इस आर्टिकल में सोमनाथ मंदिर के इतिहास (Somnath Temple History in Hindi) के बारें में बताने के साथ ही इस मंदिर से जुड़ी छोटी-मोटी सभी जानकारियों को इस आर्टिकल में साझा करने का प्रयास कर रहे हैं।
गुजरात के वेरवाल बंदरगाह के प्रभास पाटन के पास मौजूद सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है। सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने करवाया था। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है और ऋग्वेद में इस मंदिर का इतिहास एवं इसके बनने का कारण भी बताया है।
सोमनाथ मंदिर अपने आप में अनेक इतिहास संजोय हुए है। इस मंदिर की बात करें तो यहाँ पर आज के समय में हर दिन लाखों पर्यटक आते हैं।
इस मंदिर ने अनेक आक्रमण सहे है, उसके बाद भी सरदार वल्लभभाई पटेल की वजह से आज मंदिर एक बार फिर हमारे सामने है। अगर भारत में किसी मंदिर का पुन:निर्माण बार-बार हुआ है तो उनमे सबसे पहले सोमनाथ मंदिर का ही नाम आता है।
सोमनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ था?
सोमनाथ मंदिर कई बार तोड़ा गया परंतु इसका फिर से निर्मित हुआ। यदि बात की जाए कि सबसे ज्यादा टूटने वाला मंदिर और सबसे ज्यादा निर्माण किए जाने वाला मंदिर की तो ऐसे में सोमनाथ मंदिर का नाम सबसे पहले आता है।
सोमनाथ मंदिर को कई बार तोड़ा गया परंतु भारत के निवासियों ने उसे फिर से निर्मित किया। सोमनाथ मंदिर का अस्तित्व ईसा पूर्व के पहले से ही था।
लेकिन द्वितीय बार इस मंदिर को इसी स्थान पर 649 ईसवी में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण वैल्लभी के मैत्रीक राजाओं द्वारा किया गया। इस मंदिर को पहली बार 725 ईसवी में तोड़ दिया गया। इस बार सोमनाथ मंदिर को तोड़ने में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद का हाथ था।
725 ईसवी में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद द्वारा इस मंदिर को तोड़े जाने के बाद इसका पुनर्निर्माण 815 ईस्वी में प्रतिहार राजा नागभट्ट ने करवाया। 815 ईसवी में प्रतिहार राजा नागभट्ट के द्वारा पुनर्निर्माण किए गए मंदिर को एक बार फिर से सन 1024 ने महमूद गजनवी ने लगभग 5000 सैनिकों के साथ इस मंदिर पर आक्रमण कर दिया।
इतने सैनिकों के साथ इस मंदिर पर आक्रमण करने का एकमात्र मकसद यह था कि मंदिर को नष्ट करना तथा उसकी सारी सम्पति को लूट लेना। महमूद गजनवी ने ऐसा ही किया।
उसने सोमनाथ मंदिर की सारी संपत्ति को लूट लिया तथा वहां पर उपस्थित सभी निहत्थे लोगों की हत्या भी कर दी। जिन लोगों की हत्या हुई, उनकी तादाद लगभग 1000 की थी।
सोमनाथ मंदिर में महमूद गजनवी के आक्रमण के दौरान जिन लोगों की मृत्यु हुई वह ऐसे लोग थे, जो मंदिर में पूजा कर रहे थे और कुछ लोग ऐसे भी थे, जो मंदिर की देखभाल तथा मंदिर की रक्षा करने के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे। परंतु महमूद गजनवी ने सभी की हत्या कर दी।
जब सन 1024 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को तहस-नहस कर दिया तथा उसकी सारी सम्पति लूटने के बाद सन 1093 में गुजरात के राजा भीमदेव तथा मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।
इन दोनों राजाओं के साथ-साथ सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर के पुनर्निर्माण में सहयोग किया। आगे चलकर लगभग 1193 में विजेश्वर कुमार पाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार नेवी सोमनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण अर्थात उसके सौंदर्य को बढ़ाने के लिए सहयोग किया।
दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1297 में गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को फिर से तोड़ दिया और सोमनाथ मंदिर में उपस्थित साधनसंपत्ती, चढ़ावा आदि को लूट लिया। इस बार भी इस मंदिर का पूरा निर्माण हिंदू राजाओं द्वारा ही किया गया।
गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने सन 1395 में एक बार फिर से सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और वहां का सारा चढ़ावा लूटकर ले गया। सुल्तान मुजफ्फर शाह के बाद 1412 में मुजफ्फर शाह के पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया। उसने भी सन 1412 में सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और वहां का सारा चढ़ावा लूट लिया।
आपने क्रूर मुस्लिम राजा औरंगजेब का नाम तो सुना ही होगा। यह बहुत क्रूर शासक था तथा इसी के शासनकाल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया था। मुस्लिम शासक औरंगजेब ने शासनकाल में सोमनाथ मंदिर को पहली बार सन 1665 में तथा दूसरी बार 1706 में तुड़वाया।
1665 ईसवी में सोमनाथ मंदिर को तुड़वाने के बाद औरंगजेब ने देखा कि हिंदू धर्म के लोग भी वहां पूजा-अर्चना कर रहे हैं तो उसने वहां पर कत्लेआम करवा दिया।
कत्लेआम के कुछ समय पश्चात जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठा लोगों के अधिकार में आ गया तो उन्होंने सन 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा स्थापित मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर सोमनाथ महादेव का एक मंदिर बनाया गया ताकि वहां पर लोग पूजा अर्चना कर सके।
इतनी बार मंदिर को तोड़ने के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र के जल को हाथ में लेकर एक प्रण लिया कि सोमनाथ मंदिर को फिर से बनाएंगे और वे अपने संकल्प पर खरे भी उतरे। उन्होंने सन 1950 में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
लगभग छह बार सोमनाथ मंदिर के टूटने के बाद सातवीं बार पुनर्निर्माण करवाया गया। साथ ही बारिश मंदिर के पुनर्निर्माण में सरदार वल्लभ भाई पटेल का बहुत बड़ा सहयोग था।
वर्तमान मे जो सोमनाथ मंदिर बना हुआ है और वहां पर लाखों लोग दर्शन करने आते हैं वह मंदिर सरदार बल्लभ भाई पटेल की बदौलत ही बना है। अंत में चलकर 1 दिसंबर सन 1995 में इसे भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास (History of Somnath Temple in Hindi)
सोमनाथ मंदिर अपने आप में ही ख़ास है। अगर हम इसका निर्माण कब हुआ इसकी बात करें तो यह आज तक सिद्ध नहीं हो पाया है कि सबसे पहले सोमनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ।
हालाँकि इससे जुड़ी अनेक एतिहासिक कहानियां आज भी सुनने और पढने को मिलती है। प्राचीन वेदों में ऋग्वेद में सोमनाथ मंदिर का जिक्र हुआ है, इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत के इस मंदिर को सबसे प्राचीन मंदिर की उपाधि दी जा सकती है।
लेकिन यह मंदिर बार-बार दुष्ट लोगों द्वारा खंडित किया गया है, उसके बाद भी इस मंदिर को पुन:निर्माण किया गया है। कहते हैं कि चन्द्रदेव ने सोमनाथ मंदिर का निर्माण शिव को अराध्य मानते हुए करवाया था। इसके पीछे एक काहानी भी है, जो हम आगे बता रहे हैं।
सोमनाथ मंदिर निर्माण की कहानी
कहते हैं कि चन्द्र देव ने राजा दक्ष की 27 पुत्रियों के साथ विवाह किया था, लेकिन वह सबसे ज्यादा प्रेम एक ही पत्नी को करते थे। अपनी अन्य पुत्रियों के साथ यह अन्याय देखते हुए राजा दक्ष ने चन्द्रदेव को श्राप दिया कि आज से चन्द्रदेव का तेज धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा।
जैसे ही चन्द्रदेव पर उनके श्राप का असर शुरू हुआ और उनका तेज घटने लगा तो उन्होंने देवों के देव महादेव यानि शिवजी का आव्हान किया। उनकी पूजा शुरू करी और उनकी भक्ति में लीन हो गये।
शिवजी जब चन्द्रदेव की भक्ति से प्रसन्न हुए तो उन्होंने चन्द्रदेव के तेज को फिर से बनाये रखने के लिए राजा दक्ष के श्राप का उपाय निकाला। उसी समय चन्द्रदेव ने भगवान शिव को अराध्य मानते हुए उनके पहले ज्योतिर्लिंग ‘सोमनाथ मंदिर’ का निर्माण करवाया।
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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी
अभी हम बात करें सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी तो बता दें कि शिव पुराण से यह पता चलता है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग देवों के देव महादेव का प्रथम ज्योतिर्लिंग है, पुराणों में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा निम्नलिखित है।
प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियां थी और उन्होंने अपनी सारी पुत्रियों का विवाह एक साथ चंद्रमा के साथ कर दिया। प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियां इस विवाह से बहुत प्रसन्न थी और साथ ही साथ प्रजापति दक्ष भी इस विवाह से बहुत प्रसन्न थे तथा सभी कन्याओं से विवाह कर चंद्रमा बहुत सुशोभित हुए।
प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों में से चंद्रमा उनकी एक पुत्री रोहिणी से अधिक लगा तथा अधिक प्रेम करते थे जैसा कि वह बाकी 26 पत्नियों से नहीं करते थे। अर्थात वे उन 26 पत्नियों से सौतेला व्यवहार करते थे।
चंद्रमा का ऐसा व्यवहार देख प्रजापति दक्ष की सभी पुत्रियां बहुत दुखी हुई और उन्होंने अपने कष्ट के निवारण के लिए अपने पिता प्रजापति दक्ष के पास गई और उन्हें अपनी सारी वीरा बताएं।
प्रजापति दक्ष ने जब अपने पुत्रियों की पीड़ा सुनी, तो वे स्वयं चंद्रमा के पास गए हैं और उन्हें प्रेम पूर्वक बड़ी ही विनम्रता पूर्वक समझाया कि आप ऐसा ना करें। आपको सभी पत्नियों से एक जैसा बर्ताव करना चाहिए तथा एक जैसा प्रेम करना चाहिए। कृपया आप सौतेला व्यवहार करना बंद कर दीजिए और अपनी सभी पत्नियों से एक समान प्रेम तथा व्यवहार कीजिए।
लेकिन चंद्रमा ने अपने ससुर प्रजापति दक्ष की इस बात की अवहेलना की तथा वे फिर भी अपनी पत्नी रोहिणी से अधिक प्रेम करते हैं तथा बाकी पत्नियों से सौतेला व्यवहार करते हैं।
जब इस बात का पता प्रजापति दक्ष को चला तो वे फिर एक बार चंद्रमा से मिलने आए और उन्हें इस बार भी बड़ी प्रेम पूर्वक तथा विनम्रता से समझाया, किंतु चंद्रमा ने उनकी इस बात की इस बार भी अवहेलना कर दी।
इस बार प्रजापति दक्ष क्रोधित हो गए हैं और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया और चंद्रमा से कहा तुमने मेरे हर बार निवेदन करने पर भी मेरे बात की अवहेलना की तथा पत्नियों से सौतेला व्यवहार किया मैं तुम्हें तुम्हारी इस क्रिया पर शाप देता हूं कि तुम्हें छय रोग हो जाएगा।
कुछ ही समय पश्चात चंद्रमा को क्षय रोग हो गया और सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। सारे ऋषि मुनि और देव अचंभित हो गए। चंद्रमा ने अपने इस छय रोग के निवारण के लिए कई प्रयास किए परंतु प्रजापति दक्ष के शाप से छुटकारा पाना असंभव था।
चंद्रमा की लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें छय रोग से छुटकारा नहीं मिला तो वे अपनी पीड़ा लेकर भगवान ब्रह्मा के पास गए। प्रजापति दक्ष के शाप से मुक्त होना असंभव था। लेकिन भगवान ब्रह्मा जी ने चंद्रमा को एक उपाय बताया कि चंद्रमा को देव मंडल के साथ शुभ प्रभास क्षेत्र में चले जाना चाहिए तथा वहां उनको पवित्र महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। उनके महामृत्युंजय जाप से भोलेनाथ प्रसन्न होकर उन्हें उनके इस छय रोग से मुक्त कर देंगे।
इतना सुनकर चंद्रमा सभी देवताओं के साथ शुभ प्रभात क्षेत्र में चले गए और वहां पहुंचने के बाद चंद्रदेव ने भगवान शिव की अर्चना एवं वंदना का अनुष्ठान करना प्रारंभ कर दिया।
वहां पर चंद्रदेव महामृत्युंजय जप करने में तथा भगवान शिव की उपासना करने में विलीन हो गए। चंद्रदेव ने लगभग 6 महीनों तक भगवान शिव के महामृत्युंजय जप का उपासना किया तथा साथ ही साथ वृषभ ध्वज का भी पूजन किया।
6 महीनों की उपासना के दौरान चंद्रदेव ने लगभग 100000000 मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। 100000000 महामृत्युंजय मंत्र का जाप उन्होंने निरंतर खड़े होकर किया।
उनकी इस उपासना को देखकर भोलेनाथ प्रसन्न हुए और वहां प्रकट हो गए हैं। उन्होंने चंद्रदेव से कहा कि हे चंद्र देव! तुम्हारा कल्याण हो, मैं तुम्हारी इस उपासना से प्रसन्न हूं। बोलो तुम्हें क्या चाहिए? जिसके लिए तुमने इतनी कठिन तपस्या की है।
भगवान शिव को देखकर चंद्रदेव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव से बड़ी ही विनम्रता पूर्वक कहा हे देवेश्वर! आप मेरे द्वारा किए गए सभी अपराधों को क्षमा कीजिए तथा मेरे शरीर पर हुए इस छह रोग से मुक्त कर दीजिए।
परंतु चंद्र देव को इस शाप से मुक्त करना भगवान शिव के लिए भी असंभव था। इस कष्ट को सुनकर भगवान शिव ने एक बीच का मार्ग निकाला।
उन्होंने चंद्र देव से कहा कि हे चंद्र देव! तुम्हारी प्रतिदिन एक ही पक्ष में छिड़ हुआ करेगी जबकि यही दूसरे पक्ष में निरंतर बढ़ती रहेगी। इस प्रकार तुम धीरे-धीरे स्वस्थ हो जाओगे। भगवान शिव की ईश्वरदान को सुनकर चंद्रदेव बहुत हुए और उन्होंने भगवान शिव का कोटि-कोटि धन्यवाद किया।
अंत में भगवान शिव ने चंद्रदेव की इस भक्ति को देखकर स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए भगवान शिव के इस रूप को सारा संसार आज सोमनाथ महादेव के नाम से जानती है।
आधुनिक भारत में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण
सोमनाथ मंदिर को मुगलों ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। उसी में कुछ बची हुई संपत्ति को अंग्रेजों ने नष्ट कर दी, मंदिर खंडर बन गया था। भारत को आजादी मिलने के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू करने पर जोर दिया।
लेकिन जवाहरलाल नेहरु ने उनके इस फैंसले का विरोध किया। लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल अपनी बात पर बने रहे और लोगों का समर्थन लेकर इस मंदिर को पुनर्निर्माण शुरू करवाया।
उसके बाद एक दिसंबर 1995 में भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इस मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया और मंदिर के लिए जमीन, बाग़-बगीचे दिए ताकि मंदिर की आय बनी रहे। आज मंदिर की देख-रेख सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है।
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श्री कृष्ण और सोमनाथ मंदिर का संबंध
माना जाता है कि श्री कृष्ण ने प्रभासस्थल जिसे सोमनाथ मंदिर भी कहा जाता है, यहाँ पर अपना देह त्याग किया था। कहते है यहाँ जंगल में श्री कृष्ण आराम कर रहे थे और उसी समय एक शिकारी ने श्री कृष्ण के पैर को हिरन की आँख समझकर उन्हें तीर मारा था।
श्री कृष्ण ने उसी समय अपना देह त्याग दिया था। इसी वजह से सोमनाथ मंदिर को मुक्तिस्थल के रूप में भी देखा जाता है और चेत्र, भाद्रपद और कार्तिक माह में लोग यहाँ श्राद या पिंड दान करने के लिए आते हैं। इन तीन महीनों में यहाँ बहुत ज्यादा श्रद्धालु आते हैं।
सोमनाथ मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
सोमनाथ मंदिर प्राचीन होने के साथ-साथ अपने आप में बहुत ख़ास है। इससे जुड़े अनेक रोचक तथ्य है, जो आज भी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं या लोगों को हैरान कर देते हैं। यह रोचक तथ्य इस प्रकार है:
- यहाँ तीन नदियों हिरण, सरस्वती और कपिला का संगम होता है।
- यहाँ किया गया स्नान त्रिवेणी स्नान कहलाता है।
- भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर ही है।
- सोमनाथ का अर्थ “भगवानों के भगवान या देवो के देव’ है।
- सोमनाथ मंदिर ऐसी लोकेशन पर बना हुआ है, जहाँ सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच कोई भूभाग नहीं है।
- कहा जाता है कि आगरा में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के है, जिन्हें मोहम्मद गजनवी लूटकर अपने साथ ले गया था।
- मंदिर में तीन बार आरती होती है एवं पर्यटकों के लिए मंदिर सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है।
- सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला सभी को आकर्षित करती है, इन्हें देखने के लिए लाखों लोग हर रोज यहां आते हैं।
- शाम 7:30 से 8:30 बजे तक लाइट शो होता है, इसमें मंदिर के इतिहास के बारें में दिखाया जाता है।
सोमनाथ मंदिर की बनावट
सोमनाथ मंदिर की बनावट काफी आकर्षक है, यहाँ वास्तुकला देखने लायक है। इस मंदिर के शिखर की उंचाई 150 फीट है। मंदिर के शिखर पर स्तिथ कलश का वजन 10 टन और इसकी ध्वजा 27 फीट ऊँची है।
मंदिर के अंदर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्य मंडपम है। मंदिर के दक्षिण में एक स्तंभ है, जिसे बाण स्तंभ कहते है। इस स्तंभ पर एक बाण बना हुआ है। यह मंदिर 10 किलोमीटर में फैला हुआ है और यहाँ पर 42 अन्य मंदिर भी है।
निष्कर्ष
सोमनाथ मंदिर हिन्दुओं के प्रमुख मंदिरों में से एक है, इस मंदिर की वास्तुकला सभी को आकर्षित करती है। आधुनिक मंदिर का पूरा श्रेय सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है।
उन्ही की बदौलत इस मंदिर को हम और आप देख पा रहे हैं। अगर आप भगवान शिव के भक्त है तो एक बार इस मंदिर जरुर जाए, आपको ईश्वर की अनुभूति जरुर होगी।
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