Kashmiri Pandits History in Hindi: पाकिस्तान और भारत का विभाजन होने के बाद इन दोनों देशों के बीच तब से ही तनाव का संबंध बना हुआ है। आए दिन पाकिस्तानी आतंकवादी भारत पर हमला करते रहते हैं। हालांकि इस आतंकवादी से सबसे ज्यादा कोई परेशान है तो वह जम्मू कश्मीर राज्य है।
क्योंकि विभाजन के बाद पाकिस्तानियों के द्वारा जम्मू कश्मीर का कुछ हिस्सा कब्जा कर लिया गया था, जिसके बाद उसके नजदीकी इलाकों में हमेशा से ही पाकिस्तानी आतंकवादियों के आतंक का प्रभाव रहा। जिससे जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर को लंबे समय से आतंकवाद का शिकार बना रहा।
धीरे-धीरे आतंक राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगा, जिसका प्रभाव कश्मीरी पंडितों पर पड़ने लगा। उन्हें आतंकवादियों के चलते अपने राज्य को छोड़ने की नौबत आ गई। कश्मीरी पंडितों के साथ कई अत्याचार हुए और इस अत्याचार से लोगों को रूबरू करवाने के लिए बॉलीवुड फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ बनाई गई है, जिसमें इन कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा को दर्शाया गया है।
आज के इस लेख में हम इन कश्मीरी पंडित के इतिहास (Kashmiri Pandits History in Hindi) और इनके ऊपर बनाई गई फिल्म के बारे में चर्चा करेंगे तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
कश्मीरी पंडित कौन थे और इनका इतिहास | Kashmiri Pandits History in Hindi
कश्मीरी पंडित कौन है?
भारत का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर हमेशा से ही आतंकियों के प्रभाव में रहा है हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था। आजादी से पहले यहां पर काफी सुख शांति थी। यहां तक कि इस प्रकृति सौंदर्य राज्य में कई मुसलमान और अन्य शासकों ने भी आक्रमण किया और उन्होंने यहां पर शासन किया लेकिन हमेशा यहां पर शांति बनी रही।
शुरुआती समय में कश्मीर में सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडितों की आबादी थी। यह पंडित सारस्वत ब्राह्मणों के समूह में आते थे, जो एकमात्र कश्मीरी हिंदू जाति थे। साथ ही इस राज्य के मूल निवासी थे। ये कश्मीरी पंडित दो प्रकार के होते थे, जिनमें पहला कश्मीरी पंडित को बनवासी कहा जाता था।
इस श्रेणी में उन पंडितों को शामिल किया गया था, जो मुस्लिम राजाओं के शासन के दौरान घाटी को छोड़कर चले गए थे और फिर वापस आकर बस गए थे। वहीं दूसरी श्रेणी में मलमासी पंडित थे। इन श्रेणी में उन पंडितों को गिना जाता था, जो मुसलमान शासकों के अत्याचार सहने के बावजूद भी घाटी को छोड़कर नहीं गए और यहीं पर अपना जीवन हमेशा के लिए बसा लिया।
अब गिने चूने कश्मीरी पंडित ही कश्मीर घाटी में निवास करते हैं। कहा जाता है कि इन पंडितों की संख्या में पढ़े लिखे और लोगों की संख्या काफी थी, जो राज्य के प्रशासनिक और अन्य विभागों की उच्च पदों पर थे। माना जाता है भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इसी समुदाय से थे।
कश्मीरी पंडितों का इतिहास (Kashmiri Pandit History)
देश आजाद होने के बाद जम्मू-कश्मीर के अधिकार को लेकर कई वाद-विवाद हुए। पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर को अपने अधिकार में करने की बहुत कोशिश की। लेकिन जब वो असफल रह गया तब कई सारे आतंकवादी संगठन भारत में तैयार करने लगा, जिसका बुरा प्रभाव जम्मू कश्मीर के लोगों पर पड़ने लगा।
जम्मू कश्मीर में हिंदुओं के अतिरिक्त कई मुसलमान लोग भी रहते थे, जिसमें कुछ मुसलमान पाकिस्तानी समर्थक थे। जिसके कारण जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और यहां के पाकिस्तानी समर्थक वाले इस्लामीवादी समूह मजबूत होने लगे, जिन्होंने यहां के निवास करने वाले अन्य मुसलमानों में भारत के प्रति नफरत का जहर घोलना शुरू कर दिया।
यही कारण है कि 1988 तक जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने भारत से कश्मीर को आजाद करवाने के लिए विद्रोह करना शुरू कर दिया। अलगाववादी विद्रोह के कारण 1989 में भारतीय जनता पार्टी के एक हिंदू कश्मीरी नेता टीका लाल तपलू की हत्या कर दी गई, जिसके कारण यहां निवास करने वाले कश्मीरी पंडित समुदायों में खोफ पैदा होने लगा और वह अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगे।
यहां तक कि साल 1990 में एक कश्मीर के उर्दू अखबार में आतंकी संगठन द्वारा एक विज्ञापन प्रकाशित कर दिया गया, जिसमें कश्मीरी पंडितों को चेतावनी दी गई थी कि यदि वे अपने धर्म को परिवर्तन नहीं करते हैं तो उन्हें घाटी छोड़कर जाना पड़ेगा वरना उन सब की हत्या कर दी जाएगी। जिसके बाद कई सारे पंडित डर के मारे मुस्लिम धर्म को अपना लिया।
लेकिन जिन पंडितों ने इसका विरोध किया, उन पर कई अत्याचार हुए। यहां तक कि कई पंडितों को मारा भी गया। साल 1990 में आतंकवादियों के द्वारा श्रीनगर में दो कश्मीरी पंडित जो सरकारी कर्मचारी थे, उनकी हत्या कर दी गई। जिसके बाद घाटी में और भी ज्यादा तनाव बढ़ गया और हालात और भी ज्यादा खराब होने लगा।
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चारों तरफ कश्मीरी पंडितों को राज्य छोड़ने की धमकी का पोस्टर लगा दिया गया। लाउडस्पीकर के जरिए बार-बार पंडितों में खौफ फैलाया गया। 19 जनवरी की रात को बहुत ज्यादा भयानक दृश्य उत्पन्न हुआ। सभी मुस्लिम लोग सड़कों पर उतर आए और पंडितों को कश्मीर छोड़कर जाने को कहने लगे।
मुसलमानों ने कई कश्मीरी पंडित औरतों के साथ बुरा सलूक भी किया और कई छोटे बच्चों की हत्या भी कर डाली। दुख की बात तो यह है कि कश्मीरी पंडितों ने सरकार से मदद मांगी लेकिन इन्हें ना ही राज्य सरकार से मदद मिली ना ही केंद्रीय सरकार से मदद मिली।
उस समय केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी और राज्य में फारूक अब्दुल्ला की सरकार थी। लेकिन दोनों ही सरकार इन कश्मीरी पंडितों की मदद में असफल रही, जिसके कारण अंत में कश्मीरी पंडित हारकर घाटी को छोड़कर जाने का फैसला लेने लगे। जनवरी के अंत तक कश्मीरी पंडितों ने घाटी को छोड़कर अलग राज्यों में बसेरा डाल लिया।
कश्मीरी पंडितों पर बनाई गई फिल्म
90 के दशक में कश्मीर के कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के ऊपर हुए अत्याचार और उनके पलायन की कहानी के ऊपर जाने-माने फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म लेकर आए हैं। 11 मार्च को यह फिल्म रिलीज हुई।
इस फिल्म में बॉलीवुड के कई दिग्गज कलाकार हैं। फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती सहित पल्लव जोशी, दर्शन कुमार जैसे कई मंझे हुए कलाकारों ने अपना अच्छा प्रदर्शन फिल्म में दिया है, जिसके कारण फिल्म को काफी सराहना मिली थी।
बात करें फिल्म की कहानी की शुरुआत की तो फिल्म पूरी तरीके से कश्मीरी पंडित के अत्याचार को केंद्र बनाकर बनाई गई है। हालांकि फिल्म की कहानी पुष्कर नाथ नाम के एक टीचर पंडित की के इर्द-गिर्द घूमती है। इस टीचर के किरदार में अनुपम खेर है।
पुष्कर नाथ पंडित के एक पोते हैं, जिनका नाम कृष्णा है। जिसके किरदार में दर्शन कुमार है, जो दिल्ली से कश्मीर अपने दादा की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए आते हैं, जो अपने जिगरी दोस्त ब्रह्मा दत्त के यहां ठहरता है। दोस्त के किरदार में मिथुन चक्रवर्ती है।
अन्य कलाकार भी अन्य दोस्तों के किरदार में हैं। उसी के बाद यह कहानी आगे बढ़ती है और फिर कश्मीरी पंडित के अत्याचारों को और उनके पलायन को प्रदर्शित करने के साथ ही 1990 से पहले के कश्मीर का भी झलक दिखाया गया है। 90 के दशक में कश्मीरी पंडित को मिलने वाली धमकियां और उनमें फैले हुए खौफ का माहौल भी इस फिल्म में दर्शाया गया है, जिसे देखकर दर्शक कश्मीरी पंडितों के पिडादायक कहानी को समझ सकते हैं।
हालांकि यह पहली फिल्म नहीं है, जिस पर कश्मीरी पंडितों की कहानी दिखाई गई है। इससे पहले 2020 में विधु विनोद चोपड़ा ने शिकारा नामक फिल्म का निर्देशन किया था। उस फिल्म में भी कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के कश्मीर पलायन को आधार बनाया गया था।
हालांकि उस फिल्म में एक लव स्टोरी के जरिए कश्मीरी लोगों की पीड़ा को दर्शाया गया है। वहीं ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म में रोंगटे खड़े करने वाले दृश्य दिखाए गए हैं। इस फिल्म में कश्मीरी हिंदुओं की कहानी को बहुत ही गहराई से और कठोरता से दिखाने की कोशिश की गई है।
इस फिल्म को देखने से दर्शक अपने आपको 90 के दशक में हो, ऐसा महसूस कर सकते हैं। यदि आप इन कश्मीरी पंडितों के पीड़ादायक कहानी से रूबरू होना चाहते हैं तो इस फिल्म को देख सकते हैं।
FAQ
कश्मीरी पंडितों पर कई सारी किताबें लिखी गई है। इन किताबों में उनके इतिहास और उन पर हुए अत्याचार का जिक्र किया गया है। लेखक जगमोहन द्वारा लिखी गई किताब ‘माय फ्रोजेन टरबुलेन्स इन कश्मीर’ है। उसके बाद ‘कल्चर एंड पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ़ कश्मीर’ करके भी एक किताब लिखी गई है, जो पीएनके बामजई द्वारा लिखी गई है। इसके अतिरिक्त राहुल पंडिता करके भी एक लेखक हैं, जिन्होंने कश्मीरी पंडित के इतिहास को दर्शाता हुआ एक किताब आवर मून हेज ब्लड क्लॉट्स” लिखा है। रोचक वाली बात यह है कि इस किताब के लेखक खुद भी एक कश्मीरी पंडित है।
मुस्लिम आतंकवादियों संगठन के द्वारा कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में उनका प्रभाव पड़ने के बाद साल 1990 से कश्मीर पंडित राज्यों को छोड़कर जाने लगे।
1990 में सरकार के द्वारा निकाले गए आंकड़े के मुताबिक एक लाख 70 हजार के लगभग कश्मीरी पंडित यहां थे। हालांकि राज्य में इससे भी अधिक संख्या में यहां पर कश्मीरी पंडित निवास कर रहे थे। फिर आतंकी हमलों के बाद यहां के पंडित राज्य को छोड़कर जाने लगे और फिर इन पंडितों की संख्या अब केवल हजारों की संख्या में रह गई है।
कश्मीरी पंडितों पर विवेक अग्निहोत्री द्वारा ‘द कश्मीर फाइल्स’ मूवी बनाई गई है।
उस समय केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी और राज्य में फारूक अब्दुल्ला की सरकार थी।
निष्कर्ष
कश्मीरी पंडितों के ऊपर काफी अत्याचार हुए, जिसके कारण इन पंडितों को अपना घर तक छोड़ना पड़ा। हालांकि इन पंडितों को शुरुआती समय में सरकार द्वारा कोई मदद नहीं मिली। लेकिन अब सरकार इनको हक दिलाने में कोशिश कर रही है।
हमें उम्मीद है कि यह लेख आपको अच्छा लगा होगा, जिसमें हमने आपको कश्मीरी पंडितों के इतिहास (Kashmiri Pandits History in Hindi) के बारे में बताया। इस लेख को अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों में शेयर करें ताकि हर कोई इन अत्याचार से पीड़ित कश्मीरी पंडित के कहानी से रूबरू हो सके।
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