मद खिलजी के बीच लड़ा गया था।

इस युद्ध में महाराणा कुंभा विजय हुए थे और उन्होंने सुल्तान मोहम्मद को बंदी बनाकर अपने राज्य ले आए थे।

लेकिन बाद में मोहम्मद खिलजी के बहुत क्षमा याचना करने के कारण राणा कुंभा ने उन्हें जिंदा छोड़ दिया और इस युद्ध में विजय पाने के बाद उन्होंने विजय स्तंभ का निर्माण भी किया था।

कुम्भलगढ़ पर चढ़ाई

सारंगपुर युद्ध के बाद राणा कुंभा और सुल्तान मोहम्मद खिलजी के बीच दुबारा लड़ाई हुई। सारंगपुर युद्ध में राणा कुंभा के द्वारा सुल्तान खिलजी को छोड़ दिया गया था।

लेकिन उसके बावजूद सुल्तान मोहम्मद खिलजी नहीं सुधरा और राणा कुंभा से बदला लेने के लिए उसने कुंभलगढ़ किले पर अपना निशाना बनाया और उस पर आक्रमण किया।

इस बीच राणा कुंभा के सेनापति दीप सिंह सुल्तान मोहम्मद खिलजी के द्वारा मारा गया। जिसके बाद इस घटना के बारे में राणा को पता चला तो वे आए और फिर से सुल्तान मोहम्मद खिलजी को खदेड़ भगाया।

गागरोन पर आक्रमण

कुंभलगढ़ किले पर कामयाबी ना हासिल करने के बाद सुल्तान मोहम्मद खिलजी ने अपने आक्रमण करने के तरीके को बदल कर उसने बड़े-बड़े किले की जगह पर छोटे-छोटे दुर्ग पर आक्रमण करना शुरू किया।

उसने बाद में गागरोन के दुर्ग पर आक्रमण किया, जहां पर राणा कुंभा का सेनापति अहिर मारा गया। इस युद्ध में सुल्तान मोहम्मद खिलजी जीत गया और गागरोन पर उसने कब्जा कर लिया।

मालगढ़ पर आक्रमण

सुल्तान मोहम्मद खिलजी ने राणा कुंभा के कई छोटे-छोटे किलो पर आक्रमण करके उसे अपने कब्जे में कर लिया था। इस तरह उसके आक्रमण का यह तरीका कामयाब हो रहा था।

उसके बाद उसने माल गढ़ के किले पर आक्रमण किया। लेकिन राणा कुंभा इसके लिए पहले से ही तैयार थे, जिसके बाद राणा कुंभा और सुल्तान के बीच 3 दिनों का युद्ध हुआ, जिसमें राणा कुंभा ने सुल्तान मोहम्मद खिलजी को बुरी तरीके से परास्त किया।

1457 ईसवी में मोहम्मद गजनी ने एक बार फिर से मानगढ़ पर आक्रमण किया था, जिस समय राणा कुंभा गुजरात गए हुए थे। इस कारण सुल्तान मोहम्मद खिलजी ने बहुत ही आसानी से उसे अपने कब्जे में कर लिया था।

लेकिन जब राणा कुंभा गुजरात से वापस आए और इस बात का पता चला तो उन्होंने दोबारा मोहम्मद खिलजी के साथ युद्ध किया और उसे परास्त कर मालगढ़ को अपने अधिकार में लिया।

अजमेर पर आक्रमण

राणा कुंभा का लंबे समय तक सुल्तान मोहम्मद खिलजी के साथ युद्ध और इस युद्ध में राणा कुंभा ने कई बार सुल्तान खिलजी को परास्त किया।

बार-बार राणा कुंभा से हारने के बाद मोहम्मद गजनी काफी क्रोध में था और उसने नई योजना बनाते हुए राणा कुंभा को हराने के लिए उसने एक साथ अजमेर और रणथंबोर पर आक्रमण किया।

उसने रणथंबोर में आक्रमण करने के लिए अपने पुत्र गयासुद्दीन को भेज दिया और अजमेर खुद आक्रमण करने के लिए निकल पड़ा ताकि चारों तरफ से राणा कुंभा को घेर कर आक्रमण किया जाए तो वह निश्चित ही हार जाएंगे।

1455 ईस्वी में यह युद्ध हुआ था, जिसमें सुल्तान मोहम्मद गजनी की पूरी तरीके से हार हुई। क्योंकि अजमेर में राणा कुंभा के जगह पर गदर सिंह थे, जिन्होंने बहादुरी पूर्वक सुल्तान मोहम्मद खिलजी को हराया।

नागौर युद्ध

राणा कुंभा के शासनकाल में उनके द्वारा लड़े गए वो युद्ध जो उनके मध्यकालीन शासकों में उन्हें सर्वश्रेष्ठ और अपराजित शासक बताता है, उसमें एक युद्ध नागौर युद्ध है।

राणा कुंभा के शासन काल के समय नागौर के शासक फिरोज खान के दो पुत्र हुआ करते थे, जिसमें एक पुत्र का नाम शम्स खान था। दोनों पुत्र अपने पिता की मृत्यु के बाद राज्य की सत्ता चाहते थे, जिन्होंने अपने पिता के खिलाफ षड्यंत्र रच दिया।

फिरोज खान की मृत्यु हो गई तो शम्स खान महाराणा कुंभ के पास आए और राज्य का सत्ता प्राप्त करने में उनसे मदद का अनुरोध किया।

राजनीतिक दृष्टि से राणा कुंभा ने उसकी मदद करने की हामी भर दी। लेकिन एक संधि के साथ कि जब भी राणा कुंभा को उनकी मदद की जरूरत होगी तो वह उनकी मदद करेंगे।

लेकिन जैसे ही राज्य की सत्ता शम्स खान के हाथों में आई वह की गई संधि को भूल गया। राणा कुंभा को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने नागौर को अपने कब्जे में करने का निर्णय लिया और युद्ध का ऐलान कर दिया।

शम्स खान राणा कुंभा के खिलाफ अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए गुजरात के शासक सुल्तान कुतुबुद्दीन की पुत्री से विवाह कर राणा कुंभा को हराने के लिए उनसे मदद मांगने का प्रस्ताव दिया।

अपने दामाद की मदद करने के लिए कुतुबुद्दीन अपने दो सेनापति रायरामचंद्र और मलिक गदई को युद्ध में भेजा।

लेकिन राणा कुंभा ने ऐसे बहादुर लोगों को भी बहुत ही विरता पूर्वक परास्त कर दिया और शम्स खान को भी हार की धूल चटाई।

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राणा कुम्भा द्वारा रचित ग्रंथ एवं पुस्तक

राणा कुंभा की वीरता, शौर्य तथा उनकी प्रजा प्रेम और उनके बलिदान पर कई अच्छे भजन लिखे गए हैं, जो आज भी राजस्थान में प्रसिद्ध है। वे केवल वीर ही नहीं थे बल्कि साहित्य प्रेमी और नाट्यशास्त्री भी थे।

उन्होंने अपने जीवन काल में कई बड़े-बड़े ग्रंथों की रचना की, जिसमें कामराज रतिसार, संगीतराज, रसिकप्रिया, सुड प्रबंध, गीत गोविन्द, संगीत मीमांसा और एकलिंग माहात्म्य प्रमुख है।

इनकी रचना कामराज रतिसार के बारे में कहा जाता है कि इसमें कुल 155 श्लोक हैं और इस ग्रंथ की रचना 1461 ईस्वी में की गई थी।

कहा जाता है कि राणा कुंभा ने इस ग्रंथ को मात्र 1 दिन में ही विजयादशमी के दिन कर लिख दी थी।

इनके विभिन्न क्षेत्रों में इनके विशेष गुण के कारण इन्हें नंदीकेश्वर, सुरताणा और कलसनृपति जैसे नामों की उपलब्धियां मिल चुकी है।

राणा कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ

विजय स्तंभ ऐतिहासिक शहर राजस्थान के चित्तौड़ में स्थापित राणा कुंभ के शासनकाल में उनके द्वारा किए गए स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।

इस विजय स्तंभ का निर्माण राणा कुंभा ने 1437 ईसवी में सारंगपुर के युद्ध में सुल्तान को हराने के बाद चित्तौड़ पर विजय पाने के दरमियान किया था।

इस स्तंभ में राणा कुंभ ने भगवान विष्णु के हर एक अवतार की मूर्तियों को अंकित करवाई है, जिस कारण इस स्तंभ को विष्णु स्तंभ और विष्णु ध्वज के नाम से भी जाना जाता है।

इसके अतिरिक्त भी इस विजय स्तंभ के अंदर कई हिंदू धर्म देवी देवताओं की सुंदर प्रतिमा अंकित है, जो इस स्तंभ को और भी आकर्षक और खूबसूरत बनाती है। यह स्तंभ उस समय के स्थापत्य कला और कारिगिरी को दर्शाता एक उत्कृष्ट नमूना है।

विजय स्तंभ 9 मंजिल की एक इमारत है, जो नीचे से थोड़ी चौड़ी और ऊपर से ज्यादा चौड़ी है। यह दिखने में बिल्कुल भगवान शिव के डमरू के सामान लगता है।

यह स्तंभ 22 फीट ऊंचा और 30 फुट चौड़ा है। इस विजय स्तंभ में ऊपर तक पहुंचने के लिए 157 सीढ़ियां भी लगी हुई है।

महाराणा कुम्भा की युद्ध नीती और आक्रमण

राणा कुंभा राजनीति युद्ध कौशल में एक अद्भुत व्यक्ति थे। वे युद्ध में शाम-दाम-दंड-भेद की नीति का प्रयोग करते थे और जरूरत पड़ने पर गोरिला पद्धति को अपनाते हुए पहाड़ों के पीछे छिपकर शत्रु पर अचानक से आक्रमण भी किया करते थे।

महाराणा कुंभ कभी भी अपने राज्य की सीमा को आवश्यकता से ज्यादा विस्तार करने पर भरोसा नहीं करते थे। उन्होंने कई प्रदेशों को जीता, लेकिन उनमें से कई प्रदेशों को अपने राज्य में नहीं मिलाया। जैसे उन्होंने बूंदी, नागौर, सिरोही जैसे जीते हुए प्रदेशों को अपने राज्य में नहीं मिलाया।

उन्होंने कई जीते हुए प्रदेशों को वापस लौटा कर वहां से केवल वार्षिक कर लेना स्वीकार किया। राणा कुंभा कभी भी अपने शत्रुओं को एक दूसरे से मिलने नहीं देते थे।

उन्होंने गुजरात और मालवा की शत्रुता का हमेशा ही लाभ उठाया। गुजरात में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न की कि गुजरात का सुल्तान मेवाड़ पर कभी भी आक्रमण नहीं कर पाया।

राणा कुंभा की मृत्यु

राणा कुंभा की मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि उनकी हत्या इनके खुद के पुत्र उदय सिंह ने ही षड्यंत्र रच के करवा दी थी।

कहा जाता है कि 1468 ईस्वी में राणा कुंभा कुंभलमेर के एकलिंग नाथ जी का मंदिर के दर्शन करने के लिए गए थे, उसी समय एक गाय जोर से हम्माई।

मंदिर का दर्शन करने के बाद वे अपने दरबार गए और फिर अपने हाथ में तलवार लेकर “कामधेनु तांडव करिय” बोलने लगे।

कुछ समय के बाद एक व्यक्ति उनके पास आया और उनसे पूछा कि आखिर आप यह क्यों बार-बार दोहरा रहे हैं। लेकिन राणा कुंभा ने कुछ ना जवाब देते हैं। वे बार-बार “कामधेनु तांडव करिय” केवल बोल रहे थे और तीन-चार दिन तक ऐसी घटना होते रही।

तब जाकर उनके छोटे बेटे राजमल ने उनसे दोबारा यह प्रश्न पूछने की हिम्मत की। लेकिन महाराणा कुंभा क्रोधित हो गए और उन्हें मेवाड़ से बाहर निकालने का आदेश दे दिया, जिसके बाद रायमल ईडर चले गए।

ऐसी घटना लगातार होने के बाद उनके ज्योतिष ने महाराणा कुंभा की मृत्यु एक चारण के हाथों होने की भविष्यवाणी की। जिसके बाद महाराणा कुंभा ने राज्य से सभी चारणों को बाहर निकाल दिया। लेकिन एक चारण राजपूत बनकर मेवाड़ में रहने लगा।

कहा जाता है धीरे-धीरे महाराणा कुंभा के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया, जिसके बाद 1 दिन वे कुंभलमेर के किले में कटार गढ़ के उत्तर की तरफ मामादेव नामक स्थान के पास बैठे हुए थे कि तभी उनका बड़ा बेटा उदय सिंह पहुंचा और पीछे से उन पर तलवार से हमला कर दिया।

राणा कुंभा का उत्तराधिकारी

1473 ईस्वी में राणा कुंभा के पुत्र उदय सिंह ने उनकी हत्या करवा दी और वह राणा कुंभा के उत्तराधिकारी बन गया। लेकिन राजपूतों ने उनका विद्रोह किया, जिसके कारण कुछ ही समय के बाद उन्हें अपना शासन त्यागना पड़ा।

गद्दी त्यागने के बाद उदय सिंह का छोटा भाई राणा कुंभा का दूसरा बेटा राजमल शासक बना। राजमल ने 36 साल 1473 से 1509 ई. तक कुशलतापूर्वक शासन किया।

उसके बाद 1509 ईसवी में उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र महाराणा संग्राम सिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। उन्हें राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता था। इन्होंने मेवाड़ पर 1509 ईसवी से 1528 ईसवी तक शासन किया।

राणा सांगा का इतिहास और जीवन परिचय विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें।

राणा कुंभा के बारे में रोचक तथ्य

  • राणा कुंभा के शासनकाल में मेवाड़ काफी समृद्धसाली राज्य था। उस समय देलवाड़ा, भीलवाड़ा, मांडलगढ़, बदनोर, चित्तौड़, केलवाड़ा, सज्जनपुरा, आघाट प्रमुख व्यापारिक नगर थे। महाराणा कुंभा के शासनकाल में बड़े-बड़े व्यापारी मेवाड़ में आकर बस गए थे। आर्थिक समृद्धि के कारण मेवाड़ में कला और साहित्य का भी विकास हुआ।
  • राणा कुंभा के शासन काल को भारतीय इतिहास में स्वर्णिम काल भी कहा जाता है। ये स्थापत्य प्रेमी थे। मेवाड़ में स्थित 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग का निर्माण राणा कुंभा ने किया है।
  • राणा कुंभा के द्वारा निर्मित कुंभलगढ़ दुर्ग भारत का एक उल्लेखनीय ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे लंबा दीवार माना जाता है।
  • राणा कुंभा एक वीर शासक थे। इसके साथ ही स्थापत्य प्रेमी थे और एक कला प्रेमी और विद्वान भी थे। इन्होंने कई ग्रंथ की रचना भी की। इन्हें उपनिषद, व्याकरण, वेद, मीमांस, राजनीति और साहित्य में बहुत अच्छी समझ थी।
  • राणा कुंभा की हत्या इनके ही पुत्र उदय सिंह ने षड्यंत्र रच के की थी।
  • महाराणा प्रताप, राणा सांगा, अमर सिंह, राजसिंह जैसे इतिहास के महान वीर योद्धा राणा कुंभा के वंशावली रहे हैं।
  • महाराणा कुंभा वीणा वादन और नाट्यशास्त्र में भी दक्ष थे। इन्हें संगीत के क्षेत्र में संगीत राज की भी उपाधि दी गई थी।
  • राणा कुंभा को बहुत ही दानवीर शासक बताया जाता है। कहा जाता है कि अपने राज्य में जहां भी वे प्यास से परेशान लोगों को देखते थे, उसी स्थान पर तालाब खुदवा देते थे। जिसके कारण इनके शासनकाल में बड़ी संख्या में तालाब के निर्माण करवाए गए।
  • राणा कुंभा इतने ताकतवर शासक थे कि वे आमेर और हाड़ौती जैसे ताकतवर राजघरानों से भी कर वसूला करते थे।

राणा कुम्भा प्रजा का हितेसी और दानवीर

राणा कुंभा एक अच्छे शासक के रूप में जितने कुशल थे, उतने ही वे परोपकारी भी थे। वे अपने राज्य की रक्षा के लिए सजग भी रहते थे और प्रजा के हित के लिए भी सोचते थे।

युद्ध में निरंतर व्यस्त रहने के बावजूद इन्होंने लोक कल्याण के लिए सदा ही अनेकों कार्य किए। जहां भी वे प्यास से परेशान लोगों को देखते थे, वहां पर तालाब का निर्माण कर देते थे। अपने शासनकाल में इन्होंने कई तालाब, कुंड और बावरियों का निर्माण करवाया।

कहा जाता है कि आबू तीर्थ पर जाने के लिए यात्रियों से कर वसूला जाता था लेकिन इन्होंने अपने शासनकाल में उस कर को समाप्त कर दिया।

राणा कुंभा शैव मत मानने वाले थे लेकिन उसके बावजूद वे वैष्णव धर्म के प्रति भी उतना ही श्रद्धा रखते थे। इन्हें धर्म क्षेत्र में एक धर्म परायण व्यक्ति माना जाता था लेकिन येसभी धर्मों के प्रति भी सहिष्णु थे। यहां तक इन्होंने कभी मुसलमानों पर भी अत्याचार नहीं किया। राणा कुंभा का प्रजा के प्रति हितेषी और दानवीर होने के कारण इनकी तुलना कर्ण और राजा भोज के साथ की गई है।

राणा कुंभा हर एक धर्म को एक समान सम्मान देते थे। वे सर्वधर्म समभाव की नीति अपनाते थे। वे सदा से ही प्रजा की सुविधा और भावनाओं की ओर ध्यान देते थे, जिसके कारण प्रजा भी उनके प्रति श्रद्धा रखती थी और यही कारण है कि वे इतिहास में एक महान शासक के रूप में जाने जाते हैं।

FAQ

महाराणा कुंभा और महाराणा प्रताप के बीच क्या संबंध था?

महाराणा प्रताप महाराणा कुंभा के वंशज थे। महाराणा कुंभा महाराणा प्रताप के दादा के दादा थे।

राणा कुंभा मेवाड़ के शासक कब बने?

महाराणा कुंभा मात्र 10 वर्ष की उम्र में 1433 ईस्वी में मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने और 1468 तक इन्होंने मेवाड़ पर शासन किया। इस तरह 30 वर्षों तक इनका शासनकाल रहा।

महाराणा कुंभा ने किन-किन स्थापत्यो का निर्माण करवाया था?

महाराणा कुंभा ने अपने शासन काल में इतनी स्थापत्य कला का निर्माण किया कि इनके शासन काल को स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता था। इन्होंने चित्तौड़गढ़ कुंभलगढ़, अचलगढ़, विजय स्तंभ जैसे सैकड़ों दुर्ग का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त बदनोर के पास विराट किला, एकलिंग नाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार और गोडवाड में सादड़ी के पास राणा कपूर का जैन मंदिर का निर्माण करवाया।

महाराणा कुम्भा की वंशावली कौन-कौन रही?

महाराणा कुंभा के वंशावली में उदयसिंह, रायमल, नागराज, गोपालसिंह, महाराणा, आसकरण, गोविन्द दास, जैतसिंह, महरावण, क्षेत्र सिंह और अचल दास रहे।

महाराणा कुंभा के कितने पुत्र थे?

शिलालेखों में महाराणा कुंभा के 10 पुत्रों का भी उल्लेख मिलता है। जिनका नाम खेता, अचलदास, उदा, अमरसिंह, गोविन्ददास, रायमल, आसकरण, जैतसिंह महारावल, नागराज और गोपाल है।

महाराणा कुंभा की कितनी रानियां थी?

वैसे इनके सभी रानियों का नाम कहीं उपलब्ध तो नहीं है, लेकिन इनकी कुछ रानियों का नाम शिलालेख पर देखने को मिलते हैं। जिनमें अपूर्वदेवी, कउंभलदएवई और पुवाड़रेगभरत्न जैसे रानियों का नाम आता है।

महाराणा कुंभा की मृत्यु कैसे हुई?

राणा कुंभा की मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि उनकी हत्या इनके खुद के पुत्र उदय सिंह ने ही षड्यंत्र रच के करवा दी थी।

निष्कर्ष

इस लेख में आपने राजस्थान की भूमि पर जन्म लेने और भारत के इतिहास में वीर योद्धाओं में नाम दर्ज कराने वाले महाराणा कुंभा के जीवन परिचय (Maharana Kumbha History in Hindi) के बारे में जाना।

महाराणा कुंभा न केवल एक वीर क्षत्रिय योद्धा थे बल्कि वे संगठन बनाने में भी माहिर थे, जिस कारण इन्होंने कभी भी मुस्लिम शासको को मेवाड़ पर हावी नहीं होने दिया और राजपूतों के बीच एकता बनाए रखी।

आज के इस लेख में आपने महाराणा कुंभा के प्रारंभिक जीवन से लेकर इनके शासनकाल में इनके द्वारा लड़े गए सभी युद्ध, इनकी उपलब्धियो के बारे में जाना।

हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख के माध्यम से आपको महाराणा कुंभा के बारे में काफी कुछ जानने को मिला होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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