चंद्रयान-3 का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
यह सफलता इसरो के नवाचार की भावना और अन्वेषण का प्रतीक है। उन्नत प्रौद्योगिकी और एक दृढ़ टीम के द्वारा संचालित इस मिशन की उपलब्धि हर एक भारतीय को गर्वोन्नित महसूस कराती हैं।
चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग के बाद अब हर एक युवाओं में चंद्रयान-3 मिशन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की रुचि बढ़ी है।
इस लेख में हम चंद्रयान-3 मिशन के बारे में संपूर्ण जानकारी (chandrayaan 3 details in hindi) लेकर आए हैं, जिसमें चंद्रयान 3 क्या है, लैंडिंग डेट, मिशन के भाग, समय रेखा, बजट, महत्व आदि के बारे में विस्तार से बताया है।
चंद्रयान 3 मिशन क्या है? (Chandrayaan 3 Kya Hai)
चंद्रयान 3, चंद्रयान-2 की अगली कड़ी है। इस मिशन की शुरुआत चंद्रमा दो के सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए किया गया था।
दरअसल पिछला मिशन चंद्रयान 2 को चांद की कक्षा में सफलता पूर्वक प्रवेश कराने के बाद अंतिम समय में गाइडेंस सॉफ्टवेयर में अचानक से गड़बड़ी होने के कारण सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई। इसी के कारण दोबारा पुनः सफल प्रयास करने के उद्देश्य से इस मिशन की शुरुआत की गई।
14 जुलाई 2023 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO ने श्रीहरिकोटा से जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (LVM3) का उपयोग करके भारतीय समय के अनुसार 2:35 बजे चंद्रयान -3 मिशन लॉन्च किया था।
चंद्रयान-3 के लेंडर माड्यूल ने 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करके एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की। इससे चंद्रमा के सतह पर उपग्रह का सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला भारत पहला देश बन गया।
चंद्रयान-3 के सफलता से भारत सोवियत संघ, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया।
चंद्रयान 3 मिशन की लैंडिंग
18 अगस्त को चंद्रयान 3 ने पहली डीबूस्टिंग की थी। डीबूस्टिंग का अर्थ होता है ऐसी कक्षा में अंतरिक्ष यान की गति को धीमा करना, जहां पर चंद्रमा का निकटतम बिंदु 30 किलोमीटर और इसका अधिकतम बिंदु 100 किलोमीटर दूर हो और डीबूस्टिंग आवश्यक हो जाता है सही लैंडिंग कराने के लिए।
क्योंकि चंद्रमा की सतह पर उपग्रह को उतारने के लिए इसे लैंडर की तुलना में बहुत कम गति की आवश्यकता होती है।
20 अगस्त को दूसरी डिबॉस्टिंग हुई। 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान 3 ने चंद्रमा की सतह पर दक्षिणी ध्रुव के पास लगभग 70 डिग्री दक्षिण में सॉफ्ट लैंडिंग की।
चाँद की सतह पर चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने जिस जगह पर सॉफ्ट लैंडिंग की उस जगह का नाम शिव शक्ति पॉइंट रखा गया है।
चंद्रयान 3 मिशन के भाग
चंद्रयान-3 मिशन में दो मॉड्यूल शामिल किया गया है प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम) और लैंडर मॉड्यूल (एलएम)। प्रोपल्शन मॉड्यूल का कुल वजन 2148 किलोग्राम है और लैंडर मॉड्यूल का कुल वजन 1752 किलोग्राम है।
प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान 3 में लैंडर और रोवर कॉन्फ़िगरेशन को 100 किलोमीटर चंद्र कक्षा तक पहुंचाने के लिए प्रणोदन मॉड्यूल लगाया गया, जिसमें स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) नामक एक वैज्ञानिक पेलोड भी शामिल किया गया।
यह छोटे ग्रहों की तलाश करने में मददगार है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा के कक्षा से पृथ्वी का नया स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्रिक के अध्ययन करने में भी मददगार है।
लैंडर
चंद्रयान-3 के लेंडर माड्यूल में एक लैंडर (विक्रम) और एक रोवर (प्रज्ञान) शामिल है। जहां पर चंद्रयान-2 में पांच 800 न्यूटन इंजन थे, वंही चंद्रयान-3 के लैंडर में केवल चार थ्रॉटल-सक्षम इंजन लगाए गए। चंद्रयान-3 लैंडर लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर से भी लैस है।
चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल में स्वचालित लैंडिंग अनुक्रम के उपयोग से ही चंद्रमा के सतह पर नरम लैंडिंग की। चंद्रयान-3 के लेंडर का जैसे ही इंजन शुरू हुआ मॉड्यूल की गति और दिशा के साथ-साथ लैंडिंग साइट की स्थिति भी बहुत अच्छे से नियंत्रित हो गई।
इसके लेंडर में चंद्रा सरफेस थर्मोफिज़िकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE, चेस्ट) भी लगा हुआ है, जो तापीय चालकता और तापमान को मापने के लिए उपयोगी है।
इसमें इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सेसमिक ऐक्टिविटी (ILSA) लगा हुआ है, जो लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीयता को मापने के लिए उपयोगी है। इसके अतिरिक्त नासा से एक निष्क्रिय लेजर रिट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे को भी इसमें समायोजित किया गया है।
चंद्रयान 3 मिशन की समय रेखा
चंद्रयान-3 मिशन को 14 जुलाई 2023 को लांच किया गया था। 5 अगस्त को यह चंद्रमा के कक्षा में स्थापित हुआ।
वहीं 17 अगस्त 2023 को लैंडर मॉड्यूल को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग किया गया। 23 अगस्त 2023 को भारतीय समय के अनुसार 6:04 पर चंद्रमा के सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की।
महत्वपूर्ण जानकारी
चंद्रयान 3 का बजट
चंद्रयान 3 को बनाने में लगी लागत बाकी दो चंद्रयान मिशन चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 दो की तुलना में काफी कम है।
क्योंकि चंद्रयान-1 का बजट केवल 386 करोड़ रुपए था, जिसे साल 2008 में केवल चंद्रमा के कक्षा में जाने के लिए लॉन्च किया गया था। वहीं चंद्रयान-2 मिशन का बजट 978 करोड़ रुपए था जबकि चंद्रयान-3 का बजट केवल 615 करोड़ रुपए है।
चंद्रयान 3 की सफलता के पीछे वैज्ञानिक
चंद्रयान 3 मिशन के सफलता के पीछे कई वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है। चंद्रयान 3 के सफल लॉन्चिंग के लिए निम्नलिखित वैज्ञानिकों ने अपना पूरा योगदान दिया है:
पी वीरमुथुवेल
चंद्रयान-3 मिशन का नेतृत्व वीरमुथुवेल ने किया। इनकी पूरी वैज्ञानिक टीम को इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क सेंटर से अंतरिक्ष यान के स्वास्थ्य और संचालन की निगरानी का जिम्मेदारी सोपा गया।
पी वीरमुथुवेल के पिता एक सरकारी रेलवे कर्मचारी थे। यह तमिलनाडु राज्य के विल्लुपुरम जिले के रहने वाले हैं। साल 2014 में इन्होंने इसरो ज्वाइन किया था। इन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की डिग्री प्राप्त की है। आईआईटी मद्रास से पीएचडी भी की है।
बी एन रामकृष्ण
चंद्रयान-3 मिशन नियंत्रण का समन्वय करने में बी एन रामकृष्ण का महत्वपूर्ण योगदान है। रामकृष्ण नेविगेशन और कक्षा निर्धारण करने में कुशल वैज्ञानिक है। ये ISTRAC के सातवें निदेशक हैं।
अंतरिक्ष नेटवर्क स्टेशनों से डाटा इकट्ठा करके अंतरिक्ष मिशन को नियंत्रित करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रामकृष्ण ने बंगलुरु से विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त की है।
एम शंकरन
एम शंकरन ने चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान के निर्माण का नेतृत्व किया है। इन्होंने चंद्रयान 1 और चंद्रयान 2 मिशन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चंद्रयान मिशन की प्रगति में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
एम शंकरण इसरो के सभी उपग्रह को डिजाइन करना, विकास और कार्यान्वयन करना और यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (यूआरएससी) के निदेशक के रूप में साल 2021 में इस पदभार को संभाले।
इसरो में काम करते हुए इन्हें 35 वर्षों से भी ज्यादा लंबा समय बीत चुका है। इन्होंने 1986 में भारतीदासन विश्वविद्यालय, तिरुचिरापल्ली से भौतिकी में मास्टर डिग्री प्राप्त की।
डॉ. एस. उन्नीकृष्णन नायर
चंद्रयान 3 मिशन के सफलता में एस. उन्नीकृष्णन नायर केपी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में निदेशक के तौर पर कार्य करते हैं।
यह एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक होने के साथ ही एक मलयालम लघु कथाकार भी हैं। इन्होंने 1985 में वीएसएससी में अपना करियर शुरू किया था।
इन्होंने केरल विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री प्राप्त की है। वहीं आईआईटी मद्रास से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की है।
डॉ. एस. सोमनाथ, अध्यक्ष, इसरो
डॉ एस सोमनाथ इसरो के अध्यक्ष है। 1985 में इन्होंने इसरो को ज्वाइन किया था। इन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री प्राप्त की है। वहीं बैंगलोर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर की डिग्री प्राप्त की है।
स्ट्रक्चर्स, डायनेमिक्स और कंट्रोल में इन्हें विशेषज्ञता प्राप्त है। अध्यक्ष से पहले यह इसरो में निदेशक के पद पर थे।
एस मोहना कुमार
एम मोहन कुमार इसरो में एक निर्देशक के पद पर है और पिछले तीन दशकों से भी अधिक लंबे अनुभव के साथ एक वरिष्ठ वैज्ञानिक है। इन्हीं के नेतृत्व में चंद्रयान-3 उपग्रह की सटीक प्रक्षेपण की स्थिति सुनिश्चित हो सकी।
चंद्रयान 3 मिशन का महत्व
चंद्रयान 3 मिशन कई तरीके से महत्वपूर्ण है। यह पिछले दो मिशन चंद्रयान 1 और चंद्रयान 2 की उपलब्धियां को आगे बढ़ाने के अतिरिक्त निम्नलिखित अन्य कारणों से भी महत्वपूर्ण है:
पृथ्वी के इतिहास के सुराग
वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा का निर्माण प्रारंभिक पृथ्वी और मंगल ग्रह के आकार की किसी वस्तु के टकराव से इकट्ठे मलबे से हुआ था।
ऐसे में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर प्राप्त सामग्री और उसकी स्थितियों से पृथ्वी के इतिहास के बारे में और भी ज्यादा जानकारी मिलेगी।
अंतरिक्ष शिक्षा को आगे बढ़ाना
चंद्रयान 3 मिशन भारत के नए युवाओं को अंतरिक्ष के प्रति रुचि बढ़ाने में मददगार है। यह भारत में अंतरिक्ष शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। यह मिशन अंतरिक्ष प्रेमियों की भावी पीडियो के लिए प्रेरणा है।
चंद्र सतह अन्वेषण
चंद्रयान-2 के जरिए चंद्रमा के सतह पर खनिज और पानी जैसे विवरण प्राप्त हुए थे। चंद्रयान-3 के लेंडर और रोवर के जरिए चंद्रमा के इतिहास को समझने में मदद मिलेगी।
यहां की मिट्टी और चट्टानों का अध्ययन करने में यह महत्वपूर्ण है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की भूमिगत विशेषता, खनिज और पानी की खोज करना है।
वैज्ञानिक खोज
चंद्रमा से संबंधित कई सारी खोज करने में चंद्रयान-3 मिशन महत्वपूर्ण है। इस उपग्रह में कई सारे ऐसे उपकरण लगाए गए हैं, जिसके जरिए चंद्रमा के सतह पर लगने वाले झटके और भूमिगत गर्मी का अध्ययन हो पाएगा।
चंद्रमा की सतह पर चंद्रमा की आंतरिक और थर्मल जांच में सीस्मोमीटर मददगार है। चंद्रमा के सतह पर भूकंपीयता और तापियता विशेषताओं को समझना में यह मिशन महत्वपूर्ण है।
तकनीकी प्रगति
चंद्रयान 3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मिशन को सही तरीके से चलाने में इसरो को और भी नई प्रौद्योगिकी को विकसित करने में सहायता मिलेगी। भविष्य के अंतरिक्ष मिशन को और भी बेहतर बनाने के लिए चंद्रयान-3 महत्वपूर्ण है।
चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 में अंतर
चंद्रयान-2 में लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर था। चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर नहीं है। केवल लैंडर और रोवर है। चंद्रयान-3 जरुरत पड़ने पर चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का उपयोग करेगा, जो अभी भी चंद्रमा के वातावरण में मौजूद है।
चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर की जगह स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल लगा है। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर, रोवर को चंद्रमा की सतह पर छोड़ देगा, जो चंद्रमा के चारों तरफ 100KM की गोलाकार कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा।
निष्कर्ष
चंद्रयान 3 मिशन के कारण युवाओं में अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर और भी ज्यादा रुचि बढ़ी है। इस मिशन के कारण चंद्रमा के रहस्य को जानने के लिए और भी नए रास्ते खुले हैं।
हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए आपको चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3 Kya Hai) से संबंधित सभी प्रश्नों का जवाब मिल गया होगा।
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