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पंचतंत्र क्या है? इसका अर्थ और रचना का इतिहास

Panchtantra Kya Hai: हमने बचपन में ना जाने कितनी ही पंचतंत्र की कहानियां सुनी होगी। कहानियां मनोरंजन के स्रोत के साथ ही जीवन के व्यवहारिक ज्ञान को सिखाने में अहम भूमिका निभाती है। हर एक कहानी हमें अंत में कुछ ना कुछ सीखाती हैं।

पंचतंत्र जो कि कई कहानियों का संग्रह है, जिसके रचनाकार विष्णु शर्मा है। विष्णु शर्मा के द्वारा रचित पंचतंत्र की कथाएं बहुत ही सजीव है, जिसमें उन्होंने पशु-पक्षियों को पात्र बनाकर लोक व्यवहार को बहुत ही सरल ढंग से समझाया है।

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पचतंत्र में संग्रहित विभिन्न कहानियां लोगों में नेतृत्व क्षमता को विकसित करने का सशक्त माध्यम है। उन्होंने कहानियों को बहुत ही नैतिक तरीके से प्रस्तुत किया है, जो राजनीति, व्यावहारिक, मनोविज्ञान के सिद्धांतों को सिखाता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं पंचतंत्र की कहानियों का यह इतिहास बहुत ही पुराना है। पंचतंत्र की कहानियां इतनी विख्यात है कि यह भारत सहित विश्व भर में प्रसिद्ध है।

इस लेख में Panchtantra Kya Hai, पंचतंत्र का अर्थ क्या है, पंचतंत्र के लेखक, पंचतंत्र की रचना कब हुई आदि के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।

पंचतंत्र क्या है?

पंचतंत्र भारतीय साहित्य की सबसे पुरानी और प्रभावशाली रचनाओं में से एक है और मूल रूप से इसे संस्कृत भाषा में पंडित विष्णु शर्मा के द्वारा तीसरी शताब्दी ईस्वी से पांचवी शताब्दी ईस्वी के बीच रचा गया है।

संस्कृत लोकोक्तियों में इस रचना का प्रथम स्थान है। इस रचना में कुल 5 पुस्तकें हैं और प्रत्येक आपस में जुड़ी हुई है, जिसमें कई कहानियों के संग्रह है और इनमें पशु-पक्षियों को पात्र बनाकर नैतिक सबक दिया गया है।

इस रचना का अनुवाद 50 से भी ज्यादा अलग-अलग भाषाओं में हो चुका है। इस प्रकार यह रचना भारत सहित विश्व भर में प्रसिद्ध है।

इस तरह पंचतंत्र एक प्राचीन भारतीय दंत कथाओं का संग्रह है। हालांकि इसमें समय के साथ कई परिवर्तन और रूपांतरण हुए हैं।

भाषा के आधार पर इसमें कहानियों की संख्याओं में भिन्नता नजर आती है। कुछ भाषाओं में पंचतंत्र में 100 से भी अधिक कहानियां शामिल है।

पंचतंत्र का अर्थ

तंत्र का अर्थ होता है खंड और पंच का अर्थ है पांच। इस प्रकार पांच तंत्र अर्थात की पांच खंड। इस प्रकार पंचतंत्र कई कहानियों को संग्रहित पांच अलग-अलग पुस्तक है।

इस रचना के मूल संस्करण में कुल 87 कहानियों के साथ 5 खंड है, जिसे तंत्र से संबोधित किया गया है। इसीलिए इसे पंच तंत्र के नाम से जाना जाता है।

पंचतंत्र के खंड

पंचतंत्र के 5 खंड अर्थात पांच तंत्र इस प्रकार है:

  • मित्र-भेद
  • मित्र-सम्प्रति
  • काकुलुकीयम् ( कौवे और उल्लुओं की कथा)
  • लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना)
  • अप्रीक्षितकारकं (उतावलेपन से काम न लें)

सम्पूर्ण पंचतंत्र की कहानियां पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

पंचतंत्र का इतिहास

पंचतंत्र का इतिहास 2000 वर्ष पूर्व का है, उस समय दक्षिण पूर्व के किसी जनपद में महिलारोप्य नाम का एक नगर हुआ करता था और वहां के शासक का नाम अमर शक्ति था।

अमरशक्ति राजा बहुत ही पराक्रमी और उदार थे। वे बहुत ही विद्वान थे, उन्हें शास्त्रों का भी ज्ञान था और विभिन्न कलाओं में पारंगत भी थे। लेकिन दुर्भाग्यवश उनके 3 पुत्र किसी काम के नहीं थे। वे अज्ञानी, असभ्य और दुराचारी थे।

राजा ने अपने पुत्रों को कई तरीके से व्यवहारिक शिक्षा देने की कोशिश की, लेकिन उन पर कोई भी असर नहीं हुआ। राजा को अपने इन तीनों निकम्मे पुत्रों से बहुत ही अपमान और पीड़ा का सामना करना पड़ता था।

उन्होंने अपने मंत्रिमंडल को एक बार बुलाया और कहा कि मुर्ख संतान होने से अच्छा है कि निसंतान रहे। पुत्रों की मृत्यु से भी इतनी पीड़ा नहीं होती, जितनी मूर्ख संतान से होती है।

क्योंकि अगर पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो एक भारी पीड़ा होती है लेकिन मुर्ख संतान के कारण जिंदगी भर अपमान का विष पीना पड़ता है।

राजा अमर शक्ति ने अपना दुख अपने मंत्रिमंडल को बताया और उन्हें कुछ सुझाव देने के लिए कहा।

उन्होंने कहा कि हमारे राज्य में हजारों विद्वान, कलाकार और नीतिज्ञ लोग रहते हैं। तो क्या उन में कोई भी ऐसा विद्वान नहीं मिल सकता, जो मेरे इन तीनों निक्कमों पुत्रों को शिक्षित करके इन्हें विवेक और ज्ञान की ओर अग्रसर कर सके?

राजा की बात सुनकर एक मंत्री सुमित ने राजा से कहा कि महाराज व्यक्ति की आयु बहुत ही कम और अनुचित होती हैं और तीनों राजकुमार अब बड़े हो चुके हैं। ऐसे में उन्हें व्याकरण और शब्दावली का अध्ययन कराने में काफी दिन लग जाएंगे। उससे अच्छा होगा कि उन्हें किसी संक्षिप्त शास्त्र के आधार पर शिक्षा दें।

जिस तरीके से हंस दूध ग्रहण कर लेता है लेकिन पानी छोड़ देता है, उसी तरीके से राजकुमारों को ऐसा ज्ञान देने की जरूरत है, जिसमें सार लिया जाए और निसार छोड़ दिया जाए।

अगर इस तरह ज्ञान देने वाले विद्वान की बात करें तो हमारे राज्य में पंडित विष्णु शर्मा नाम के एक ब्राह्मण को यह जिम्मेदारी सौंपी जा सकती हैं।

वे राजकुमारों को शिक्षित करने और व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी को बहुत ही सफलतापूर्वक निभाएंगे। क्योंकि वे सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं और छात्रों के बीच काफी प्रतिष्ठित भी हैं।

मंत्री की बात सुनकर राजा अमर शक्ति महा पंडित विष्णु शर्मा को अपने दरबार में आने का निमंत्रण देते हैं। पंडित विष्णु शर्मा राजा के दरबार में आते हैं, जहां पर उनका बहुत ही आदर सत्कार किया जाता है।

उसके बाद राजा विष्णु शर्मा को अपने तीनों पुत्रों को शिक्षित करने के लिए निवेदन करते हैं और कहते हैं कि इसके बदले में मैं आपको दक्षिणा में 100 गांव दूंगा।

हालांकि पंडित विष्णु शर्मा इस बात को सुनकर राजा को कहते हैं कि राजन मैं अपना ज्ञान नहीं देता और 100 गांव के लिए मैं अपना ज्ञान कभी नहीं बेचूंगा। लेकिन मैं वादा करता हूं कि 6 महीने के अंदर ही मैं आपके तीनों अज्ञानी पुत्रों को राजनीति में दक्ष कर दूंगा और अगर ऐसा करने में मैं सक्षम रहा तो ईश्वर मुझे शिक्षा रहित कर दे।

विष्णु शर्मा के कठोर प्रतिज्ञा को सुनकर राजा हैरान हो गए। उन्होंने विष्णु शर्मा की पूजा की और अपने तीनों पुत्रों को उन्हें सौंप दिया।

जिसके बाद पंडित विष्णु शर्मा राजकुमारों को अपने आश्रम ले गए और वहां पर उन्होंने पशु-पंछी, मनुष्य आदि पात्रों के जरिए उनके मुख से अपने विचार व्यक्त करते हुए सही गलत और व्यवहारिक ज्ञान का प्रशिक्षण दिया।

उन्होंने तीनों राजकुमारों को विभिन्न प्रकार की आचार विचारों से संबंधित कहानियां सुनाई। यही कहानियों का संग्रह आगे चलकर पंचतंत्र कथाओं के रूप में संकलित हुआ।

वर्तमान में जो भी साक्ष्य उपलब्ध है, उनके आधार पर कहा जाता है कि जिस समय विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र ग्रंथ की रचना की थी, उस समय उनकी आयु 80 वर्ष थी।

FAQ

पंचतंत्र की रचना कब हुई?

पंचतंत्र की रचना आज से 2000 साल पहले की गई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार चाणक्य का ही दूसरा नाम विष्णु शर्मा है। इस अनुसार पंचतंत्र की रचना चंद्रगुप्त मौर्य के समकालीन 360 पूर्व में माना जाता है।

पंचतंत्र के लेखक का नाम क्या है?

पंचतंत्र के लेखक का नाम विष्णु शर्मा है।

पंचतंत्र का पांचवा खंड अपरीक्षित कारक का क्या अर्थ होता है?

पंचतंत्र का पांचवा खंड अपरीक्षित कारक का अर्थ होता है करने से पहले जिसे परखा ना गया हो अर्थात कि जो हड़बड़ी में कदम उठाया गया हो।

पंचतंत्र में क्या लिखा गया है?

पंचतंत्र विभिन्न कहानियों का संग्रह है, जिसमें पशु पक्षियों को पात्र बनाकर जीवन के नैतिक मूल्यों को सरल पूर्वक समझाया गया है।

पंचतंत्र की क्या विशेषता है?

पंचतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें कहानियों को बहुत ही संक्षिप्त में लिखा गया है लेकिन यह पूर्ण सार देता है। इस रचना में शिक्षा, मनोरंजन और समाज नीति सभी का सम्मिश्रण देखने को मिलता है, जिसके कारण पाठक आनंदविभोर होकर इसे पढता है।

निष्कर्ष

इस लेख में भारत साहित्य की एक ऐतिहासिक और प्रसिद्ध रचना पंचतंत्र के बारे में जाना।

पंचतंत्र जो मानव अस्तित्व के नैतिक आदर्शों को समझने का एक बेहतरीन माध्यम है। इस रचना के माध्यम से मनोविज्ञान और नैतिक मूल्यों को बहुत आसानी से सीखा व सिखाया जा सकता है। पंचतंत्र संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख के जरिए आपको Panchtantra Kya Hai के बारे में सब कुछ जानने को मिला होगा कि पंचतंत्र क्या होता है, पंचतंत्र का क्या अर्थ है, पंचतंत्र किसकी रचना है आदि।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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