Konark Surya Mandir History in Hindi: भारत एक ऐतिहासिक देश है, जहां पर अनेकों पर्यटन स्थल है, जो इतिहास को बयां करते हैं। भारत के लोग सदियों से धार्मिक रहे हैं, जिस कारण भारत में अनेकों धार्मिक पर्यटन स्थल देखने को मिलते हैं। जिसकी संरचना और नक्काशी लोगों को खूब आकर्षित करती हैं।
ऐसे ही धार्मिक पर्यटन स्थलों में से एक कोणार्क का सूर्य मंदिर है। कोणार्क के सूर्य मंदिर की अनुठी संरचना और इसके भव्यता के कारण हर दिन कोणार्क मंदिर देखने के लिए हजारों की संख्या में सैनानी आते हैं।
यदि आप भी कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखने जाना चाहते हैं तो बिल्कुल सही लेख पर आए हैं। क्योंकि आज के इस लेख में हम सूर्य मंदिर कहां स्थित है, कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास, कोणार्क सूर्य मंदिर का रहस्य, कोणार्क के सूर्य मंदिर से जुड़ी बहुत सारी जानकारी बताने वाले हैं।
कोणार्क का सूर्य मंदिर
हिंदू धर्म में सूर्य देवता का बहुत ही ज्यादा महत्व है क्योंकि सूर्य के कारण ही धरती पर जीवन स्थित है। माना जाता है सूर्य देव की आराधना करने से कुंडली के सभी दोष दूर हो जाते हैं, इसीलिए प्राचीन काल से ही सूर्य देव की पूजा अर्चना की जा रही है।
वैदिक काल से ही कई बड़े-बड़े राजा सूर्य देव की आराधना करते थे और मनोकामना पूरी होने पर सूर्य देव के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रदर्शित करने के लिए वे सूर्य मंदिरों का भी निर्माण करते थे। उन्ही मंदिरों में से एक कोणार्क का सूर्य मंदिर भी है, जो अपनी भव्य संरचना और वास्तुकला के लिए पूरे देश दुनिया में प्रख्यात है।
कोणार्क का अर्थ क्या है?
कोणार्क शब्द कोण और अर्क दो शब्दों के मेल से बना हुआ है। यहां पर कोण का अर्थ कोन या किनारा होता है, वहीँ अर्क का अर्थ सूर्य से संबंधित है। इस तरह कोणार्क का अर्थ सूर्य का कोना होता है, इसीलिए इस मंदिर को कोणार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। रथ के आकार में बने इस मंदिर की खूबसूरती इतनी अनूठी है कि इस मंदिर को भारत के सात आश्चर्य में शामिल किया गया है।
कोणार्क का सूर्य मंदिर कहाँ स्थित है? (Surya Mandir Kahan Hai)
कोणार्क का सूर्य मंदिर भारत के ओडिशा राज्य के पूरी जिले के कोणार्क कस्बे में स्थित है, जो अपनी भव्यता और अद्भुत बनावट के वजह से मसहूर हैं।
कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण करने में 12 मजदूरों की सहायता लेनी पड़ी थी और इस मंदिर के खूबसूरत नक्काशी और सुंदर रूप देने में करीबन 12 साल से भी ज्यादा लंबा समय लगा था। इस मंदिर की भव्यता और कलाकृति के कारण आज यह यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में भी शामिल है।
कोणार्क का सूर्य मंदिर किसने बनवाया?
बात करें इस मंदिर के निर्माण की तो माना जाता है इस मंदिर का निर्माण 1236 से लेकर 1264 ईसा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सावंत राजा नृसिंहदेव द्वारा निर्मित किया गया था। कहा जाता है नृसिंहदेव ने इस मंदिर का निर्माण युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात याद स्वरूप किया था।
इतिहासकारों के अनुसार बताया जाता है कि तेरहवीं शताब्दी तक शासक मोहम्मद गौरी और अन्य कई मुस्लिम शासकों ने भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य एवं बंगाल प्रांत समेत कई राज्यों को जीत लिया था।
ऐसे में उस समय लगभग हिंदू साम्राज्य नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुका था और ओडिशा में भी हिंदू साम्राज्य खत्म होने की उम्मीद लगने लगी थी। लेकिन इस स्थिति को देखते हुए गंग राजवंश के शासक नरसिम्हा देव ने मुस्लिम साम्राज्य को खत्म करने की हिम्मत दिखाई। उन्होंने अपनी चतुर नीति से मुस्लिम शासकों के खिलाफ आक्रमण किया।
उस समय दिल्ली में सुल्तान इल्तुतमिश का शासन था, जिसकी मौत के बाद नसरुद्दीन मोहम्मद उसका उत्तराधिकारी बना और उसने तुगान खान को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। जिसके बाद 1243 में नरसिम्हा देव प्रथम और तुगान खान के बीच भारी युद्ध हुआ।
इस युद्ध में नरसिम्हा देव ने मुस्लिम सेना को बहुत बुरी तरह से खदेड़ कर भगा दिया और इस तरीके से इस युद्ध में उन्होंने जीत प्राप्त की। चूंकि वे भगवान सूर्य देव के बहुत बड़े उपासक थे, इसीलिए अपने जीत की खुशी में नृसिंह देव ने सूर्य देव को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर बनाने का फैसला किया था।
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कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी पौराणिक धार्मिक कथाएं
कोणार्क का सूर्य मंदिर ना केवल अपनी वास्तुकला और खूबसूरत संरचना के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इस मंदिर का धार्मिक महत्व भी है। इस मंदिर से करोड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। इस मंदिर से आस्था जुड़ी होने का कारण इसके पीछे एक पौराणिक कथा है।
कहा जाता है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांभा ने नारद मुनि के साथ बहुत ही अभद्र व्यवहार किया था, जिसके पश्चात नारद मुनि जी को उस पर क्रोध आया और उन्होंने क्रोधवश भगवान श्री कृष्ण के पुत्र को कोढ रोग होने का श्राप दे दिया।
भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांभा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरीके से इस भयानक रोग से निवारण करेंगे। ऐसे में वे ऋषि कटक के पास जाते हैं। ऋषि कटक सांभा को भगवान सूर्य देव की कठोर तपस्या और आराधना करने की सलाह देते हैं। जिसके बाद सांभा चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन के पास करीब 12 सालों तक सूर्य देव का कठोर तप करते हैं।
उसके बाद एक दिन जब सांभा चंद्रभागा नदी में स्नान करने जाते हैं तो उन्हें पानी में भगवान सूर्य देव की प्रतिमा मिलती है और फिर उस प्रतिमा को सांभा उसी स्थान पर स्थापित कर देते हैं, जहां पर आज कोणार्क का सूर्य मंदिर बना हुआ है।
इस तरह सूर्य देव की कठोर आराधना करने के पश्चात सांभा नारद मुनि के श्राप से मुक्त हो जाते हैं और उनका रोग ठीक हो जाता है। इस तरह उसी दिन से इस मंदिर का महत्व लोगों में बढ़ गया।
कोणार्क सूर्य मंदिर की अद्धभुत वास्तुकला
हिंदू धर्म में सूर्य देव को पूरे ब्रह्मांड के जीवन का स्त्रोत माना जाता है और सूर्य देव का बहुत ही पूजा आराधना प्राचीन काल से होती आ रही है। माना जाता है सूर्य देव सात बेहद शक्तिशाली घोड़ो द्वारा खींचे गए रथ पर आकाश में भ्रमण करते हैं। इस काल्पनिक से प्रेरित होकर कोणार्क के सूर्य मंदिर की कलाकृति की गई है।
यही कारण है कि कोणार्क का सूर्य मंदिर रथ आकार का दिखता है, जिसमें सात घोड़े है, 24 चक्के भी लगे हुए हैं। इस तरीके से इस मंदिर को देखने पर लगता है मानो ये सात घोड़े इन 24 चक्के के रथ को खींच रहे हैं। इस तरीके से अब बेहद ही सुंदर और भव्य दृश्य उत्पन्न करते हैं।
कोणार्क के सूर्य मंदिर की वास्तुकला मध्ययुगीन वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है। इस मंदिर को कलींग वास्तुकला का नमूना बताया जाता है क्योंकि इस मंदिर की वास्तुकला काफी हद तक कलिंग मंदिरों की वास्तुकला से मिलती-जुलती हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर जो उड़ीसा के पुरी समुद्र तट पर स्थित है, इस मंदिर पर बनी मूर्तियां कामोत्तेजक मुद्रा में है।
इस मंदिर में दिखाए गए सात घोड़े हफ्ते के साथ दिनों के भी प्रतीक माने जाते हैं, वहीँ 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटे को भी प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त इन पहियों पर लगी 8 ताड़ियाँ दिन के आठों प्रहर को दर्शाती है। इस तरीके से इस मंदिर की संरचना बहुत सी चीजों को प्रदर्शित करती हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर को लाल बलुआ पत्थर और काली ग्रेनाइट के इस्तेमाल से बनाया गया है। इसके अतिरिक्त इसके निर्माण में कई कीमती धातुओं का भी प्रयोग किया गया है। कोणार्क सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की तीन अलग-अलग मूर्तियां भी बनी है, जो उनकी बाल्यावस्था, युवावस्था और वृध्दवस्था को दिखाता है इसे उदित सूर्य, मध्यांह सूर्य और अस्त सूर्य भी कहा जाता है।
कोणार्क के सूर्य मंदिर के मुख्य द्वार पर शेरों के द्वारा हाथियों के विनाश का दृश्य अंकित किया गया है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य को दर्शाता है। यहां पर शेर घमंड, अहंकार और हाथी धन का प्रतीक माना गया है। इस भव्य मंदिर का ऊंचा टावर काले रंग का दिखाई देता है, इसलिए इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है।
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कोणार्क मंदिर के दरवाजे को वर्षो से बंद रखा जाने का कारण
कहा जाता है कि आज कोणार्क मंदिर के जिस अवस्था को देखा जा रहा है असल में वह आधा अवस्था है। इससे भी 2 गुना बड़ा कोणार्क मंदिर था। एक समय था जब कोणार्क मंदिर इतना ऊंचा दिखता था कि समुद्र में सैकड़ों किलोमीटर दूर नाविकों को भी कोणार्क का टांवर दिख जाता था।
दरअसल अभी कोणार्क मंदिर में केवल एक मंडप है लेकिन वर्षों पहले इस मंदिर में कुल 3 मंडप हुआ करते थे। कहा जाता है बाकी के दो मंडप कई सदियों पहले ही पूरी तरीके से नष्ट हो गए थे। इन दो मंडप के नष्ट होने के पीछे कई अलग-अलग कारण बताए जाते हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि कुछ आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर हमला करके इसके दोनों मंडप को नष्ट कर दिया। वहीँ कुछ विशेषज्ञ का मानना है कि दरअसल कोणार्क का मंदिर पूरी तरीके से कभी बन ही नहीं पाया था। मंदिर का जो हिस्सा अधूरा था, वह समय के साथ खुद ही ध्वस्त हो गया।
कुछ इतिहासकार तो यह भी बताते हैं कि प्राचीन काल में कोणार्क बहुत ही प्रसिद्ध और समृद्ध शहर हुआ करता था। लगभग 16वीं शताब्दी के दौरान इस मंदिर से सूर्य देव की प्रतिमा को हटा दिया गया, जिसके बाद श्रद्धालु यहां पर आना बंद हो गये और धीरे-धीरे यह शहर वीरान होता गया और अंत में यह एक जंगल में तब्दील हो गया।
उसके कई वर्षों के बाद दोबारा इस मंदिर की खोज की गई तब तक इस मंदिर के कई हिस्से अपने आप ढहकर नष्ट हो गए थे। माना कि आज इस मंदिर में एक ही मंडप बचा हुआ है लेकिन वह भी आश्चर्य की बात है कि मंडप के अंदर जाने के सभी रास्ते को पूरी तरीके से सील कर दिये गये है। बताया जाता है 108 साल पहले ही इस रास्ते को सील कर दिया गया था और आज भी यह बंद है।
वैसे इस मंदिर के बंद दरवाजे के पीछे यह तर्क भी दिया जाता है कि उन्नीसवीं सदी के अंत तक इस मंदिर का आखरी मंडप भी कमजोर होकर गिरने के कगार पर आ चुका था। ऐसे में इस मंदिर को पूरी तरीके से गिरने से बचाने के लिए और किसी भी श्रद्धालुओं को कोई नुकसान ना हो, इसीलिए इस मंडप के दरवाजे को उस समय के तत्कालीन गवर्नर जॉन वुडबर्न ने वर्ष 1901 में इस मंदिर के दरवाजे को सील कर दिया।
हालांकि बाद में इस मंदिर के मुख्य दरवाजे को खोलने के लिए कई बार फैसले लिए गए लेकिन हर बार कुछ ना कुछ कारण से इस दरवाजे को खोलने से टाल दिया गया। इस तरह 118 साल बीत चुके हैं और अभी तक यह दरवाजा सिल ही पड़ा है। हालांकि दरवाजे को बंद रहने के कारण में अंधविश्वास या कुछ रहस्यमई घटना भी केई लोग मानते हैं।
कोणार्क मंदिर के चुंबकीय पत्थर का राज क्या है?
कोणार्क मंदिर से संबंधित कुछ दंत कथाओं के अनुसार बताया जाता है कि सदियों पहले इस मंदिर के शिल्प पर एक पत्थर रखा हुआ था, उस पत्थर को चुंबकीय पत्थर माना जाता था। क्योंकि उस पत्थर की चुंबकीय शक्ति के कारण समुद्र में गुजरने वाली प्रत्येक पानी की जहाज इस मंदिर की ओर अपने आप खींची चली जाती थी।
यहां तक कि प्राचीन समय में नाविक लोग दिशा जानने के लिए दिशा सूचक यंत्र का प्रयोग करते थे। लेकिन जैसे ही वे कोणार्क मंदिर के संपर्क में आते थे, उनका दिशा सूचक यंत्र दिशा को बदल देता था, जिसके कारण वे दिशाहीन हो जाते थे।
जिसके बाद कहा जाता है कि किसी एक मुस्लिम नाविक ने इस पत्थर को यहां से निकालकर अपने साथ लेकर चला गया। हालांकि इस पत्थर को लेकर अन्य कथा यह भी है कि इस पत्थर को उस समय इसके शीर्ष पर इसलिए रखा गया था क्योंकि वह पत्थर मंदिर के चारों दीवारों को केंद्र में रहकर बैलेंस बनाए रखता था।
बात करें इस पत्थर को यहां से निकालने की तो बाद में जब उस पत्थर के कारण मंदिर का बैलेंस और भी बिगड़ गया और मंदिर धीरे-धीरे ध्वस्त होने लगा तब इस चुंबक के पत्थर को वहां से हटा दिया गया। लेकिन कुछ इतिहासकार तो यह भी मानते हैं कि चुंबकीय पत्थर दरअसल इस मंदिर पर कभी लगाया ही नहीं गया था। ऐसी घटनाओं का जिक्र इतिहास के पन्ने में मौजूद नहीं है, यह केवल लोगों के द्वारा बनाई गई मनगढत कथा है।
कोणार्क महोत्सव का आयोजन
कोणार्क मंदिर की भव्यता के कारण देश-विदेश से लाखों सेनानी हर साल कोणार्क मंदिर का दर्शन करने आते हैं। ऐसे में इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए उड़ीसा सरकार के द्वारा हर साल दिसंबर के महीने में 5 दिन के लिए सांस्कृतिक नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
इस महोत्सव में दक्षिण के कलाकार सहित उत्तर पूर्वी राज्यों के कलाकार भी भाग लेते हैं और अपनी प्रतिभा एवं संस्कृति को लोगों के सामने उजागर करते हैं। इस महोत्सव के अतिरिक्त माघ के महीने में चंद्रभागा नदी के किनारे भव्य मेले का आयोजन किया जाता है और यहां पर देश भर से लोग आकर स्नान करके शुद्ध होते हैं।
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कोणार्क सूर्य मंदिर में प्रवेश का समय और शुल्क
कोणार्क की वास्तुकला और इसकी संरचना इतनी आकर्षक है कि इसे देखने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में देश-विदेश से सैनानी आते हैं। आप साल के किसी भी दिन कोणार्क के सूर्य मंदिर की खूबसूरती को देखने के लिए आ सकते हैं।
बात करें इस मंदिर के प्रवेश के समय की तो सुबह के 9:00 बजे से लेकर रात के 9:00 बजे तक यह मंदिर सेनानियों के लिए खुला रहता हैं। हालांकि शुक्रवार के दिन यह मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में प्रवेश के लिए कोई भी शुल्क नहीं लगता है चाहे कोई भारतीय हो या विदेशी हो सबके लिए यहां पर निशुल्क प्रवेश है। इसके अतिरिक्त यहां पर पास में बाइक या कार के लिए पार्किंग की सुविधा भी दी गई है।
कोणार्क सूर्य मंदिर देखने कैसे जाएं?
कोणार्क का सूर्य मंदिर उड़ीसा राज्य में स्थित है और उड़ीसा भारत के विभिन्न शहरों से सड़क, रेलवे एवं हवाई मार्ग से बहुत अच्छे तरीके से जुड़ा हुआ है। आप इस मंदिर को देखने के लिए इनमें से किसी भी मार्ग का चयन कर सकते हैं।
यदि आप रेलवे माध्यम से कोणार्क जाना चाहते हैं तो कोणार्क का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भुनेश्वर और पूरी रेलवे स्टेशन है। पूरी रेलवे स्टेशन कोणार्क से 35 किलोमीटर की दूरी पर है, वहीँ भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन कोणार्क से 65 किलोमीटर की दूरी पर है। इन दोनों ही रेलवे स्टेशन से आपको बस या टैक्सी कोणार्क के लिए बहुत आसानी से मिल जाती है।
यदि आप कोणार्क बहुत जल्दी पहुंचना चाहते हैं तो आप हवाई मार्ग का चयन कर सकते हैं। कोणार्क का सबसे पास का एयरपोर्ट भुवनेश्वर एयरपोर्ट है। भुवनेश्वर एयरपोर्ट के लिए भारत के लगभग सभी बड़े शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता से नियमित रूप से फ्लाइट उड़ती है।
यदि आप निजी वाहन से जाना चाहते हैं तो कोणार्क सूर्य मंदिर के लिए सड़क मार्ग भी अच्छी सुविधा है। पुरी और भुवनेश्वर के लिए नियमित रूप से कई डीलक्स और भी अन्य बसे चलती हैं।
कोणार्क के सूर्य मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
- कोणार्क के सूर्य मंदिर के ऊपरी भाग में एक भारी चुंबक लगाया गया है और मंदिर के हर दो पत्थर पर लोहे की प्लेट भी लगी है। इस चुंबक को इस तरह लगाया गया है कि यह लोहे की प्लेट हवा में फिरते रहते हैं, जिस कारण यह निर्माण कार्य लोगों को बहुत ही आकर्षित करते हैं।
- कोणार्क के सूर्य मंदिर में 12 जोड़ी पहियों का उपयोग पहले घड़ी के रूप में किया जाता था। यह न केवल घंटा बल्कि मिनट और सेकंड तक का भी समय बताता है।
- कोणार्क मंदिर में निर्मित हर एक मूर्ति अलग अर्थ व्यक्त करती है। इस मंदिर के बाहर एक सिंह दिखाई देता है, जिसके नीचे हाथी है और हाथी के नीचे दबा हुआ इंसान है। इस तरह यहां पर सिंह मनुष्य के अहंकार का प्रतिनिधित्व करता है और हाथी मनुष्य की भावना का प्रतिनिधित्व करते हुए यह बताता है कि मनुष्य जाल में फंसा हुआ है। वह झूठे अहंकार के कारण उत्पन्न भावना से जाल में फंसता चला जाता है।
- कोणार्क का मंदिर समुद्र से काफी दूरी पर है। लेकिन कहा जाता है कि पहले इसे समुद्र के किनारे ही बनाया जाना था लेकिन समुद्र का स्तर धीरे-धीरे कम होता गया और यह मंदिर भी किनारे से थोड़ा दूर होता चला गया, जिसके कारण आज यह समुद्र से काफी दूर दिखाई देता है।
- कोणार्क सूर्य मंदिर के ऐतिहासिक योगदान के लिए 5 जनवरी 2018 को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ₹10 के नोट पर कोणार्क का चित्र उकेरा गया था।
- कोणार्क के सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पूरब दिशा में है। जब सुबह सूर्य की किरण नाट्य मंदिर से होकर मंदिर के मध्य भाग पर जाती है तो बहुत ही भव्य दृश्य उत्पन्न होता है।
FAQ
कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण 1236 से लेकर 1264 ईसा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सावंत राजा नृसिंहदेव द्वारा निर्मित किया गया था। उस समय इस मंदिर को लाल रंग के बलुआ पत्थर और काली ग्रेनाइट के पत्थरों के इस्तेमाल से बनाया गया था।
कहा जाता है कि 19वीं शताब्दी के अंत तक इस मंदिर का आखरी मंडप भी कमजोर होकर ढहने के कगार पर आ गया था। ऐसे में लोगों को बचाने के लिए उस समय के तत्कालीन गवर्नर जॉन वुडबर्न ने वर्ष 1901 में इस मंदिर के सभी दरवाजे को बंद करवा दिया।
कोणार्क का सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पूरी जिले स्थित है, जो अपनी बेहतरीन वास्तुकला के कारण पूरे देश दुनिया में प्रसिद्ध है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख में आपने भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल कोणार्क के सूर्य मंदिर के बारे में जाना। इस लेख में आपने कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण का इतिहास (Konark Surya Mandir History in hindi) और इससे जुड़ी रोचक तथ्यो के बारे में जाना।
हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण आ रहा होगा। यदि आपको पसंद आया हो तो इसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम या फेसबुक के जरिए अन्य लोगों के साथ जरूर शेयर करें। इस लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न या सुझाव आपके मन में हो तो आप हमें कमेंट में लिख कर बता सकते हैं।
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