इंडिपेंडेंस डे भारत में 15 अगस्त के दिन मनाया जाता है। क्योंकि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश 200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी सहने के बाद आजाद हो गया।
इस दिन देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े सेनानी, स्वतंत्रता के लिए त्याग करने वाले स्वतंत्रता के लिए तपस्या करने वाले और स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले लोगों को विशेष रूप से याद किया जाता है।
आज हम जो स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, उस स्वतंत्रता दिवस के पीछे कई पीढ़ियां गुजर गई। आज के समय में हम पूरे देश में धूमधाम से इंडिपेंडेंस डे स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाते हैं।
लेकिन हमें इसके पीछे का इतिहास जरूर जानना चाहिए कि इस स्वतंत्रता दिवस के पीछे कितने लोगों का बलिदान था? किस तरह से भारत स्वतंत्र हुआ? जिसकी वजह से आज हम इंडिपेंडेंस डे मना रहे हैं।
बता दें कि मुगलों के बाद 17वीं शताब्दी के दौरान अंग्रेज भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आए और यहां पर उन्होंने शासन स्थापित कर दिया। अंग्रेजों से पहले कई सारे पश्चिमी लुटेरे और यूरोपीय देशों ने भारत पर आक्रमण किया और समय-समय पर भारत का खजाना और भारत की संपत्ति लूट कर ले गए।
अंग्रेज ने भी भारत आने के बाद मुगलों की तरह लंबे समय तक शासन किया, जबकि दूसरे आक्रांताओं भारत का खजाना लूट कर वापस चले गए थे। लेकिन अंग्रेज यहां पर शासन करते और यहां से खजाना तथा मजदूर ब्रिटेन भेज दिया करते थे।
अंग्रेजों ने भारत पर अनेक तरह का जुल्म ढाया और लाखों की संख्या में लोगों का नरसंहार कर दिया था। अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को काला पानी की सजा और फांसी की सजा दी जाती थी।
लेकिन भारत के कोने कोने से सभी जाति धर्म के लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया और ब्रिटिश कालीन भारत के नेताओं के साथ चलकर समय-समय पर अंग्रेजों के सामने खड़े रहे।
15 अगस्त का इतिहास
इंडिपेंडेंस डे के दिन हम धूमधाम से देश के कोने कोने में स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। लेकिन आपको यह जान लेना चाहिए कि इस आजादी के पीछे कितने लोगों का बलिदान था? और किस तरह से उन्होंने अपना बलिदान दिया था?
बता दें लंबे समय से भारत में आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी, जिसमें भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, बाल गंगाधर तिलक, खुदीराम बोस, राजेंद्र प्रसाद, सुखदेव, वीर सावरकर, राजगुरु तथा अनेक सारे लोगों ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। यह तो केवल प्रमुख वो नाम है, जो लोगों की जुबां पर है।
इसके अलावा ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई तो लड़ी लेकिन उन्हें कोई याद नहीं करता। भारत के इतिहास में स्वतंत्रता के बाद अनेक ऐसे लोगों के साथ अन्याय किया है, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
लेकिन इतिहास के पन्नों में उनका नाम दर्ज नहीं हुआ है। जबकि कुछ लोगों को आजादी के बाद भी सम्मान और पुरस्कार नहीं मिला।
बता दें कि आजादी के रखवाले लाखों नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में थे। इसीलिए जो प्रमुख नाम लोगों की जुबां पर है और उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर के रखा था। उनके नाम वर्तमान समय में काफी ज्यादा प्रचलित हैं और इतिहास में भी उन्हें विस्तार से बताया जाता है।
उनके द्वारा की गई क्रांतियां और विद्रोह के बारे में जानकारी दी जाती है। शहीद दिवस के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है।
इंडिपेंडेंस डे का इतिहास 1947 से शुरू होता है। क्योंकि 15 अगस्त 1947 की आधी रात को अंग्रेजों ने भारत को आजाद किया था। लगभग 200 वर्षो की गुलामी करने के बाद अब भारत आजादी की हवा में सांस लेने लगा।
इस दिन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा झंडा फैला कर देश की स्वतंत्रता की पहली खुशी जाहिर की।
जिसके बाद हर वर्ष देश में 15 अगस्त को इंडिपेंडेंस डे मनाया जाता है, जो हमें याद दिलाता है कि भारत 200 वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम था और अंग्रेजों ने यहां पर अत्याचार किए थे। भारत का खजाना लूट लिया और भारत को यहां के गरीब लाचार और लोगों को मौत के घाट उतारा और उनसे कर वसूल किया करते थे।
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भारत में अंग्रेजों का शासन
भारत में 17वीं शताब्दी के दौरान पश्चिमी व्यापारियों ने यहां पर अपना जरा जमाना शुरू कर दिया था। भारत की समृद्धि की बातें तो पहले से ही दुनिया सुन रही थी, लेकिन इस समय मुगलों के लंबे शासनकाल के बाद भारत पूरी तरह से कमजोर हो गया था।
इसी का फायदा उठाते हुए यूरोपियन व्यापारियों के साथ-साथ अंग्रेजों ने यहां पर व्यापार के उद्देश्य से अपने पैर जमाने शुरू कर दिए।
अंग्रेजों ने यहां पर ईस्ट इंडिया कंपनी नाम से 17वीं शताब्दी के दौरान अपने सैनिकों के साथ बहुत बड़े पैमाने पर एक कंपनी की शुरुआत की। यह कंपनी व्यापार के नाम पर शासन करने लगी और देखते ही देखते संपूर्ण भारत पर अपना शासन स्थापित कर लिया।
अंग्रेजों ने अपने शासन के अंतर्गत व्यापार को जारी रखा और अधिक से अधिक सेना यूरोप से मंगवाई गई। भारत के सभी कोने में अपनी सेना फैला दी और अंग्रेजों को ही सभी प्रांतों का गवर्नर बना दिया। अब भारत पूरी तरह से अंग्रेजों के मुट्ठी में आ चुका था।
जब अंग्रेज अपनी मनमानी करने लगे और व्यापार की जगह लूटपाट करने लगे, तब लोगों को समझ में आने लगा कि अंग्रेज व्यापार नहीं बल्कि शासन करने की दृष्टि से आए हैं। व्यापार की जगह भारत का खजाना और धन दौलत लुटना शुरू कर दिया। यहां के लोगों पर अत्याचार करने शुरू किए और यहां के लोगों को कीड़े मकोड़े की तरह समझने लगे।
कुछ वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा, इसके बाद धीरे-धीरे विद्रोह की आवाज उठने लगी। सबसे पहले बहुत बड़े पैमाने पर 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ, जिस पर अंग्रेज सतर्क हो गए और काला पानी तथा फांसी की सजा का प्रावधान रखा गया।
अब कोई भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाएगा और हिंसक प्रदर्शन करेगा तो उसे काला पानी की सजा दी जाएगी या फांसी पर लटका दिया जाएगा। फिर भी भारतीयों ने बहुत बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़नी शुरू कर दी।
भारत के हर वर्ग, हर जाति, हर धर्म के लोग यहां तक कि महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग और जवानों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी।
अंग्रेजों ने भारत में बड़े पैमाने पर पुलिस और फौज की भर्ती करनी शुरू की और यहां के लोगों को सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया। अब विश्व में प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था। इस युद्ध में अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों के दम पर भाग लिया, जिसमें भारत के लाखों की संख्या में सैनिक मारे गए।
अंग्रेज क्रूर हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ भारत में बढ़ने वाली आवाजों को दबाने लगे। भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी की सजा और काला पानी की सजा दी जाती थी। इसके अलावा विद्रोहियों पर गोलियां चलाई जाती थी और गरीब और मजदूर किसानों पर अत्याचार किया जाता था, उनसे आय से भी अधिक कर जाता था।
अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार को देखते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, महात्मा गांधी, जैसे बड़े बड़े लोगों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन करने शुरू किए। जिसमें महात्मा गांधी बिना हिंसा के अंग्रेजों से आजादी चाहते थे। लोग बढ़-चढ़कर उनके साथ खड़े होते थे और उनके आंदोलन में साथ लेते थे।
जबकि सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु जैसे युवा क्रांतिकारी हिंसा के बल पर अंग्रेजों से आजादी के लिए लड़ाई करते थे। इसीलिए इन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी। जबकि क्रांतिकारी वीरों को काला पानी की भयंकर और खौफनाक सजा दी गई। लेकिन फिर भी बहुत बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हो गया।
ब्रिटिश भारत में सन 1930 के दशक में अंग्रेजों ने अपने कानून में बदलाव किए और अंग्रेजों की हुकूमत के नीचे भारतीय पार्टियों को शासन करने की अनुमति दी। इसमें कांग्रेस को जीत मिली। लेकिन यह पूरी आजादी नहीं थी बल्कि यह आधी आजादी ही थी।
अभी भी भारत पर अंग्रेजों का शासन था। अंग्रेजों के इशारे पर ही सेना कार्य करती थी। इसीलिए क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी की लड़ाई को जारी रखा।
अब दुनिया में द्वितीय विश्वयुद्ध का समय आ गया, जिसमें अंग्रेजों के नेतृत्व में भारतीय सेना को द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़ाई के लिए भेज दिया गया। इस लड़ाई में लाखों की संख्या में भारतीय सैनिकों की मौत हुई। लेकिन अब ब्रिटेन पूरी तरह से कमजोर पड़ चुका था।
भारत में आजादी की शुरुआत
सन 1930 में अंग्रेजों ने भारतीय राजनीतिक दल को चुनाव लड़ने की अनुमति दी। लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे आधी आजादी माना और पूर्ण आजादी के लिए लड़ाई लड़ना जारी रखा। यहां से भारत के आजादी की शुरुआत हुई।
लेकिन विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन के कमजोर पड़ जाने से भारत की आजादी की आस कठोर हो गई क्योंकि भारत में ब्रिटेन की लेबर पार्टी की सरकार का राजकोष समाप्त हो चुका था।
विश्वयुद्ध में हुई अपारक्षति के बाद अब ब्रिटेन पूरी दुनिया से अपना प्रभुत्व खोने लगा। द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की बहुत बुरी तरीके से हार होती और लगभग समाप्त हो जाता, लेकिन अमेरिका के द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेने से ब्रिटेन बच गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई अपार हानि की वजह से संपूर्ण दुनिया में अंग्रेजों का शासन कमजोर पड़ गया। अब अंग्रेज स्वतंत्रता सेनानियों, आंदोलनकारियों क्रांतिकारियों और देसी रियासतों पर अपना कब्जा बना कर नहीं रख पाते थे। इसीलिए उन्हें भारत को आजाद करने के लिए विवश होना पड़ा।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने भरपूर कोशिश की कि वे फिर से खड़े हो, सशक्त हो और संपूर्ण दुनिया पर अपनी पकड़ को मजबूत करें।
लेकिन उनकी पकड़ ढीली होने लगी थी, क्योंकि उनके पास ना तो राजकोष बचा था और ना ही उनकी ताकत। यही वजह है कि वर्ष 1947 के फरवरी माह में ब्रिटिश भारत के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की।
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ऐसे हुआ भारत आजाद
यूनाइटेड किंगडम के संसद में वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के लिए एक अधिनियम पास किया गया, जिसमें धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान नाम के दो स्वतंत्र देश विभाजित करके बनाने की पेशकश की गई तथा इन दोनों ही देशों को उनकी संसद का पूर्ण अधिकार भी दिया जाए। इस अधिनियम को 18 जुलाई 1947 में यूनाइटेड किंगडम के संसद में स्वीकृति दे दी गई।
अब भारत आजाद होने के लिए तैयार है, लेकिन भारत को वर्ष 1948 में आजाद करने के लिए घोषणा की गई थी। उस समय भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन थे, जिन्होंने भारत को आजाद करने और भारत के बंटवारे का जिम्मा उठाया था।
भारत के आजादी की खबर फैलते ही देश में सांप्रदायिक दंगे होने शुरू हो गए। क्योंकि वर्ष 1930 के आसपास भारत में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई थी, जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। मोहम्मद अली जिन्ना ने धर्म के आधार पर अलग देश की मांग की।
जिसे अंग्रेजों ने स्वीकार कर ली। लेकिन भारत के लोग देश के टुकड़े नहीं करना चाहते थे, जबकि देश के अधिकांश मुसलमान धर्म के आधार पर अलग देश की मांग कर रहे थे।
इसी के चलते बहुत बड़े पैमाने पर भारत में सांप्रदायिक दंगे होने लगे। इसी को देखते हुए भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन भारत के आजादी की तारीख 1948 से कम करके 1947 जुलाई को कर दिया।
वर्ष 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत को आजाद करने के लिए 15 अगस्त को निर्धारित किया। क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान जैसे शक्तिशाली देश ने अमेरिका की वजह से ब्रिटेन के सामने आत्मसमर्पण किया था।
वर्ष 1945 में जापान के आत्मसमर्पण करने के 2 वर्ष बाद वर्ष 1947 को 15 अगस्त के दिन ही उस आत्मसमर्पण की वर्षगांठ पर लॉर्ड माउंटबेटन भारत को आजाद करना चाहते थे।
लेकिन हिंदू धर्म के ज्योतिषियों ने इस दिन को सुबह बताया, जिसके बाद दोनों के बीच बातचीत हुई और आखिरकार 15 अगस्त की मध्य रात्रि को भारत की आजादी का समय तय किया।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार रात की 12:00 बजे के बाद नया दिन शुरू हो जाता है, जबकि हिंदू धर्म के अनुसार अगले सूर्योदय होने के साथ ही नये दिन की शुरुआत होती है।
आजाद भारत का पहला सवेरा
आजाद भारत का पहला सवेरा संपूर्ण देशवासियों के लिए गर्व का विषय था। इस दिन लोग खुशी से स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे। लेकिन उन्हें अपने देश के टुकड़े होते हुए देखना दुख भरा भी लग रहा था, लेकिन जो भी मिला, उसे सहर्ष स्वीकार कर रहे थे।
भारतवासी आजादी की घोषणा हिंदुस्तान टाइम्स समाचार पत्र के जरिए की गई। इससे संपूर्ण देश के लोगों को पता चल गया कि 15 अगस्त के दिन भारत आजाद होगा। 15 अगस्त के दिन मध्य रात्रि को भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने हस्ताक्षर करके भारत को आजाद किया और भारत पाकिस्तान नाम के दो टुकड़े कर दिए।
15 अगस्त के दिन सुबह से लेकर मध्यरात्रि तक तरह-तरह के कार्यक्रम हुए, जिनमें अनेक तरह के संविधानिक प्रोग्राम शामिल थे। आखिरकार लॉर्ड माउंटबेटन के हस्ताक्षर और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के भाषण के साथ ही देश में स्वतंत्रता की घोषणा की गई।
अब भारत की हवा आजाद हो चुकी थी। भारत का पानी आजाद हो चुका था, भारत की मिट्टी आजाद हो चुकी थी, भारत का पर्यावरण आजाद हुआ था, भारत की प्रकृति आजाद हो चुकी थी। भारत की जलवायु, भारत के पेड़ पौधे, भारत के पशु पक्षी, भारत के गरीब लोग, भारत के किसान लोग, भारत के असहाय लोग, भारत के बेरोजगार लोग और गरीब पिछड़ा वर्ग अब आजाद हो चुका था।
भारत-पाकिस्तान का बंटवारा
भारत आजाद हो गया लेकिन भारत के आजाद होने के बाद भी करोड़ों लोगों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। क्योंकि भारत विभाजन के साथ आजाद हुआ। भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ, जिसमें मुस्लिम बहुल इलाका पाकिस्तान। जबकि बाकी बचा हिंदुस्तान था।
पश्चिम क्षेत्र में मुस्लिम बहुल इलाका बांग्लादेशी पूर्व पाकिस्तान नाम से जाना चाहता था, जो बाद में भारत के सहयोग से एक स्वतंत्र देश बन गया।
इस दौरान घोषणा की गई कि पाकिस्तान मुसलमानों के लिए है, इसीलिए जो भी मुसलमान पाकिस्तान जाना चाहते हैं, वह पाकिस्तान चले जाएं और जो भी हिंदू भारत आना चाहते हैं वह भारत आ जाए।
यह दुनिया का सबसे बड़ा विभाजन था क्योंकि इसमें तकरीबन डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने पैदल चलकर एक दूसरे देश की सीमाएं पार की थी। भारत पाकिस्तान विभाजन के समय बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए, हिंसा हुई और नरसंहार हुआ था, जिसमें लाखों की संख्या में लोगों की मौत हुई।
जानकारी के मुताबिक 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गए और 72,49,000 हिंदू पाकिस्तान छोड़कर भारत की सीमा में प्रवेश किया। इन लोगों ने पैदल चलकर दोनों देशों की सीमाएं पार की थी।
इस दौरान कई सारे लोगों की तो भूख और प्यास के कारण ही मृत्यु हो गई। उसके बाद बचे कुचे कुछ कमजोर लोगों की वजह से मर गए थे। क्योंकि उस समय देश की स्थिति काफी कमजोर थी और इतने बड़े पैमाने पर लोगों को सुविधा प्रदान करना मुश्किल हो रहा था। इसी वजह से कड़ाके की ठंड और तेज गर्मी की वजह से कई लोगों की मौत हुई।
भारत-पाकिस्तान का बंटवारा बहुत बड़े पैमाने पर किया गया था और पाकिस्तान के बीच की रेखा लॉर्ड माउंटबेटन ने खींची थी, जिसमें सभी चीजों का बंटवारा किया गया। भारत की धन संपत्ति, पुस्तकालय, मशीनरी, दोनों देशों की रेखाओं के बीच आने वाले पुलिस स्टेशन, लोगों के घर, गांव, मोहल्ले इत्यादि सभी का बंटवारा किया गया।
इस बीच पंजाब के क्षेत्र को भी दो भागों में बांट दिया गया। इस वजह से बहुत बड़े पैमाने पर सिख समुदाय के लोग पाकिस्तान में रह गए। इस दौरान बहुत बड़े संप्रदायिक दंगों को भी देखा गया। भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले कोलकाता में भी बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए थे।
हालांकि महात्मा गांधी के वहां पहुंचने पर कुछ हद तक कम हो गए। महात्मा गांधी तथा भारत के नेताओं ने मोहम्मद अली जिन्ना को भारत का बंटवारा ना करने के लिए काफी समझाया लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना नहीं माने।
इसी वजह से बड़े पैमाने पर संप्रदायिक हिंसा हुई। अंग्रेजों ने 14 अगस्त को पाकिस्तान को स्वतंत्र कर दिया। इसीलिए हर वर्ष 14 अगस्त के दिन पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है।
पाकिस्तान के बाद अपने आप को एक मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया। क्योंकि धर्म के आधार पर ही पाकिस्तान भारत से अलग हुआ था लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ। भारत को धर्मनिरपेक्ष कर रखा गया यानी यहां पर सभी धर्म के लोगों को एक समान समझा गया।
निष्कर्ष
आजाद होने के बाद भारत की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर थी। फिर भी भारत के सभी जाति धर्म संप्रदाय और समूह के लोगों ने मिलकर देश के लिए योगदान दिया और भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
वर्तमान समय में भारत दुनिया के मुख्य बड़े-बड़े देशों में शामिल है। दुनिया के बड़े-बड़े लोग और बड़े बड़े देश भारत की सराहना करते हैं। आज के समय में भारत में हर तरह की टेक्नोलॉजी और हर तरह के संसाधन मौजूद हैं।
एक बार आजाद होने के बाद भारत में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारत की आजादी से लेकर भारत के विकास में सभी जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय और मजहब के लोगों का योगदान है। इसीलिए भारत वर्तमान समय में धर्मनिरपेक्ष राज्य है।
भारत में आज के समय में सभी जाति धर्म के लोगों का सम्मान किया जाता है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है क्योंकि यहां पर सभी धर्म जाति लोगों का सम्मान किया जाता है। उनका आदर किया जाता है और उनको अधिकार दिया जाता है।
कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति धर्म का हो, वह भारत के किसी भी पद पर पहुंच सकता है। इसलिए भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है। 15 अगस्त के दिन भारत अपना इंडिपेंडेंस डे यानी स्वतंत्रता दिवस मनाता है।
इस आर्टिकल में हमने आपको पूरी जानकारी के साथ विस्तार से बताया है कि इंडिपेंडेंस डे का इतिहास क्या है? हमें उम्मीद है यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी।