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मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है?

Makar Sankranti Kyu Manaya Jata Hai: विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां पर सबसे ज्यादा पर्व और उत्सव मनाएं जाते हैं। इस कारण ही भारत पूरे विश्व में अपनी अलग ही छवि बनाये हुए है।

भारत में सभी पर्वों का विशेष महत्व होता है, उसी में से एक मकर संक्रांति का भी हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। भारत में इस पर्व को मनाने का तरीका अलग-अलग जगह पर अलग-अलग है।

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इस पोस्ट में हम मकर संक्रांति से सम्बंधित जानकारी जैसे मकर संक्रांति क्या है, मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है, मकर संक्रांति का महत्व क्या है, मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व आदि शेयर कर रहे हैं तो आप हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़े।

मकर संक्रांति क्या है? (Makar Sankranti Kya Hai)

मकर संक्रांति हिंदू धर्म का ही एक त्यौहार है, जो कि हिंदू धर्म के सभी लोग बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। असल में सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति में मकर शब्द मकर राशि को दर्शाता है जबकि सक्रांति शब्द “संक्रमण” अर्थात् प्रवेश को दर्शाता है।

इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, इस विस्थापन को ही सक्रांति कहते है। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस कारण इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।

मकर संक्रांति को लेकर हर एक व्यक्ति बहुत ही ज्यादा उत्साहित होता है। परंतु इनमें से ज्यादातर बच्चे इस त्यौहार को लेकर उत्साहित होते हैं। क्योंकि इस त्यौहार पर बच्चे पतंगों के साथ खेलते हैं अर्थात पतंग उड़ाते हैं।

पतंग उड़ाने के साथ-साथ बच्चे इस त्यौहार का भरपूर लाभ उठाते हैं और मिष्ठान इत्यादि का भी उपभोग करते हैं। इसी कारण से मकर संक्रांति बच्चों के लिए बहुत ही अच्छी कही जाती है और मकर संक्रांति को बच्चों का ही त्यौहार कहा जाता है।

मकर संक्रांति का इतिहास क्या है?

मकर संक्रांति को लेकर बहुत ही पौराणिक मान्यताएं प्रचलित है। परंतु इसमें से भगवान सूर्य का अपने पुत्र शनि से मिलने की पौराणिक मान्यता सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

सनातन धर्म मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए उनके घर जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं और भगवान सूर्य के द्वारा उनके घर में प्रवेश मात्र से ही शनि का प्रभाव दुर्बल हो जाता है।

क्योंकि सूर्य के प्रकाश के सामने नकारात्मक शक्तियां बिल्कुल भी नहीं टिक पाती और यही कारण है कि मकर संक्रांति पर सूर्य की साधना और सूर्य से संबंधित दान संबंधित कार्य किए जाते हैं और शनि के दोष से मुक्ति मिलती है।

मकर संक्रांति कब मनाया जाती है? (Makar Sankranti Kab Hai)

कभी-कभी यह पर्व एक दिन पहले या एक दिन बाद में मनाया जाता है अर्थात् 13 या 15 जनवरी। लेकिन ऐसा कम ही होता है। इस पर्व का सीधा संबंध पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है।

जब भी सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन 14 जनवरी ही होता है। इसलिए यह पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है।

यह भी पढ़े: मकर संक्रांति पर संस्कृत श्लोक

मकर संक्रांति के दिन क्या होता है?

इस दिन सूर्य उतरायण हो जाता है अर्थात् इस दिन धरती का उतरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है तो उतर से ही सूर्य निकलने लग जाता है। 6 माह सूर्य उतरायण रहता है और 6 माह दक्षिणायन रहता है। मान्यताओं की माने तो उतरायण में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की सम्भावना रहती है।

इस पर्व को लोग धार्मिक महत्व और प्रकृति से जोड़कर देखते है। इस दिन ऊर्जा और रोशनी देने वाले सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। इस दिन वसंत ऋतु की शुरुआत होती है।

मकर संक्रांति के दिन क्या करते है?

मकर संक्रांति को स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थों और पवित्र नदियों में स्नान को विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन तिल, गुड़, फल और खिचड़ी दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किये गये दान से सूर्य देवता बहुत प्रशन्न होते है। इस दिन पतंग उड़ाने का विशेष महत्व है। इस दिन लोग बड़े उमंग से पतंगबाजी करते है और कई जगहों पर पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन किये जाते है।

मकर संक्रांति का महत्व (Makar Sankranti Ka Mahatva)

हालांकि एक साल में कुल 12 सक्रान्तियां आती है, परंतु इनमें मकर संक्रांति का सर्वाधिक महत्व है। क्योंकि यहीं से उतरायण पुण्य काल आरम्भ होता है।

उतरायण को देवताओं के काल के रूप में पूजा जाता है। वैसे तो इस सम्पूर्ण काल को ही पवित्र माना जाता है। परंतु इस समय का कुछ महत्व अधिक है। इसी के बाद ही सभी त्यौहार आरम्भ होते है।

मकर संक्रांति किसानों के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि मकर संक्रांति के दिन से ही किसान अपनी ठंडी की फसलों को काटना शुरू कर देते हैं। मकर संक्रांति प्रत्येक वर्ष के 14 या फिर 15 जनवरी को मनाया जाता है।

मकर संक्रांति को उत्तरायण त्यौहार भी कहा जाता है क्योंकि मकर संक्रांति का दिन ऐसा दिन होता है जब सूर्य तेजी से उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। इस त्यौहार को हिंदुओं के लिए सूर्य की रोशनी ताकत और ज्ञान का अपार भंडार भी माना जाता है।

एक तरह से मकर संक्रांति का त्यौहार इसलिए भी मनाया जाता है क्योंकि आज सूर्य उत्तर की ओर बढ़ कर अंधेरे को रोशनी से भर देता है, जो कि लोगों के लिए एक प्रेरणा होती है और मकर संक्रांति अपने जीवन को एक नए सिरे से शुरू करने का प्रतीक मानी जाती है।

मकर संक्रांति के दिन से पर्यावरण बहुत ही ज्यादा शुद्ध माना जाता है। क्योंकि पर्यावरण में एक अलग ही आभास होता है। मकर संक्रांति किसानों के लिए सुख समृद्धि का एक वरदान माना जाता है और सभी किसान इसीलिए मकर संक्रांति की पूजा पूरे विधिवत करते हैं।

मकर संक्रांति मनाने की पूजा विधि क्या है?

भारतवर्ष के जो भी लोग मकर संक्रांति के पूजा विधिवत मनाते हैं, उन्हें तो इस की पूजा विधि पता ही होगी। परंतु वह लोग भी इस पूजा विधि को करने में कभी ना कभी भूल जरूर कर देते हैं।

तो आइए अब हम जानते हैं कि मकर संक्रांति की पूजा विधि कैसी होती है? इसके विषय में नीचे पॉइंट वाइज जानकारियां बताई गई हैं। तो चलिए शुरू करते हैं:

  1. मकर संक्रांति का पूजा करने के लिए आप सभी लोगों को ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करने के स्थान को शुद्ध एवं साफ कर लेना है और ब्रह्म मुहूर्त में ही नहा लेना है।
  2. इसके बाद आप सभी लोगों को सूर्य भगवान के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं को भी पूजा समर्पण करनी है।
  3. इसके बाद आप सभी लोगों को एक थाली में चार काली और एक सफेद तिल्ली के लड्डू को रख लेना है और इसके साथ उसमें उसी थाली में एक सिक्का रखना है।
  4. इसके बाद आप सभी लोगों को सुपारी, पान, हल्दी और चावल लेकर सूर्य भगवान को चढ़ाना है और उनकी पूजा-अर्चना भी करनी है।
  5. पूजा करते समय आपको भगवान सूर्य का मंत्र जाप करना है और सुख समृद्धि के लिए कामना करनी है।

अलग-अगल जहग पर अलग-अलग तरीका

मकर संक्रांति को भारत के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे सक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है।

पंजाब और हरियाणा में नई फसल के स्वागत के रूप मनाया जाता है, जहां इसे लोहड़ी कहा जाता है। वहीं असम में इसे बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास से मनाया जाता है। हर प्रान्त और जगह पर इसके मनाने का तरीका अलग है।

निष्कर्ष

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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