Majboor Shayari
मजबूर शायरी | Majboor Shayari
धीरे-धीरे दूर होते गये,
वक्त के आगे मजबूर होते गये,
इश्क़ में हम ने ऐसी चोट खाई कि
हम बेवफ़ा और वो बेकसूर होते गये.
कभी गम तो कभी ख़ुशी देखी
हमने अक्सर मजबूरी और बेबसी देखी
उनकी नाराज़गी को हम क्या समझें
हमने तो खुद अपनी तकदीर
की बेबसी देखी !!
वफ़ाओ की बातें की जफ़ाओ के सामने,
ले चले हम चिराग हवाओं के सामने,
उठे है जब भी हाथ बदली है किस्मतें,
मजबूर है खुदा भी दुआओं क सामने.
क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम
तू भी इंसान है कोई खुदा तो नहीं
मेरा वक़्त जो होता मेरे मुनासिब
मजबूरिओं को बेच कर तेरा
दिल खरीद लेता !!
दिल से रोये मगर होंठो से मुस्कुरा बेठे
यूँ ही हम किसी से वफ़ा निभा बेठे
वो हमे एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का
और हम उनके लिये जिंदगी लुटा बेठे
आप दिल से यूँ पुकारा ना करो
हमको यूँ प्यार से इशारा ना करो
हम दूर हैं आपसे ये मजबूरी है हमारी
आप तन्हाइयों मे यूँ रुलाया ना करो !!
आदत तो मजबूर कर देती है हर इंसान को
कभी उन्हें भी तो रूठने का मौका दिया करों,
अक्सर तुम रूठ के मनवाने का लुफ्त उठाते हो
तो कभी उन्हें मनाने का मजा भी लिया करो
चाँद की चांदनी आँखों में उतर आयी
कुछ ख्वाब थे और कुछ मेरी तन्हाई
ये जो पलकों से बह रहे हैं हल्के हल्के
कुछ तो मजबूरी थी कुछ तेरी बेवफाई !!
वक्त नूर को बेनूर कर देता हैं,
छोटे से जख्म को नासूर कर देता है,
कौन चाहता है अपने से दूर होना,
लेकिन वक्त सबको मजबूर कर देता हैं.
हमारी ज़िन्दगी में कुछ लोग ऐसे भी होते है
जिनके साथ कितना भी झगडा हो जाए पर
उसे छोड़ना बहुत मुश्किल होता है !!
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Majboor Shayari
ख़ामोश थे हम तो मगरूर समझ लिया,
चुप हैं हम तो मजबूर समझ लिया,
यही आप की खुशनसीबी है कि हम इतने करीब है,
फिर भी आप ने दूर समझ लिया.
जब कोई आपसे मजबूरी में जुदा होता है
जरूरी नही वो इंसान वेबफा होता है
जब कोई देता आपको जुदाई के आँसू
तन्हाइयों में वो आपसे ज्यादा रोता है !!
मेरे दिल की मजबूरी को कोई इल्जाम न दे
मुझे याद रख बेशक मेरा नाम न ले
तेरा वहम है कि मैंने भुला दिया तुझे
मेरी एक भी साँस ऐसी नहीं जो
तेरा नाम न ले !!
सुकून हम अपने दिल का अब खो चुके है,
हम खुद को गम-ऐ-सागर में डुबो चुके हैं,
क्यों मजबूर करते हो हमें, ये खत दिखाकर
हम पहले से ही उदास है, बहुत रो चुके हैं.
हमने खुदा से बोला वो छोड़ के चली गई
न जाने उसकी क्या मजबूरी थी
खुदा ने कहा इसमें उसका कोई कसूर नहीं
ये कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी !!
हम अपने आप पर गुरूर नहीं करते,
किसी को प्यार करने पर मजबूर नही करते,
जिसे एक बार दिल से दोस्त बना ले,
उसे मरते दम तक दिल से दूर नहीं करते.
तेरे लिए खुद को मजबूर कर लिया,
जख्मों को अपने नासूर कर लिया,
मेरे दिल में क्या था ये जाने बिना,
तूने खुद को हमसे कितना दूर कर लिया.
क्यूँ करते हो वफ़ा का सौदा
अपनी मजबूरिओं के नाम पर
मैं तो अब भी वो ही हूँ
जो तेरे लिए जमाने से लड़ा था !!
किस्मत ने तुमसे दूर कर दिया,
अकेलेपन ने दिल को मजबूर कर दिया,
हम भी जिन्दगी से मुँह मोड़ लेते मगर
तुम्हारे इन्तजार ने जीने पर मजबूर कर दिया.
उम्मीद ऐसी हो जो जीने को मजबूर करें,
राह ऐसी हो, जो चलने को मजबूर करें,
महक कम न हो कभी अपनी दोस्ती की,
दोस्ती ऐसी हो जो मिलने को मजबूर करें.
महफिल मैं कुछ तो सुनाना पडता है
ग़म छुपाकर मुस्कुराना पडता है
कभी उनके हम भी थे दोस्त
आज कल उन्हे याद दिलाना पडता है !!
Majboor Shayari
पैगाम कुछ ऐसा लिखों कि
कलम भी रोने को मजबूर हो जाएँ,
हर लफ्ज में वो दर्द भी दो कि
पढ़ने वाला प्यार करने को मजबूर हो जाएँ.
मजबूरी में जब जुदा होता है
ज़रूरी नहीं के वो बेवफा होता है
दे कर वो आपकी आँखों में आँसू
अकेले में आपसे भी ज्यादा रोता है !!
ये न समझ के मैं भूल गया हूँ तुझे
तेरी खुशबू मेरी सांसो में आज भी है
मजबूरी ने निभाने न दी मोहब्बत
सच्चाई तो मेरी वफ़ा में आज भी है !!
ऐ बेवफ़ा थाम ले मुझको मजबूर हूँ कितना,
मुझको सजा न दे मैं बेकसूर हूँ कितना,
तेरी बेवफ़ाई ने कर दिया है मुझे पागल,
और लोग कहते हैं मैं मगरूर हूँ कितना.
वो रोए बहुत पर मुह मोड़ के रोए
कोई तो मजबूरी होगी दिल तोड़ कर रोए
मेरे सामने कर दिए मेरे तस्वीर के टुकड़े
पता चला पीछे वो उन्हें जोड़ के रोए !!
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