Tulsidas ke Dohe in Hindi: गोस्वामी तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य के महान कवि थे और इन्होनें श्री रामचरितमानस की रचियता की। तुलसीदास जी भारत ही नहीं विश्व के महान साहित्यिक कवियों में जाने जाते थे। ये भगवान राम की भक्ति के लिए मशहूर थे और श्रीरामचरितमानस महाकाव्य के लेखक के रूप में भी जाने जाते है।
आज हम आपको इस पोस्ट में तुलसीदास जी की दोहावली (Tulsi Dohawali) के सफलता की राह दिखाते हैं गोस्वामी तुलसीदास के दोहे और अर्थ बताने जा रहे है। यह दोहे (Tulsidas ke Dohe) आपके जीवन में सकरात्मक ऊर्जा को प्रवाहित करेंगे और साथ ही यह दोहे आपके जीवन को प्रेरणा से भरने में भी सहायक होंगे। तो आइये जानते है तुलसीदास जी के दोहे (Tulsidas Ji ke Dohe Hindi) सार सहित विस्तार से।
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तुलसीदास जी के दोहे | Tulsidas ke Dohe in Hindi
Tulsidas ke Dohe in Hindi (तुलसीदास के दोहे इन हिंदी)
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।
तुलसीदास जी कहते है कि जो मेरा शरीर है पूरा चमड़े से बना हुआ है जो कि नश्वर है। फिर इस चमड़े से इतना मोह छोड़कर राम नाम में अपना ध्यान लगाते तो आज भवसागर से पार हो जाते।
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये जब तक घट में प्राण।।
तुलसी दास जी कहते है कि धर्म दया भावना से उत्पन होता है और अभिमान जो की सिर्फ पाप को ही जन्म देता है। जब तक मनुष्य के शरीर में प्राण रहते है तब तक मनुष्य को दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
tulsidas ke dohe class 10
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहूँ जौं चाहसि उजिआर।।
तुलसीदास जी कहते है कि हे मनुष्य यदि तुम अपने अन्दर और बाहर दोनों तरफ उजाला चाहते हो तो अपनी मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज पर राम नाम रूपी मणिदीप को रखो।
लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।
तुलसी दास जी इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जब बारिश का मौसम होता है तो मेढ़कों के टर्राने की आवाज इतनी तेज हो जाती है कि उसके सामने कोयल की भी आवाज कम लगने लगती है। अर्थात् उस कोलाहल में दब जाती है और कोयल मौन हो जाती है। इसी प्रकार जब मेढ़क जैसे कपटपूर्ण लोग अधिक बोलने लग जाते हैं, तब समझदार लोग अपना मौन धारण कर लेते हैं। वो अपनी ऊर्जा को व्यर्थ नहीं करता।
(तुलसीदास के दोहे रामचरितमानस) tulsidas ke dohe in hindi ramcharitmanas
सरनागत कहूं जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावंर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।।
जो व्यक्ति अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते है वे क्षुद्र और पापमय होते है। इनको देखना भी सही नहीं होता है।
Dohas of Tulsidas in Hindi
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
तुलसीदास जी कहते है कि जब तक किसी भी व्यक्ति के मन कामवासना की भावना, लालच, गुस्सा और अहंकार से भरा रहता है तब तक उस व्यक्ति और ज्ञानी में कोई अंतर नहीं होता दोनों ही एक समान ही होते है।
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तुलसीदास के दोहे का अर्थ
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और।
बसीकरण इक मन्त्र हैं परिहरू बचन कठोर।।
तुलसीदास जी कहते है कि मीठे वचन सही ओर सुख को उत्पन करते है ये सभी और सुख ही फैलाते है। तुलसीदास जी कहते है कि मीठे वचन किसी को अपने वस में करने के अच्छा मन्त्र है। इसलिए सभी लोगों को कठोर वचन को त्यागकर मीठे वचन अपनाने चाहिये।
तुलसीदास के दोहे हिंदी में
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।
तुलसी दास जी कहते है कि शूरवीर तो युद्ध के मैदान में वीरता का काम करते है कहकर अपने को नहीं जानते। शत्रु को युद्ध में देखकर कायर ही अपने प्रताप को डींग मारा करते है।
सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं।
धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी।।
इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि सुख के समय मुर्ख व्यक्ति बहुत ज्यादा खुश हो जाते हैं और दुःख के समय रोने और बिलखने लग जाते हैं। धैर्यवान व्यक्ति चाहे सुख हो या फिर दुःख हर समय उनका व्यवहार अच्छा और एक समान ही रखते हैं। जबकि धैर्यवान लोग बूरे समय का डटकर सामना करते हैं।
तुलसीदास के दोहे सुनाइए
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर होई बेगिहीं नास।।
तुलसीदास जी कहते है कि यदि गुरू, वैद्य और मंत्री भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते है तो धर्म, शरीर और राज्य इन तीनों का विनाश शीघ्र ही तय है।
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Tulsidas ke Dohe in Hindi with Meaning
करम प्रधान विस्व करि राखा।
जो जस करई सो तस फलु चाखा।।
तुलसीदास जी कहते है कि इश्वर ने कर्म को ही महानता दी है। उनका कहना है कि जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पन्थ।
सब परिहरि रघुवीरहि भजहु भजहि जेहि संत।।
तुलसीदास जी कहना है कि हमें संत जैसे करते हैं वैसे ही ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए। लालच, क्रोध, काम आदि ये सब नर्क जाने के रास्ते है। इसलिए हमें ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए।
तुलसीदास के सामाजिक दोहे
मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक।
पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।।
तुलसीदास जी कहते है कि मुखिया को हमारे मुहं के समान होना चाहिए। जो खाता तो एक है पर पूरे शरीर का पालन पोषण करता है।
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि।
सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि।।
तुलसी दास जी कहते है कि गुरू और स्वामि की अपने हित में दी गई सीख को कभी नहीं अपने सर चढ़ाना चाहिए। वह हृदय में बहुत ही पछताता है। एक दिन उसके हित हानि जरूर होती है।
तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
तुलसीदास जी इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जो दूसरों की बुराई करके अपनी खुद की प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहते हैं। इस चक्कर में अपनी प्रतिष्ठा खो देते हैं। एक दिन ऐसे लोगों के मुंह पर कालिख पुतेगी कि वह मरते दम तक साथ नहीं छोड़ेगी। चाहे वह कितनी ही कोशिश क्यों न कर लें, वह अपनी पहले जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता।
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।
तुलसीदास जी कहते है कि राम नाम कलपतरु और कल्यान का निवास हैं। जिसको स्मरण करने से भाँग सा तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया।
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Ramayan ke Dohe in Hindi
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।
तुलसीदास जी कहते है कि हमें भगवान पर भरोसा करके बिना किसी डर और भय के जीना चाहिए। कुछ भी अनहोना नहीं होगा और जिसे होना होगा वो होकर ही रहेगा। इसलिए हमें बिना किसी चिंता के ख़ुशी से अपने जीवन को जीना चाहिए।
तुलसी देखि सुवेसु भूलहिं मूढ न चतुर नर।
सुंदर के किहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।।
तुलसीदास जी कहते है कि सुंदर वेशभूषा देखकर कोई भी व्यक्ति चाहे मुर्ख हो या बुद्धिमान कोई भी धोखा खा जाता है। ठीक उसी प्रकार मोर दिखने में बहुत ही सुंदर होता है। लेकिन उसके भोजन को देखा जाए तो वह सिर्फ सांप और कीड़ो को ही खाता है।
सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर, होहिं बिषय रत मंद मंद तर।
काँच किरिच बदलें ते लेहीं, कर ते डारि परस मनि देहीं।।
इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि जो लोग मनुष्य का शरीर प्राप्त करके भी भगवन राम का नाम नहीं ले सकते और हमेशा बुरे विचारों में खोये रहते हैं वो लोग हमेशा उसी व्यक्ति की तरह आचरण करते हैं जो पारस मणि को तो अपने हाथों से फेक देता है और कांच के टुकडो को अपने हाथों में ले लेता है।
तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए नदी नाव संजोग।।
तुलसीदास जी कहते है कि इस संसार में कई तरह के लोग है। इन सब लोगो से मिल जुल कर बोलना और रहना चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक नौका नदी के साथ प्यार से एक किनारे से दुसरे किनारे पर पहुँच जाती है। इसी प्रकार मनुष्य भी अवश्य भवसागर से पार हो जायेगा।
तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
तुलसी जिअत बिडंबना, परिनामहु गत जान।।
तुलसीदास जी के दोहे अर्थ सहित
इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि जिसके पास धन, सदगुण, सुन्दरता और धर्म इन सबके बिना अभिमान होता है, उनके जीवन में बहुत परेशानियाँ होती और उनका परिणाम हमेशा ही बुरा होता है।
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तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।।
तुलसी दास जी कहते है कि समय ही सबसे बड़ा बलवान है। समय ही होता है जो सबको बड़ा या छोटा बनाता है। जैसे एक बार महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब था तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए।
बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।
तुलसीदास कहते हैं कि किसी भी स्त्री या पुरुष को उसकी मीठी बोली और सुंदर वस्त्रों से उसके मन के भावों की पहचान नहीं की जा सकती। क्योंकि कपड़े तो रावण के भी सुंदर थे और मन से मैली तो सर्पनखा भी थी।
रामायण के दोहे (Tulsidas ke Dohe on Ramayana)
बिना तेज के परुष की अवशि अवज्ञा होय।
आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवै सब कोय।।
तुलसीदास जी कहते है कि तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई महत्व नहीं दे।ते उसकी कोई बात नहीं मानते। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार राख की आग बुझ जाने पर हर कोई उसको छूता है।
आवत ही हरषे नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
तुलसी दास जी कहते है कि जहाँ आपके जाने से लोगों में ख़ुशी नहीं होती और आपका स्नेह और प्यार नहीं होता। वहां आपको कभी नहीं जाना चाहिए चाहे वहां पर धन की बारिश ही क्यों नहीं हो रही हो।
तुलसीदास के भक्ति पद
एक पिता के बिपुल कुमारा, होहिं पृथक गुन सील अचारा।
कोउ पंडित कोउ तापस ग्याता, कोउ घनवंत सूर कोउ दाता।।
एक पिता के सभी पुत्रों के गुण व आचरण अलग-अलग होते हैं कोई पंडित होता है, कोई ज्ञानी होता है, तो कोई तपस्वी और कोई दानी होता है।
आगें कह मृदु वचन बनाई, पाछे अनहित मन कुटिलाई।
जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।।
तुलसीदास जी कहते है कि ऐसे मित्र जो आपके सबने अच्छा बनकर रहते है और मन ही मन बुराई का भाव रखते है। जिसका मन सांप की चाल के समान टेढ़ा हो। ऐसे मित्र को आपको त्याग करने में ही भलाई है।
तुलसीदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित
मार खोज लै सौंह करि, करि मत लाज न ग्रास।
मुए नीच ते मीच बिनु, जे इन के बिस्वास।।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिनके पास बुद्धि नहीं होती अर्थात् निर्बुद्धि होते हैं वो ही ढोंगियों और कपटियों के शिकार में आते हैं। ये ढोंगी लोग पहले दोस्त बनाते हैं और समय आते ही अपना शिकार कर लेते हैं। हमें ऐसे लोगों से बचना चाहिए। क्योंकि इन लोगों को न तो समाज का भय होता है और न ही भगवान डरते हैं।
तुलसी साथी विपति के विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।
तुलसी दास जी कहते है कि मुश्किल समय में आपका साथ ये चीजे ही देती है ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और भगवान का नाम।
नयन दोस जा कहॅ जब होइ्र्र, पीत बरन ससि कहुॅ कह सोई।
जब जेहि दिसि भ्रम होइ खगेसा, सो कह पच्छिम उपउ दिनेसा।।
तुलसीदास कहते हैं कि जब किसी के आँख में दोष होता है तो उसे चाँद पीले रंग का दिखाई देता है और जब पक्षी के राजा को दिशाओं का भ्रम हो जाता है तो उसे सूर्य पश्चिम में उदय होता हुआ दिखाई देता हैं।
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मित्रता पर तुलसीदास के दोहे
आगें कह मृदु वचन बनाई, पाछे अनहित मन कुटिलाई।
जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जो मित्र आपके सामने मीठा बोलता हो और पीछे आपकी बुराई करता हो, जिसका मन सांप की चाल के समान टेढ़ा हो, ऐसे मित्रों का त्याग करना चाहिए।
देत लेत मन संक न धरई, बल अनुमान सदा हित करई।
विपति काल कर सतगुन नेहा, श्रुति कह संत मित्र गुन एह।।
तुलसीदास जी कहते हैं कि हमें अपने मित्र से लेन से कोई शंका नहीं करनी चाहिए। आप जितना उसकी भलाई कर सकते हैं, उसकी भलाई करें। वेदों में बताया गया है कि वह हमें संकट के समय में हमारी मदद के १०० गुणा से भी ज्यादा मदद और स्नेह करता है। हमेशा अच्छे मित्र के ये ही गुण होते हैं।
जिन्ह कें अति मति सहज न आई, ते सठ कत हठि करत मिताई।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा, गुन प्रगटै अबगुनन्हि दुरावा।।
जिनके स्वभाव में बुद्धि नहीं हो वो मुर्ख केवल अपने हठ के बल पर ही किसी से मित्रता करता हैं। सच्चे मित्र गलत रास्ते पर जाने से रोकते हैं और अच्छे मार्ग पर चलाते हैं, अवगुण छिपाकर केवल गुणों को ही प्रकट करते हैं।
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरू समाना।।
तुलसी दास जी कहते हैं कि जो मित्र अपने मित्र के दुःख से दुखी नहीं होता उसे तो देखने से भी बहुत पाप लगता हैं। अपने मित्र के पहाड़ के स्वरुप दुःख को धुल के बराबर और मित्र के साधारण धूल समान दुःख को सुमेरू पर्वत के समान जानना चाहिए।
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Very good thoughts, excellent.
Very good, inspiring and thoroughly enjoyable