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करुण रस की परिभाषा और करुण रस के उदाहरण

Karun Ras in Hindi: हिंदी ग्रामर में रस का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। रस एक महत्वपूर्ण इकाई है और रस को 9 भागों में विभाजित किया गया है। आज के आर्टिकल में हम करुण रस के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

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करुण रस की परिभाषा (Karun Ras Ki Paribhasha)

काव्य को सुनने पर जब दुःख के से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही करुण रस कहते हैं। अन्य शब्दों में करुण रस वह रस है, जिसमें दुःख या विलाप का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव शोक होता है।

करुण रस परिचय

करुण रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक मत्वपूर्ण स्थान है। करुण रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है, जिस काव्य में काव्य की विषय वस्तु में दुःख के भाव का समावेश होता है।

करुण रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है जब वह किसी अन्य चरित्र से विरह को भोग रहा होता है या किसी सुख के ह्रास की अनुभूति कर रहा होता है तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि काव्य के जिस भग में दुःख को प्रकट किया जाता है, वहां करुण रस होता है।

करुण रस के अवयव

  • स्थायी भाव: शोक।
  • आलंबन (विभाव): व्यक्ति जिसके विरह से शोक है अथवा वह सुख जिसका ह्रास हुआ है।
  • उद्दीपन (विभाव): आलंबन या विरही व्यक्ति की स्मृति व विरही या सुख की अनुपस्थिती की अनुभूति।
  • अनुभाव: रोना, मूर्छित होना, छाती पीटना, अवसाद आदि।
  • संचारी भाव: क्रोध विषाद, स्मृति, व्याधि, निर्वेद, अति संवेदनशीलता आदि।

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करुण रस का स्थाई भाव क्या है?

करुण रस का स्थाई भाव शोक है।

करुण रस के उदाहरण (Karun Ras Ke Udaharan)

जब उर की पीडा से रोकर,
फिर कुछ सोच समझ चुप होकर।
विरही अपने ही हाथों से अपने आंसू पोंछ हटाता,
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन।।

सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा।।
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।।

अब कौन अभीप्सित और आर्य, वह किसका?
संसार नष्ट है भ्रष्ट हुआ घर जिसका।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।।

जिस आंगन में पुत्र शोक से बिलख रही हो माता
वहां पहुँच कर स्वाद जीभ का तुमको कैसे भाता।
पति के चिर वियोग में व्याकुल युवती विधवा रोती
बड़े चाव से पंगत खाते तुम्हे पीर नही होती।

यह प्रेम कथा कहिये किहि सोँ जो कहै तो कहा कोऊ मानत है।
सब ऊपरी धीर धरायो चहै तन रोग नहीँ पहिचानत है।
कहि ठाकुर जाहि लगी कसिकै सु तौ वै कसकैँ उर आनत है।
बिन आपने पाँव बिबाँई भये कोऊ पीर पराई न जानत है।।

अर्ध राति गयी कपि नहिं आवा।
राम उठाइ अनुज उर लावा।।
सकइ न दृखित देखि मोहि काऊ।
बन्धु सदा तव मृदृल स्वभाऊ।।
जो जनतेऊँ वन बन्धु विछोहु।
पिता वचन मनतेऊँ नहिं ओहु।।

मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिन्ता का भार बनी अविरल।।
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली।।

रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के।
ग्लानि, त्रास, वेदना – विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।।

चूम कर जिन्हें सदा क्राँतियाँ गुज़र गईं
गोद में लिये जिन्हें आँधियाँ बिखर गईं
पूछता ग़रीब वह रोटियाँ किधर गई
देश भी तो बँट गया वेदना बँटी नहीं
रोटियाँ ग़रीब की प्रार्थना बनी रही।।

अब तक हमने करुण रस के 10 उदाहरण जाने है। करुण रस को और भी विस्तार से समझने के लिए आगे करुण रस के छोटे उदाहरण जानते है।

मेधा का यह स्फीत भाव औ
अहंकार सब तभी जल गया।
पंचतत्त्व का चोला बदला,
पंचतत्त्व में पुन: मिल गया।।

शोक विकल सब रोवहिं रानी।
रूप सीलु सबु देखु बखानी।।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा।
परिहिं भूमि तल बारहिं बारा।।

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये।।
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।।

Karun Ras Ki Paribhasha
करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित

हा! इसी अयश के हेतु जनन था मेरा,
निज जननी ही के हाथ हनन था मेरा।

राम-राम कहि राम कहि, राम-राम कहि राम।
तन परिहरि रघुपति विरह, राउगयउसुरधाम।।

सोक बिकल सब रोवहिं रानी।
रूपु सीलु बलु तेजु बखानी।।
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा।
परहिं भूमितल बारहिं बारा।।

बिजलियों का चीर पहने थी दिशा,
आँधियों के पर लगाये थी निशा,
पर्वतों की बाँह पकड़े था पवन,
सिन्धु को सिर पर उठाये था गगन,
सब रुके, पर प्रीति की अर्थी लिये,
आँसुओं का कारवाँ चलता रहा।।

गइ मुरुछा तब भूपति जागे।
बोलि सुमंत्रु कहन अस लागे।।
रामु चले बन प्रान न जाहीं।
केहि सुख लागि रहत तन माहीं।।

यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को।
चौंके सब सुनकर अटल केकयी-स्वर को।।

तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे।

दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना ही
और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना
सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और
सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना।।

धोखा न दो भैया मुझे, इस भांति आकर के यहाँ।
मझधार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहाँ।।

हे आर्य, रहा क्या भरत-अभीप्सित अब भी?
मिल गया अकण्टक राज्य उसे जब, तब भी?

नाहिं त मोर मरनु परिनामा।
कछु न बसाइ भएँ बिधि बामा।।
अस कहि मुरुछि परा महि राऊ।
रामु लखनु सिय आनि देखाऊ।।

ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी।
जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी।।
जब घायल हुआ हिमालय, खतरे में पड़ी आजादी।
जब तक थी सांस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी।।

हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा,
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।।

मणि खोये भुजंग-सी जननी,
फन-सा पटक रही थी शीश,
अन्धी आज बनाकर मुझको,
क्या न्याय किया तुमने जगदीश?

मनहुँ बारिनिधि बूड़ जहाजू।
भयउ बिकल बड़ बनिक समाजू।।
एकहि एक देहिं उपदेसू।
तजे राम हम जानि कलेसू।।

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!

अभी तो मुकुट बंधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल।
हाय रुक गया यहीं संसार,
बिना सिंदूर अनल अंगार
वातहत लतिका वट
सुकुमार पड़ी है छिन्नाधार।।

राम चलत अति भयउ बिषादू।
सुनि न जाइ पुर आरत नादू।।
कुसगुन लंक अवध अति सोकू।
हरष बिषाद बिबस सुरलोकू।।

हाय राम कैसे झेलें हम अपनी लज्जा अपना शोक।
गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक।।

निष्कर्ष

हमने देखा कि करुण रस की उपस्थिति में शोक का भाव होता है, जो कि काव्य में किसी में किसी चरित्र के विरह या नष्ट होने पर या किसी सुख में ह्रास होने पर शोक व दुःख योग्य परिस्थिती उत्पन्न करने के कारण लक्षित चरित्र के व्यव्हार में विलाप्युक्त परिवर्तन को लाता है और लक्षित व्यक्ति की एक शोक विशेष मनःस्थिति को संचालित करता है।

करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है और ऐसी मनः स्थिती में लक्षित व्यक्ति रुदन, क्रंदन करता है व किलाप्ता है।

FAQ

करुण रस किसे कहते हैं?

काव्य को सुनने पर जब दुःख के से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही करुण रस कहते हैं।

करुण रस का उदाहरण बताइए?

तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे।

करुण रस का स्थाई भाव क्या है?

करुण रस का स्थाई भाव शोक है।

अंतिम शब्द

इस आर्टिकल में हमने आपको करुण रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण (Karun Ras in Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है। आर्टिकल पसंद आये तो शेयर जरुर करें। यदि आपके मन में इस आर्टिकल को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है, तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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