Gareebi Shayari in Hindi
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गरीबी पर शायरी | Gareebi Shayari in Hindi
गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है, इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है। चेहरे कई बेनकाब हो जायेंगे , ऐसी कोई बात ना पूछो तो अच्छा है।
फ़ेक रहे तुम खाना क्योंकि, आज रोटी थोड़ी सूखी है, थोड़ी इज्ज़त से फेंकना साहेब, मेरी बेटी कल से भूखी है।
ये गंदगी तो महल वालों ने फैलाई है साहब, वरना गरीब तो सड़कों से थैलीयाँ तक उठा लेते हैं
राहों में कांटे थे फिर भी वो चलना सीख गया, वो गरीब का बच्चा था हर दर्द में जीना सीख गया।
मरहम लगा सको तो किसी गरीब के जख्मों पर लगा देना , हकीम बहुत हैं बाजार में अमीरों के इलाज खातिर।
इसे नसीहत कहूँ या जुबानी चोट साहब एक शख्स कह गया गरीब मोहब्बत नहीं करते
साथ सभी ने छोड़ दिया, लेकिन ऐ-गरीबी, तू इतनी वफ़ादार कैसे निकली।
शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता है वो मजदूर, जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है
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घर में चुल्हा जल सकें इसलिए कड़ी धूप में जलते देखा है, हाँ मैंने ग़रीब की साँसों को भी गुब्बारों में बिक़ते देखा है।
बहुत जल्दी सीख लेता हूँ जिंदगी का सबक गरीब बच्चा हूँ बात-बात पर जिद नहीं करता
गरीबी की भी क्या खूब हँसी उड़ायी जाती है, एक रोटी देकर 100 तस्वीर खिंचवाई जाती है।
भूख ने निचोड़ कर रख दिया है जिन्हें , उनके तो हालात ना पूछो तो अच्छा है। मज़बूरी में जिनकी लाज लगी दांव पर , क्या लाई सौगात ना पूछो तो अच्छा है।
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भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों पर गरीबी कान छिदवाती है तिनके डाल देती है
थोड़े से लिबास में ख़ुश रहने का हुनर रखते हैं, हम गरीब हैं साहब, अलमारी में तो खुद को कैद करते हैं।
Gareebi Shayari in Hindi
घर में चूल्हा जल सके इसलिए कड़ी धूप में जलते देखा है , हाँ मैंने गरीब की सांस को गुब्बारों में बिकते देखा है।
अमीरी का हिसाब तो दिल देख के कीजिये साहब वरना गरीबी तो कपड़ो से ही झलक जाती है
खुले आसमां के नीचे सोकर भी अच्छे सपने पा लेते है, हम गरीब है साहेब थोड़े सब्जी में भी 4 रोटी खा लेते है।
गरीब लहरों पे पहरे बैठाय जाते हैं , समंदर की तलाशी कोई नही लेता।
सुला दिया माँ ने भूखे बच्चे को ये कहकर, परियां आएंगी सपनों में रोटियां लेकर।
तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है दुपट्टा फटा हुआ है मगर उनके सर पे है
रजाई की रूत गरीबी के आँगन दस्तक देती है, जेब गर्म रखने वाले ठंड से नही मरते।
खिलौना समझ कर खेलते जो रिश्तों से , उनके निजी जज्बात ना पूछो तो अच्छा है। बाढ़ के पानी में बह गए छप्पर जिनके , कैसे गुजारी रात ना पूछो तो अच्छा है।
अमीर की बेटी पार्लर में जितना दे आती है उतने में गरीब की बेटी अपने ससुराल चली जाती है
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हर गरीब की थाली में खाना है, अरे हाँ ! लगता है यह चुनाव का आना है।
ऐ सियासत… तूने भी इस दौर में कमाल कर दिया, गरीबों को गरीब अमीरों को माला-माल कर दिया।
खुदा के दिल को भी सुकून आता होगा, जब कोई गरीब चेहरा मुस्कुराता होगा।
वो जिनके हाथ में हर वक्त छाले रहते हैं, आबाद उन्हीं के दम पर महल वाले रहते हैं
कतार बड़ी लम्बी थी, के सुबह से रात हो गयी, ये दो वक़्त की रोटी आज फिर मेरा अधूरा ख्वाब हो गयी।
जब भी देखता हूँ किसी गरीब को हँसते हुए, यकीनन खुशिओं का ताल्लुक दौलत से नहीं होता।
बहुत जल्दी सीख लेते हैं, ज़िन्दगी के सबक, गरीब के बच्चे बात बात पर जिद नहीं करते।
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रोज़ शाम मैदान में बैठ ये कहतें हुए एक बच्चा रोता है, हम गरीब है इसलिए हम गरीब का कोई दोस्त नही होता है।
एक ज़िंदगी सड़कों पर, एक महलों में बसर करती है, कोई बेफिक्र सोता है कहीं मुश्किल से गुज़र होती है।
कैसे बनेगा अमीर वो हिसाब का कच्चा भिखारी, एक सिक्के के बदले जो बीस किमती दुआ देता हैं।
Gareebi Shayari in Hindi
घटाएं आ चुकी हैं आसमां पे… और दिन सुहाने हैं मेरी मजबूरी तो देखो मुझे बारिश में भी काग़ज़ कमाने हैं
कही बेहतर है तेरी अमीरी से मुफसिली मेरी। चंद सिक्के के ख़ातिर तू ने क्या नहीं खोया हैं। माना नहीं है मखमल का बिछौना मेरे पास। पर तू ये बता कितनी राते चैन से सोया है।
ड़ोली चाहे अमीर के घर से उठे चाहे गरीब के चौखट एक बाप की ही सूनी होती है
बात मरने की भी हो तो कोई तौर नहीं देखता, गरीब, गरीबी के सिवा कोई दौर नहीं देखता।
उन घरो में जहाँ मिट्टी कि घड़े रखते हैं। कद में छोटे मगर लोग बड़े रखते हैं।
मैं कई चूल्हे की आग से भूखा उठा हूँ, ऐ रोटी अपना पता बता, तू जहाँ बर्बाद होती हैं।
ठहर जाओ भीड़ बहुत है, तुम गरीब हो कुचल दिए जाओगे।
ना जाने मेरा मज़हब क्या है । ना हिंदू हु ना मुसलमान लोग मुझे गरीब कहते हैं
वो राम की खिचड़ी भी खाता है, रहीम की खीर भी खाता है वो भूखा है जनाब उसे कहाँ मजहब समझ आता है
मेरे हिस्से की रोटी सीधा मुझे दे दे ऐ खुदा, तेरे बंदे तो बड़ा ज़लील करके देते हैं।
गरीब नहीं जानता क्या है मज़हब उसका जो बुझाए पेट की आग वही है रब उसका
ग़रीब सियासत का सबसे पसंदीदा खिलौना है, उसे हर बार मुद्दा बनाया जाता है हुकूमत के लिए।
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अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भी, जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है
खाली पेट सोने का दर्द क्या होता मुझे नही पता, ना जाने जूठन खा के वो बच्चे कैसे बड़े हो जाते।
मैं क्या महोब्बत करूं किसी से, मैं तो गरीब हूँ लोग अक्सर बिकते हैं, और खरीदना मेरे बस में नहीं
वो तो कहो मौत सबको आती है वरना, अमीर लोग कहते गरीब था इसलिए मर गया।
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वो रोज रोज नहीं जलता साहब , मंदिर का दिया थोड़े ही है गरीब का चूल्हा है।
कभी निराशा कभी प्यास है कभी भूख उपवास, कुछ सपनें भी फुटपाथों पे पलते लेकर आस।
कभी आँसू तो कभी खुशी बेचीं , हम गरीबों ने बेकसी बेची। चंद सांसे खरीदने के लिए , रोज़ थोड़ी सी जिंदगी बेचीं।
गरीबी लड़तीं रही रात भर सर्द हवाओं से, अमीरी बोली वाह क्या मौसम आया है।
Gareebi Shayari in Hindi
दोपहर तक बिक गया बाजार का हर एक झूठ , और एक गरीब सच लेकर शाम तक बैठा ही रहा।
गरीबी का आलम कुछ इस कदर छाया है, आज अपना ही दूर होता नजर आया है।
गरीबी बन गई तश्हीर का सबब “आमिर” , जिसे भी देखो हमारी मिसाल देता है। जब भी मुझे जियारत करनी होती है , मै गरीब लोगो में बैठ आता हूं।
कभी जात कभी समाज तो कभी औकात ने लुटा, इश्क़ किसी बदनसीब गरीब की आबरू हो जैसे।
जनाजा बहुत भारी था उस गरीब का, शायद सारे अरमान साथ लिए जा रहा था।
जो छिप गए थे चंद रोज़ की ज़िंदगी कमाने, मौत ने ढूँढ लिया उनको मुफ़्लिसी के बहाने।
यहाँ गरीब को मरने की इसलिए भी जल्दी है साहब, कहीं जिन्दगी की कशमकश में कफ़न महँगा ना हो जाए।
अजीब सा जादुई नशा होता है गरीब की कमाई में, जिसकी रोटी खाकर पथरीले रास्तों पर भी सुकून की नींद आ जाती है।
सहम उठते हैं कच्चे मकान पानी के खौफ से। महलोंं कि आरजू ये हैं कि बरसात तेज हो।
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बिना किसी गाने के रेल के इंजन की धुन पर नाचते हैं, पटरी किनारे बस्ती में बच्चे अब भी मुस्कराना जानते हैं।
कैसे मुहब्बत करु बहुत गरीब हूँ साहब। लोग बिकते हैं और मैं खरीद नहीं पाता।
नये कपड़े, मिठाईयाँ गरीब कहाँ लेते है, तालाब में चाँद देखकर ईद मना लेते है।
चेहरा बता रहा था कि मारा हैं भूख ने। सक कर रहे थे के कुछ खा के मर गया।
अमीरी पीना सिखाती है, गरीबी जीना सिखाती है, कभी घाव हो जाए,तो कविता सीना सिखाती है।
जो गरीबी में एक दिया भी न जला सका। एक अमीर का पटाखा उसका घर जला गया।
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बना के ताजमहल एक दौलतमंद आशिक ने गरीबों की मोहब्बत का तमाशा कर दिया।
गरीबों के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में। तभी तो भगवान खुद बिक जाते हैं बजारो में।
रजाई की रुत गरीबी के आँगन में दस्तक देती है , जेब गरम रखने वाले ठण्ड से नहीं मरते।
पेट की भूख ने जिंदगी के , हर एक रंग दिखा दिए। जो अपना बोझ उठा ना पाये , पेट की भूख ने पत्थर उठवा दिए।
Gareebi Shayari in Hindi
एै मौत ज़रा पहले आना गरीब के घर , कफ़न का खर्च दवाओं में निकल जाता है।
छीन लेता हैं हर चीज़ मुझसे ये खुदा। क्या तू मुझसे भी ज्यादा गरीब हैं।
बहुत जल्दी सिख लेता हूँ ज़िन्दगी का सबक। गरीब बच्चा हूँ बात बात पर जिद्द नहीं करता।
हमने कुछ ऐसे भी गरीब देखे हैं , जिनके पास पैसों के अलावा कुछ भी नहीं।
क्या किस्मत पाई है रोटीयो ने भी निवाला बनकर, रहिसो ने आधी फेंक दी, गरीब ने आधी में जिंदगी गुज़ार दी।
जरा सी आहट पर जाग जाता है वो रातो को। ऐ खुदा गरीब को बेटी दे तो दरवाजा भी दे।
यहा गरीब को मरने की जल्दी यूँ भी हैं। के कही कफन महंगा ना हो जाए।
बस एक बात का मतलब आज तक समझ नहीं आया। जो गरीब के हक के लिए लड़ते हैं वो अमिर कैसे बन जाते हैं।
यूँ गरीब कह कर खुद की तौहीन ना कर ऐ बंदे। गरीब तो वो लोग हैं जिनके पास ईमान नहीं है।
कभी कपड़े के तन पर अजीब लगती हैं। अमीर बाप की बेटी गरीब लगती हैं।
किस्मत को खराब बोलने वालो । कभी किसी गरीब के पास बैठ के पुछना जिंदगी क्या हैं।
अमीर के छत पे बैठा कव्वा भी मोर लगता हैं। गरीब का भुखा बच्चा भी चोर लगता हैं।
यू न झाँका करो किसी गरीब के दिल में। के वहा हसरतें वेलिबास रहा करती है।
अ़शक उनकी आँखों के करीब होते हैं। रिश्ते दर्द के जिसको होते हैं। दौलत अपने दिल की लुटा दी है जिसने। कोई कहते हैं कि वो गरीब होते हैं।
सर्दी, गर्मी, बरसात और तूफ़ान मैं झेलता हूँ, गरीब हूँ… खुश होकर जिंदगी का हर खेल खेलता हूँ।
तुम रूठ गये थे जिस उम्र में खिलौना न पाकर, वो ऊब गया था उस उम्र में पैसा कमा-कमा कर।
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हे ईश्वर तुमने जिन्दगी इतनी जटिल क्यु बनाई, कि गरीब दो वक्त के रोती के लिए तरस रहे हैं…….!!
कभी आंसू कभी ख़ुशी बेची, हम गरीबों ने दुःख बेची, चंद भर सांसे खरीदने के लिए रोज थोड़ी-थोड़ी सी जिन्दगी बेची…….!!
अमीरों के शहर में ही गरीबी दिखती है, छोड़ दो ऐसा शहर जहाँ हवा बिकती है।
गरीबी का एहसास जब दिल में उतर जाता है, गरीब का बच्चा जिद करना भी भूल जाता है।
यूँ गरीब कहकर खुद की तौहीन ना कर ए बदें , गरीब तो वो लोग है जिनके पास ईमान नही।
Gareebi Shayari in Hindi
भूख से बिलखते हुए वो फिर नहीं सोया , एक और रात भारी पड़ी गरीबी पर।
अमीर लोग तो साहब सपने देखे है raat को, हम गरीब तो अपने बच्चों के भूखे चेहरे देखते हैं…….!!
इस कम्बख़्त मौत ने सारा फासला ही मिटा दिया, एक अमीर को लाकर गरीब के पास ही लिटा दिया………!!
अब मैं हर मौसम में खुद को ढाल लेता हूँ, छोटू हूँ… पर अब मैं बड़ो का पेट पाल लेता हूँ।
भूखे की थाली में भी अनाज होना चाहिए, साहब !!! गरीबों के लिए भी जिहाद होना चाहिए।
मैंने टूट कर रोते देखा नसीब को, जब मुस्कुराते देखा मासूम गरीब को।
गरीबो को गले लगाता कौन है, उनके दर्द में आँसू बहाता कौन है , उनकी मौत पर सियासत छिड़ जाती है, उनके जीते जी इज्जत दिलाता कौन है।
दिमागी रूप से जो गरीब हो जाते है, वही गरीबों का मजाक उड़ाते है।
उसकी गरीबी और भूख का कोई अंदाजा तो लगाएं, उसकी पीठ आतों से जाकर सटी हुई है।
उसने यह सोच कर अलविदा कह दिया। गरीब लोग हैं मुहब्बत के सिवा क्या देंगे।
मोहब्बत भी सरकारी नौकरी लगती हैं साहब, किसी गरीब को मिलती ही नहीं।
हम गरीब लोग है किसी को मोहब्बत के सिवा क्या देंगे , एक मुस्कराहट थी, वह भी बेवफ़ा लोगो ने छीन ली।
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