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आयुर्वेद का इतिहास, महत्व और लाभ

History of Ayurveda in Hindi: नमस्कार दोस्तों, आज हम इस लेख में आयुर्वेद के बारे में विस्तार से जानेंगे। इस लेख के माध्यम से हम आयुर्वेद का इतिहास, आयुर्वेद का महत्व, आयुर्वेद का मतलब, आयुर्वेद के लाभ आदि के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे। यदि आप आयुर्वेद के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़े।

History of Ayurveda in Hindi
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आयुर्वेद का महत्व, लाभ और इतिहास | History of Ayurveda in Hindi

आयुर्वेद क्या है? (Ayurveda in Hindi)

आयुर्वेद कहे या आयुर्विज्ञान दोनों एक ही है। भारत का यह विज्ञान रोगों को सही करने के लिए बनाया गया था। यह विज्ञान पश्चिमी देशों में ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है।

आयुर्वेद का अगर संधि विच्छेद करें तो हमें आयु: + वेद मिलेगा यानि कि मानव को लंबी आयु प्रदान करना। दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति में से एक आयुर्वेद भी है। आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ जीवन से संबंधित ज्ञान होता है।

चलिये थोड़ा इसके बारे में और जानते है और यह भी पता लगाते है कि बाहर के देश इस चिकित्सा पद्धति में इतना इंटरेस्ट क्यों ले रहे है?

आयुर्वेद के जनक ऋषि कौन है?

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं आयुर्वेद की शुरुआत सर्वप्रथम हमारे भारत से ही हुई थी और आयुर्वेद के जनक ऋषि के रूप में भगवान धन्वंतरि जी को माना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि जी ने ही लोगों को आयुर्वेदिक औषधियों के विषय में बोध कराया था और इसी कारण से भगवान धन्वंतरि जी को आयुर्वेद का जनक कहा जाता है।

आयुर्वेद का मतलब

आयुर्वेद को भारतीय आयुर्विज्ञान भी कहते है और आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें मानव शरीर को होने वाले रोग और उन्हें रोग मुक्त करने की सारी विधियों का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद जिस ग्रंथ में लिखा गया है, उस ग्रंथ के अनुसार मानव शरीर में जब तीन दोषों का संतुलन बिगड़ जाता है तब मानव रोग से ग्रसित यानि बीमार पड़ता है। वो तीन दोष वात, पित्त और कफ है।

वैसे तो आप में से बहुत से लोग इस बात से परिचित होंगे कि पुरातन काल में संस्कृत भाषा ही बोली और लिखी जाती थी। इसलिए भारत के सारे वेद, पुराण, उपनिषद इत्यादि संस्कृत भाषा में लिखा गया है।

उसी से भाषा से एक श्लोक लेकर आया हूँ, जिसमे आयुर्वेद की परिभाषा सम्मिलित है।

आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेद:

अगर आसान शब्दों में कहे तो ऐसा शास्त्र जो जीवन के बारे में ज्ञान देता है, उसे आयुर्वेद कहते है।

आयुर्वेद के लाभ

अब इसके लाभ के बारे में पढ़ लेते है क्योंकि इस पद्धति से जो मनुष्य अपना इलाज करवाता है, उसके कभी साइड इफैक्ट नहीं होते है, इसलिए इस चिकित्सा पद्धति की एक भी हानि नहीं है।

  • आयुर्वेद रोग को जड़ से ख़त्म करता है।
  • आयुर्वेद न केवल रोगों को सही करता है बल्कि रोगों को आने से भी रोकता है।
  • आयुर्वेदिक दवाइयाँ में अधिकतर पौधे, फूलों और फलों के घटक मौजूद होते है। अत: यह चिकित्सा प्रकृति के पास है, जिससे मनुष्य को कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।
  • ऐसा जरूरी नहीं है कि आयुर्वेदिक दवाइयाँ जिसे औषधियाँ कहते है, वो केवल अस्वस्थ लोग ही ले बल्कि स्वस्थ लोग भी ले सकते है।

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आयुर्वेद का इतिहास (Ayurved ka Itihas)

आयुर्वेद की रचना किस काल में हुई इसका पूर्ण मत किसी के पास नहीं है। लेकिन इसकी रचना ईसा पूर्व ३००० से ५००० वर्ष की मानी गयी है। किसी ने अपना पूर्ण मत इसलिए नहीं दिया क्योंकि आयुर्वेद का जिक्र ऋग्वेद संहिता में भी है। लेकिन चरक, सुश्रुत, कश्यप ऋषियों के अनुसार आयुर्वेद ग्रंथ अथर्ववेद का उपवेद ही है।

हम इन तथ्यों से कह सकते है कि आयुर्वेद की रचना बहुत युगों पहले हुई थी यानि कि जब संसार की उत्पत्ति हुई थी, उसके साथ-साथ या उसके आस-पास का ही आयुर्वेद की रचना हुई थी। आयुर्वेद उन प्राचीन ग्रन्थों में से एक है, जिसे देवता लोग उपयोग में लाते थे।

देवताओं की चिकित्सा पद्धति को मानव सेवा के लिए उपयोग करने के लिए देवताओं के वैद्य ने धरती के महानतम आचार्यों को इसका ज्ञान दिया।

देवताओं के वैद्य ने सबसे पहले आचार्य अश्विनीकुमार को सिखाया, जिन्हें आयुर्वेद का आदि आचार्य कहा जाता हैं। ऐसा कहा जाता है कि अश्विनीकुमार ने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ने वाली चमत्कारिक क्रिया की थी। धन्वन्तरी को आयुर्वेद का देवता कहा जाता है।

इनके अलावा बहुत से आचार्य थे, जिनको इन विधा का ज्ञान था। वो आचार्य ये है – अश्विनीकुमार, धन्वन्तरी, काशीराज (दिवोदास), नकुल, सहदेव, अर्की, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त्य, अत्रि तथा उनके छ: शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जतुकर्ण,पाराशर, सिरपाणि, हारीत), सुश्रुत और चरक है।

ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद को आठ भागों में बाँटा था और उन भागों को उन्होने तंत्र का नाम दिया। ये सारे भाग अलग-अलग चिकित्सा के उपक्रम को समझाता है। वो आठ भाग निम्नलिखित है:

  1. शल्यतन्त्र (Surgical Techniques)
  2. शालक्यतन्त्र (ENT)
  3. कायचिकित्सा (General Medicine)
  4. भूतविद्या तन्त्र (Psycho Therapy)
  5. कुमारभृत्यु (Pediatrics)
  6. अगदततन्त्र (Toxicology)
  7. रसायनतन्त्र (Renjunvention and Geraitrics)
  8. वाजीकरण (Virlification, Science of Aphrodisiac and Sexology)

आयुर्वेद के अंदर पूरे शरीर के रोगों का निवारण लिखा है।

आयुर्वेद की उत्पत्ति किस वेद से हुई है?

आयुर्वेद की उत्पत्ति का मूलाधार अथर्ववेद को माना जाता है। क्योंकि अथर्ववेद में आयुर्वेद से संबंधित सभी जानकारियां विस्तृत रूप से लिखित है।

आयुर्वेद की उत्पत्ति स्वयं भगवान ब्रह्मा के द्वारा मानी जाती है और ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि अथर्व वेद के रचयिता खोजें ब्रह्मा जी हैं। आयुर्वेद की रचना करने वाले तो ब्रह्माजी हैं, परंतु इसके विषय में लोगों को बताने वाले महर्षि कृष्ण व्यास द्वैपाजन जी हैं।

आयुर्वेद की मदद से सभी रोगों के निवारण और उसका मॉडर्न नाम

शल्यतन्त्र: शल्य तंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है शरीर के ही अन्य हिस्सों से चर्म को हटाकर दूसरे अंगों पर ट्रांसप्लांट करना। इसको अँग्रेजी में सर्जरी कहते है, सबसे बड़े शल्य चिकित्सक सुश्रुत थे। इस भाग में विविध प्रकार के शल्यों को निकालने की विधि को संपादित चिकित्सा को शल्य चिकित्सा कहते है।

शालाक्यतन्त्र: इस आयुर्वेद के अनुसार मुंह नाक और कान के लोगों को पहचाना जाता है और उससे संबंधित निवारण किए जाते हैं। इसको अँग्रेजी में ENT विभाग कहते है ENT का मतलब ही होता है मुँह, नाक, आँख, कान से संबंधित रोगों की पहचान और उसका निवारण।

कायचिकित्सा: इसको अँग्रेजी में जनरल मेडिसिन कहते है। इसमें बुखार, खाँसी, जुकाम इत्यादि रोग आते है। उसके निवारण के लिए औषधियाँ लिखी गयी है, यह औषधियां पूर्णतया आयुर्वेदिक होती है अर्थात इसका कोई भी नुकसान नहीं होता।

भूतविद्या तन्त्र: इसको अँग्रेजी में psycho therapy कहते है। इसमें ग्रह दशा से संबंधित चिकित्सा का लिखा हुया है। तो बहुत से लोग होते हैं, जिनको बचपन से ही कुछ ग्रह नक्षत्र से संबंधित समस्याएं होती हैं, जिसका उपाय भूत विद्या तंत्र के द्वारा किया जाता है।

कुमारभृत्यु: इसको अँग्रेजी में Pediatrics कहते है। इसका एक और नाम कौमारभृत्य भी है। इस भाग में गर्भविज्ञान का वर्णन किया हुया है। बच्चों, स्त्रियों और स्त्री रोग से संबंधित ज्ञान लिखा गया है। पुराने समय की महिलाओं को इसका काफी अच्छा ज्ञान हुआ करता था, जिसके कारण महिलाएं घर पर ही आयुर्वेदिक रुप से डिलीवरी करवा देती थी।

अगदततन्त्र: इसको अँग्रेजी में Toxicology कहते है। इसमें सभी जहर के बारे में ज्ञान दिया गया है। इसको अगदतन्त्र है। यदि किसी व्यक्ति ने अगद तंत्र कि शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो उसे आयुर्वेदिक विष के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त हो जाती है।

रसायनतन्त्र: इसको अँग्रेजी में Renjunvention and Geraitrics कहते है। इसके अंदर बुढ़ापे में बल, पौरुष और दीर्घायु बनने के बारे में लिखा गया है। जिस के उपयोग से लोगों की इम्यूनिटी को मजबूत किया जाता है और आयुर्वेदिक रुप से उन्हें स्वस्थ बनाया जाता है।

वाजीकरण: इसको अँग्रेजी में Virlification या Science of Aphrodisiac and Sexology कहते है। इसके अंदर गुप्त रोग के बारे में और जिनके संतान नहीं होती है, उनके बारे में लिखा गया है।

आपने देखा की आयुर्वेद में सारी बीमारियों के बारे में लिखा गया है और उसके निवारण के बारे में भी लिखा गया है। अब भारत में बहुत सारे शोध हो रहे है, जिसका फायदा बाहर के देश भी ले रहे है। इसके अलावा अब आयुर्वेद में पढ़ाई भी कर सकते है। उनके बहुत सारे विषय है जो निम्नलिखित है:

आयुर्वेद सिद्धान्त, आयुर्वेद संहिता, रचना शरीर, क्रिया शरीर, द्रव्यगुण विज्ञान, रस शास्त्र, रोग निदान, शल्य तंत्र, शालाक्य तंत्र, मनोरोग और पंचकर्म। आयुर्वेद के तीन स्तम्भ है उसे त्रिस्कंध कहा जाता है, जिनके नाम हेतु, लिंग और औषध।

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रोगी के रोग की पहचान

रोगी को देखकर रोग की पहचान करना ही आयुर्वेद की सबसे बड़ी निशानी होती है। पुराने समय के सभी वैद्य लोग सिर्फ रोगियों को देखकर ही उसके अंदर कौन सी तकलीफ है और उसे कौन सा रोग है इसके विषय में पूरी जानकारियां बता देते थे और इसके निवारण के लिए आयुर्वेदिक दवाएं भी दे देते थे।

रोगी के अंदर कैसा रोग है, उसका पता लगाने के लिए आयुर्वेद में चार तरीके बताए गए है, जिनके नाम आप्तोपदेश, प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति है।

  • आप्तोपदेश: यदि हम सभी लोग आप्तोपदेश शब्द को अलग अलग करें अर्थात इस का संधि विच्छेद करें तो हमें आप्त और उपदेश मिलेगा। आप्त को आम भाषा में ज्ञानी पुरुष/महिला को कहा जाता है और उपदेश का सीधा मतलब ज्ञान से है। यानि कि महान पुरुष/महिला द्वारा दिये गये ज्ञान को आप्तोपदेश कहते है। इसके अंदर उन महिला/पुरुष ने अमुक-अमुक बीमारी हो जाने पर उसे कैसे ठीक करना है और उसे किस प्रकार देखना है, लिखा हुआ है। रोग के लक्षण के आधार पर उसका निवारण प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति से किया जाता है।
  • प्रत्यक्ष: इसका सीधा मतलब होता है, जो लक्षण आँखों के सामने दिख रहे है उसके अनुसार औषधि देना। रोगी को अगर ठंडा या गर्म लग रहा होता है तो उसको स्पर्श करके पता लगा सकते है, जब रोगी को रोग लगता है तो स्वाद आना कम हो जाता है तब उसके मूत्र, खून, पूय को देख कर रोग का परीक्षण किया जाता है। कुल मिला कर यह है कि आप जो एलोपेथि में डॉक्टर के सामने ब्लड टेस्ट देते हो, उसके आधार पर डॉक्टर आपकी बीमारी बताता है वो ही काम आयुर्वेद की यह प्रणाली करती है।
  •  अनुमान: जब प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं दिख रहा होता है तो फिर जो ऊहापोह वाली स्थिति में जो निर्णय लिया जाता है, उसे अनुमान कहते है। जैसे कि रोगी को खाना खाने में मन लग रहा है या नहीं, उसके चेहरे के भाव क्या है, उसके आधार पर जो औषधि दी जाती है, उसे अनुमान कहा जाता है।
  • युक्ति: रोग निवारण के लिए जो योजना बनाई जाती है, उसे युक्ति कहते है। जैसे कि अनाज बनने की एक क्रिया होती है वैसे रोग के निवारण के लिए भी एक क्रिया होती है। एक और उदाहरण से समझते है, जहाँ पुलिस के वाहन का सायरन तेज-तेज बजने के साथ वाहन के दौड़ने की आवाज आती है तो हमें हमारे आस-पास चोर के होने की आशंका होती है। वैसे ही रोगी के रोग के बारे में जानने के लिए युक्ति का अपनाया जाना जरूरी है। जरूरत पड़ने पर औषधि के साथ किसी यंत्र का उपयोग भी करना होता है।

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आयुर्वेद की पाठशाला

भारत जब आजाद हुआ तब से सरकार ने अपने आयुर्विज्ञान को सुरक्षित और नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए बहुत सी संस्थाओं का निर्माण किया। जिसके जरिये देशवासी आयुर्वेद के बारे में जान सकें और उसे समझ कर उसका उपयोग करने लगे।

अभी मैं नीचे कुछ प्रमुख संस्थानों के नाम लिख रहा हूँ, जो आयुर्वेद को नया कीर्तिमान दे रहे है:

भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी: भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी की केन्द्रीय अनुसंधान परिषद की स्थापना का बिल भारत सरकार ने लोकसभा में २२ मई १९६९ में पारित किया था। इसका मुख्य उद्देश्य भारत की पुरानी चिकित्सा पद्धति (आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, योग) के ऊपर अनुसंधान कर उसे प्रायोगिक करके देखें। इसके जरिए छात्रों को जहाँ अनुसंधान करना है वहाँ की धन राशि भी स्वीकृत की जाती है। इसके साथ छात्रों को पुरस्कार वितरित करना भी है।

केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान: केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान के बहुत सारी शाखाएं है, जिसमें नए-नए शोध होते रहते है। तरह-तरह के शोध करने से रोग को जल्दी से जल्दी खत्म करने की प्रक्रिया मिलती है। आयुर्वेद का केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान दो जगह है पहली चेरुथरूथी और दूसरा पटियाला। इसके अलावा सिद्ध चिकित्सा का मद्रास जो अब चेन्नई के नाम से जाना जाता है। यूनानी का हैदराबाद और होम्योपैथी का कलकत्ता में केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान है।

क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान: इसका काम भी केन्द्रीय अनुसंधान की तरह ही है लेकिन यह अपने क्षेत्र में मिल जाता है जिससे केन्द्रीय अनुसंधान में जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। भारत में जयपुर, भुवनेश्वर, योगेंद्रनगर और कलकत्ता में क्षेत्रीय अनुसंधान की इकाइयाँ स्थापित की गई है।

मिश्रित भेषज अनुसंधान योजना: इस योजना का मुख्य उद्देश्य नई-नई औषधि का निर्माण करना है। इसके अंदर आधुनिक तरीकों को अपना कर नई दवाइयाँ बनाने पर जोर दिया जाता है। इसे अंग्रेजी में कम्पोजिट ड्रग रिसर्च स्कीम कहते है।

लिटरेरी रिसर्च यूनिट: वाङमय अनुसंधान इकाई का काम प्राचीन काल में आयुर्वेद को जिस पत्र में लिखा जाता था उसे संकलित करना है। पहले भोजपत्र, तामपत्र पर आयुर्वेद के अमूल्य रत्नों को लिखा जाता था।

चिकित्सा शास्त्र के इतिहास का संस्थान: यह संस्थान हैदराबाद में स्तिथ है और इसे अंग्रेजी में इंस्टिट्यूट ऑफ हिस्ट्री ऑफ मेडिसिन कहते है। इसका काम आयुर्वेद के इतिहास का एक ढाँचा तैयार करना है और इसके गुण को सब जगह फैलाना है।

अगर मैं यह कहूँ कि आयुर्वेद विश्व भर में २० वीं शताब्दी के बाद ही प्रसिद्ध हुआ है तो आप उससे नकार नहीं सकते है। इससे पहले जानते थे लेकिन उपयोग करने की विधि नहीं जानते थे। स्वामी रामदेव का पतंजलि २००६ में शुरू हुआ था और उसके बाद उन्होंने आयुर्वेद और योग को पूरे विश्व में फैला दिया।

२०१४ में आयुष मंत्रालय की स्थापना हुई जिसमें आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी को शामिल किया गया था। २०२० में भारत सरकार ने आयुर्वेदिक वैद्यों को भी शल्यचिकित्सा करने की अनुमति दे दी। अब आपको सर्जरी भी पहले के जमाने की तरह को देखने को मिल सकेगी।

आयुर्वेद का क्या महत्व है?

हमारे भारत में प्राचीन समय से ही आयुर्वेद के महान से महान ज्ञाता रह चुके हैं और उन सभी ज्ञाता होने ही वर्तमान समय में उपयोग किए जाने वाले ज्यादातर रोगों की खोज पहले ही कर दी थी और उनके निवारण को भी आयुर्वेदिक तरीके से कर दिया था।

आयुर्वेद का महत्व (Ayurved ka Mahatva) बहुत ही ऊंचा है क्योंकि वर्तमान समय में जो भी दवाई बनाई जाती हैं, उनके कोई ना कोई साइड इफेक्ट जरूर होते हैं, परंतु जो भी दवाई आयुर्वेद की मदद से बनाई जाती है, उसमें किसी भी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और आयुर्वेद बहुत ही ज्यादा पुराना है, इसीलिए लोग आयुर्वेदिक चीजों पर बहुत ही ज्यादा भरोसा भी करते हैं।

निष्कर्ष

इसे लेख आयुर्वेद का महत्व, लाभ और इतिहास (Ayurveda History in Hindi) से आपको आयुर्वेद के बारे में पता चल गया होगा, क्योंकि इसके लाभ की वजह से बाहर के देशो में आयुर्वेद को अपनाया जा रहा है। हमारा यह लेख आपको कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे आगे शेयर जरूर करें।

धन्यवाद

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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