Home > Featured > यूक्रेन का इतिहास और रोचक तथ्य

यूक्रेन का इतिहास और रोचक तथ्य

History of Ukraine in Hindi: यूरोप महाद्वीप पर स्थित यूक्रेन जो यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है। सोवियत संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन दुनिया का 46वां सबसे बड़ा देश बना, जिसका क्षेत्रफल 6 लाख वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है। 2014 से शुरू हुआ रूस और यूक्रेन का विवाद आज युद्ध में बदल चुका है।

रूस लगातार इतने सालों से यूक्रेन पर हमला किए जा रहा था, इसने इसके कई हिस्सों पर कब्जा भी किया। रूस और यूक्रेन के विवाद ने सभी का ध्यान यूक्रेन देश के तरफ खींचा है, जिसके कारण आज हर कोई यूक्रेन के बारे में जानना चाहता है।

History of Ukraine in Hindi
Image: History of Ukraine in Hindi

क्योंकि रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन को एक फर्जी देश के रूप में वर्णित किया था, जिनके अनुसार यूक्रेन का कोई इतिहास नहीं है ना इसका कोई पहचान है। यूक्रेन पूरी तरीके से रूस के द्वारा बनाया गया देश है।

इसीलिए आज का यह हम लेख लेकर आए हैं, जिसमें हम आपको यूक्रेन के इतिहास से जुड़ी रोचक तथ्य और यूक्रेन और अमेरिका के बीच हुए विवाद के कारण के बारे में बताएंगे तो लेख को अंत तक जरूर पढ़े।

यूक्रेन का इतिहास और रोचक तथ्य | History of Ukraine in Hindi

यूक्रेन का भूगोल

यूक्रेन यूरोप महाद्वीप में रूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है, यूरोप के पूर्व में स्थित है। इसके पूर्व में रूस आता है, वहीँ उसके उत्तर पश्चिम में बेलारूस देश आता है। इसके दक्षिण पूर्व में काला सागर है।

इसकी सीमा यूक्रेन मोल्दोवा, रोमानिया, हंगरी, स्लोवाकिया, पोलैंड और बेलारूस के साथ जुड़ी है। 1991 तक यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। खेती के मामले में योगदान विश्व में तीसरे स्थान पर आता है।

यूक्रेन के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  • यूक्रेन की कुल जनसंख्या में 77.8 प्रतिशत लोग मूल ग्रामवासी है, वहीँ शेष प्रतिशत अन्य देशों से आकर बसे लोग हैं।
  • यूक्रेन जब सोवियत संघ का हिस्सा था तब रूस ने यूक्रेन में काफी विकास किया था। उस समय रूस बड़े-बड़े पानी के जहाज और सैन्य हथियार यूक्रेन में हीं बनाया करता था।
  • यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी शहरों में सबसे अधिक रूसी भाषा बोली जाती है।
  • यूक्रेन की सात जगह वर्ल्ड हेरिटेज साइट लिस्ट में आती है। इस तरह यूक्रेन ऐतिहासिक धरोहर का देश भी है।
  • यूक्रेन में एक रेलवे लाइन है, जिसका नाम टनल ऑफ लव है, जो क्लेवन स्टेशन से शुरू होती है और ओरझिव के उत्तरी भाग तक जाती है। यह रेलवे स्टेशन यूक्रेन के सबसे पसंदीदा और प्यारी जगहों में से एक है।
  • साल 1922 को यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा बना था।
  • यूक्रेन की कुल जनसंख्या 42.5 मिलियन के लगभग है।
  • यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है।
  • यूक्रेन साल 1991, 24 अगस्त को सोवियत संघ से अलग हो गया।
  • यूक्रेन में कई सारे शहर घूमने लायक है, जिसमें कीवी शहर यूक्रेन का सबसे बड़ा शहर है और इसकी जनसंख्या भी काफी है। इसकी स्थापना सन् 1600 में हुई थी। यह शहर आर्थिक, राजनीतिक और संस्कृत का प्रमुख केंद्र है।
  • यूक्रेन की आधिकारिक भाषा यूक्रेनी है। यूक्रेन के पश्चिमी मध्य शहरों में और ग्रामीण इलाकों में यही भाषा बोली जाती है।
  • Vyshyvanka यूक्रेन का राष्ट्रीय पोशाक है, जो फूलों और अद्भुत कढ़ाई काम के कारण काफी अलग दिखता है। यह एक सादा सफेद शर्ट जैसी ड्रेस होती है, जिसे स्त्री और पुरुष दोनों ही पहन सकते हैं।

यह भी पढ़े: यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की का जीवन परिचय

यूक्रेन का इतिहास और रूस और यूक्रेन के बीच का विवाद

रूस और यूक्रेन के बीच विवाद का कारण जाने से पहले यूक्रेन के बारे में सब कुछ जानते हैं। दरअसल यूक्रेन 1991 से पहले सोवियत संघ का सदस्य था। सोवियत संघ की स्थापना 1922 में हुई थी, जो 15 छोटे छोटे देश से मिलकर बना था और यह सबसे बड़ा देश का निर्माण किया था।

1922 में यूक्रेन भी सोवियत संघ में शामिल हुआ था। दरअसल सोवियत संघ की स्थापना 1917 में रूस के सम्राट जिन्हें जार कहा जाता था, जो न्यूकोलस द्वितीय थे। उनके विरोध में बोल्शेविक क्रांति हुई थी, जिसके नायक लेनिन थे। लेनिन ने ही एक संगठन बनाया, जिसका नाम सोवियत संघ रखा।

लेनिन ने 15 स्वतंत्र गन राज्यों को मिलाकर यह एक संघ का निर्माण किया था, जिसमें यूक्रेन सहित रूस, जॉर्जिया, मोल्दोवा, बेलारूस, आर्मीनिया, यूक्रेन, अजरबैजान, कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगिजस्तान, ताजिकिस्तान, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया शामिल थे।

1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद जोसेफ स्टालिन ने सोवियत संघ के सत्ता की बागडोर संभाली। इन्होंने अपने शासनकाल में सोवियत संघ में बड़े पैमाने पर औद्योगिकरण की शुरुआत की। इन्होंने एक केंद्रीय आर्थिक व्यवस्था बनाई। कृषि, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम पदार्थ और अन्य कारोबारो को मिलाकर एक ग्रुप बनाया।

उस समय किसानों की खेती उनकी निजी संपत्ति ना होकर राष्ट्र की संपत्ति बन गई। कहा जाता है कि स्टालिन ने अपने शासनकाल में साम्यवादी पार्टी के सदस्यों, नेताओं और सोवियत संघ के समुदायों पर अत्याचार भी किया।

सोवियत संघ का विघटन

जोसेफ स्टालिन के शासनकाल में सोवियत संघ में कठोर प्रशासनिक प्रणाली लागू हुई, जिसने साम्यवादी शासन की कमजोरियों को उजागर करना शुरू कर दिया। इसका असर यह हुआ कि पूर्वी यूरोप के उन देशों में जहां पर साम्यवादी सरकार थी, वहां की जनता अपनी राजनीतिक और आर्थिक संरचना से नाराज होने लगी।

फिर पूर्वी यूरोपीय देशों के जनता में अपने सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ने लगा, जिसने जन विद्रोह का रूप ले लिया और यही कारण था कि सोवियत संघ विघटन के कगार पर आ गया।

उसके बाद 11 मार्च 1950 को गोर्बाच्योव ने सोवियत संघ का नेतृत्व ग्रहण किया। इसने रूस की आर्थिक दशा और साम्यवाद को सकारात्मक दृष्टि से मजबूत बनाने के लिए कई सारी नीतियां बनाई और उसके द्वारा बनाई गई नीतियों के कारण सोवियत संघ की केंद्रीय सत्ता कमजोर होने लगी।

ऐसे में सोवियत संघ में केंद्र के विरूद्ध संघर्ष करने वाली शक्तियों के हौसले बढ़ते गए। गोर्बाचेव की तथाकथित जनतांत्रिक नीतियों ने गणराज्यों के सोवियत संघ से अलग होने को मान्यता दे दी। जिसे देखते ही देखते एक-एक करके सोवियत संघ के गणराज्य स्वतंत्र होते गए। अंतः 19 अगस्त 1991 को सोवियत संघ पूरी तरीके से विघटित हो गया।

यूक्रेन और रूस के बीच शुरू हुआ विवाद

सोवियत संघ का 1991 में विघटन होने के बाद 1991 से लेकर 2014 तक यूक्रेन में सब कुछ ठीक था। लेकिन समस्या तब से उत्पन्न हुई जब विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बने। वे रूस के समर्थक थे। उनसे यूक्रेन को यूरोपीय यूनियन में शामिल ना होने के लिए रूस की ओर से कहा जा रहा था।

क्योंकि अमेरिका की एक चाल है कि यूरोपीय यूनियन में शामिल देशों को नाटो का सदस्य बना लिया जाता है और नाटो के जितने भी सदस्य होते हैं, उनमें से किसी भी एक सदस्य देश पर अगर तीसरा देश हमला करता है तो उसके देश पर नाटो के सभी सदस्य देश मिलकर उस पर वार करते हैं।

नाटो में सभी खतरनाक और शक्तिशाली देश शामिल है, इसमें ज्यादातर यूरोप और अमेरिका के देश शामिल है। लेकिन यूक्रेन की जनता यूरोपीय यूनियन में शामिल होना चाहती थी फिर अंत में रूस के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने अंतिम निर्णय लिया कि वह यूरोपीय यूनियन में यूक्रेन को शामिल नहीं करेगा, जिसके बाद यूक्रेन की जनता ने उसके विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया जिसके बाद 2014 में वह भागकर रूस चला गया।

इसके बाद फिर यूक्रेन में नई सरकार आई, जिसने यूक्रेन को यूरोपीय यूनियन में शामिल करने की हामी भर दी। जिससे रूस नाराज हो गया और फिर उसने यूक्रेन का निचला भाग जो क्रीमिया कहलाता है, उस पर अपने सैनिकों को भेज कर कब्जा कर लिया। उस समय पूरी दुनिया देखती रह गई। रूस के खिलाफ किसी ने कुछ भी नहीं किया।

यूक्रेन के क्रीमिया भाग पर कब्जा के कारण काला सागर पूरी तरीके से रूस के वर्चस्व में आ गया। हालांकि पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रही थी। दुनिया के आठ शक्तिशाली अर्थव्यवस्था वाले देश जिसे g8 कहा जाता है, जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली ,जापान, रूस, अमेरिका और कनाडा शामिल है।

इन सभी ने इस ग्रुप से 2014 में रूस को बाहर निकाल दिया। जिसके बाद रूस और यूक्रेन में लगातार तनाव जारी रहा। इन दोनों देशों के टकराव को रोकने और उन में शांति कायम करने के लिए फ्रांस और जर्मनी ने 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में दोनों के बीच शांति और संघर्ष विराम का समझौता कराया।

इसमें यूक्रेन ने भी कहा कि वह इस बात का ध्यान रखेगा कि यूरोप और अमेरिका का प्रभाव रुस में ना बन पाए। लेकिन गड़बड़ तब हो गई जब साल 2017 में यूक्रेन ने नाटो ज्वाइन करने का निर्णय लिया। नाटो का फुल फॉर्म North Atlantic Treaty Organization हैं, जिसकी स्थापना 1949 में हुई थी। वर्तमान में 30 देश नाटो में शामिल है और यह सभी देश शक्तिशाली और खतरनाक है।

लेकिन यूक्रेन का नाटो में शामिल होना रूस को गवारा ना था। क्योंकि नाटो के आर्टिकल 5 के अनुसार इसमें शामिल देशों में किसी भी देश पर यदि तीसरा देश हमला करता है तो ये सभी देश मिलकर उस तीसरे देश पर हमला करेंगे। ऐसे में यदि यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता है तो अमेरिका की सेना यूक्रेन में आसानी से आ सकती है।

यहां तक कि नाटो में शामिल सभी देशों की सेना यूक्रेन में आ सकती है, उसका साथ मिल सकता है। जिससे वे रूस के कमजोरी का फायदा उठा सकते हैं और यदि अमेरिका ने भी एक गोली यूक्रेन पर चलाई तो इसके बदले में रूस भी उस पर वार करेगा और यदि रूस वार करता है तो नाटो के सभी देश इस पर एक साथ वार करेंगे, जिससे रूस का तो काम तमाम हो जाएगा।

यही विवाद रूस और यूक्रेन के युद्ध का है। हालांकि यह सारा विवाद अमेरिका और नाटो का फैलाया गया है। लेकिन भुगत रहा है बेचारा यूक्रेन। हालांकि रूस की भी गलती नहीं है। क्योंकि हर देश अपने राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखता है। ऐसे में वह इस बात को सहन तो नहीं कर सकता कि यूक्रेन में उसके पड़ोसी देश जो रूस के दुश्मन है, उनका साथ मिले।

इसीलिए यूक्रेन को सबक सिखाने के लिए रूस ने सबसे पहले 2014 में यूक्रेन की क्रीमिया को हड़प लिया, जिसके कारण काला सागर पर भी पूरी तरीके से रूस का वर्चस्व स्थापित हो गया।

History of Ukraine in Hindi

यह भी पढ़े: रूस का इतिहास और रोचक तथ्य

यूक्रेन के 2 शहरों पर रूस का शासन

रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रांत में वर्चस्व स्थापित करने के बाद यूक्रेन के दो शहर luhansk और Donetsk में विद्रोहियों को खड़ा किया और वहां पर अपने सैनिकों को भेजकर उन दोनों शहरों को स्वतंत्र देश के रूप में घोषित कर दिया। वहां पर उसने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री खड़ा करके उनके द्वारा यूनो को सैन्य शक्ति की मदद के लिए लेटर भिजवा दिया, जिससे सैन्य शक्ति की मदद मिलने के बाद उसने यूक्रेन पर हमला कर दिया।

यूक्रेन को क्यों नहीं मिल रहा UNO का साथ?

सवाल यह भी उठता है कि जब रूस यूक्रेन के 2 शहरों पर हमला किया तो फिर UNO इसकी मदद क्यों नहीं कर रहा? बता दें कि UNO अमेरिका का एक कठपुतली बन चुका है, वह स्वयं से कुछ एक्शन लेता ही नहीं है। UNO का आर्टिकल सात इस बात की मान्यता देता है कि यदि किसी देश का कोई भाग स्वतंत्र होना चाहता है तो वह किसी अन्य देश की मदद लेकर उस देश से स्वतंत्र हो सकता है।

ऐसे में रूस ने भी यह चाल चला। उसने UNO के आर्टिकल सात का फायदा उठाया। उसने सबसे पहले तो यूक्रेन के दो शहर luhansk और dinestsk को पहले से ही कब्जा कर लिया था और वहां पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बना दिया, जिन्होंने यूएनओ को सैन्य शक्ति की मदद के लिए लेटर लिखा और फिर यूएनओ ने उसे सैन्य मदद दी, जिस ने यूक्रेन पर हमला किया।

ऐसे में रूस उसे युद्ध नहीं बताता है, उसे वह स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन कहता है। यही कारण है कि यूक्रेन की कोई मदद नहीं कर रहा। यही चालबाजी अमेरिका ने लीबिया, वियतनाम और कोरिया के ऊपर हमला करते समय में भी किया था। ऐसे में जब अमेरिका गलत नहीं था तो रूस कैसे गलत हो सकता है।

तालिबानी ने जब अफगानिस्तान पर हमला किया तब भी UNO ने कोई एक्शन नहीं लिया। इस तरह UNO नाम के लिए एक संगठन बनाया गया है लेकिन यह किसी भी तरह का मदद नहीं कर पाता। यही कारण है कि यूक्रेन को यूनो का कोई मदद नहीं मिल पा रहा।

FAQ

यूक्रेन रूस के सामने क्यों कमजोर पड़ जाता है?

यूक्रेन का रुस के सामने कमजोर पड़ जाने का कारण उसकी सैन्य शक्ति है। रूस की सैन्य शक्ति यूक्रेन के सामने काफी मजबूत है। जहां रूस के पास 8 लाख से भी ज्यादा सैनिक है, वहीँ यूक्रेन के पास मात्र दो लाख ही सैनिक है। रूस के पास 772 फाइटर जेट है जबकि यूक्रेन के पास सिर्फ 69 ही फाइटर जेट है। रूस की एयरफोर्स, ग्लोबलफायर पावर डॉट कॉम की सूची में दूसरे स्थान पर आता है, वहीँ यूक्रेन 31वें स्थान पर आता है।

यूक्रेन की राजधानी क्या है?

यूक्रेन की राजधानी कीवी है।

यूक्रेन की भाषा क्या है?

यूक्रेन की आधिकारिक भाषा यूक्रेनी है। हालांकि वहां पर रूसी भाषा भी बोली जाती है।

यूक्रेन सोवियत संघ से कब अलग हुआ?

यूक्रेन 24 अगस्त 1991 को सोवियत संघ से अलग हुआ।

निष्कर्ष

आज के लेख में हमने आपको यूक्रेन के बारे में बताया। अभी रूस और यूक्रेन के बीच का विवाद युद्ध में बदल चुका है। इस लेख से आपको यूक्रेन और रूस के बीच शुरू हुए विवाद का कारण भी पता चला होगा। साथ ही यूक्रेन के इतिहास के बारे में भी आपको जानने को मिला होगा।

हमें उम्मीद है कि आपको यह लेख यूक्रेन का इतिहास और रोचक तथ्य (History of Ukraine in Hindi) अच्छा लगा होगा। यदि लेख से संबंधित कोई भी समस्या हो तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं।

यह भी पढ़े

व्लादिमीर पुतिन का जीवन परिचय

जो बिडेन का जीवन परिचय

नेपाल का इतिहास और रोचक तथ्य

राजस्थान का इतिहास और रोचक तथ्य

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

Related Posts

Leave a Comment