Home > Featured > होली क्यों मनाई जाती है? इतिहास और महत्व

होली क्यों मनाई जाती है? इतिहास और महत्व

Holi Kyu Manaya Jata Hai: हम जैसे ही होली शब्द को सुनते हैं, हमारे मन में एक अलग ही भाव उत्पन्न हो जाता है, यह भाव हर्ष और उल्लास का होता है। होली बहुत ही चर्चित त्यौहार है, यह त्योहार लोग बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें लोग अपने पुराने दुश्मनी को भूल जाते हैं और अपनी जिंदगी की एक नए सिरे से शुरुआत करना चाहते हैं।

Holi Kyu Manaya Jata Hai
Holi Kyu Manaya Jata Hai

ऐसे में होली को हम सभी आज के इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि आखिर यह होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है (Holi Kyu Manaya Jata Hai), इस होली के त्यौहार के पीछे की पौराणिक मान्यता (Holi ki Kahani) क्या है और इस त्यौहार को क्या अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

आइए जानते हैं कि होली का त्यौहार लोग किस प्रकार से मनाते हैं और इसकी क्या-क्या विधियां होती हैं। होली के उपलक्ष में इस लेख को प्रस्तुत करने का हमारा मुख्य उद्देश्य है कि आप भी होली पर्व के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकें।

Follow TheSimpleHelp at WhatsApp Join Now
Follow TheSimpleHelp at Telegram Join Now

यदि आप होली के त्यौहार के उपलक्ष में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो कृपया हमारे द्वारा लिखे गए इस महत्वपूर्ण लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

होली क्यों मनाई जाती है? इतिहास और महत्व | Holi Kyu Manaya Jata Hai

होली के त्यौहार का इतिहास

होली का इतिहास काफी पुराना है। कई पुरातन धार्मिक पुस्तकों में होली का उल्लेख मिलता है। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपि और ग्रंथों में भी होली के त्यौहार का उल्लेख मिलता है। यहां तक कि प्राचीन काल के कई मंदिरों की दीवारों पर भी होली के चित्र के हुए दिखाई पड़ते हैं।

16वीं शताब्दी में विजयनगर की राजधानी हंपी में बनाए गए एक मंदिर में भी होली के कई सारे दृश्य दीवारों पर उकेरे गए हैं, जिसमें राजकुमार राजकुमारियों सहित दासियों को भी हाथ में पिचकारी लिए हुए एक दूसरे को रंगते हुए दिखाया गया है। 300 वर्ष पुराना विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित अभिलेख में होली का उल्लेख है।

इतिहासकारों का कहना है कि होली का परवाह आर्यों में भी प्रचलित था लेकिन अब यह पूर्वी भारत में ही ज्यादातर मनाया जाता है।

अलबरूनी जो सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक थे, इन्होंने भी अपनी ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। इस तरीके से हिंदुओं के अतिरिक्त भारत के कई मुस्लिम कवियों ने भी अपनी रचनाओं में होली का उल्लेख करके बताया है कि होली का त्योहार केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि मुसलमानों का भी त्योहार है, इसे मुसलमान भी मनाते हैं।

यहां तक कि मुगल काल के दौरान साहित्यकार द्वारा किए गए रचना में अकबर का जोधा बाई के साथ, जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। इसकी एक झलक अलवर संग्रहालय के एक चित्र में भी देख सकते हैं, जहां पर जहांगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है।

इस तरीके से मुगल काल में भी होली का त्यौहार काफी प्रचलित था और वह भी होली को धूमधाम से और उमंग से मनाया करते थे। कहा जाता है कि शाहजहां के समय तो होली खेलने का अंदाज ही बदल गया। इतिहास में वर्णन किया गया है कि शाहजहां के जमाने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी कहा जाता था, जिसका मतलब रंगों का बौछार होता है।

मध्ययुगीन हिंदी साहित्य में भी कृष्ण लीलाओं में होली का काफी विस्तृत वर्णन देखने को मिलता है। इसके अलावा और भी कई सारे प्राचीन साक्ष्य मिले हैं, जो बताता है कि होली का त्योहार प्राचीन काल से ही सभी धर्मों के लोग मनाते आ रहे हैं।

होली का त्यौहार क्या है?

जैसा कि आप सभी जानते हैं होली का त्यौहार हमारे लिए बहुत ही प्रसन्नता का त्यौहार होता है। होली का नाम सुनते ही हमारे हृदय में हर्ष उल्लास की भावना उत्पन्न हो जाती है। होली के त्यौहार के दिन हम सभी लोग अपने अपने पुराने गिले शिकवे भुला कर के एक नई तरीके से अपने जीवन की शुरुआत करते हैं। होली एक रंगों का त्योहार है, होली के दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग लगा कर के अपनी खुशियों को एक दूसरे के समक्ष प्रकट करते हैं।

होली के त्यौहार के दिन सभी बच्चे से लेकर बूढ़े व्यक्ति सभी मिलकर के इस त्यौहार का लुफ्त उठाते हैं। होली के त्यौहार को हिंदुओं का सबसे प्रमुख और प्रचलित त्योहारों में से एक माना जाता है, परंतु इसे संपूर्ण भारत में अनेक धर्मों के लोग एक साथ मिलकर के बड़ी ही प्रसन्नता और प्रेम भाव के साथ मनाते हैं।

होली के त्यौहार एक बहुत ही अच्छा त्योहार माना जाता है। क्योंकि आज के दिन सभी लोग के मन में एक दूसरे के प्रति स्नेह का भाव बढ़ जाता है और यह स्नेह की भावना उन्हें एक दूसरे के करीब लाती है।

होली का त्योहार इतना प्रचलित हो चुका है कि भारतवर्ष में अनेक किसान लोग इस त्यौहार को अपनी फसल काटने की खुशी में भी मनाते हैं। इसका अर्थ यह है कि भारत में होली न केवल होली के दिन ही अपितु किसानों की फसल पैदावार के दिन भी होती है।

जैसा कि आपको बताया होली का त्यौहार एक बहुत ही रंगीला त्यौहार है तो ऐसे में आज के दिन सभी लोग बहुत ही सुंदर और अलग-अलग रंगों से सजे रंग बिरंगे लगते हैं।

इस त्यौहार के दौरान प्रकृति का दृश्य भी लोगों के द्वारा सजे इस रंग रूप के कारण काफी सुंदर नजर आता है। होली के दिन सभी लोग एक दूसरे के गले लगते हैं और एक दूसरे को रंग या गुलाल लगाते हैं।

होली कब मनाई जाती है?

होली का पर्व हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। क्योंकि आज के दिन सभी लोग बहुत ही प्रेम पूर्वक व्यवहार करते हैं। सभी लोग आज के दिन एक दूसरे को बहुत ही प्रसन्नता पूर्वक रंग लगाते हैं और उन से गले मिलते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में होली का दिवस प्रत्येक वर्ष में एक बार मनाया जाता है।

होली का दिवस प्रत्येक वर्ष वसंत ऋतु के समय फाल्गुन माह में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हम यदि अन्य शब्दों में कहें तो यह दिवस मार्च महीने में मनाया जाता है। यह त्यौहार खुशी का त्यौहार माना जाता है।

इस त्यौहार को वसंत ऋतु के समय फाल्गुन मास के अंतिम दिन की होलिका दहन से मनाया जाता है, इस त्यौहार को होलिका दहन से ही शुरू कर दिया जाता है और लोग आपस में गले मिलते हैं और एक दूसरे को रंग लगाते हैं।

Read Also: भीनमाल का इतिहास और दर्शनीय स्थल

2023 होली कब है?

इस वर्ष होली का त्यौहार मार्च माह के 07 और 08 तारीख को मनाया जाने वाला है। इस माह में 07 तारीख की रात्रि को होलिका दहन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी और 08 तारीख की सुबह से ही होली का पर्व मनाया जाने वाला है।

होली के पर्व के संबंध में पौराणिक मान्यता

एक समय की बात है जब इस पूरी धरती पर एक बहुत ही आतंकी असुर राज हिरण्यकश्यप राज करना चाहता था। वह संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ-साथ तीनों लोगों पर भी अपना अधिकार जमाना चाहता था। इसके लिए उसने पृथ्वी वासियों को काफी हद तक डराया और उनसे यह कहता था कि वह ही भगवान है और वह लोगों से अपनी जबरदस्ती पूजा करवाता था।

लोग अपने जीवन की रक्षा में उस अहंकारी असुर की पूजा करते थे। परंतु हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रहलाद था, जो कि इस समय में भक्त प्रहलाद के नाम से प्रसिद्ध है। भक्त प्रहलाद अपने पिता के अहंकार के कारण उनकी कभी भी पूजा नहीं की। भक्त प्रह्लाद ने अपने भगवान के रूप में श्री हरि विष्णु जी को चुना और वह श्री हरि विष्णु जी की ही पूजा अर्चना करता था।

भक्त प्रहलाद की इस अटूट निष्ठा की भक्ति से उसके पिता को बहुत ही गुस्सा आता था। धीरे-धीरे उसके पिता उनसे नफरत करने लगे और वह अपने अहंकार में इतना अंधा हो चुका था कि कई बार तो भक्त प्रहलाद की जान लेने का भी प्रयास किया था, परंतु वह असफल रहा। भक्त प्रहलाद की भक्ति से श्री हरि विष्णु जी बहुत प्रसन्न थे और विष्णु भगवान भक्त प्रहलाद की सदैव रक्षा करते थे।

हिरण्यकश्यप को एक वरदान प्राप्त था, यह वरदान ऐसा था कि “ना तो उसे कोई मानव मार सकता है और ना कोई जानवर, न हीं घर में न हीं बाहर, न ही किसी शस्त्र से और ना ही किसी अस्त्र से, ना इस धरती पर और ना आकाश में, ना ही दिन में और ना ही रात में” अतः उसे ऐसा वरदान प्राप्त होने के कारण कोई भी देवता या असुर कोई भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा था। अपने इसी वरदान के कारण वह किसी से भी नहीं डरता था और बिना सोचे समझे कहीं पर भी आक्रमण कर देता था।

हिरण्यकश्यप भक्त प्रहलाद की जान लेने के अनेक प्रयास किए, परंतु वह सफल रहा। इसके पश्चात उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली, उसकी बहन होलिका को भी ऐसा वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि छू तक नहीं सकती। इसी कारण होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर के जलती चिता में बैठ गई।

जैसा कि हमने आपको बताया कि होलिका को भी वरदान प्राप्त था, परंतु उसे ऐसा वरदान प्राप्त था कि जब वह अकेली होगी, तब उसे ही अग्नि नहीं छू सकती। परंतु होली का तो उस चिता पर भक्त प्रहलाद के साथ बैठी थी, इसीलिए वरदान प्राप्त होने के बावजूद भी वह जल गई और भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु जी के द्वारा बचा लिया गया।

होलिका के जल जाने के उपरांत एक बार फिर से हिरण कश्यप भक्त प्रहलाद की हत्या करने का प्रयास किया, परंतु श्री हरि विष्णु जी ने हिरण्यकश्यप को नरसिंह अवतार धारण करके सभी वरदान के विपरीत उसे अपने घुटनों पर सुलाकर अपने नाखूनों से उसकी हत्या कर दी, इस प्रकार से हिरण्यकश्यप की मृत्यु भी हो गई और को प्राप्त वरदान भी खंडित नहीं हुआ।

इस कहानी के अनुसार होली का पर्व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की मृत्यु के उपलक्ष में मनाया जाता है, इसी कारण होली के त्यौहार के एक रात्रि पहले होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन से यह ज्ञान होता है कि किस प्रकार से अनेकों वर्षों पहले बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। अर्थात होली के दिन को हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन के उपलक्ष में मनाया जाता है।

Read Also

होली में रंग क्यों खेला जाता है?

पुरानी कथाओं के अनुसार हम यह तो जानते हैं कि होलिका का दहन होने के बाद से होली का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन होली के दिन रंग लगाना भी एक अपना अलग महत्व रखता है। होली के दिन रंग खेलने की परंपरा भगवान श्री कृष्ण ने शुरू की थी।

कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण वृंदावन और गोकुल में अपने दोस्तों और गोपियों के साथ रंगों के साथ होली मनाते थे और तब से रंगों के साथ होली के त्योहार को मनाने की परंपरा शुरू हो गई। इसके अलावा होली के दिन रंग लगाना एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करना भी होता है।

एक दूसरे को रंग का टीका लगाकर हम एक दूसरे के प्रति मन के बैर को दूर करते हैं और प्यार से रहने की कोशिश करते हैं। आपका चाहे कितना भी बड़ा दुश्मन क्यों ना होली के दिन उसे रंग से टीका लगाकर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ हैप्पी होली बोल के दुश्मनी को खत्म किया जा सकता है।

होली के रंग

होली के दिन एक दूसरे को रंग लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है‌। पहले के समय में पलाश के पेड़ के फूलों से रंग बनाए जाते थे, जिसे गुलाल के रूप में जाना जाता था। वह रंग त्वचा के लिए बिल्कुल भी हानिकारक नहीं हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ त्योहारों को मनाने के तरीके भी बदल गए, उसी के साथ होली के रंगों में भी काफी बदलाव आ गया।

आज के समय में रंग को बनाने के लिए कड़े रसायन का इस्तेमाल किया जाता है, जो त्वचा को नुकसान करते हैं और कुछ रंग ऐसे होते हैं, जो त्वचा से कई दिनों तक नहीं छूटते। इन्हीं सब कारण से बहुत से लोगों को होली के दिन रंग खेलना पसंद नहीं होता। लेकिन हमें समझना चाहिए कि होली प्यार और उमंग से एक दूसरे के साथ उत्सव मनाने का त्यौहार होता है। इसीलिए होली को सच्ची भावनाओं के साथ खेलना चाहिए।

होली मनाने का तरीका

होली के त्योहार को मनाने की शुरुआत होलिका दहन से होता है। उस दिन लोग अपने आंगन में या फिर घर के बाहर होली का दहन की तैयारी करते हैं, जिसमें वे लकड़ियां और गोबर से बने उपले का इस्तेमाल करते हैं।

इसके अतिरिक्त मकर सक्रांति के दिन का बच गया पतंग भी लोग होलिका दहन में जला देते हैं। लकड़ी और सभी सामग्रियों को इकट्ठा करके तैयार किए गए होलिका पर मूंज की रस्सी डालकर माला बनाई जाती हैं।

होलिका दहन के समय लोग चारों तरफ परिक्रमा भी करते हैं, इसे शुभ माना जाता है। लोग होलिका के चारों तरफ परिक्रमा करते हुए जल चढ़ाते हैं और पूजा करते हैं। होली के दिन सभी के घरों पर खीर, पूरी, मालपुआ जैसे विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनते हैं, जिसका सबसे पहले भोग लगाया जाता है। होलिका का दहन भी मुहूर्त के अनुसार किया जाता है।

होलिका दहन के दूसरे दिन लोग सुबह सुबह अबीर गुलाल खेलने के लिए सफेद कपड़े पहन कर तैयार हो जाते हैं। लोग ढोल बाजा भी बजाते हैं और पारंपरिक संगीत का भी आयोजन होता है। लोग एक जगह पर इक्ट्ठे होते हैं, सभी के सगे संबंधी आते हैं और वे एक दूसरे को टीका लगाकर होली की शुभकामना देते हैं। छोटे बड़ों का पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं और एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं।

वहीँ बच्चे, लोग रंग और पिचकारी लेकर अपने मित्रों को रंग लगाने के लिए दौड़ पड़ते हैं। इस दिन जगह-जगह पर रंग बिरंगे रंगों से रंगे हुए लोगों की टोलियां नाच गान करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

आधुनिक काल में होली

आधुनिक समय में होली मनाने के तरीके काफी बदल चुके हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रयोग होने लगा है, भांग और ठंडाई के जगह पर लोग नशीली चीजों का सेवन करने लगे हैं। पहले जहां लोक संगीत बजाया जाता था, अब फिल्मी गानों का प्रचलन शुरू हो गया है।

हालांकि एक चीज़ अभी भी सामान वह है उमंग और उत्साह, जो आधुनिक समय में भी लोगों में होली के दिन काफी देखने को मिलता है।

होली को सुरक्षा पूर्वक कैसे मनाए?

  • जैसा कि आप सभी जानते हैं होली के पर्व के दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग तथा अबीर लगाते हैं, ऐसे में लोगों को केमिकल युक्त रंगों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • होली के दिन सभी लोगों को प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना चाहिए।
  • हम देखते हैं कि होली के दिन कुछ लोगों को होली पसंद नहीं होता है। लेकिन होली के दिन हम बुरा ना मानो होली है कहकर उसे भी होली लगा देते हैं। लेकिन आप किसी के भावनाओं को ठेस पहुंचाकर होली ना खेले। यदि सामने वाले को रंग खेलने का मन हो तभी उसे रंग लगाए।
  • होली के दिन हम शरारत में आकर जानवरों के ऊपर भी रंग डाल देते हैं। लेकिन हमें समझना चाहिए कि जिस तरीके से केमिकल से बने रंग हमें नुकसान करते हैं वैसे जानवरों को भी नुकसान करता है। इसीलिए जानवरों पर रंग ना लगाएं।
  • होली के दिन आपको ऐसे कपड़े पहनने चाहिए, जिससे कि आपका पूरा शरीर धका हो ताकि यदि कोई व्यक्ति आपको केमिकल युक्त रंग लगाए तो आपकी त्वचा को कम से कम नुकसान हो सके।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि जब हम होली खेल करके शरीर पर लगे हुए रंगों को छुड़ाते हैं तब वह आसानी से नहीं छूटता तो ऐसे में हमें होली खेलते समय अपने शरीर एवं चेहरे पर तेल लगा लेना चाहिए, जिससे कि रंग आसानी से छूट जाए।
  • होली के दिन हमारे बालों को काफी नुकसान होता है, इससे बचने के लिए हमें टोपी इत्यादि का उपयोग करना चाहिए।
  • यदि किसी व्यक्ति को रंगों से एलर्जी है तो उसे केवल एक दूसरे को टीका ही करना चाहिए।
  • हमें होली के दिन यह ध्यान देना चाहिए कि रंग हमारी आंखों या कानो इत्यादि में ना जा सके।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों की होली की विशेषता

भारत के अलग-अलग प्रदेशों में लोग होली के त्योहारों में भिन्नता नजर आता है। मथुरा और वृंदावन में लगभग 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। इस दौरान भक्तों में काफी उमंग और उत्साह देखने को नजर आता है। ब्रज की होली काफी ज्यादा प्रख्यात है।

बरसाने की लठमार होली का तो जवाब ही नहीं, इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं लाठियों और कपड़ों के बनाए गए कोड़ों से उन्हें मारती हैं। सभी जगह होली के दिन शास्त्रीय संगीत चलता है।

बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। महाराष्ट्र के रंगपंचमी में सूखा गुलाल खेलते हैं। वहीं गोवा के शिमगो में जुलूस निकालते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है। वहीं पंजाब की गलियों में सिखों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा होती हैं।

होली के दिन छत्तीसगढ़ में भी काफी अद्भुत होली देखने को मिलता है, वहां पर लोकगीतों की अद्भुत परंपरा चलती है। मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में भी होली को अपने तरीके से बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।

होली केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल में भी काफी धूमधाम से खेली जाती है। वहां पर धार्मिक और सांस्कृतिक का रंग दिखाई देता है। इसके अलावा विभिन्न देशों में बसे भारत के लोग वहां भी होली के रंगों में रंग जाते हैं।

इससे यह समझ में आता है कि होली किसी विशेष जाति या धर्म के लिए ना होकर यह भाईचारा को संबोधित करती है। होली लोगों को एक दूसरे के साथ प्यार और उमंग से रहकर जीवन जीने की सीख देती है।

होली का महत्व क्या है?

होली का महत्व अपने आप में एक बहुत ही विशेष अर्थ रखता है और लोगों को बुराई के खिलाफ लड़ने की ताकत वही देता है, इसीलिए होली के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के नाम से भी जाना जाता है। होली के पर्व से हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि बुराई चाहे कितनी भी भयानक क्यों ना हो, परंतु अंत में सदैव अच्छाई की ही जीत होती है।

FAQ

हिरण्यकश्यप की बहन का नाम क्या था?

हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था।

हिरण्यकश्यप के पुत्र का क्या नाम था?

हिरण्यकश्यप के पुत्र का नाम प्रहलाद था।

हिरण्यकश्यप की पत्नी का नाम क्या था?

हिरण्यकश्यप की पत्नी का नाम कयाधु था।

हिरण्यकश्यप के कितने पुत्र थे?

हिरण्यकश्यप को अपनी पत्नी कयाधु से 4 पुत्र प्राप्त हुए जो ह्लाद, अनुह्लाद, संह्लाद और प्रह्लाद थे।

हिरण्यकश्यप को क्या वरदान मिला था?

हिरण्यकश्यप को एक वरदान प्राप्त था, यह वरदान ऐसा था कि “ना तो उसे कोई मानव मार सकता है और ना कोई जानवर, न हीं घर में न हीं बाहर, न ही किसी शस्त्र से और ना ही किसी अस्त्र से, ना इस धरती पर और ना आकाश में, ना ही दिन में और ना ही रात में” अतः उसे ऐसा वरदान प्राप्त होने के कारण कोई भी देवता या असुर कोई भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा था। अपने इसी वरदान के कारण वह किसी से भी नहीं डरता था और बिना सोचे समझे कहीं पर भी आक्रमण कर देता था।

कयाधु किसकी पुत्री थी?

कयाधु के पिता का नाम जम्भ था।

होली का प्राचीन नाम क्या है?

होली के अन्य नामों में फगुआ, धुलेंडी और दोल आदि शामिल है। लेकिन होली को पहले के समय में होलका या होलिका के नाम से भी जाना जाता था।

होलिका के पिता का नाम क्या था?

होलिका के पिता का नाम “ऋषि कश्यप” था।

होलिका की माता का नाम क्या था?

होलिका की माता का नाम “दिति” था।

होली कौन कौन से देश में मनाई जाती है?

होली भारत सहित बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल मॉरीशस में भी मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय जिस जिस देश में बसे हुए हैं, वहां भी होली मनाते हैं।

होली के पति का नाम क्या था?

एक पौराणिक कथा के अनुसार होलिका एक राजकुमार से प्रेम करती थी जिसका नाम इलोजी था और उसी से होलिका का विवाह होना था।

निष्कर्ष

हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर की गई यह जानकारी होली का महत्व और पौराणिक मान्यता (Holi Kyu Manaya Jata Hai) आपको पसंद आई होगी। आप इसे आगे शेयर जरूर करें ताकि और भी लोग होली के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके। आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

Read Also

Follow TheSimpleHelp at WhatsApp Join Now
Follow TheSimpleHelp at Telegram Join Now
Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

Related Posts

Leave a Comment