हिंदी व्याकरण में बहुत सारी टॉपिक होते हैं, जिसमें रस भी मुख्य टॉपिक्स माना जाता है। रस ग्रामर में नौ प्रकार के होते हैं। आज हम इस इस लेख में हम हास्य रस किसे कहते हैं (Hasya Ras Kise Kahate Hain), हास्य रस की परिभाषा (Hasya Ras in Hindi), हास्य रस के उदाहरण आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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हास्य रस की परिभाषा (Hasya Ras Ki Paribhasha)
काव्य को सुनने पर जब हास्य कि उत्पत्ति या हास्य से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही हास्य रस कहते हैं।
अन्य शब्दों में हास्य रस वह रस है, जिसमें हँसी का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव हास होता है। हास्य की उपस्थिति से श्रोता या पाठक का रोम-रोम आनंद से व हास से खिल उठता है तथा मन में प्रसन्नता बनी रहती है।
हास्य रस का परिचय (Hasya Ras in Hindi)
हास्य रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा भयानक, वात्सल्य, शांत, करुण, भक्ति, हास्य रसों की उत्पत्ति इन्हीं प्रमुख चार रसों से हुई है। हास्य रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है, जिस काव्य में काव्य की विषय वस्तु में हास्य पैदा करने वाले या मजेदार उद्दीपन व अलाम्बनों का का समावेश होता है।
हास्य रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है, जब वह प्रसन्नचित्त व निश्चिन्त होता है। तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि काव्य के जिस भाग में किसी गुदगुदा देने वाले भाव को प्रकट किया जाता है, वहां हास्य रस होता है।
हास्य रस की उपस्थिती में किसी विचार, व्यक्ति, वस्तु व घटना का स्वरुप विचित्र होता है। परन्तु यह विचित्रता विस्मय या आश्चर्य को पैदा नहीं करती, वरन यह विचित्रता लक्षित व्यक्ति को गुदगुदा जाती है।
हास्य रस के अवयव
- स्थायी भाव: हास।
- आलंबन (विभाव): कोई विचित्र वेशभूषा भी वस्तु, अतरंगी चरित्र, हास्यस्पद घटना या विचार आदि जिससे सामना होने पर हँसी। उत्पन्न हो जाए तथा मन में प्रसन्नता बनी रहे।
- उद्दीपन (विभाव): विचित्र दृश्य, उलटबांसी, हास्यस्पद श्रव्य, गुदगुदाने वाली अनुभूति या चेष्टा।
- अनुभाव: ठहाका लगना, मुख का खुल जाना, मुस्कान छूट पड़ना, आँसू निकल पढ़ना, कभी-कभी आँखें बंद हो जाना आदि।
- संचारी भाव: शरीर में रक्त संचार का बढ़ जाना, प्रसन्नता महसूस होना, आदि।
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हास्य रस के उदाहरण (Hasya Ras Ke Udaharan)
हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल।
तरबूजे-सी खोपड़ी, खरबूजे-से गाल।
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।।
सिरा पर गंगा हसै, भुजनि मे भुजंगा हसै।
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में।।
हँसी हंसी भाजैं देखि दूल्ह दिगम्बर को।
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में।।
पत्नी खटिया पर पड़ी, व्याकुल घर के लोग
व्याकुलता के कारण, समझ न पाए रोग
समझ न पाए रोग, तब एक वैद्य बुलाया
इसको माता निकली है, उसने यह समझाया
कह काका कविराय, सुने मेरे भाग्य विधाता
हमने समझी थी पत्नी, यह तो निकली माता।
बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय।
पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय।।
बुरे समय को देखकर गंजे तू क्यों रोय।
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय।।
बंदर ने कहा बंदरिया से, चलो नहाएँ गंगा।
बच्चों को छोडो घर में, होने दो हुड़दंगा।।
शीश पर गंगा हंसै, लट में भुजंगा हंसै।
हास ही के दंगा भयो, नंगा के विवाह में।।
बहुए सेवा सास की। करती नहीं खराब।।
पैर दाबने की जगह। गला रही दबाय।।
आगे चले बहुरि रघुराई।
पाछे लरिकन धुनी उड़ाई।।
नेता को कहता गधा, शरम न तुझको आए।
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए।।
मैं ऐसा महावीर हूं, पापड़ को तोड़ सकता हूं।
अगर आ जाए गुस्सा, तो कागज को भी मोड़ सकता हूं।।
सीस पर गंगा हँसे, भुजनि भुजंगा हँसैं।
हास ही को दंगा भयो नंगा के विवाह में।।
जेहि दिसि बैठे नारद फूली।
सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली।।
पिल्ला लीन्ही गोद में मोटर भई सवार।
अली भली घूमन चली किये समाज सुधार।।
इस दौड़ धूप में क्या रखा है।
आराम करो आराम करो।
आराम जिंदगी की पूजा है।
इससे ना तपेदिक होती।
आराम शुधा की एक बूंद
तन का दुबलापन खो देती।।
नाना वाहन नाना वेषा।
बिहसे सिव समाज निज देखा।।
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू।
बिन पद-कर कोउ बहु पद-बाहु।।
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे भौहनि हँसे, देनि कहै नटि जाय।।
कोई कील चुभाए गए, उसे हथौड़ा मार।
इस युग में तो चाहिए, जस को तस व्यवहार।।
मौत से तेरी मिलेगी, फैमिली को फ़ायदा।
आज ही बीमा करा ले, साल आया है नया।।
लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
निष्कर्ष
तो हमने देखा कि किस प्रकार हास्य रस की उपस्थिति में हँसी व प्रसन्नता का भाव होता है, जो कि काव्य में किसी चरित्र, घटना, विचार, वस्तु आदि के माध्यम से या इनके रूप में हास्य योग्य परिस्थिती उत्पन्न करने के कारण लक्षित चरित्र के व्यव्हार में हँसी, प्रसन्नता आदि परिवर्तन को लाता है और लक्षित व्यक्ति की एक हास्य विशेष आनन अभियाक्ती व शारीरिक अभिव्यक्ति या चेष्टाओं को संचालित करता है।
FAQ
काव्य को सुनने पर जब हास्य कि उत्पत्ति या हास्य से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही हास्य रस कहते हैं।
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे भौहनि हँसे, देनि कहै नटि जाय।।
अंतिम शब्द
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