रहीम दास के दोहे सार सहित (Rahim Das Ke Dohe in Hindi): हमनें अपने स्कूली दौर में रहीम दास के दोहे बहुत पढ़े होंगे, लेकिन शायद उस समय उनकी सार्थकता और गहराई का शायद हमें कम अंदाजा था। लेकिन रहीमदास जी के नीतिपरक दोहे आज भी हमारे समाज में उतने ही प्रसिद्ध और प्रचलति हैं जितने की यह उनके समय में रहे होंगे। आज हम रहीम दास के दोहों का बहुमूल्य संग्रह (Rahim Ke Dohe With Meaning) लेकर आये हैं, उम्मीद करते हैं आपको जरुर पसंद आयेंगे।

पहले हम आपको रहीमदास जी के संक्षिप्त जीवन परिचय से अवगत करवाना चाहते हैं, अगर आप रहीम दास जी के जीवन के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं, तो इसके लिए हमनें अपने ब्लॉग पर रहीम दास जी की जीवनी भी प्रकाशित की हैं जिसे आप पढ़ सकते हैं।
रहीम दास जी का संक्षिप्त जीवन परिचय (About Rahim in Hindi)
महाकवि रहीमदास जी जन्म 17 दिसंबर 1556 को लाहौर में हुआ जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित हैं, रहीमदास जी का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना था। रहीमदास के पिता का नाम बैरम खान तथा माता का नाम सुल्ताना बेगम था। इनके पिता बैरम खान मुग़ल सम्राट अकबर के सरंक्षक थे। कहा जाता हैं कि रहीमदास जी का नामकरण बादशाह अकबर द्वारा ही किया गया था।
रहीमदास जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। रहीमदास जी की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि के एक कुशल सेनापति, कूटनीतिज्ञ, प्रशासक, बहुभाषाविद, कवि एवं कलाप्रेमी थे।
रहीमदास बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार से हैं ‘नायिका भेद, मद्नाष्ट्क, रास पंचाध्यायी, बरवै, रहीम दोहावली और नगर शोभा। इसके साथ ही उन्होंने बाबर की आत्मकथा ‘तुजके बाबरी’ का अनुवाद तुर्की भाषा से फारसी में किया। रहीम दस की मृत्यु 1627 ईस्वी में आगरा शहर में हुई।
रहीमदास जी मुसलमान होते हुए भी भारतीय संस्कृति से भलीभांति परिचित थे, वे धार्मिक सद्भावना और हिन्दू-मुस्लिम एकता में यकीन रखते थे।
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रहीम दास के दोहे हिन्दी अर्थ सहित | Rahim Das Ke Dohe in Hindi
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे होय।।
रहीम जी कहते है कि संकट में तो प्रभु को सब याद करते है, लेकिन सुख में कोई नहीं करता। यदि आप सुख में प्रभु को याद करते है, तो दुःख आता ही नहीं।
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।
रहीम जी कहते है जैसे पृथ्वी पर बारिश, गर्मी और सर्दी पड़ती है और पृथ्वी यह सहन करती है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में सुख और दुःख सहन करना सीखना चाहिए।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।
रहीम जी कहते है कि बड़े को छोटा कहने से बड़े की भव्यता कम नहीं होती। क्योंकि गिरधर को कन्हैया कहने से उनके गौरव में कमी नहीं होती।
रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।
कवि रहीम यहाँ इस दोहे में कह रहे हैं कि आंसू आँखों से बहकर मन के दुःख को बाहर प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।
Rahim Das ke Dohe with Meaning
मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।।
रस, फूल, दूध, मन और मोती जब तक स्वाभाविक सामान्य रूप में है, तब तक अच्छे लगते है ।
लेकिन यह एक बार टूट-फट जाए तो कितनी भी युक्तियां कर लो वो फिर से अपने स्वाभाविक और सामान्य रूप में नहीं आते।
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।
इस दोहे के अर्थ में रहीम दास जी कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है।
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।
रहीम दास जी कहते हैं सही समय पर पेड़ पर फल लग जाता है और सही समय पर झड़ भी जाता है। हर समय किसी की भी अवस्था के समान नहीं रहती। इसलिए कभी भी दुःख के समय में पछतावा नहीं करना चाहिए।
रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।
रहीमदास जी कहते हैं कि यदि आप अपने मन को एकाग्रचित रखकर काम करेंगे, तो आप अवश्य ही सफलता प्राप्त कर लेंगे। उसीप्रकार मनुष्य भी एक मन से ईश्वर को चाहे तो वह ईश्वर को भी अपने वश में कर सकता है।
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह।।
इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं पाती। वह पानी से अलग होते ही मर जाती है।
बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
रहीम जी कहते है कि मनुष्य को बुद्धिमानी की तरह व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि यदि किसी कारण से कुछ गलत हो जाता है, तो इसे सही करना मुश्किल हो जाता है। जैसे एक बार दूध के ख़राब हो जाने से लाख कोशिश करने पर भी उसमें न तो मखन बनता है और न ही दूध।
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Rahim Das ji ke Dohe – Love Dohe in Hindi
Rahiman Dhaga Prem Ka Mat Todo Chatkay in Hindi
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परी जाय।।
रहीम जी कहते है कि प्रेम का संबंध बहुत ही नाजुक होता है। इसे झटका देकर तोड़ना अच्छा नहीं होता। यदि कोई धागा एक बार टूट जाता है तो उसे जोड़ना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। यदि वापस जोड़ते है तो उसमें गांठ आ ही जाती है। उसी प्रकार आपसी संबंध एक बार टूट जाने से मन में एक दरार आ ही जाती है।
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहें, बनत न लगिहैं देर।।
रहीम जी कहते है कि जब ख़राब समय होता है तो मौन करना ठीक होता है। क्योंकि जब अच्छा समय आता है, तब काम बनते विलम्ब नहीं होता। इस कारण हमेशा अपने सही समय का इन्तजार करें।
वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।
रहीम जी कहते है कि हमें हमेशा ऐसी वाणी बोलनी चाहिए, जिसे सुनने के बाद खुद को और दूसरों को शांति और ख़ुशी हो।
जे गरिब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।
रहीम जी कहते है कि जो लोग गरिब का हित करते है, वो बहुत ही महान लोग होते है। जैसे सुदामा कहते हैं कि कान्हा की मित्रता भी एक भक्ति है।
Rahim Das ke Dohe in Hindi – Rahim Ke Dohe With Pictures:
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।
रहीम जी कहते है कि खीरे की कड़वाहट को दूर करने के लिए उसके ऊपरी छोर को काटकर उस पर नमक लगाया जाता है। यह सजा उन लोगों के लिए है, जो कड़वा शब्द बोलते है।
रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।
रहीम जी कहते है कि संघर्ष जरूरी है। क्योंकि इस समय के दौरान ही यह ज्ञात होता है कि हमारे हित में कौन है और अहित में कौन है।
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रहीम जी के दोहे (Rahim Dohe in Hindi)
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।
रहीम जी कहते है कि पेड़ अपना फल स्वयं कभी नहीं खाता और सरोवर कभी अपना जल स्वयं नहीं पीता इसी प्रकार सज्जन और अच्छे व्यक्ति वो है जो दूसरों के लिए सम्पति संचित करते है।
थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात।।
जिस प्रकार क्वार के महीने में आकाश में घने बादल दिखते हैं पर बिना बारिश किये वो बस खाली गड़गड़ाने की आवाज़ करते हैं। उस प्रकार जब कोई अमीर व्यक्ति गरीब हो जाता है, तो उसके मुख से बस अपनी पिछली बड़ी-बड़ी बातें ही सुनाई पड़ती हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता।
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।।
रहीमदास जी इस दोहे में हमें अपने मन के दुख को अपने मन में ही रखना चाहिए। क्योंकि दुनिया में कोई भी आपके दुख को बांटने वाला नहीं है। इस संसार में बस लोग दूसरों के दुख को जान कर उसका मजाक उड़ाना जानते हैं।
ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।।
रहीम दास जी कहते है कि जिस मनुष्य का व्यवहार ओछा होता है, उसका साथ छोड़ देना चाहिए। उस व्यक्ति से हर अवस्था में नुकसान का सामना करना पड़ता है। जिस प्रकार अंगार गर्म होता है तो शरीर को जलाता रहता है और ठंडा होने पर शरीर को काला कर देता है।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।
रहीम दास के इस दोहे को दो अर्थों में लिया जा सकता हैं, जिस प्रकार किसी पौधे के जड़ में पानी देने से वह अपने हर भाग तक पानी पहुंचा देता है। उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही भगवान की पूजा-आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से ही उस मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।
इसके अलावा इस दोहे दूसरा अर्थ यह है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं। उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए। तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे।
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय।।
रहीम दास जी इस दोहे में कीचड़ का पानी बहुत ही धन्य है। यह इसलिए क्योंकि उसका पानी पीकर छोटे-मोटे कीड़े मकोड़े भी अपनी प्यास बुझाते हैं। परन्तु समुद्र में इतना जल का विशाल भंडार होने के पर भी क्या लाभ ? जिसके पानी से प्यास नहीं बुझ सकती है।
यहाँ रहीम जी कुछ ऐसी तुलना कर रहे हैं, जहाँ ऐसा व्यक्ति जो गरीब होने पर भी लोगों की मदद करता है। परन्तु एक ऐसा भी व्यक्ति, जिसके पास सब कुछ होने पर भी वह किसी की भी मदद नहीं करता है। इस दोहे के अर्थ में रहीमदास जी यह बताना चाहते हैं कि परोपकारी व्यक्ति ही महान होता है।
Bada Hua to Kya Huaa
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
इस दोहे के माध्यम से रहीम दास यह कहना चाहते हैं बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं की उससे किसी का भला हो।
जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हैं लेकिन उसका फल इतना दूर होता है की तोड़ना मुश्किल का कम है।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
रहीमदास जी इस दोहे में कहते हैं जिस प्रकार फटे हुए दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता है। उसी प्रकार प्रकार अगर कोई बात बिगड़ जाती है तो वह दोबारा नहीं बनती।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
रहीम जी कहते है जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता है, उनका बूरी संगती भी कुछ नहीं बिगाड़ पाती जैसे जहरीले सांप सुगन्धित चंदन के पेड़ के लिपटे हुए रहते है पर उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाते।
Rahim Das ji ke Dohe in Hindi – Rahiman Dhaga Prem Ka:
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
रहीम दास जी कहते है कि बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को फेक नहीं देना चाहिए। जहां सुई काम आती है वहां बड़ी तलवार क्या कर सकती है।
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।
रहीमदास जी इस दोहे में बहुत ही महत्वपूर्ण बात कह रहे है। जिस प्रकार बिना पानी के कमल के फूल को सूखने से कोई नहीं बचा सकता। उसी प्रक्रार मुश्किल पड़ने पर स्वयं की संपत्ति ना होने पर कोई भी आपकी मदद नहीं कर सकता है।
रहीम जी इस दोहे के माध्यम से संसार के लोगों को समझाना चाहते हैं की मनुष्य को अपनी संपत्ति का संचय करना चाहिए, ताकि मुसीबत में वह काम आये।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
रहीम जी कहते हैं इस संसार में पानी के बिना सब कुछ बेकार है। इसलिए पानी को हमें बचाए रखना चाहिए। पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है चाहे वह मनुष्य, जीव-जंतु हों या कोई वस्तु।
‘मोती’ के विषय में बताते हुए रहीम जी कहते हैं पानी के बिना मोती की चमक का कोई मूल्य नहीं है। ‘मानुष’ के सन्दर्भ में पानी का अर्थ मान-सम्मान या प्रतिष्ठा को बताते हुए उन्होंने कहा है जिस मनुष्य का सम्मान समाप्त हो जाये उसका जीवन व्यर्थ है।
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।
रहीमदास जी कहते है जिस प्रकार कोई कीड़ा अगर लात मारता है तो कोई फर्क नहीं पड़ता है। उसी प्रकार छोटे यदि गलतियां करें तो उससे किसी को कोई हानि नही पहुँचती है। अतः बड़ों को उनकी गलतियों को माफ़ कर देना चाहिये।
Rahim Das Ke Dohe in Hindi
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।
वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है. उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।
वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।
रहीम दास जी कहते है कि पेड़ कभी भी अपना फल स्वयं नहीं खाता और नदी कभी भी अपना जल संचित नहीं करती। उस प्रकार सज्जन परोपकार के लिए देह धारण किया करते है।
रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।।
रहीम जी कहते है कि गिरे हुए लोगों से न ही दोस्ती अच्छी होती और न ही दुश्मनी। जैसे कुते चाटे या काटे दोनों ही अच्छा नहीं होता।
Rahim ke Dohe Arth Sahit
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं।।
रहीम जी कहते है कि कोयल और कौआ दोनों काले रंग के होते है। जब तक उनकी आवाज नहीं सुनाई देती उनकी पहचान नहीं होती। लेकिन जब वसंत ऋतू आती है तो कोयल की मधुर आवाज से अंतर स्पष्ट हो जाता है।
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।
रहीम जी कहते है कि यदि आपका प्रिय आपसे रूठ जाये तो उसे मना लेना चाहिए। क्योंकि यदि मोतियों की माला टूटती है तो उसे भी सही किया जाता है।
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Rahim Ke Dohe in Hindi – Dohas of Rahim in Hindi
Rahim Ji Ke Dohe
जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि।
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।।
इस दोहे के माध्यम से रहीम दास जी कहना चाहते हैं कि आग एक बार सुलग जाने पर बाद में कुछ समय में ही बुझ जाती है। फिर वापस नहीं सुलग पाती है। लेकिन प्रेम की आग बुझने पर भी बाद में सुलग जाती है और सभी भक्त इस प्रेम की अग्नि में सुलगते रहते है।
धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय।
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।।
इस दोहे में रहीम जी कहते हैं कि प्रेम करना है तो मछली की तरह करो। जो पानी से बिछुड़ जाने पर अपने प्राण त्याग देती है। एक भंवरा जो एक फूल का रस लेकर दुसरे फूल में चला जाता है। इसका प्रेम तो छल है। अर्थात् जो अपने स्वार्थ के लिए प्रेम करता है वह स्वार्थी है।
Rahim ke Dohe with Meaning in Hindi
सबको सब कोउ करै कै सलाम कै राम।
हित रहीम तब जानिये जब अटकै कछु काम।।
रहीम जी कहते है कि ऐसे तो सभी लोग राम सलाम करते ही हैं। पर जो व्यक्ति आपके अटके हुए समय में आपकी सहायता करता है और उस समय आपके बारे में सोचता है, वही आपका अपना होता है।
रहिमन रिस को छाडि कै करो गरीबी भेस।
मीठो बोलो नै चलो सबै तुम्हारो देस।।
इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि सभी को सादगी में रहना चाहिए। क्रोध में कुछ नहीं है। सभी से प्रेम से बोलो। आप अपने चलन को नम्र रखो। ऐसा करने से आपकी संसार में प्रतिष्ठा बनी रहेगी।
Rahim Ke Dohe Meaning – Rahim Kavi Ke Dohe
Rahim Das ka Doha
कहि रहीम या जगत तें प्रीति गई दै टेर।
रहि रहीम नर नीच में स्वारथ स्वारथ टेर।।
रहीम जी का मानना है कि इस संसार से प्रेम समाप्त हो गया है। सभी अपने स्वार्थ में रहने लगे हैं और दुनिया पूरी स्वार्थी हो गयी है। दुनिया पूरी मानव रहित हो गयी है।
अंतर दाव लगी रहै धुआन्न प्रगटै सोय।
कै जिय जाने आपनो जा सिर बीती होय।।
रहीम दास जी कहते हैं कि जो हृदय में आग लगी है उसका धुँआ कभी दिखाई नहीं देता और इस धुंए का दुःख वह स्वयं ही जान सकता है जिसके ऊपर यह सब बीत रहा है। प्रेम के आग की तड़प तो केवल प्रेमी ही अच्छे तरीके से अनुभव कर सकता है।
Rahim ke Dohe Lyrics
रहिमन पैंडा प्रेम को निपट सिलसिली गैल।
बिछलत पाॅव पिपीलिका लोग लदावत बैल।।
रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम की राह तो फिसलन भरी है। इस फिसलन में तो चींटी भी फिसल जाती है और लोग इसे बैल पर लाद कर अधिक से अधिक पाने की कोशिश करते हैं। रहीम जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति में कोई छल नहीं होता है वहीँ इस राह में सफल हो पाता है।
Rahim ke Dohe in Hindi with Meaning Class 9
रहिमन सो न कछु गनै जासों लागो नैन।
सहि के सोच बेसाहियेा गयो हाथ को चैन।।
रहीम जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति को प्रेम हो गया है वह व्यक्ति किसी के कहने समझाने से भी नहीं मानने वाला है। जैसे कि उस व्यक्ति उसने अपना सभी चैन और सुख प्रेम के बाजार में बेच कर दुःख वियोग खरीद लिया हो।
रहीम के दोहे अर्थ सहित (Rahim ke Dohe Song YouTube)
रहीमदास जी के दोहे जितने पढ़ने में प्रीतिकर लगते हैं उतने ही सुनने में भी लगते हैं। इसलिए हमनें यहाँ रहीमदास के दोहों के विडियो का लिंक भी दिया हैं। युकी कैसेट द्वारा प्रस्तुत शैलेन्द्र जैन और अंजलि जैन की आवाज में रहीमदास के दोहे सुनकर आपका मन प्रसन्न हो जायेगा। हमनें यूट्यूब विडियो का लिंक दिया हैं।
इसके साथ ही हमनें एक और यूट्यूब का विडियो सलंग्न किया हैं जिसे आप देख सकते हैं। यह दोहे कक्षा 6, कक्षा 7, कक्षा 8, कक्षा 9 और कक्षा 10 के लिए भी उपयोगी हैं।
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आपके द्वारा लिखे गए कबीर के दोहों ने मुझे बहुत ही उत्साहित किया है इसके लिए आपका धन्यवाद
धन्यवाद सर
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बहुत अच्छा हैं ….
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