Bhayanak Ras in Hindi: हिंदी ग्रामर एक ऐसा विषय है, जिसमें बहुत सारी अलग-अलग प्रकार की इकाइयां होती है। हिंदी ग्रामर जिसे विद्यार्थी पहली कक्षा से सही पढ़ना शुरू कर देता है।
शुरुआत में यह ग्रामर वर्णमाला से शुरू होती है और बाद में कई इकाइयों में विभाजित हो जाती है। इस लेख में हम रस के एक भाग भयानक रस के बारे में जानकारी शेयर करेंगे। यहाँ पर हम भयानक रस की परिभाषा उदाहरण सहित विस्तार से जानेंगे।
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भयानक रस की परिभाषा (Bhayanak Ras Ki Paribhasha)
काव्य को सुनने पर जब भय के से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही भयानक रस कहते हैं। अन्य शब्दों में भयानक रस वह रस है, जिसमें भय का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव भय होता है।
भयानक रस परिचय
भयानक रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा भयानक, वात्सल्य, शांत, करुण, भक्ति, हास्य रसों की उत्पत्ति इन्हीं प्रमुख चार रसों से हुई है। भयानक रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है, जिस काव्य में काव्य की विषय वस्तु में भयजन्य उद्दीपन व अलाम्बनों का का समावेश होता है।
भयानक रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है जब वह पलायनात्मक विचार व चिंता आदि से गुज़र रहा होता है तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि काव्य के जिस भाग में भय को प्रकट किया जाता है, वहां भयानक रस होता है।
भयानक रस के अवयव
- स्थायी भाव: भय।
- आलंबन (विभाव): कोई भी वस्तु, चरित्र, घटना या विचार आदि जिससे सामना होने पर भय उत्पन्न हो जाए।
- उद्दीपन (विभाव): भयावह दृश्य, श्रव्य, स्मृति, कष्टप्रद अनुभूति या चेष्टा।
- अनुभाव: मुट्ठियाँ आँखें मींच लेना, देह समेट लेना, कांपना, चिंता उत्पन्न होना, हकलाना, पसीना निकलना आदि।
- संचारी भाव: नकारात्मक अनुभूति, पलायन, चिंता, घबराहट आदि।
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भयानक रस का स्थायी भाव क्या है?
भयानक रस का स्थायी भाव भय है।
भयानक रस के भेद
- स्वनिष्ठ भयानक रस
- परनिष्ठ भयानक रस
भयानक रस के उदाहरण (Bhayanak Ras Ke Udaharan)
अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल,
काचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, कांस सिबाल।।
एक ओर अजगर हिं लखि, एक और मृगराय,
विकल बटोही, बीच ही, पद्यो मूर्च्छा खाय।।
बालधी विशाल, विकराल, ज्वाला-जाल मानौ,
लंक लीलिबे को काल रसना परारी है।
उधर गरजति सिंधु लड़रियां
कुटिल काल के जालो सी।
चली आ रही फेन उगलती
फन फैलाए व्यालों सी।।
पुनि किलकिला समुद महं आए। गा धीरज देखत डर खाए।
था किलकिल अस उठै हिलोरा जनु अकास टूटे चहुँ ओरा।।
अब तक हमने भयानक रस के 5 उदाहरण जाने, चलिए कुछ और भयानक रस के सरल उदाहरण जानते है।
कैधों व्योम बीद्यिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
वीर रस वीर तरवारि सी उधारी है।
भूषण भनत महावीर बलकन लाग्यो,
सारी पातसाही के उड़ाय गए जियरे।
तपक तें लाल मुख सिवा को निरखि भए,
स्याह मुख नौरंग सियाह मुख पियरे।
कैधों व्योम बीद्यिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
वीर रस वीर तरवारि सी उधारी है।
भेहरात, झॅहरात, दाबानल आयो।
घेर चहुओर करि सोर अंधर वल, धरनि आकास चहुँ पास छायौ।।
गज की घटा न गज घटनी श्नेह साजे
भूषण भनत आयो से शिवराज को।
अब तक हम भयानक रस के 10 उदाहरण जान चुके है। चलिए कुछ और भयानक रस के उदाहरण जानते है, जिससे आपको भयानक रस समझने में आसानी रहे और आसानी से भयानक रस के बारे में जान सको।
भूषन सिथिल अंग, भूषन सिथिल अंग
विजन डुलाती ते वै, विजन डुलाती हैं।
‘भूषन’ भनत सिवराज, वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती हैं।
बाघ ब्याल विकराल रण, सूनो बन गृह देख।
जे रावर अपराध पुनि, भय विभाव यह लेख।
कम्प रोम प्रस्वेद पुनि, यह अनुभाव बखानि।
मोह मूरछा दीनता, यह संचारी जानि।
विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होहि न प्रीति।।
बालधी विशाल, विकराल, ज्वाला-जाल मानौ।
लंक लीलिबे को काल रसना परारी है।।
डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से,
छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से।
हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे,
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे।।
आज बचपन का कोमल गात
जरा का पीला पात।
चार दिन सुखद चाँदनी रात
और फिर अन्धकार, अज्ञात।
उस सुनसान डगर पर था सन्नाटा चहुँ ओर,
गहन अँधेरी रात घिरी थी. अभी दूर थी भोर।
सहसा सुनी दहाड़ पथिक ने सिंह-गर्जना भारी,
होश उड़े. सिर गया घूम हुई शिथिल इंद्रियाँ सारी।
सवन के ऊपर ही ठाड़ो रहिबे के जोग,
ताहि खड़ो कियो छः हजारिन के नियरे।
जानि गैरि मिसिल गुसीले गुसा धारि मनु,
कीन्हों न सलाम न वचन बोले सियरे।।
उधर गरजती सिंधु लहरियाँ,
कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही फेन उगलती,
फन फैलाए व्यालों-सी।।
हा-हाकार हुआ क्रन्दनमय,
कठिन कुलिश होते थे चूर
हुए दिगंत वधिर भीषण रव,
बार-बार होता था क्रूर।।
निष्कर्ष
हमने देखा कि किस प्रकार भयानक रस की उपस्थिति में भय व पलायन का भाव होता है, जो कि काव्य में किसी चरित्र के द्वारा ऐसी भयावह या अन्य कंपन योग्य परिस्थिती उत्पन्न करने के कारण लक्षित चरित्र के व्यव्हार में चिंता, पलायन आदि परिवर्तन को लाता है और लक्षित व्यक्ति की एक भय विशेष आनन अभियाक्ती व शारीरिक अभिव्यक्ति को संचालित करता है।
ऐसी भयावह स्थिती में काव्य में लक्षित चरित्र के पलायन, अंगों को समेटने की प्रवृत्ती होती है तथा चरित्र उद्दीपन से दूर जाना चाहता है या उद्दीपन को ही दूर कर देना चाहता है और उद्दीपन की उपस्थिती में चरित्र को पसीना छूटने लगता है, उसे चिंता उपजने लगती है तथा उसके रोंगटे उठने लगते हैं।
FAQ
काव्य को सुनने पर जब भय के से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही भयानक रस कहते हैं।
एक ओर अजगर हिं लखि, एक और मृगराय,
विकल बटोही, बीच ही, पद्यो मूर्च्छा खाय।।
भयानक रस का स्थायी भाव भय है।
अंतिम शब्द
इस आर्टिकल में हमने आपको भयानक रस का उदाहरण और परिभाषा (Bhayanak Ras in Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है। आर्टिकल पसंद आये तो शेयर जरुर करें। यदि आपके मन में इस आर्टिकल को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या फिर सुझाव है, तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं।
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